प्राचीन पिरामिडों के देश मिस्र की सभ्यता का इतिहास Egypt History In Hindi Language मिस्र की सभ्यता का विकास नील नदी घाटी में हुआ था. अफ्रीका लोग नील नदी को भारत में गंगा की भांति पवित्र मानते थे. क्योंकि प्राचीनकाल में मिस्र में सुख और सम्रद्धि का कारण नील नदी ही रही है.
मिस्त्र की सभ्यता बहुत प्राचीन थी किन्तु इसके सन्तोषजनक प्रमाण प्राप्त नही हुए है. प्रमाणिक आधार पर मिस्र के राजनैतिक इतिहास का ज्ञान 3400 ई. से ही प्राप्त होता है. मिनीज नामक शासक ने 3400 ईसा पूर्व ही इसका राजनैतिक ढांचा खड़ा किया था.
मिस्र की सभ्यता का इतिहास Egypt History Civilization In Hindi
इथीयोपी, नूबी एवं निलियम जाति के लोगों ने मिस्र की सभ्यता का निर्माण किया था. मिस्र की सभ्यता के इतिहास में पिरामिड युग, सामंतशाही युग एवं सम्राज्यवादी युग विशेष उल्लेखनीय है, इनमे से मिस्र के पिरामिडों का युग सबसे महत्वपूर्ण था.
मिस्र की सभ्यता की खोज
नेपोलियन बोनापार्ट ही वह व्यक्ति थे जिनके आक्रमण करने के कारण ही मिस्त्र की सभ्यता की खोज हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि एक काफी बड़ा शिलालेख साल 1798 में नील नदी के मुहाने पर मौजूद रोजीटा नाम की जगह से नेपोलियन बोनापार्ट को मिला था।
यह शिलालेख तकरीबन 112 सेंटीमीटर लंबा था और इसकी चौड़ाई तकरीबन 70 सेंटीमीटर के आसपास थी। इस शिलालेख पर स्टडी करने के बाद साल 1818 में लोगों को मिस्र की सभ्यता के बारे में जानकारी हासिल हुई। इस शिलालेख पर जिस फ्रांसीसी विद्वान ने स्टडी की थी उनका नाम शाम्पोल्यो था।
मिस्र का पिरामिड युग ( 3400 ई०पू० से 2160 ई०पू० तक)-
मिस्र के पिरामिड के यूग के दरमियान टोटल चार राजवंशों ने मिस्र की गद्दी को संभाला और इन सभी राजाओ में से कुछ ने फारों तो कुछ ने फराओ अथवा फरऊन की उपाधि को धारण किया।
मिस्र का पिरामिड युग इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि इस युग के दरमियान यहां के राजाओं ने मिस्त्र में काफी बड़े-बड़े पिरामिड का निर्माण करवाया, जो आज भी जब आप एग्जिट देश में जाएंगे तो आपको दिखाई देंगे।
इजिप्ट देश को ही पहले मिस्त्र कहां जाता था और प्राचीन मिस्त्र में जो लोग होते थे वह देवी शक्ति की पूजा करते थे। प्राचीन मिस्र की सभ्यता के लोग पारो नाम के देवता की पूजा करते थे क्योंकि उनकी इनके ऊपर अपार श्रद्धा थी।
मिस्र का सामन्तवादी युग (2160 ई० पू० से 1580 ई० पू० तक)
जब मिस्र में सामंतवादी युग चल रहा था तब यहां पर ऐसे कई लोग पैदा हुए थे जिनका सामना करना किसी के बस की बात नहीं थी क्योंकि उन लोगों के पास अपार शक्ति थी।
इसके अलावा वह लोग शासन व्यवस्था चलाने में भी निपुण थे। इसीलिए इनके प्रभाव के आगे मिस्त्र के कई शक्तिशाली लोग भी थरथर कांपते थे और कोई भी इनका विरोध करने के लिए आवाज नहीं उठा पाता था।
हालांकि आगे चलकर के यह सभी लोग धीरे-धीरे कमजोर होते गए और फिर जितने भी सामंतवादी लोग थे उन सभी ने मिलकर के मिस्र देश को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट लिया और उस पर शासन करने लगे।
हालांकि यह सिस्टम ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और बाद में सामंतवादी लोग आपस में लड़ने लगे जिसके कारण पूरे मिस्र देश में हाहाकार मच गया।
इसी दरमियान मिस्र की कमजोरी का फायदा उठा कर के हिक्सोस नाम की एक विदेशी हमलावर जाति ने 2000 ईसा पूर्व में मिस्र पर भयंकर आक्रमण कर दिया और मिस्र देश के काफी इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया और उसके बाद उसने यहां पर शासन करना चालू कर दिया।
तकरीबन 400 सालों तक उसने यहां पर शासन किया। इसके बाद इस जाति के अत्याचारों से तंग आकर के मिस्र के लोगों ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने 1580 ईस्वी में हिक्सोस जाति को देश से बाहर भगा दिया।
मिस्र का साम्राज्यवादी युग ( 1580 ई० पू० से 650 ई० पू० तक)-
मिस्र के साम्राज्यवादी युग में थटमोस प्रथम ने एक बड़े साम्राज्य को स्थापित करने की कामना से सबसे पहले इस देश के छोटे-छोटे राज्यों को इकट्ठा करना चालू किया है.
उन सभी राज्यों को मिलाकर के उसने एक बड़े राज्य का निर्माण किया और उसके बाद उसने थीब्ज को अपनी राजधानी के तौर पर सिलेक्ट किया।
ऐसा कहा जाता है कि यही वह काल था जिसे इजिप्ट का स्वर्ण युग कहा जा सकता है क्योंकि इसी काल के दरमियान ऐसे कई राजा महाराजा यहां पर पैदा हुए जिन्होंने इजिप्ट देश की तरक्की के लिए काफी अच्छे काम किए। उन्होंने विशेष तौर पर धर्म,दर्शन, मूर्तिकला, स्थापत्य कला और साइंस की फील्ड में ध्यान दिया।
प्राचीन मिस्र सभ्यता की देन
इजिप्ट यानी कि मिस्र देश की सभ्यता ने कई ऐसी अनमोल धरोहर इंसानी जाति को दी जिसके लिए हमें उनका एहसान मानना चाहिए। मिस्र की सभ्यता ने इंसानी जाति को कागज और शाही के बारे में जानकारी प्रदान की।
इसके अलावा सिंचाई के तरीके के बारे में भी जानकारी दी, इसके साथ ही साथ बांध और नहरों का निर्माण किस प्रकार से किया जाता है इसकी भी जानकारी दी, साथ ही टैक्स रिकवरी, बड़े और विशाल मंदिरों का निर्माण, अंक चिन्हों की जानकारी, गुणा भाग करने के तरीके, केमिकल पेस्ट बनाने की जानकारी, मम्मी को कैसे सुरक्षित रखा जाए, इसकी जानकारी भी प्रदान की।
प्राचीन मिस्र की सभ्यता से संबंधित रोचक तथ्य
- प्राचीन मिस्र के लोग बालों से बहुत ज्यादा घिन करते थे। इसलिए वह अपने शरीर पर काफी कम बाल रखते थे, उनके हिसाब से यह स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होता था।
- मिस्र के लोग सुरमा लगाना भी पसंद करते थे। इसके अलावा वह मेकअप करना भी काफी ज्यादा पसंद करते थे।
- यह लोग अपने दांतो की सफाई पर विशेष तौर पर ध्यान देते थे। अपने दांतों को साफ करने के लिए वह राख का इस्तेमाल करते थे।
- प्राचीन मिस्र में जब राजा की मौत होती थी तो उनके नौकर को भी उनके साथ ही दफना दिया जाता था। नौकर को दफनाने के लिए सबसे बड़े नौकर को बेहोश किया जाता था।
- प्राचीन मिस्र में अधिकतर लोग ईसाई धर्म को मानते थे परंतु बाद में मुसलमानों के आक्रमण के कारण धीरे-धीरे इस देश में मुसलमानों की संख्या बढ़ गई और आज यह देश मुस्लिम देश माना जाता है।
- प्राचीन मिस्र में अधिकतर लोग गणित की अच्छी जानकारी रखते थे।
मिस्र सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ (characteristics of egyptian civilization in hindi)
मिस्र का सामाजिक जीवन
मिस्र के शासक फराओं कहलाते थे और प्रजा पर उनकी सता निरंकुश थी. लोग उसे ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे. उच्च वर्ग में सामंत व पुरोहित, मध्यम वर्ग में व्यापारी, व्यवसायी तथा निम्न वर्ग में कृषक और दास थे.
स्त्री व पुरुषों में लगभग उच्च वर्ग के लोग आभूषन पहनते थे. संगीत, नृत्य, नटबाजी, पशु, जुआ आदि उनके मनोरंजन के साधन थे. हाथीदांत जड़ित मेज और कुर्सियाँ व बहुमूल्य पर्दे व कालीन सामंतो के भवनों की शोभा बढ़ाते थे.
कृषि व पशुपालन
मिस्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था. जौ, प्याज, बाजरा व कपास की खेती की जाती थी. मिस्र को प्राचीन विश्व का अन्न का भंडार कहा जाता था, क्योंकि वहां वर्ष में तीन बार फसलें बोई जाती थी. बकरी, गधा, कुता, गाय, ऊट, सूअर आदि पालतू पशु थे.
व्यापार व उद्योग
मिस्र में धातु, लकड़ी, मिट्टी, कांच, कागज तथा कपड़े का काम करने वाले कुशल कारीगर थे. मिस्रवासियों को ताम्बें के अतिरिक्त अन्य धातुएं बाहर से मंगानी पडती थी.
मिस्रवासी लकड़ी पर नक्काशी एवं कांच पर चित्रकारी के कार्य से भी अवगत थे. वे वस्तु विनिमय द्वारा व्यापार करते थे. अरब व इथोपिया से उनके व्यापारिक सम्बन्ध थे.
धार्मिक जीवन
मिस्रवासियों के देवता रा (सूर्य) ओसरिम (नील नदी) तथा सिन (चन्द्रमा) थे. उनके देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे. मिस्र की सभ्यता के प्रारम्भिक काल में मिस्रवासी बहुदेववादी थे.
किन्तु साम्राज्यवादी युग में अखनाटन नामक फराओं ने एकेश्वरवाद की विचार धारा को महत्व दिया तथा सूर्य की उपासना आरम्भ की.
ज्ञान विज्ञान
मिस्र के लोगों ने तारों व सूर्य के आधार पर अपना कलैंडर बना लिया था तथा वर्ष के 360 दिन की गणना कर ली थी. मिस्रवासियों ने धूप की घड़ी का आविष्कार कर लिया था. उन्होंने अपनी वर्णमाला विकसित करके पेपीरस वृक्ष के कागज का निर्माण किया था.
मिस्र के पिरामिड (Egyptian Pyramids)–
मिस्रवासियों का विश्वास था कि मृत्यु के बाद शव में आत्मा निवास करती है. अतः वे शव पर एक विशेष प्रकार के तेल का इस्तमोल करते थे. इससे सैकड़ों वर्षों तक शव सड़ता नही था.
शवों की सुरक्षा के लिए समाधियाँ बनाई जाती थी. जिन्हें वे लोग पिरामिड कहते थे. पिरामिडों में रखे गये शवों को ममी कहा जाता था.
मिस्र के पिरामिड में गीजा का पिरामिड (Pyramids of Giza) प्राचीन वास्तुकला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ट कलाकृति है. गीजा का पिरामिड 481 फीट ऊँचा तथा 755 फीट चौड़ा है. इसमें ढाई ढाई टन के 23 लाख पत्थर के टुकड़े लगे हुए है.
इसके बाहर पत्थर की एक विशालकाय नृसिंह की मूर्ति जिसे स्फिक्स कहा जाता है, बनी है. मिस्र के पिरामिड मिस्रवासियों के गणित और ज्यामिति ज्ञान के साक्षी है. मिस्र में अब तक कई ऐसे पिरामिड विद्यमान है.
मिस्र की सभ्यता के विकास का इतिहास (History of the development of Egyptian civilization In Hindi)
विश्व की सभी नदी घाटी सभ्यताओं का जन्म और विकास बड़ी बड़ी नदियों की घाटियों में हुआ हैं. इस कारण इतिहासकार विल ड्यूरेंट ने नदी घाटियों को सभ्यता के पालने कहा हैं. अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वोत्तर में नील नदी के दोनों ओर का समूचा प्रदेश प्राचीन मिस्री सभ्यता का उद्गम और विकास का क्षेत्र था.
नील घाटी के दोनों ओर रेगिस्तान और पहाड़ियां होने के कारण मिस्र पर विदेशी आक्रमण नहीं हुए और प्रकृति के सुरक्षा कवच में यह सभ्यता विकसित होती चली गई.
इसके तीन तरफ जलीय भू भाग विस्तृत थे तो एक तरफ विशाल मरुभूमि फैली हुई थी. उत्तर, पूर्व और दक्षिण में यह क्रमश भूमध्य सागर, लाल सागर और नील नदी के महाप्रपात से घिरा हुआ था.
यही कारण है कि प्राचीन काल में मिस्र पर केवल एक विदेशी जाति हिक्सास ही आक्रमण कर पाई. पेरी का मानना है कि पृथ्वी पर मिस्र में सर्वप्रथम सभ्यता का विकास हुआ और वहां से दुनियां के अन्य लोगों ने सभ्यता सीखी.
यद्यपि अधिकांश विद्वान् पेरी के इस कथन से सहमत नहीं है किन्तु वे इतना जरुर मानते है कि पश्चिमी देशों में सबसे पुरानी सभ्यता मिस्र की ही हैं.
नील नदी इथोपिया के युगांडा पर्वत से निकलती है. टोलिमी ने इस पहाड़ को चांद का पर्वत तथा स्टेनले ने स्थानीय भाषा में रुवेनजोरी कहा हैं. यह पर्वत बारह महीने बर्फ से ढका रहता हैं.
इस क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा होती हैं. वर्षा तथा बर्फ का पिघला हुआ पानी तीन झीलों में भर जाता है जिनके नाम विक्टोरिया, अल्बर्ट और एडवर्ड हैं. ये झीलें ही नील नदी का मूल स्रोत हैं.
प्राचीन मिस्रवासी नील को हापी तथा इसके उद्गम प्रदेश को नूबिया कहते थे. यदि नील नदी उस प्रदेश में होकर नहीं बहती तो मिस्र भी मरुस्थल का भाग होता, इसी कारण यूनान के आरम्भिक इतिहासकार हैरोडोट्स ने मिस्र को नील का वरदान कहा हैं.
इतिहासकार हेज व मून ने मिस्र को नील नदी की पुत्री तथा सरदेसाई ने नील नदी को भेंट कहा हैं. जवाहरलाल नेहरु ने लिखा है कि नील नदी की सभ्यता मानव विकास के हार का एक महकता हुआ फूल हैं.
मिस्र के आदि मानव ने इसी नदी के किनारे बुद्धि कौशल और पशुओं की सहायता से अपना जीवन समृद्ध बनाने का प्रयास किया. यहीं उसने बैलों के कंधे पर जुआ रखकर खेती करना आरम्भ किया.
इसलिए संसार भर की सभ्यताओं में सर्वप्रथम मिस्र की सभ्यता में ही गाय को पूजनीय मानकर एपीस यानि गाय की मूर्ति पूजा का प्रारम्भ हुआ. उस समय के मिस्री मृत्यु देवता सेरापेज का आकार भी बैल की तरह था.
यूनानी सभ्यता के पूर्व विकास के दिनों में मिस्र की सभ्यता की गणना सबसे प्राचीन देशों में की जाती थी. प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो जब एक बार मिस्री मंदिरों के दर्शनार्थ गया तो थीबी के पुरोहितों ने उसे बड़े गर्व के साथ कहा कि हम लोगों की नजर में तुम यूनानी लोग कल के बच्चे हो.
हैरोडोट्स ने भी लिखा है कि यूनानी देवी देवताओं की कल्पना मिस्र की नकल मात्र है. यूनानियों की तरह रोमन लोगों का भी मिस्र आना जाना लगा रहता था. उनकी यात्रा के प्रमाण फिली के मंदिर की दीवारें है जो खोद खोद कर रोमनों के नामों से भरी पड़ी हैं.
रोसेटा शिला
1799 में मिस्र विजय के दौरान फ़्रांसिसी सेनानायक नेपोलियन बोनापार्ट के सैनिकों को नील नदी के मुहाने रोसेटा नामक स्थान के किला रशिद की नींव खोदते समय एक प्राचीन शिला प्राप्त हुई.
काले बेसेल्ट पत्थर की यह रोसेटा शिला 3 फुट 9 इंच लम्बी, 2 फुट 4.5 इंच चौड़ी व 11 इंच मोटी हैं, जिसमें मिस्री व यूनानी भाषाओं में एक लेख तीन लिपियों हाईरोग्ल्फिक, देमेतिक व यूनानी में लिखा गया हैं.
इस लेख मेम्फिस के पुरोहितों ने टालमी चतुर्थ एपिफेनस के प्रति कृतज्ञता दर्शाने हेतु 196 ई पू में लिखा था. इस शिलालेख को 1821 ई में सबसे पहले सही रूप से पढ़ने का श्रेय फ़्रांसिसी विद्वान् जे ऍफ़ शाम्पोलियो को दिया जाता हैं.
इंग्लैंड के थोमस यंग तथा स्वीडन के अकेटब्लाद ने भी मिस्री भाषा को पढ़ने में आंशिक योगदान दिया. रोसेटा शिला से मिस्री सभ्यता के इतिहास की प्रथम बार जानकारी मिली.
प्राचीन भारतीयों के समान ही मिस्री लोगों को भी इतिहास लेखन में रूचि नहीं थी. मिस्र के यूनानी अधिपत्य स्थापित होने के बाद इस दिशा में ध्यान दिया गया.
टालमी प्रथम फिलाडेलफ्स नामक मिस्र के यूनानी शासक ने सेबेनाइटास नामक स्थान के निवासी मनेथो नामक पुजारी को प्राचीन मिस्री अभिलेख को एकत्रित व्यवस्थित व अनुदित करने का कार्य सौपा.
इस पर मनेथो ने मिस्र के लगभग सभी राजाओं की वंशावली बनाई, मनेथो का संकलन जुलियस. अफ्रिकेन्स, यूसिबियस, जोसेफस आदि परवर्ती लेखकों की रचनाओं के उद्धरणों में प्राप्य हैं. यूनानी इतिहासकार हैरोडॉट्स तथा रोमन इतिहासकार डायोडोरस ने मनेथो के आधार पर मिस्र के बारे में लिखा.
मिस्र की सभ्यता का प्रारंभिक काल (early egyptian civilization In Hindi)
पिरामिड युग का आरम्भ होने से पहले मिस्र पर दो राजवंश शासन कर चुके थे. थिनिस नामक शहर और अपनी राजधानी बनाने के कारण इन दोनों राजवंशों को प्राचीन इतिहासकार मनेथो ने थिनिस राजवंश कहा हैं.
प्रथम राजवंश के संस्थापक मेना को मिस्र की राजनीतिक एकता का जनक कहा जाता हैं. वह मिस्र का पहला राजा था जिसने ऊपरी और निचले मिस्र को संयुक्त कर राजनीतिक एकता प्रदान करते हुए केंद्रीय सत्ता की नींव रखी.
उत्तरी मिस्र की राजधानी बूटो संरक्षिका इसी नाम की नागदेवी और राजचिह्न पेपाइरस का गुच्छा व मधुमक्खी थे. यहाँ का राजा लाल रंग का मुकुट धारण करता था व इसी रंग के महल में निवास करता था.
नीचले मिस्र का राजचिह्न लिली के पौधे की शाखा, संरक्षिका गृधदेवी नेख्ब्त तथा राजधानी नेखेब थी. यहाँ का राजा श्वेत रंग के महल में रहता था.
मेना के समय से मिस्र का क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त होता है. उसने नील के बड़े मोड़ के समीप बसे तेनी कस्बे को अपनी राजधानी बनाया.
दुर्भाग्यवश मेना की मृत्यु दरियाई घोड़े द्वारा नील नदी में खींच ले जाने से हो गई. तीसरे राजवंश के समय राजधानी मेम्फिस को बनाया गया, जो अगले 500 वर्ष तक मिस्र की राजधानी रही.
मिस्र की सभ्यता का पिरामिड काल
तीसरे से छठवें राजवंशों के काल को पिरामिड काल के नाम से जाना जाता हैं. तीसरे वंश के संस्थापक जोसेर के शासनकाल में इमहोतेप नामक पुरोहित ने अपने राजा के लिए सक्कारा में एक नये आकार प्रकार की सीढ़ीनुमा कब्र बनवाकर पाषाण वास्तुकला को जन्म दिया. इस कब्र की सपाट छत पर सीढ़ीनुमा पांच म्स्त्बा खड़े किये गये.
यही उन प्रख्यात पिरामिडो की श्रंखला का प्रथम पिरामिड हैं. जिन्हें विश्व के सात महान आश्चर्यों में से एक माना जाता रहा हैं. इमहोतेप न केवल वजीर व वास्तुकार था अपितु लियोनार्दो द विंची की तरह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था. उसकी मृत्यु के लगभग पच्चीस सौ वर्षों के बाद यूनानी लोग उसे चिकित्साशास्त्र का देवता मानते थे.
जोसेर के उत्तराधिकारी नेफ्रू के शासनकाल में बने पिरामिड में सीढियों के खाली भागों को भरवाकर ढलवा कर दिया गया. यह पहला पूर्ण पिरामिड था.
इसके बाद सभी पिरामिड सीढ़ीदार के स्थान पर ढलवा बनाए गये. नेफ्रू ने 170 फुट लम्बा एक जलपोत भी बनवाया, जिससे विदेशी व्यापार को बढ़ावा मिला.
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