चाँदनी रात में नौका विहार | Essay on Boating in the Moonlight Night in Hindi

प्रिय मित्रों Essay on Boating in the Moonlight Night in Hindi में आज हम चाँदनी रात में नौका विहार पर निबंध साझा कर रहे हैं. कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए यह निबंध उपयोगी हैं. चाँदनी रात की सैर नौका विहार हिंदी निबंध सरल भाषा में प्रस्तुत हैं चलिए पढ़ते हैं.

Essay on Boating in Moonlight Night in Hindi

चाँदनी रात में नौका विहार | Essay on Boating in the Moonlight Night in Hindi

चाँदनी रात में नौका विहार Short Best Essay on Boating in the Moonlight Night in Hindi Language

चांदनी रात में नौका विहार का जिस ने आनन्द नहीं लिया, वह प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य से वंचित ही रह जाता हैं. वैसे तो नौका विहार के लिए गोवा एवं केरल के समुद्री तट तथा कश्मीर, ओड़िसा एवं नैनीताल की झीले प्रसिद्ध हैं.

लेकिन इसके अतिरिक्त भी भारत में कई ऐसे जलाशय हैं, जो नौका विहार के लिए विशेष तौर पर प्रसिद्ध हैं. मैं ओडिशा भ्रमण के दौरान चिल्का झील की सैर करना चाहता था.

वैसे तो मैं दिन में कई बार इस झील की सुन्दरता को निहार चुका हूँ, लेकिन एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा था- इस झील के असली सौन्दर्य को यदि देखना हैं तो चाँदनी रात में नौका पर इसकी सैर कीजिए.

संयोगवश वह शरद ऋतु के शुक्ल पक्ष का समय था. हम सभी ने उसकी सलाह मानते हुए एक नौका एवं नौका चालक की व्यवस्था की और फिर निकल पड़े चाँदनी रात में नौका विहार का आनन्द लेने.

थोड़ी देर में हमें इस बात का आभास हो गया कि यह सैर हमारे लिए वास्तव में अविस्मरणीय बनने वाली हैं. चिल्का झील की सुन्दरता चाँदनी रात में वाकई देखने लायक थी.

मुझे इस समय प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पन्त द्वारा रचित नौका विहार कविता की याद आ रही थी. चाँदनी रात में नौका विहार का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा हैं.

“चाँदनी रात का प्रथम प्रहर
हम चले नाव लेकर सत्वर
सिकता की स्सिमत सीपी पर
मोती की ज्योत्सना रही विचर
लो, पाले चढ़ीं उठी लंगर
मृदु मंद मंद मंथर मंथर
लघु तरणी हंसिनी सी सुंदर
तिर रही, खोल पालों के पर”

हम सभी मित्र उत्साहित थे. शरद ऋतु के शुक्ल पक्ष की चाँदनी यूँ भी मनमोहक लगती हैं. उस मनमोहक चाँदनी में चिल्का की ख़ूबसूरती में निखार आ गया था.

थोड़ी देर तक हम यूँ ही घुमते रहे, इस सौन्दर्य का रसपान करते रहे. संगीत के रस में डूबकर नौका विहार के आनन्द को दोगुना करने का प्रबंध हम पहले से ही कर चुके थे.

सुमित अपने साथ गिटार लेकर आया था. गौरव को फोटोग्राफी का काम सौपा गया था. वाह कभी स्थिर फोटो लेता तो कभी हम सभी का विडियो बनाता. मैंने सुमित से गिटार पर एक खूबसूरत गीत छेड़ने का आग्रह किया, पर वह तो किसी ओर दुनियां में डूबा था.

मैं बिना गिटार के ही एक अच्छा सा गीत गाना चाहता हूँ. हम सभी ने उसके इस प्रस्ताव का स्वागत किया. सुमित थोड़ा रोमांटिक हो चला था. उसने लाल बंग्ला फिल्म का एक गीत शुरू किया. चाँद को क्या मालूम, चाहता है कोई उसे चकोर.

वाकई बहुत ही खूबसूरत एवं मौके के अनुरूप था. सब प्रफुल्लित हो गये. सभी ने उसे गिटार के साथ गाने की फरमाइश की. उसने सबकी फरमाइश पूरी की. करीब एक घंटे तक हम नाव पर घूमते हुए गाने बजाने का कार्यक्रम चलता रहा.

इस बीच हमारा नाविक हमें चिल्का झील की विशेषताओं के बारे में भी बताता रहा. उसने हमें झील के बीच स्थित एक मन्दिर के दर्शन करने की सलाह दी.

कहा जाता हैं कि यह मन्दिर प्राचीन काल में किसी राजा द्वारा बनवाया गया था. चाँदनी रात में किसी ऐतिहासिक स्थान की सैर वह भी नाव द्वारा वहां तक पहुचना,

हम लोगों के लिए यह अत्यंत रोमांचक था. हम सभी ने उसे अच्छी सलाह देने के लिए धन्यवाद् दिया. इसके बाद नाव का रूख मन्दिर की ओर हो गया.

मन्दिर वास्तव में अत्यंत प्राचीन था. खासकर वहां निर्मित मूर्तियों का सौन्दर्य चाँदनी रात में और निखर गया था. मंदिर के चारों ओर झील और लगभग बीच में मन्दिर, प्रकृति की ख़ूबसूरती को मनुष्य द्वारा निखारने का एक अद्भुत उदाहरण हमारे सामने था.

गौरव ने अपना कैमरा फिर चालू किया और हम फोटो सेशन में लग गये. लगभग हर कोण से हम सभी ने मन्दिर एवं झील के फोटो भी लिए. इसके बाद नाव पर बैठे हुए भी हमनें कई प्रकार की तस्वीरें उतारी. रात लगभग 10 बजे नाविक ने वापस लौटने की सलाह दी और हम सभी वापिस नाव में आ गये.

नौका विहार का मजा लें और खाने पीने का कोई प्रबंध न हो तो आनन्द में थोड़ी सी कमी रह जाती हैं. इसलिए हम पहले ही खाने पीने के पुरे प्रबंध के साथ नौका में सवार हुए थे. हम सभी ने खाना खाया. मैं नाव को खुद चलाकर देखना चाहता था.

इसलिए मैंने नाविक से प्रार्थना कि की वह पतवार मुझे थमा दे. उसने पतवार चलाने के कुछ तरीके बताते हुए पतवार मुझे सौंप दी. मैं जीवन में पहली बार नाव चला रहा था. मुझे इस कार्य में जो आनन्द आ रहा था, उसका वर्णन मैं शब्दों में कर पाने में असमर्थ हूँ.

मुझे नाव चलाने का आनन्द उठाते हुए देखकर सुमित एवं गौरव भी नाव चलाने को आतुर हो उठे. उन दोनों ने भी बारी बारी से इसका आनन्द उठाया.

हम मस्ती में मग्न थे. कि नाविक ने हमें कहा कि अब हमें वापिस लौट जाना चाहिए. हम सभी वापिस लौटना नहीं चाहते थे. नाविक को भी हमने मना लिया.

वह एक घंटा और रूकने के लिए तैयार हो गया. हम झील की सैर करते रहे. मैंने कहा कि जाने से पहले एक बार फिर गाने बजाने का कार्यक्रम हो जाए.

मेरा इतना कहना था कि गौरव फिर शुरू हो गया. इस बार वह दुगुने जोश में था. हम सभी ने भी गाने में उसका भरपूर साथ दिया. हम वापस तो नहीं आना चाहते थे, किन्तु वापस आना हमारी विवशता थी. इस तरह रात्रि के लगभग तीन बजे हम सभी का नौका विहार समाप्त हुआ.

उस नौका विहार को याद करते हुए हम सभी को आज भी मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं.

“चारू चन्द्र चंचल किरने
खेल रही थीं जल थल में
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी
अवनि और अम्बर तल में”

मैं कभी भी उस नौका विहार को याद करता हूँ तो ऐसा लगता हैं, मानों वह कल की ही बात हो, मेरा तो मानना है जीवन में कभी यदि व्यक्ति को नौका विहार का मौका मिले तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए. प्रकृति की ख़ूबसूरती को चाँदनी रात में नौका पर सवार होकर देखने का आनन्द ही कुछ और हैं.

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