फसल इसकी किस्में तथा फसल पैटर्न की जानकारी | Crops Varieties And Cropping Pattern In Hindi

फसल इसकी किस्में तथा फसल पैटर्न की जानकारी | Crops Varieties And Cropping Pattern In Hindi: एक निश्चित समय चक्र के अनुसार मानव द्वारा एक भूमि क्षेत्र पर उत्पन्न की जाने वाली पैदावार को फसल (Crop) कहा जाता हैं.

एक निश्चित अवधि में फसल पककर तैयार होती हैं, तैयार फसल को अलग करने के थ्रेसिंग का उपयोग किया जाता हैं. दूसरी तरफ बागवानी में पेड़ों को बिना क्षति पहुचाएं उनसे फल पृथक कर लिए जाते हैं. 

फसल किस्में तथा फसल पैटर्न Crops Varieties & Cropping Pattern In Hindi

indian crops in hindi

भारत तथा इस उपमहाद्वीप क्षेत्र में खरीफ तथा रबी की फसलें मुख्य रूप से उगाई जाती हैं. स्थानीय मौसम, धरती, वनस्पति व जल आदि कारक फसल को प्रभावित करते हैं.

आज के चैप्टर में हम फसल (Crop), फसल की किस्मों (Varieties of crop) और फसल पैटर्न (Crop pattern) पर जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं.

ऊर्जा की आवश्यकता के लिए अनाज जैसे गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा तथा ज्वार से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता हैं. दालें जैसे चना, मटर, उड़द, मूंग, अरहर, मसूर से प्रोटीन प्राप्त होता हैं और तेल वाले बीजों जैसे सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरंडी, सरसों, अलसी तथा सूरजमुखी से हमें आवश्यक वसा प्राप्त होती हैं.

सब्जियाँ, मसाले तथा फलों से हमे विटामिन तथा खनिज लवण तथा कुछ मात्रा में प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट भी प्राप्त होते हैं. चारा फसलें जैसे वर्सिम, जई, घास का उत्पादन पशुओं के चारे के रूप में उपयोग किया जाता हैं.

एक विशाल जनसंख्या को भोजन प्रदान करने के लिए इनका नियमित उत्पादन, उचित प्रबंधन एवं वितरण आवश्यक हैं.

भारत में फसलें (crops in india)

चूंकि भारत एक विशाल देश हैं. यहाँ ताप, आद्रता और वर्षा जैसी जलवायवीय परिस्थतियां, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न हैं. अतः देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं. फसलों को ऋतु के आधार पर दो वर्गों में बांटा जा सकता हैं, वे इस प्रकार हैं.

  • खरीफ फसल (Cash crop):- वह फसल जिसे वर्षा ऋतु में बोया जाता हैं, खरीफ की फसल कहलाती हैं. भारत में वर्षा ऋतु में सामान्यतया जून से सितम्बर तक होती हैं. धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, मूंग इत्यादि खरीफ फसलें हैं.
  • रबी फसल (Rabi crop):- शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसलें रबी की फसलें कहलाती हैं. गेहूँ, चना, मटर, सरसों तथा अलसी आदि मुख्य रबी फसलें हैं.

भारत की मुख्य फसलें व उत्पादक राज्य (major crops in india state wise)

अनाज (Grain)

फसल का नाम  उत्पादक राज्य
गेहूंउत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश
चावलपश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश
चनामध्य प्रदेश और तमिलनाडु
जौमहाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान
बाजरामहाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान

नकदी फसलें (Cash crops)

फसल का नाम मुख्य उत्पादक राज्य
गन्नाउत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र
खसखस फसलउत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश

तेल बीज फसलें (Oil seeds crops)

फसल का नाम उत्पादक राज्य
नारियलकेरल और तमिलनाडु
अलसी राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा
मूंगफलीगुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु
सफेद सरसोंराजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा
तिलउत्तर प्रदेश और राजस्थान
सूरजमुखीकर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र

फाइबर फसलें (Fiber crops)

फाइबर फसल नाम उत्पादक राज्य
कपासमहाराष्ट्र और गुजरात
जूटपश्चिम बंगाल और बिहार
रेशमकर्नाटक और केरल
गांजामध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश

बागवानी फसलें (Gardening Crops)

बागवानी फसल नाम  उत्पादक राज्य
कॉफीकर्नाटक और केरल
रबड़केरल और कर्नाटक
चायअसम और केरल
तंबाकूगुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश

मसाले (Spices)

मसाले नाम  उत्पादक राज्य
काली मिर्चकेरल, कर्नाटक और तमिलनाडु
काजूकेरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश
अदरककेरल और उत्तर प्रदेश
हल्दीआंध्र प्रदेश और ओडिशा

फसल की किस्में (crops varieties in india in hindi)

फसलों का उत्पादन अच्छा हो, यह प्रयास फसलों की किस्मों के चयन पर निर्भर करता हैं. फसलों की किस्मों के लिए विभिन्न उपयोगी गुणों (जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता, उर्वरक के अनुरूपता, उत्पादन की गुणवत्ता, और उच्च उत्पादन) का चयन प्रजनन द्वारा कर सकते हैं. फसल की किस्मों में एच्छिक गुणों का संकरण द्वारा सम्मिलित किया जा सकता हैं.

संकरण विधि में विभिन्न आनुवांशिकी गुणों वाले पौधों में संकरण करवाते हैं. फसल सुधार की दूसरी विधि हैं, ऐच्छिक गुणों वाले जीन का स्थानातरण करना. इसके परिणाम स्वरूप अनुवांशिक रूपांतरित किस्म प्राप्त होती हैं.

फसल की नई किस्म को अपनाने से पहले यह आवश्यक हैं कि फसल की किस्म विभिन्न परिस्थतियों में विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न होती हैं, जो अच्छा उत्पादन दे सके.

किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले विशेष बीज उपलब्ध होने चाहिए अर्थात बीज उसी किस्म के होने चाहिए जो अनुकूल परिस्थतियों में अंकुरित हो सके.

फसल उत्पादन मौसम व मिट्टी की गुणवत्ता तथा पानी की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं. चूंकि मौसम की परिस्थतियाँ जैसे सूखा तथा बाढ़ का पूर्वानुमान कठिन होता हैं,

इसलिए ऐसी किस्में उपयोगी हैं जो विविध जलवायु परिस्थतियों में भी उग सके. इसी प्रकार ऐसी किस्में बनाई गईं हैं जो उच्च लवणीय मिट्टी में भी उग सके. किस्मों में सुधार के निम्न उद्देश्य है

1. उच्च उत्पादन (high output)– प्रति एकड़ की उत्पादकता बढ़ाना.

2. उन्नत किस्में (Advanced varieties)– फसल उत्पाद की गुणवत्ता, प्रत्येक फसल की भिन्न होती हैं जैसे दाल में प्रोटीन की गुणवत्ता, तिलहन में तेल की गुणवत्ता और फल व सब्जियों में विटामिन की उच्च मात्रा महत्वपूर्ण हैं.

3. जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता (Biological and Abiotic Resistance)– जैविक (रोग,कीट) तथा अजैविक (सूखा, क्षारता, जलाक्रांति, गर्मी ठंड तथा पाला) परिस्थतियों के कारण फसल का उत्पादन कम पड़ सकता हैं. इन परिस्थतियों को सहन करने वाली किस्में फसल उत्पादन में सुधार कर सकती हैं.

4. परिपक्वन काल में परिवर्तन (Change in maturity)– फसलों को उगाने से लेकर कटाई तक कम समय लगना आर्थिक दृष्टि से अच्छा हैं. इससे किसान प्रतिवर्ष खेतों में कई फसलें उगा सकते हैं. कम समय होने के कारण फसल उत्पादन में खर्च भी कम आता हैं. समान परिपक्वन कटाई के दौरान होने वाली फसल की हानि कम हो जाती हैं.

5. व्यापक अनुकूलता (Widespread compatibility)– व्यापक अनुकूलता वाली किस्मों का विकास करना विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थतियों में फसल उत्पादन स्थायी करने में सहायक होता हैं. एक ही किस्म को विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु में उगाया जा सकता हैं.

6. ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण (Optional fertility science)– चारे वाली फसलों के लिए लंबी तथा सघन शाखाएं ऐच्छिक गुण हैं. ताकि इन फसलों को उगाने के लिए कम पोषकों की आवश्यकता हो. इस प्रकार शस्य विज्ञान वाली किस्में अधिक फसल उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं.

फसल पैटर्न/ फसल पद्धति (types of cropping pattern in india)

अर्थ व परिभाषा- अधिक उत्पादन व रोगों से सुरक्षा के लिए रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों व रोगाणुनाशियों के अत्यधिक प्रयोग करने से भूमि बंजर होने लगती हैं. इसलिए ऐसी कृषि की आवश्यकता महसूस की गईं,

जो प्राकृतिक संसाधनों को हानि पहुचाएं बिना निरंतर की जा सके. इसे दीर्घकालीन कृषि (Long term farming) कहते हैं. दीर्घकालीन कृषि के लिए मिश्रित कृषि, मिश्रित फसल, व फसल चक्र जैसी विधियों का उपयोग किया जाता हैं.

मिश्रित कृषि (Mixed agriculture/farming)-

छोटे छोटे खेतों में फसल उगाने पर किसान की आवश्यकताएं पूरी नही हो पाती हैं. ऐसे में वह खेती के साथ साथ पशुपालन, मछलीपालन, वृक्ष उत्पादन व फसल उत्पादन आदि विधियों को अपनाता हैं.

जिससे किसान की आय में वृद्धि होती हैं तथा भूमि की क्षमता का अधिकतम उपयोग हो जाता हैं, एक ही भूमि पर कृषि के साथ साथ कृषि आधारित अन्य कृषि विधियों के उपयोग को ही मिश्रित कृषि कहते हैं.

मिश्रित फसल (Mixed cropping)-

जब कृषक द्वारा एक बड़े क्षेत्र में एक ही फसल उगाया जाता हैं तो फसल के इन पौधों की आवश्यकताएं समान होने से मृदा से कुछ पोषक तत्व अधिक मात्रा में काम आते हैं तथा कुछ पोषक तत्वों का उपयोग नही होता हैं.

ऐसी स्थति में आजकल एक क्षेत्र में दो या इससे अधिक प्रकार की फसल एक साथ उगाई जाती हैं ऐसी फसल को मिश्रित फसल कहते हैं. जैसे कि गेहू+चना, गेहूं+सरसों तथा मूंगफली+सूरजमुखी.

मौसम के प्रकोप अथवा अन्य कारणों से एक फसल नष्ट हो जाती हैं, तो दूसरी फसल से उत्पादन प्राप्त हो जाता हैं. मिश्रित फसल के लिए फसलों का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए.

  1. एक फसल लम्बी अवधि की हो तथा दूसरी फसल छोटी अवधि की होनी चाहिए.
  2. एक फसल लम्बी तथा दूसरी बौनी होनी चाहिए.
  3. एक फसल गहरी जड़ो वाली तथा दूसरी फसल सतही जड़ों वाली होनी चाहिए.

फसल चक्र (crop Rotation)

एक भू भाग पर निरंतर एक ही फसल बौने से मृदा की उर्वरा शक्ति कम हो जाती हैं तथा उस फसलद्वारा उपयोग में लाये जाने वाले पोषक तत्वों की मृदा में कमी होने से फसल उत्पादन में कमी होती हैं.

इसलिए एक ही भूमि से अधिक उत्पादन बनाए रखने हेतु फसल चक्र अपनाया जाता हैं. भूमि के किसी भाग पर योजनाबद्ध रूप से बदल-बदल कर फसल प्राप्त करना फसल चक्र कहलाता हैं.

फसल चक्र में अनाज की फसलों का चक्रण फलीदार फसलों से किया जाना चाहिए ताकि मृदा में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती रहे.

फसल किसे कहते हैं?

फसल को हम सजीव पत्तियां& पौधे कह सकते है जिसे इंसानों के द्वारा उगाया किया जाता है। फसलों को पैदावार के अंतर्गत इंसान एक योजना के तहत काम करता है और उसके अंतर्गत वह पेड़ पौधे का उत्पादन करता है और अपनी खाद्य आवश्यकता की पूर्ति करता है। 

पहले के समय में इंसान अपने आप ही पैदा हुई वनस्पतियों और पेड़ पौधों से अपना भोजन प्राप्त करता था परंतु समय बीतने के पश्चात उसने भोजन प्राप्त करने के लिए खुद से फसलों को बोना चालू किया,

साथ ही फसलों के बीज में विभिन्न प्रकार के बदलाव भी किए। इस प्रकार देसी और हाइब्रिड फसल आज किसानों के द्वारा बोई जा रही है।

खरीफ की फसलों के उदाहरण क्या है?

नीचे हमने आपके समक्ष खरीफ फसलों के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।

धान्य फसलें 

धान, मक्का, ज्वार, बाजरा

दलहनी फसलें 

अरहर, मूंग, उड़द

तिलहनी फसलें 

मूंगफली, सोयाबीन 

रेशे वाली फसलें 

कपास, जूट

चारे वाली फसलें 

लोबिया, ग्वार

सब्जी वाली फसलें 

लौकी, भिण्डी, करेला, तोरई 

स्टार्च फसलें 

अरबी, शकरकन्द

रबी की फसलों के उदाहरण क्या है?

नीचे हमने आपके समक्ष रबी की फसलों के एग्जांपल बताए हुए हैं।

धान्य फसलें 

गेहूँ, जौ, ट्रिटिकेल

दलहनी फसलें 

चना, मटर, मसूर

तिलहनी फसलें 

तोरिया व सरसों, सूरजमुखी, कुसुम

शर्करा फसलें 

गन्ना, चुकन्दर 

विशेष फसलें 

आलू, तम्बाकू

चारे वाली फसलें 

बरसीम, लुसर्न, जई

सब्जी वाली फसलें 

गाजर, मूली, शलजम, टमाटर

जायद की फसलों के उदाहरण  क्या है?

जायद की फसल के अंतर्गत खीरा, तरबूज, खरबूजा, ककडी, टिंडा और तोरई जैसी चीजें आती है।

फसल चक्र क्या है?

आपको बता दें कि हमारे भारत देश में फसलों की पैदावार मौसम और जरूरत के हिसाब से की जाती है। किसी एक निश्चित एरिया और टाइम में विभिन्न टाइप की फसलों की पैदावार करने की जो प्रक्रिया होती है, उसे ही फसल चक्र कहा जाता है। 

इसके साथ ही हम आपको यह भी बता दें कि सस्य चक्र, सस्य आवर्तन जैसे नामों से भी फसल चक्र को जाना जाता है। अगर सामान्य भाषा में कहा जाए तो किसी जमीन में एक निश्चित टाइम में फसलों को बदल बदल कर बोने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहते हैं।

फसल चक्र का महत्व क्या है?

आपको हम यह बता दें कि लगातार जमीन में एक ही फसल का उत्पादन करने से उस खेत की उत्पादन क्षमता में काफी कमी आ जाती है अर्थात कहने का मतलब है कि जिस जमीन में लगातार एक ही फसल को पैदा किया जाता है.

उस जमीन की पैदावार करने की क्षमता कम हो जाती है, साथ ही उस खेत की जमीन में विभिन्न टाइप के खतरनाक गुण भी पैदा हो जाते हैं। 

इसके पीछे कारण यह है कि जमीन की भौतिक और जैविक स्तिथि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए फसल चक्र के आधार पर ही फसलों की पैदावार करना हितकारी माना जाता है। इसलिए अगर आपकी इच्छा है तो आप क्रॉप रोटेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

इसके जरिए हाई क्वालिटी के साथ ही भारी मात्रा में पैदावार भी कर सकते हैं। ऐसा अगर आप करते हैं तो इससे खेत की उत्पादन क्षमता भी बनी रहती है, साथ ही खेत की उर्वरक क्षमता बैलेंस रहती है।

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