ईसाई धर्म के संस्थापक इतिहास एवं मुख्य सिद्धांत | Christianity Founder history and Main principle In Hindi विश्व के सबसे अधिक लोगों के धार्मिक आस्था वाला रिलिजन ईसाई हैं, जिन्हें मानने वालों की संख्या 2 अरब से अधिक हैं. मूल रूप से यहूदी धर्म से निकले इस मत को यीशु मसीह ने चलाया था, पहली सदी से इस रिलिजन की शुरुआत मानी जाती हैं. पांच समुदायों (कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, ऑर्थोडॉक्स, मॉरोनी, एवनजीलक) वाले ईसाई धर्म को मानने वाले अधिकतर यूरोपीय और अमेरिकन देश हैं. भारत में इस मत को औपनिवेशिक काल और बाद में मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरियों के माध्यम से प्रसारित किया गया.
ईसाई धर्म के संस्थापक इतिहास एवं मुख्य सिद्धांत | Christianity In Hindi

रिलिजन नाम | ईसाईयत / क्रिश्चियनिटी |
शुरुआत | ईस्वी 1 से |
मानने वालों की संख्या | 2 अरब से अधिक |
रैंकिंग | सबसे बड़ा रिलिजन |
पूर्वमत | यहूदी |
मान्यता | एकेश्वरवाद |
समुदाय | कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, ऑर्थोडॉक्स, मॉरोनी, एवनजीलक |
प्रतिपादक | यीशु मसीह |
प्रतीक | क्रोस |
बहुल आबादी | यूरोप एवं अमेरिका |
प्रमुख ग्रंथ | बाइबिल |
पूजा स्थल | चर्च |
पवित्र जगह | वैटिकन सिटी |
धर्मगुरु | पोप |
ईसाई धर्म का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Christianity in Hindi)
यहूदी धर्म को संसार का पहला सबसे बड़ा एवं प्राचीन एकेश्वरवादी रिलिजन माना जाता हैं, जिसमें एक ईश्वर, एक किताब की अवधारणा की बात कही जाती हैं. जैसे जैसे वक्त बदला इसमें भी बदलाव और विभाजन का दौर आया.
यहूदी मत से एक नया मत ईसाई यीशु मसीह ने चलाया तो दूसरा मत पैगम्बर मोहम्मद ने इस्लाम के नाम पर चलाया. यह ठीक वैसे ही हैं जैसे कि भारत में सनातन धर्म से बौद्ध, जैन और सिख धर्म का उदय.
पहली सदी से ही ईसाई धर्म की शुरुआत फिलीपिंस से मानी जाती हैं. ईसाई धर्म को English में Christianity एवं इसे मानने वालों को Christians कहा जाता हैं. इसकी पवित्र किताब का नाम बाइबिल हैं तथा उपासना स्थल चर्च होता है जहाँ धार्मिक कार्य फादर एवं पादरी द्वारा सम्पन्न करवाएं जाते हैं.
मूर्तिपूजा, हत्या, व्यभिचार व किसी को भी व्यर्थ में नुक्सान पहुचाना इन तीन बातों को ईसाई मत में गुनाह माना जाता हैं. चौथी सदी आते आते यूरोप में क्रांति की तरह यह मत फैला मगर कालान्तर में अत्यधिक कर्मकांडों और राजकीय सत्ता में पोप और पादरियों के प्रभुत्व और उनके अत्याचारों के चलते इसमें मतभेदों ने जन्म लेना शुरू कर दिया. पुनर्जागरण के दौर में प्रिंट मिडिया के आते ही रुढ़िवादी ईसाई पतन शुरू हो गया.
आज ईसाई मत प्रचारक शान्ति एवं समृद्धि के प्रतीक के रूप में जिस धर्म का प्रसार प्रचार करते हैं उनका एक खूनी अतीत भी रहा हैं. दरअसल आज धर्म के नाम पर लड़ाई, दंगे और आतंकी घटनाएं हमारे सामने हैं इससे भयंकर लड़ाई ईसाई, यहूदियों एवं मुसलमानों के बीच कई सदियों तक चली.
जब ईसाईयों ने अन्य मत को पराजित कर स्वयं प्रभुसत्ता में आए तो आपसी कलह इतनी थी कि यूरोप में सैकड़ों वर्षों तक गृह युद्ध चला कई मिलियन लोग मारे गये, पादरियों के वर्चस्व और अत्याचारों से मत का खूनी इतिहास सभी के समक्ष हैं.
दरअसल ईसाई धर्म में तीन बड़े समुदाय माने जाते हैं जिनमें पहला समुदाय कैथोलिक लोगों का हैं जो वैटिकन सिटी के पोप को अपना प्रतिनिधि मानते हैं दूसरा समुदाय प्रोटेस्टेंट का हैं, सोलहवीं सदी के इस समुदाय के लोग अपने समुदाय के बड़े पादरी को धर्म का प्रतिनिधि मानते हैं. तीसरा समुदाय ऑर्थोडॉक्स का हैं जो दोनों से अलग बाइबिल को अंतिम सत्ता मानते है तथा पोप के अस्तित्व को नकारते हैं.
इन तीनों समुदायों के आपसी वैचारिक मतभेद और वर्चस्व की लड़ाई कई सैकड़ों वर्षों तक चली, इसमें न कोई जीता न हारा पर मानवता जरुर हार गई. बाइबिल की बात की जाए तो इसके दो संस्करण ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट हैं.
यीशु मसीह कौन थे उनका इतिहास
ईसाई धर्म और दर्शन के संस्थापक ईसा मसीह थे. इनका जन्म फिलिस्तीन के पहाड़ी भाग बैथेलहम में हुआ था. उसके पिता युसूफ तथा माता मरियम बढ़ाई का कार्य करते थे. ईसा मसीह ने अंधविश्वास से घिरे समाज को मुक्त कराने की ठान ली. उन्होंने गाँव गाँव जाकर लोगों को उपदेश दिया कि परमात्मा सबकों समान दृष्टि से देखता है. यहूदियों को ईसा मसीह का यह संदेश खटकने लगा.
एक बार ईसा मसीह ने जेरुसलम के एक उत्सव में यहूदियों के हिंसात्मक कार्यों का विरोध किया. इससे सारा यहूदी समा उनसे चिढ गया. ईसा मसीह के एक शिष्य जुडास ने धोखे से उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. दंड के रूप में उन्हें तीस वर्ष की उम्रः में ही सूली पर चढ़ा दिया. अंतिम समय में ईसा मसीह ने कहा कि ”हे ईश्वर इन्हें क्षमा करो ये लोग नही जानते कि यह क्या कर रहे है.
ईसा मसीह के शिष्य संत पाल और पीटर ने उनके सिद्धांतों का बहुत प्रचार किया. ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर एक है तथा उसकी दृष्टि में सभी जीव बराबर है. ईसा मसीह ने मनुष्य की सच्चरित्रता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि पाप से घ्रणा करो पापी से नही. हमे क्रोध और बदले की भावना छोड़कर क्षमा करना सीखना चाहिए.
उनका विचार था कि सहनशीलता से आत्मा की उन्नति होती है उन्होंने लोगों को सत्य अहिंसा दीन दुखियों की सेवा और बलिदान की शिक्षा दी. उनके उपदेश ईसाईयों के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल में संकलित है.
ईसाई धर्म बाद में दो भागों में विभाजित हो गया. एक रोमन कैथोलिक और दूसरा प्रोटेस्टेंट. जो मूल धर्म पर थे. वे कैथोलिक तथा जिन्होंने सुधारों का समर्थन किया वे प्रोटेस्टेंट कहलाएं. इन प्रोटेस्टेंट लोगों ने पोप के राजनैतिक अधिकार, पतित पादरियों और क्षमादान पत्रों की बिक्री का विरोध किया. बाद में मूल ईसाई धर्म में सुधार के लिए प्रतिवादात्मक मजहबी सुधार आंदोलन चलाया गया. और क्षमापात्रों की बिक्री बंद कर दी गई. इस प्रकार ईसाई दार्शनिक चिन्तन, दया, करुणा,सेवा, सच्चरित्रता, सहनशीलता आदि मूल तत्व है.
ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्योंहार क्रिसमस है, जो लगभग विश्व के हरेक देश में मनाया जाता है. हर साल 25 दिसम्बर को ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है.
क्रिसमस के बाद के त्योहारों में Good Friday का विशेष महत्व है, अप्रैल महीने में शुक्रवार के दिन यहूदियों द्वारा ईसा मसीह को सूली पर लटकाया था. इस दिन को शौक दिवस के रूप में आज भी मनाया जाता है.
Palm Sunday जो ईस्टर से ठीक पहले आता है. इस दिन मसीह जेरूसलम लौटे थे इस तिथि को ईसाई धर्म इतिहास में अहम माना जाता है और इसे पाम संडे के रूप में मनाया जाता है. इसके अतिरिक्त Annunciation डे तथा Epiphany त्योहार भी ईसाई धर्म में बड़ा महत्व रखते है.
ईसाई धर्म का उदय व देन (निबंध)
ईसा इब्रानी शब्द येसूआ का विकृत रूप है जिसका अर्थ होता है मुक्तिदाता. यहूदी धर्म ग्रंथ में मसीह शब्द को ईश्वर प्रेरित मुक्तिदाता के रूप में प्रयुक्त किया गया हैं. जिसका अर्थ अभिषिक्त होता हैं. यूनानी भाषा में इसका अनुवाद ख्रीस्तोस है. इस कारण ईसा मसीह पश्चिम में येसू ख्रीस्त नाम से प्रसिद्ध हुए. ईसा के जीवन का बड़ा काल गैलिनी प्रदेश के नाजरेथ नामक स्थान पर बीता. इस कारण वे नाजरेथ के जीसस कहलाये.
ईसाई धर्म के उत्कर्ष से पूर्व फिलिस्तीन में यहूदी धर्म का बहुत अधिक प्रभाव था. जेहोबा नामक देवता की पूजा करने वाले यहूदी स्वयं को ईश्वर का पुत्र मानते थे. २९ ई पू में रोमन सम्राट आगस्टस ने अपने विशाल साम्राज्य में सम्राट पूजा प्रारम्भ की किन्तु यहूदियों ने सम्राट की पूजा करने से इनकार कर दिया, कालांतर में दोनों पक्षों में समझौता हो गया जिसके अनुसार यहूदियों को सम्राट पूजा की छूट दे दी गई.
ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा (जीसस) एक यहूदी थे. उनका जन्म भूमध्यसागर के किनारे स्थित यहूदियों के प्रदेश जूडिया के बेथलहम गाँव में २५ दिसम्बर ४ ई पू को एक घुड़साल में हुआ. इस समय जुडिया में यहूदियों के राजा हिरोद तथा रोमन साम्राज्य में आगस्टस का शासन था. यहूदियों में बहुत दिनों से यह विश्वास प्रचलित था कि यहाँ किसी दिन मसीहा अथवा रक्षक जन्म लेगा. यह मसीहा जेहोवा ईश्वर की ओर से उनके धार्मिक सुधार, शान्ति तथा राजनीतिक स्वतंत्रता को स्थापित करने के लिए भेजा जाएगा.
ईसा का बपतिस्सा एलिजाबेथ के पुत्र जॉन द्वारा जार्डन नदी में हुआ, जिसने उसे मसीहा की संज्ञा दी. बपतिस्मा कराने वाले जॉन का राजा हिरोद की आज्ञा से वध कर दिया गया. ईसा की माँ मरियम नजरेथ गाँव की रहने वाली थी. ईसा के गर्भ के समय वह कुँवारी थी किन्तु जोसफ नामक बढ़ई से उसकी मंगनी हो चुकी थी. जोसफ कहीं शादी से इंकार न कर दे, इसलिए देववाणी ने उसे संकेत दिया कि जोसफ मरियम के गर्भ में भगवान का पुत्र है, तुम शंका न करना.
जोसफ ने देववाणी को ईश्वर आदेश मानकर मरियम से विवाह कर लिया. बालक ईसा की रूचि धर्मशास्त्र पढ़ने में अधिक थी. इस कारण उन्हें उस समय कानून का बेटा कहा गया. ईसा का बाल्यकाल गेलीली के नजरेथ नगर में बीता, जहाँ उसने बढ़ई का कार्य किया. बाद में ईसा की मुलाक़ात यूहन्ना नामक एक यहूदी धर्म उपदेशक से हुई. उनके उपदेश का ईसा पर प्रभाव पड़ा और ईसा ने उनसे दीक्षा ग्रहण की.
ईसा जंगल में रहकर गुरु के उपदेशों पर विचार करते रहे. अंत में उन्हें ईश्वरीय प्रेरणा प्राप्त हुई और लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्होंने स्वतंत्रतापूर्वक सत्य, ज्ञान व मानव धर्म का उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया. रोमन सम्राट टाईबीरियस के काल में ईसा जुडिया में प्रकट हुए और सबसे पहले गेलीली प्रदेश में उपदेश देने प्रारम्भ किये. ईसा ने स्वयं को यहूदियों का राजा तथा ईश्वर का पुत्र घोषित कर ईश्वर का राज्य स्थापित करने का दावा किया.
इन घोषणाओं से कट्टरपंथी पुरोहितों ने असंतुष्ट होकर उनका विरोध करना प्रारम्भ कर दिया. वे इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे. कि कोई मनुष्य ईश्वर का पुत्र हो सकता है तथा अपने को मसीहा घोषित कर सकता हैं. इस कारण ईसा को धर्म विरोधी और पाखंडी घोषित कर दिया. २९ ई में जीसस ने यहूदियों के प्रमुख स्थान जेरुसलम में प्रवेश किया. इस समय यहूदी लोग अपना धार्मिक उत्सव फीस्ट ऑफ़ पासमौर मना रहे थे. वैसे ईसा इससे पूर्व भी दो बार जेरुसलम की यात्रा कर चुके थे.
ईसा की लोकप्रियता, निर्भीकता तथा सत्य आचरण से यहूदी पुरोहित तथा धनिक वर्ग क्रोधित हुआ. ईसा को पकड़ने और उसे दंडित करने के लिए पुरोहितों ने रोमन गर्वनर पोंटियस पाइलेट के पास बार बार शिकायते की. एक रात को जब ईसा भोजन करने के बाद अपने बारह शिष्यों के साथ सो रहे थे, तभी उनके एक शिष्य जूडास ने चांदी के 30 सिक्कों के लालच में आकर जेरुसलम के जेथेस्मन बाग़ से उन्हें पकड़वा दिया.
गिरफ्तार होने के बाद ईसा के अन्य शिष्यों ने भी उनका साथ न देते हुए यह कह दिया कि वे उन्हें जानते ही नहीं. ईसा को प्रधान पुरोहित कैफस के सामने मंदिर में पूछताछ के लिए पेश किया गया. जहाँ उन्हें धर्मविरोधी, पाखंडी और राजद्रोही घोषित कर क्रूस पर लटकाने का आदेश दे दिया गया. 29 ई में शुक्रवार के दिन येरुसलम नगर के बाहर गुलगोथा की पहाड़ी पर दो चोरों के साथ ईसा को चूली पर चढा दिया गया.
जिस समय उन्हें क्रोस पर लटकाया गया, तब उन्होंने कहा हे ईश्वर, इन्हें क्षमा करना, ये नहीं समझते कि क्या कर रहे हैं. ईसाईयों के धार्मिक विश्वास के अनुसार ईसा अपनी मृत्यु के चालीस दिनों तक अपने अनुयायियों के बीच दैवी ज्योति से युक्त होकर प्रकट होते रहे. इस घटना को ईसाई धर्म में रिसरेक्शन कहा जाता हैं.
FAQ
ईसाई धर्म को किसने चलाया था?
यीशु मसीह ने
ईसाई धर्म का भगवान कौन है?
परमेश्वर
ईसाई धर्म का सबसे पवित्र स्थल कौनसा हैं?
वैटिकन सिटी
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