मोहन भागवत का जीवन परिचय Biography of Mohan Bhagwat in Hindi

मोहन भागवत का जीवन परिचय Biography of Mohan Bhagwat in Hindi 72 की आयु में भी एक ब्रहाचरी के समान जीवन जीकर अपने बेबाक बयानों से अक्सर सुर्खियां बटोरने वाले मोहन भागवत दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवक ग्रुप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अध्यक्ष हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अन्य कई ब्रांच भी है, जैसे कि दुर्गा वाहिनी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ इत्यादि। 

मोहन भागवत का जीवन परिचय Biography of Mohan Bhagwat in Hindi

मोहन भागवत का जीवन परिचय Biography of Mohan Bhagwat in Hindi

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समय-समय पर भारत में आने वाली प्राकृतिक आपदा में लोगों की सहायता करता है। इसमें जो भी शामिल होता है, उसे कोई भी सैलरी प्राप्त नहीं होती है, परंतु फिर भी लोग इसमें सेवा भाव से शामिल होते हैं।

मोहन भागवत अविवाहित हैं, साथ ही यह हिंदू धर्म के उत्थान के भी प्रबल समर्थक हैं। यह हिंदू धर्म में फैली हुई जाति व्यवस्था के बिलकुल खिलाफ है।

मोहन भागवत का व्यक्तिगत परिचय

नाम- मोहन भागवत
जन्म तिथि11 सितंबर 1950
आयु67 वर्ष (2017 के अनुसार)
पितामधुकर राव भागवत
माता मालती बाई
दादा- नारायण भागवत
जातिब्राह्मण
माँ ज्ञात नहीं
विवाह / वैवाहिक स्थितिअविवाहित
पत्नीज्ञात नहीं
बेटा ज्ञात नहीं
बेटीज्ञात नहीं
धर्म- हिंदू धर्म
सुरक्षा- Z + सुरक्षा
ऊंचाई5’8 लगभग
वजन72 किलो लगभग
काम कियाराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
शिक्षा: ग्रैजुएट 
डिग्री: बैचलर ऑफ साइंस

मोहन भागवत का प्रारंभिक जीवन

भारत की प्रसिद्ध हिंदूवादी संस्था और दुनिया के सर्वोच्च स्वयंसेवक संघ के तहत जाने जाना वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी कि आर एस एस के चीफ भागवत जी का जन्म सन 1950 में देश के महाराष्ट्र राज्य के चंद्रपुर नामक स्थान पर एक छोटे से गांव में 11 सितंबर को हुआ था।

 आपकी इंफॉर्मेशन के लिए बता दें कि, मधुकर राव भागवत, मोहन भागवत का पूरा नाम है। इनकी माता जी का नाम मालती बाई है वहीं इनके पिता जी का नाम मधुकर राव है।

इनके माता-पिता की कुल 4 संताने थी, जिनमें से तीन बेटे है और एक बेटी है, जिनमें से मोहन भागवत सबसे बड़े बेटे थे।

संघ संचालक मोहन भागवत  की शिक्षा –

अपनी प्रारंभिक शिक्षा महाराष्ट्र राज्य के चंद्रपुर से ही मोहन भाग वत  ने पूरी की थी,इन्होंने जिस स्कूल से अपनी प्रारंभिक एजुकेशन पूरी की थी, उसका नाम लोकमान्य तिलक स्कूल था। 

उसके बाद मोहन भागवत ने चंद्रपुर में ही स्थित जनता कॉलेज में एडमिशन लिया और वहां से उन्होंने बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। इसके अलावा मोहन भागवत ने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से एनिमल ट्रीटमेंट और एनिमल पॉलीट्री में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी।

संघ सहित तीन पीढ़ी पुराना नाता-

 बता दें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मोहन भाग वत  का रिश्ता 3 पीढी पुराना है। दरअसल बात ऐसी है कि मोहन भागवत के जो दादा थे, उनका नाम नारायण भागवत था, वह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे और इनके पिता जी मधुकर भागवत भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे। 

मोहन भाग वत  के पिताजी ने गुजरात में कुछ सालों तक आर एस एस के प्रचारक के तहत भी काम किया था और अपने काम करने के दरमियान इन्होंने गुजरात में काफी बड़ी मात्रा में लोगों को आर एस एस के उद्देश्यों के बारे में बताया और कई लोगों को RSS में जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

मोहन भागवत के पिताजी मधुकर भागवत ने ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लालकृष्ण आडवाणी जी का संपर्क करवाया था।

जब मोहन भागवत बने गवर्नमेंट ऑफिसर-

पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने गवर्नमेंट नौकरी करना स्टार्ट कर दिया।इन्हें एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट में वेटनरी ऑफिसर की नौकरी प्राप्त हुई थी।

स्टार्टिंग में सबसे पहले मोहन भाग वत  को चंद्रपुर में काम करने का मौका मिला है, परंतु कुछ दिनों तक चंद्रपुर में काम करने के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया और ट्रांसफर होने पर उन्हें चंद्रपुर से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित चमोर्शी नामक जगह पर जाना पड़ा।

आपातकाल ने बदली जिंदगी

वर्ष 1974 में देश में काफी उठापटक चल रही थी, क्योंकि उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। इसी दरमियान जब साल 1974 में अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन को करने के लिए भागवत  महाराष्ट्र राज्य के अकोला शहर में गए,तो उसके कुछ ही दिनों के बाद साल 1975 में इंदिरा गांधी के आदेश पर देश में आपातकाल यानी कि इमरजेंसी की घोषणा की गई।

  जिसके बाद कई क्रांतिकारियों की और कई लोगों की गिरफ्तारी जबरदस्ती की गई और उन्हें कई दिनों तक जेल में रखा गया। जब इंदिरा गांधी के द्वारा साल 1975 में इंडिया में आपातकाल लगाया गया, तो मोहन भाग वत  अपनी पढ़ाई छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचार करने के लिए आर एस एस का प्रचारक बन गए। 

इंदिरा गांधी के द्वारा आपातकाल की घोषणा करने के बाद जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, उनमें मोहन भागवत के माता-पिता भी शामिल थे। उन्हें भी पुलिस को द्वारा गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। आपातकाल के दरमियान मोहन किसी एकांत जगह पर चले गए थे।

जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसंघचालक बने मोहन भागवत-

मोहन भागवत को वर्ष 1991 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शारीरिक ट्रेनिंग कार्यक्रम का ऑल इंडिया प्रमुख बनाया गया था, जिसके बाद साल 1991 से लेकर सन 1999 तक मोहन भागवत ने इस पद को संभाला और इस दरमियान उन्हें हमारे पूरे देश के संघ प्रचारको का मुख्य व्यक्ति भी बनाया गया।

 साल 2000 में संघ के तत्कालीन प्रमुख राजेंद्र सिंह और तत्कालीन सरकार्यवाह एच वी शेषाद्री को स्वास्थ्य से संबंधित कुछ समस्याएं उत्पन्न हो गई थी, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था इसीलिए स्वास्थ्य से संबंधित समस्या के कारण इन दोनों ने अपना पद छोड़ दिया।

 राजेंद्र सिंह और एच वी शेषाद्री के पद छोड़ने के बाद मोहन भागवत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरकार्यवाह बनाया गया और एस सुदर्शन को संघ का प्रमुख बनाया गया।

इसके बाद साल 2009 में एस सुदर्शन ने संघ के मुख्य अध्यक्ष के पद को छोड़ दिया।इसके बाद साल 2009 में ही 21 मार्च को मोहन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसंघचालक बनाया गया।

मोहन भागवत का परिवार 

मोहन भागवत के परिवार में इनके माता-पिता के अलावा इनके दो भाई और एक बहन भी है। कई लोग इंटरनेट पर सर्च करते रहते हैं कि मोहन भागवत जी की बेटी या फिर बेटे का नाम क्या है अथवा उनकी पत्नी का नाम क्या है,

ऐसे में हम आपको बता दें कि इनका ना तो कोई बेटा है, ना ही कोई बेटी है ना ही कोई पत्नी है,क्योंकि इन्होंने शादी ही नहीं की है। इस प्रकार से बेटा और बेटी अथवा पत्नी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।

भागवत का जातीय अस्पृश्यता पर विचार-

एक व्यवहारिक नेता के तौर पर हमारे देश में मोहन भागवत की छवि लोगों के समक्ष है। यह हिंदुत्व के प्रबल समर्थक हैं, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदुत्व की ही संस्था कहा जाता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अध्यक्ष मोहन भागवत के अनुसार हिंदुत्व के विचारों को आधुनिकता के साथ आगे लेकर जाया जा सकता है।

इसके साथ ही उन्होंने टाइम के हिसाब से चलने पर भी जोर दिया है। हिंदू समाज में फैली हुई जाती व्यवस्था के ऊपर मोहन भागवत ने कई बार अपने विचार प्रकट किए हैं, उनके अनुसार हिंदू धर्म में जातिवाद का कोई भी स्थान नहीं होना चाहिए, ना ही किसी व्यक्ति को जाति के आधार पर किसी भी अन्य व्यक्ति को प्रताड़ित या फिर परेशान करने का अधिकार है। 

इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि अनेकता में एकता के सिद्धांत को आधार बनाकर ही हिंदू समुदाय के बीच एकता लाई जा सकती है और उनके बीच फैली हुई जातीय असमानता की भावना को खत्म किया जा सकता है। मोहन भाग वत के अनुसार हर हिंदू को अपने घर से ही जातिवाद को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए।

मोहन भागवत के विवाद

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पद पर रहते हुए कई बार मोहन भागवत ने जब अपने विचार प्रकट किए हैं, तो उनपर गहरा विवाद भी हुआ। हालांकि मोहन भाग वत के अनुसार उन्होंने जो विचार प्रकट किए हैं, उसमें विवादित कुछ भी नहीं है।

वह ऐसा कहते हैं कि उनके सीधे साधे बयानों को भी मीडिया तोड़ मरोड़ कर पेश करता है। नीचे मोहन भागवत के कुछ तथाकथित विवादित बयान हैं।

एक बार भागवत ने यह कहा था कि महिलाओं को घर का काम करना चाहिए और पुरुषों को बाहर जा करके काम धंधा करके रोटी कमाना चाहिए। उनके इस बयान पर काफी ज्यादा विवाद हुआ था और कई नारीवादी संगठन ने मोहन भागवत पर सवाल उठाए थे।

एक बार मोहन भागवत ने यह कहा था कि इंडिया में जितने भी मुसलमान हैं, उन्हें हिंदू के रूप में ही संबोधित किया जाना चाहिए।इस पर भी काफी ज्यादा विवाद हुआ था।

एक अन्य बयान में मोहन  ने कहा था कि मदर टेरेसा लोगों की सेवा नहीं करती थी,बल्कि उनकी सेवा करके उनका धर्मांतरण करवाने का काम करती थी।

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