चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास Chittorgarh Fort History in Hindi: एक ऐसा किला जिसने सबसे अधिक खूनी लड़ाईयां देखी, जिस किले में सबसे अधिक जौहर हुए,
हम बात कर रहे हैं. राजस्थान के प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ के दुर्ग की Rajasthan Fort History का यह सबसे महत्वपूर्ण किला हैं.
चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास Chittorgarh Fort History in Hindi
चित्तौड़ की गिनती भारत के सबसे बड़े किलों में से की जताई हैं. इसे यूनेस्कों की विश्व विरासत सूचि में भी शामिल किया गया हैं. मध्य कालीन राजस्थान इतिहास में यह मेवाड़ राज्य की राजधानी हुआ करता था.
इस पर गुहिल एवं सिसोदिया वंश का शासन रहा. 180 मीटर की ऊँचाई पर बना यह विशाल किला 691.9 एकड़ भूभाग में फैला हुआ हैं.
आज हजारों की संख्या में पर्यटक चित्तौड़गढ़ के किले को देखने के लिए आते हैं. चलिए इस किले का इतिहास जानते हैं.
चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास
वीरता, त्याग, बलिदान, और स्वाभिमान का प्रतीक चित्तौड़ का किला स्थापत्य की दृष्टि से भी विशिष्ठ हैं. किले के सम्बन्ध में प्रसिद्ध लोकोक्ति ”गढ़ तो चित्तौड़ बाकी सब गढ़ैया” किले की सुदृढ़ता और स्थापत्य श्रेष्ठता की ओर इंगित करती हैं.
राजस्थान का गौरव और किलों का सिरमौर कहलाने वाला चित्तौड़गढ़ का किला अजमेर खंडवा रेलमार्ग पर चित्तौड़गढ़ जक्शन से 3 किलोमीटर दूर गम्भीरी एवं बेडच नदियों के संगम तट के निकट अरावली पर्वतमाला के एक विशाल पर्वत शिखर पर बना हुआ हैं.
समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 1850 फ़ीट हैं. क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी लम्बाई लगभग 8 किलोमीटर व चौड़ाई 2 किलोमीटर हैं.
दिल्ली से मालवा और गुजरात को जाने वाले मार्ग पर अवस्थित होने के कारण मध्यकाल में इस किले का सामरिक महत्व था. चित्तौड़गढ़ के किले के निर्माता के बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव हैं.
वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार मौर्य शासक चित्रांग ने यह किला बनवाकर अपने नाम पर इसका नाम चित्रकोट रखा था. उसी का अपभ्रशः चित्तौड़ हैं. मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी से आठवीं शताब्दी में गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने इस पर अधिकार कर लिया.
दसवीं शताब्दी के अंत में मालवा के परमार शासक मुंज ने चित्तौड़गढ़ किले पर अधिकार कर लिया. तत्पश्चात ग्याहरवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यह गुजरात के चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज के नियंत्रण में चला गया.
बाहरवीं शताब्दी में चित्तौड़ पर पुनः गुहिलों का आधिपत्य स्थापित हो गया. 1303 ई में इसे अलाउद्दीन खिलजी ने हस्तगत कर लिया. 1326 ई सीसोदे के राणा हम्मीर ने गुहिल सिसोदिया वंश को प्रतिस्थापित किया.
1568 से 1615 ई तक यह किले मुगलों के अधीन रहा. 1615 ई की मेवाड़ मुगल संधि के परिणामस्वरूप यह पुनः गुहिल वंश को प्राप्त हुआ. तब से 1947 ई तक इस पर मेवाड़ के गुहिल सिसोदिया शासकों का ही अधिकार रहा.
चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास – Chittorgarh Kila History In Hindi
चित्तौड़ के किले के साथ 1303 ई में पद्मिनी के जौहर एवं गोरा बादल की अप्रितम वीरता एवं 1534 ई में राणा सांगा की पत्नी कर्णावती का जौहर तथा 1568 ई में जयमल व पत्ता की पत्नियों के जौहर एवं इन वीरों के साहसिक बलिदान की गाथाएं जुड़ी हुई हैं. ये चित्तौड़ के तीन साके कहलाते हैं.
चित्तौड़ के किले में प्रवेश के लिए सात प्रवेश द्वार बने हुए हैं. जो क्रमशः पाउलपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोडला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल हैं. भैरवपोल व हनुमानपोल के मध्य जयमल और कल्ला राठौड़ की छतरियाँ बनी हुई हैं.
चित्तौड़ के किले में अनेक पुराने महल, भव्य मंदिर, कीर्ति स्तम्भ, जलाशय, पानी की बावड़ियाँ, शस्त्रागार, अन्न भंडार, गुप्त सुरंग इत्यादि हैं.
रानी पद्मिनी का महल, नवलखा भंडार, कुम्भ श्याम मंदिर, समिद्धेश्वर मंदिर, मीरा बाई का मंदिर, तुलजा भवानी का मंदिर, कालिका माता का मंदिर, श्रंगार चौरी आदि स्थापत्य स्मारक दर्शनीय हैं. यह राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट हैं.
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आसपास के स्थल Places To Visit In Chittorgarh In Hindi
- कुम्भा महल- चित्तौड़गढ़ के किले यह एक प्राचीन महल था, जिसका महाराणा कुम्भा ने जीर्णोद्धार करवाया तथा एक आकर्षक रूप में इसे पुनः खड़ा किया. कुम्भा द्वारा इसका निर्माण कराए जाने पर इस महल को कुम्भ महल के नाम से जाना जाता हैं. त्रिपोलिया तथा बड़ी पोल से इस महल के दर्शन किये जा सकते हैं. इस महल के पास पन्नाधाय तथा मीराबाई के महल भी हैं तथा इसके आगे सूरज गोखड़ा, जनाना महल, कंवरपदा बने हुए हैं.
- पद्मिनी महल-महाराणा रतनसिंह की पत्नी का नाम रानी पद्मिनी था. वह अपने सौन्दर्य के लिए विख्यात थी. पद्मिनी को पाने के लिए ही अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था. इसी के नाम पर यह महल बनाया गया है इसके पास ही पद्मिनी तालाब तथा जल के मध्य में एक जल महल भी खड़ा हैं.
- रतन सिंह महल-ये पद्मावती के पति थे.
- फतेह प्रकाश महल-महाराणा फतेहसिंह का यह दोमंजिला महल हैं. जिसकी छत पर चारो तरफ सुंदर बुर्ज बने हुए हैं. आज यह एक संग्रहालय के रूप में पर्यटकों के लिए खोला गया हैं.
- कालिका माता मंदिर-भगवान् सूर्य को समर्पित यह आठवी शताब्दी का मंदिर हैं. कई बार इस मंदिर की मरम्मत करवाई गई थी. अब यह काली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हैं.
- समाधीश्वर मंदिर– यह भगवान् शिव का मंदिर है जो ग्याहरवीं सदी में गुजरात के परमार शासकों द्वारा बनाई गया. मंदिर में त्रिमुखी शिव की प्रतिमा स्थापित हैं.
बाप्पा रावल – Bappa Rawal
मेवाड़ के इतिहास में बप्पा रावल का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता हैं. इन्होने मेवाड़ के गुहिल वंश की स्थापना की, जिस वंश ने कई सदियों तक मेवाड़ पर शासन किया.
विजय स्तंभ – Vijay Stambha
यह एक विजय स्मारक था. जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने महमूद खिलजी पर मिली विजय के उपलक्ष्य में कराया था. इसे कीर्ति स्तम्भ भी कहा जाता हैं.
चित्तौड़गढ़ के किले में यह एक दर्शनीय स्थल हैं. 122 फीट की उंचाई के इस स्तम्भ में आठ मंजिले हैं. तथा इसे चित्तौड़ की सबसे ऊँची इमारत भी माना जाता हैं.
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की वास्तुकला – Chittorgarh Fort Architecture In Hindi
चित्तौड़गढ़ का यह दुर्ग आकार में बेहद बड़े धरातल में फैला हुआ हैं. आकार की दृष्टि से चित्तौड़ का किला सबसे बड़ा किला है जो 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ हैं. इस तरह से 13 किमी क्षेत्र में विस्तृत यह सबसे बड़ा किला हैं.
इस पर चढने के लिए लग भग एक किमी की ऊंचाई तय करने के बाद किले का क्षेत्रफल आरम्भ होता हैं. किले के चारों और 2 किलोमीटर लम्बी दीवार बनी हुई हैं जो 155 मीटर चौड़ी हैं.
राजस्थान के अभेध्य किलों में चित्तौड की गिनती की जाती हैं. पठार पर अवस्थित दुर्ग का बाहरी परकोटे तथा पहाड़ी के कारण इसमें मुख्य द्वार के अलावा किसी अन्य तरीके से प्रवेश लगभग असम्भव हैं.
किले में प्रवेश के मुख्य द्वारों में से पडल पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोरला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल आदि प्रमुख हैं. किले की सम्पूर्ण वास्तुकला की बात करें तो इसमें कई महल एवं मन्दिर बने हुए हैं.
चित्तौड़गढ़ किले के आंतरिक परिसर में 4 महल परिसर, 19 मुख्य मंदिर, 4 स्मारक और 22 जल भंडारण के स्रोत हैं. किले में स्थित इन जलाशयों के सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि इनकी पूर्व में संख्या 84 थी.
कालान्तर में संरक्षण न मिलने के कारण वे नष्ट हो गये. किले के ये 84 जलाशयों में जल संग्रह की इतनी बड़ी क्षमता थी कि ये पचास हजार सैनिकों के लिए चार वर्ष तक के लिए जल प्रदान करने में पर्याप्त थे.
चित्तौड़गढ़ में स्थित मुख्य मन्दिरों एवं स्मारको में मीरा बाई मंदिर, कुंभ श्याम मंदिर, श्रृंगार चौरी मंदिर और विजय स्तम्भ प्रमुख हैं. किले की वास्तुकला राजपूत सिसोदिया श्रेणी की हैं. रतन सिंह पैलेस और फतेह प्रकाश दुर्ग में अवस्थित दो बड़े महल हैं.
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