बचपन पर कविता | Childhood Bachpan Poem In Hindi

बचपन पर कविता | Childhood Bachpan Poem In Hindi: दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत हैं, आज के आर्टिकल में हम बचपन अर्थात चाइल्डहुड पर पोएम कविता पोइट्री लेकर आए हैं.

जीवन का सबसे अहम दौर बालपन हम सभी की यादों में बसा होता हैं. किसी न किसी रूप में हमारे बालपन की यादे जीवन में किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाती हैं.

आज की कविताओं में बालपन के जीवन की कुछ ऐसी ही झलकियों को यहाँ दर्शाया गया हैं.

बचपन पर कविता Childhood Bachpan Poem In Hindi

Childhood Bachpan Poem In Hindi

फिर लौट आए बचपन

चेहरे के रंगों से परे, बोलने के ढंगों से परे..
मेरे बचपन में,,, कुछ जूनून भी था, कुछ सुकून भी था.
कुछ खेलों का सहारा था, माँ का आंचल बचपन में ज्यादा प्यारा था

कुछ लम्हे भी सहेजे थे दोस्तों के साथ
जिन्होंने बचपन को बहुत संवारा था

कोई फ़िक्र न थी पढ़ने की,
न ही होड़ थी किसी से आगे बढ़ने की
काश मेरा बचपन फिर लौट आए और
मैं फिर से कोशिश कर सकूं उन झूलों पर चढ़ने की

बचपन की ओर लौट जा कविता

कांता मीना

सुबह शाम की दौड़ छोड़
तू बचपन की ओर लौट जा
तू बचपन की ओर लौट जा

सपनों के पीछे भी दौड़ा
अपनों के पीछे भी दौड़ा
पर अब बचपन की और लौट जा
माँ के आंचल को एक बार
फिर से थाम ले
तू अपने बचपन की ओर लौट जा

छोटी छोटी पगडडी पर चलकर
तू खेतों की ओर दौड़ जा
तू बचपन की ओर दौड़ जा

तू कोयल के पीछे कु कू करता
तू पनघट की ओर दौड़ जा
तू बचपन की ओर लौट जा
तू जुगनू के पीछे मत भागे और
छत की मुंडेर पर लौट जा

तू बचपन की ओर लौट जा
तू बचपन की ओर लौट जा

Hindi Poems on Childhood – बचपन पर हिन्दी कविताएँ

एक बचपन का जमाना था
जिस में खुशियों का खजाना था
चाहत चाँद को पाने की थी
पर दिल तितली का दीवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की
ना शाम का ठिकाना था
थक कर आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था
माँ की कहानी थी
परियो का फसाना था
बारिश में कागज की नाव थी
हर मौसम सुहाना था

Harivansh Rai Bachchan Poem On Bachpan

Harivansh Rai Bachchan Poem On Bachpan

मेरा बचपन पर कविता

ख़्वाब था या हकीकत बीत गया जो बचपन हमारा
बेफिक्र थी वो जिन्दगी क्यों ना आती हैं वो लौटकर

कुछ इस तरह से बना भोली सूरत करते थे शैतानिया
शिकायतें भी हमारी हो जाती थी अनसुनी कभी कभी
करते हैं वो पल आज भी याद होठों पे लिए मुस्कान
काश रख पाते सहेजकर उन बचपन के लम्हों को हम

ख़्वाब था या हकीकत बीत गया जो बचपन हमारा
वेफिक्र थी वो जिन्दगी क्यों ना आती हैं वो लौटकर

गुजर गये हैं वो पल सारे बीएस रह गई हैं यादें उनकी
छूट गई वो बचपन की डोर ना जाने कब हाथों से हमारे
करता हूँ बेशुमार कोशिश आज भी दुबारा थामने की उसे
पर ना आती हैं वो नजर मालूम नहीं कहाँ हो गई ओझल

ख़्वाब था या हकीकत बीत गया जो बचपन हमारा
बेफिक्र थी वो जिन्दगी क्यों ना आती हैं वो लौटकर

Short Poem On Mera Bachpan In Hindi

                            (1)

पल पल सताती फिर भी लगती है प्यारी हमको
बेपरवाह सी ये नादानियाँ बचपन की मनमर्जियां
मंद मंद मुस्काते हैं जब ये नजरें चुरा हमसे
कर जाते हैं कुछ शैतानियाँ बनाते हैं कहानियाँ
खफा खफा से हो जाते हैं ये नन्हें मुन्हें जब हमसे
याद आती इनकी बदमाशियाँ और गुस्ताखियाँ


(2)

हर शख्स लगता अपना सा, ना ही कोई बेगाना
गुजर गया वो वक्त लगता था जो खुशियों का खजाना
कभी अपनों से रूठ जाना तो कभी परायों को मनाना
ना ही थी कोई चिंता ना ही था गमों का कोई ठिकाना
याद आता हैं हर पल, बचपन का वो वक्त सुहाना


(3)

जो जिया था बचपन बेफिक्र हो
अगर वो लौट आये जीवन में वापिस
ना करूं मैं फ़िक्र आने वाले पल की
लेकर आ जाऊं लबों पे मुस्कान उनके
रूठ गये जो जीवन के कश्मकश से
समेट लू उन लम्हों को दामन में अपने
बह ना जाए ये पल वक्त के दरिया संग
जो जिया था बचपन बेफिक्र हो
अगर वो लौट आये जीवन में वापिस


(4)

देख बच्चों को यूं खेलते, आ जाता है याद बचपन का वो वक्त सुहाना
बिना मतलब के दोस्तों को सताना, कभी रूठना तो कभी मनाना
कर शरारत आंचल में माँ के छुप जाना, सबसे यूँ नजरे चुराना
लगता है मधुर बचपन का वो जमाना, होता हैं ये खुशियों का खजाना
देख बच्चों को यूँ खेलते, आ जाता हैं याद बचपन का वो वक्त सुहाना


                              (5)

कितने सुहाने होते थे दिन वो बचपन के
ना होती कोई फ़िक्र ना कोई जिम्मेदारी
सुबह शाम बस आते नजर खेल खिलौने
जो ना होती कोई पूरी जिद हमारी
समय बिताते सारा रूठने मनवाने में
हो जाता जब मनचाहा झूम जाते आंगन में
बिखेर खुशियाँ हर ओर लाते लबो पे मुस्कान
कितने सुहाने होते थे दिन वो बचपन के


 (6)

याद आता है अब वो बचपन का जमाना
हर पल लगता था खुशियों का खजाना
हर कोई होता था हमारी नादानियों का दीवाना
ना होती रोने की वजह ना हंसने का बहाना
मंद मंद मुस्कान लिए सदा माँ को सताना
कभी रूठना तो कभी मनाना
याद आता हैं अब वो बचपन का जमाना

Bachpan Poem In Hindi

Bachpan Poem In Hindi

बचपन की यादे, हास्य कविता बच्चों के लिए

आज जरा सोच को अपनी भुलाते हैं.
ना तुम कुछ कहो ना हम फरमाते है
ऑंखें बंद करू मैं तुम्हारी
चलों बचपन का खेल फिर से दोहराते है

ना छल हो, ना कोई छलावा
और ना कोई हमारे अलावा
दुनियां की तहजीब भूलकर
आज फिर, शेर सा गुर्राते है

मासूमियत भरा वो दिल लेकर
जी भर दौड़ लगाते है
फिर से तुम छुप जाओ कहीं
तुम्हे ढूढ़ खिलखिलाते हैं.

भूल जाए अब गिले शिकवे
मन को थोड़ा ह्ल्काते है
बचपन का वो प्यार हमारा
चलो फिर दिल में जगाते है

आओ इक बार फिर से हम
बचपन का इश्क निभाते है,

बचपन बुला रहा है हिंदी कविता

पलटे जब जीवन के पन्ने, तो लगा
हर मोड़ पर कोई बुला रहा है
जब शुरू के पन्ने खोले तो लगा
हमें बचपन बुला रहा है.

कोई उड़ती तितलियों को बुला रहा है
तो कोई ऊँगली पकड़ चलना सिखा रहा है.

धुंधली सी याद है कोई बिस्कुट खिला रहा है
तो कोई साथ दौड्कर साइकिल चलाना सीखा रहा है
स्कूल की यादों के पन्ने पलटे तो लगा
बचपन के साथियों का जत्था बुला रहा है.

कही स्कूल जाने का रास्ता बुला रहा है
तो कही बालू के ढेरों पर खेला खेल याद आ रहा है
कहीं स्कूल टीचर का उठा हाथ याद आ रहा है
तो कहीं लौटते भाई का साथ बुला रहा है.

बढ़ते बचपन के पन्ने पलटे तो लगा
कहीं पेड़ों पर चढ़े साथी का फेका आम याद आ रहा है
तो कहीं क्रिकेट व हॉकी का मैदान याद आ रहा है
कहीं साइकिल दौड़ में आगे भागे साथी का नाम याद आ रहा है
तो कहीं कैंटीन में अंत्याक्षरी का दौर याद आ रहा है

यादों के आगे के पन्ने पलटे तो लगा
सुखद क्षणों का सिलसिला पुनः बुला रहा है
बैडमिंटन और गेंद तड़ी का खेल याद आ रहा है.

तो कहीं उड़ाई पतंगों का रंग याद आ रहा है
कहीं स्कूल ड्रिल और पी टी का गुंजन बुला रहा है
तो कहीं स्कूल बिल्डिंग और परिसर याद आ रहा है.

जीवन के कुछ और पन्ने पलटे तो लगा
ऐसे सुखद पल लौटे न लौटे, पर बचपन बुला रहा है.

बचपन ही अच्छा था Poems On Childhood In Hindi By Famous Poets

पूरी स्कूल लाइफ, सुबह सुबह मम्मी ने ही उठाया है,
अब अलार्म के भरोसे उठता हूँ, आज भी चार बार स्नूज़ दबाया है..….
बिना नाश्ता किये मम्मी घर से निकलने नही देती थी,
कैंटीन में कुछ् खाने के लिए पैसे अलग से देती थी…..
अब नाश्ता स्किप हो के सीधा लंच का नंबर आता है,
फ्लैटमैट्स ने एक बंदा रक्खा है…खाना वही बनाता है….
आज आलू पराठा बना था, पराठा फिर से कच्चा था,
मैं ख़ामख़ा ही बड़ा हुआ यार, बचपन ही अच्छा था….
बस टेस्ट की टेंशन होती थी, या होमवर्क निपटने की,
ना मीटिंग्स वाली दिक्कत थी, ना पॉलिटिक्स सुलझाने की…
नींद भी चैन की आती थी और सपनों में खो जाता था,
बिना बात की बातों पे हंस के कई लीटर खून बढ़ाता था…
अब कॉरपोरेट स्माइल देता हूँ, तबका मुस्काना सच्चा था,
मैं ख़ामख़ा ही बड़ा हुआ यार, बचपन ही अच्छा था….
दोस्त भी तब के सच्चे थे, जान भी हाज़िर रखते थे,
ज्यादा नम्बर पे चिढ़ जाते थे, पर मुह पे गाली बकते थे…
कॉम्पिटिशन तो तब भी था, बस स्ट्रेस के लिए जगह ना था,
हर रोज़ ही हम लड़ लेते थे, लड़ने की कोई वजह ना थी…
अब दोस्ती भी है हिसाब की, किसने किसपे कितना खर्चा था,
मैं ख़ामख़ा ही बड़ा हुआ यार, बचपन ही अच्छा था….
बचपन ही अच्छा था।।।।।

Childhood Subhadra Kumari Chauhan Bachpan Poem In Hindi

Childhood Subhadra Kumari Chauhan Bachpan Poem In Hindi
Childhood Subhadra Kumari Chauhan Poem In Hindi
Subhadra Kumari Chauhan Poem In Hindi

Poem On Childhood Memories In Hindi By कर्णिका पाठक (दीपावली)

आई रे आई याद चली आई
वो खेलना, कूदना, वो छुपम छुपाई
वो छुट्टी के दिन, वो आलस भरी अंगड़ाई
रंग बिरंगी पतंगे हमने खूब उड़ाई
गिल्ली डंडे की आवाज भी लगाई
कागज की कश्ती पानी में चलाई
बारिश के गड्डों में छलांग भी लगाई
वो किताबों की दुनियां वो परीक्षा की घड़ियाँ
वो पढ़ना पढाना, वो आंसू वो बहाना
वो दोस्तों से लड़ना, वो रूठना मनाना
मुझे याद आता है वो बचपन सुहाना
यादों से भरा मेरा बचपन सुहाना

मेरे बचपन की छोटी छोटी कविताएँ

बचपन की छत | विजय बैसला

छत भी गयी
और छतरी भी
रह गई बस
छटपटाती छातियाँ
और उसमें
चीख पुकार करती
समय की
समझदारियां
कुछ कहीं हुई सी
कुछ सुनी सुनी सी
सन्नाटे के शोर सी
जनवरी की छत पर
गिरती हुई ओस सी
समय की धुप से पिघलती
नीर सी बहती
त्रिकोणी छत से टपकती यादें
कुछ ऐसे गुम हो गई
मानो देखते ही देखते
गोधुलि ने दिन निगल लिया हो

गुजर गये बचपन के वो दिन
गुजर गये बचपन के वो दिन, छूट गया दोस्तों का याराना
रह गई संग यादें पुरानी, बीत गया वो वक्त सुहाना
दोस्तों संग मिल, कर शरारत बेवजह लोगों को सताना
सुन शिकायत पापा का डांटना, और माँ का हमें बचाना
कर जिद अपनी बात मनवाना और दोस्तों को चिढ़ाना
हर शख्स होता था दीवाना हमारा, अपना हो या बेगाना
ख्वाइश हैं मिल जाए फिर से, बचपन को जीने का बहाना

मेरा बचपन कविता सारंग थत्ते
जब नहीं था फेसबुक, मोबाइल और टेबलेट का जमाना
बचपन के दिन भी क्या थे अब तुम्हे क्या बताना

पेड़ों पर चढकर वो जामुन, विलायती ईमली, लाल ईमली और अमरुद का तोड़ना
घर के बाहर वो टववा, बैडमिंटन क्रिकेट और गिल्ली डंडे का खेलना
गर्मी में घर के भीतर मोनोपाली, ताश, लूडो, सांप सीडी और अष्ट चंग पे का हारना
गेहूं की बोरी से कंकर का बीनना
पतंग के लिए मांजे का सूतना, अंगुलियों का कटना
बर्फ के गोले छुप छुप कर लाले के ठेले से खाना
माँ की डांट और स्कूल टीचर का मुर्गा बनाना

नहीं था फेस बुक, मोबाइल और टेबलेट का जमाना
घर में काम बहुत था
क्र में काम बहुत था, कोने की चक्की से गेहूं पिसवाना
लोड्री से कपड़े प्रेस को देना और लाना
टेलीग्राफ ऑफिस से साइकिल से तार करने जाना
गुरूवार को फूलों का हार शाम को घर जरुर लाना
अब बोलों बच्चों से आटे का डिब्बा है उठाना
तब बिना झिझक के हमने माता पिता का कहना था मानना
तब नहीं था फेसबुक, मोबाइल टेबलेट का जमाना
बचपन के दिन भी क्या थे, अब तुम्हे क्या बताना

मेरा नया बचपन
बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त ख़ुशी मेरी
चिंता रहित खेलना खाना वह फिरना निर्भय स्वछन्द
कैसे भुला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद
ऊंच नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी
बनी हुई थी वहां झोपडी और चीथड़ों में रानी
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अंगूठा सुधा पिया
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया
रोना और मचल जाना भी क्या आनन्द दिखाते थे
बड़े बड़े मोती से आंसू जयमाला पहनाते थे.

यह भी पढ़े

उम्मीद करता हूँ दोस्तों बचपन पर कविता | Childhood Bachpan Poem In Hindi में दी गई समस्त बचपन की कविताएँ आपकों पसंद आई होगी,

हमने इसे आपके लिए विभिन्न स्रोतों से इकट्ठी की हैं. यदि आपकों ये लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे जिनके साथ आपने अपना बचपन व्यतीत किया हैं.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *