एंटीबायोटिक निबंध Essay On Antibiotic In Hindi: एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधों की समस्या वैसे तो चिकित्सकीय मानी जाती है. वास्तव में यह साझा संसाधनों के प्रबंधन और एंटीबायोटिक के असर से जुड़ा मामला है. एंटीबायोटिक का इस्तेमाल चाहे उपयुक्त हो या नहीं, इसमें इतनी ताकत है कि सभी के लिए असर के स्तर को कम कर सकता हैं. चाहे वह दुनिया के किसी कोने में रहता हो. ऐसा इसलिए है क्योकि प्रतिरोध के जीन्स कुछ ख़ास वातावरण में वैश्विक स्तर पर संचारित होते हैं और ये उसी गति से फैलते हैं जिस गति से कोई मनुष्य या पशु एक जगह से दूसरी जगह पहुँचता हैं.
एंटीबायोटिक पर निबंध | Essay On Antibiotic In Hindi

इस वैश्विक संसाधन को बचाने का कोई भी प्रयास जाहिर तौर पर वैश्विक ही होगा लेकिन भारत विशाल आबादी एंटीबायोटिक की खरीद को सहज बनाने वाली बढ़ती हुई आय और उसकी उपलब्धता के चलते इन प्रयासों का एक अहम केंद्र होगा. भारत से ही बहुऔषिधय प्रतिरोध मापक न्यू डेल्ही मेतैलोबीटालैक्टामेज 1 (एनडीएम 1) का उभार हुआ और यह पूरी दुनिया में फैला.
एशिया, यूरोप और अफ्रीका में भी दक्षिण एशिया से पैदा होने वाले मल्टी ड्रग प्रतिरोधी टाईफाईड का असर देखा गया हैं इसलिए भारत में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध एएमआर का नियंत्रण इस खतरे को वैश्विक स्तर पर सम्बोधित करने के लिहाज से केंद्रीय भूमिका में हैं.
भारत में करीब 56 नवजातों की मौत सेपिस्स से हो जाती है, जो ऐसे जीवाणु से पैदा होते है जो प्राथमिक एंटीबायोटिक के प्रति रोधी हैं. इसके अलावा 5 साल से कम उम्रः के बच्चों में निमोनिया के चलते अनुमानित 1.7 लाख मौतों को रोका जा सकता हैं. यदि प्रभावी तरीके से एंटीबायोटिक उन्हें उपलब्ध कराया जाए.
एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोध का तत्कालिक खतरा संक्रमण में दिखता हैं. और ज्यादातर मौतें इस वजह से होती हैं क्योंकि लोगों की पहुंच प्राथमिक एंटीबायोटिक तक नहीं हो पाती हैं.हमें इसके अत्यधिक और अनुपयुक्त उपयोग को संतुलित करना होगा जो कि एंटीबायोटिक के प्रतिरोध का प्रमुख संचालक हैं. साथ ही जिन्हें जरूरत है उनको जीवनरक्षक दवाई की उपलब्धता तय करनी होगी.
2011 से 2012 के बीच भारत में बेचे गये कुल एंटीबायोटिक में 34 फीसदी एफडीसी थे. उसी साल बेचे गये एक तिहाई एफडीसी अस्वीकृत फार्मूलेशन के थे और 64 फीसदी पूरी तरह अस्वीकृत थे. वर्ष 2018 में 328 एफडीसी उत्पादों को केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन ने प्रतिबंधित किया था. अतीत में ऐसे प्रतिबंधों को दवा उद्योग ने चुनौती भी दी थी.
बिना रसीद के एंटीबायोटिक की बिक्री पर कानूनन रोक है, हालांकि यह पूरी तरह लागू नहीं हैं. क्योंकि आज भी एंटीबायोटिक आसानी से मिल जाते हैं. यहाँ तक कि मरीज बिना डॉक्टर से परामर्श किये खुद ही एंटीबायोटिक ले लेते हैं.
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दुनिया की 17 फीसदी आबादी भारत में रहती हैं. इसलिए वैश्विक स्तर पर बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भी एएमआर पर ध्यान खींचने में भारत की अहम भूमिका हैं. फिलहाल दुनिया में अधिक मौतें एंटीबायोटिक की अनुपलब्धता के चलते हो रही हैं. न कि उन संक्रमणों से, जो एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोध से पैदा होते हैं.
इन औषधियों के लम्बी अवधि में कारगर होने के लिए जरुरी है कि प्रतिरोध के फैलाव के उपाय खोजे जाए. आयुष्मान भारत योजना के तहत देश में अब सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज कार्यक्रम शुरू किया गया हैं. इसलिए जरुरी होगा कि इसमें एंटी बायोटिक की उपलब्धता को उसके अतिरिक्त और अनुपयुक्त उपयोग के साथ संतुलित किया जाए.
खासकर वहां, जहाँ पर एंटीबायोटिक का प्रयोग इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश के मुकाबले सस्ता दिखता हो. इसने संक्रामक रोगों में नाटकीय कटौती लाने का काम किया हैं. प्रभावी एंटीबायोटिक तक भारत में संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में कटौती लाने के लिए टीकाकरण की कवरेज में सुधार, साफ़ पानी तक पहुँच, स्वच्छता और शौच इत्यादि व्यवस्थाओं में भी सुधार जरुरी हैं.
भारत में स्वच्छ भारत मिशन में कई इलाकों में शौचालय की कवरेज को बेहतर किया हैं. हालांकि शौचालय के इस्तेमाल करने को लेकर व्यावहारिक स्वीकार्यता अभी भी चुनौती बनी हुई हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ साफ़ पानी, पर्याप्त स्वच्छता और गुणवत्तापूर्ण शौच सुविधा के लिए जरुरी इन्फास्ट्रक्चर में सुधार लाने से 2020 तक एंटीबायोटिक से ठीक किये जाने वाले डायरिया के मामलों में 590 मिलियन तक कटौती हो सकती हैं.
भारत में चिकित्साकर्मी प्रशिक्षित नहीं होते लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे ही चिकित्साकर्मियों के हाथ में देश के प्राथमिक स्वास्थ्य का 70 फीसदी हैं. दवा कम्पनियां डॉक्टरों सहित ऐसे चिकित्साकर्मियों को भी अपना निशाना बनाती हैं. चिकित्सकीय उपकरण, यात्रा सुविधाएं और नकदी इत्यादि का प्रलोभन देकर यह भी ताकीद किया जाता है कि ये दवा कम्पनियों के प्रतिस्प र्धियों की तरफ से दिए जाने वाले नमूने अथवा एंटीबायोटिक की बिक्री रियायती दरों पर न करे.
यह भी एक तथ्य है कि चिकित्सकों के लिए दवा कम्पनियों के प्रतिनिधि नयें उत्पादों का पहला स्रोत होते हैं. लेकिन उनकी जानकारी पक्षपात पूर्ण हो सकती हैं. इसका एक कारण एंटीबायोटिक की बिक्री को बढ़ाना भी हो सकता हैं. डॉक्टरों में यह भी एक धारणा बनती जा रही है कि यदि उन्होंने मरीज को एंटीबायोटिक नहीं दिया, तो वह लौटकर नहीं आएगा. हो सकता है कि मानक उपचार दिशा निर्देश मौजूद ही न हो या फिर अलग अलग रूप में विकसित हो और डब्ल्यूएसओ की सिफारिशों पर पूरी तरह खरा न उतरते हो.
फिर भी उपचार दिशानिर्देशों को स्थानीय वातावरण के हिसाब से तैयार करना होगा. बिना रसीद के एंटीबायोटिक की बिक्री पर कानूनन रोक हैं हालांकि यह पूरी तरह लागू नहीं हैं. क्योंकि आज भी एंटीबायोटिक आसानी से मिल जाते हैं. यहाँ तक कि मरीज बिना डोक्टर की परामर्श के खुद ही एंटीबायोटिक ले लेते हैं ऐसे मरीज 70 फीसदी से ज्यादा हैं.
दो या दो से ज्यादा एंटीबायोटिक को मिलाकर लिए जाने वाले फिक्स डोज काम्बिनेशन एफडीसी कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता हैं. क्योंकि इसके फायदे प्रमाणित नहीं हैं. हाल तक भारत में एफडीसी की बिक्री जारी की थी.
निबंध 2
मॉडर्न मेडिकल ट्रीटमेंट में एंटीबायोटिक दवा का इस्तेमाल पहली बार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। एंटीबायोटिक दवा बैक्टीरिया को खत्म करके हमारी बॉडी की बीमारियों को घटाने का या फिर खत्म करने का काम करती है।
सबसे पहले लॉन्च की गई एंटीबायोटिक का नाम पेंसिलिन था जिसकी खोज जीवाणु उगाने की प्रोसेस के दरमियान सामान्य तौर पर हो गई थी। आज के समय में एंटीबायोटिक दवाएं 100 से भी अधिक संख्या को पार कर चुकी हैं और यह मामूली बीमारी से लेकर के जानलेवा इंफेक्शन को भी खत्म करने में सहायक साबित हो रही हैं।
एंटीबायोटिक दवा को एंटीबैक्टीरियल भी कहा जाता है और यह ऐसी दवा होती है जो बैक्टीरिया को खत्म करती है या फिर उनके डेवलपमेंट को रोक देती हैं। एंटीबायोटिक में पावरफुल मेडिसिन का पूरा ग्रुप शामिल होता है और जो बीमारी बैक्टीरिया के कारण पैदा होती है यह उनके इलाज में असरदार साबित होती हैं।
एंटीबायोटिक के प्रकार में कई प्रकार शामिल है। इसमें पेनिसिलिन,सेफालोस्पोरिंस,टेट्रासाइक्लाइन्स,एमिनोग्लैक्सीड्स,मैक्रोलिड्स,सल्फोनामाइड्स और ट्रिमेथोप्रिम,नाइट्रोफुरेंटोइन,क्विनोलोन्स जैसे प्रकार मौजूद हैं।
एंटीबायोटिक मेडिसिन का उपयोग जीवाणुओं से होने वाले इन्फेक्शन की ट्रीटमेंट के लिए तब किया जाता है जब बिना एंटीबायोटिक मेडिसिन के उसे ठीक करने की संभावना ना हो!
अथवा अगर ट्रीटमेंट नहीं की गई तो दूसरी समस्या हो सकती है या फिर एंटीबायोटिक मेडिसिन से ट्रीटमेंट के लिए लंबा टाइम लग सकता है अथवा ट्रीटमेंट नहीं की गई तो गंभीर जटिलताओं का खतरा अधिक हो सकता है।
एंटीबायोटिक के द्वारा कुछ सामान्य प्रकार के इन्फेक्शन का इलाज किया जाता है। जैसे कि मुंहासे, ब्रोंकाइटिस, कंजेक्टिवाइटिस, कान का इन्फेक्शन, स्ट्रेटोकोकल फेरींगजाइटिस, ट्रैवलर्स डायरिया, यूटीआई।
एंटीबायोटिक मेडिसिन हम कई प्रकार से ग्रहण कर सकते हैं। इसकी टेबलेट या फिर कैप्सूल को हम मुंह के जरिए ले सकते हैं। इसकी क्रीम लोशन, स्प्रे और ड्रॉप्स भी आते हैं जिनका इस्तेमाल हम त्वचा के इंफेक्शन की ट्रीटमेंट के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा एंटीबायोटिक इंजेक्शन भी आता है जिसे डायरेक्ट हमारी नसों में लगाया जाता है जो सीधा हमारे खून में पहुंचता है।
एंटीबायोटिक मेडिसिन इंसानों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद मानी जाती है। यह बैक्टीरियल इनफेक्शन को कम करती हैं और बीमारी के जोखिम को भी घटाने का काम करती हैं जिससे इंसानों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं से आराम की प्राप्ति होती है। यह जीवाणुओं के फैलने की गति को कम करती है जिससे हमारी बॉडी में इन्फेक्शन कम हो जाता है और हमें इंफेक्शन से आजादी मिलती है।
दुनिया में हर साल 12 से लेकर के 18 नवंबर तक वर्ल्ड एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है जिसका उद्देश्य एंटीबायोटिक प्रतिरोध के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना है और साथ ही सामान्य जनता, हेल्थ वर्कर एंटीबायोटिक के प्रसार में शामिल रहे।
एंटीबायोटिक जिंदगी तो बचा लेते हैं परंतु अगर एंटीबायोटिक का बिना जरूरत के या फिर गलत इस्तेमाल किया जाता है तो यह साइड इफेक्ट का कारण भी बन सकते हैं। इसीलिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल सोच समझकर और निर्धारित मात्रा में करना चाहिए ताकि इसके फायदे ही फायदे प्राप्त हो।
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