Essay On Child Labour In Hindi बाल श्रम निबंध हिंदी में भारत में बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा का स्तर निम्न है जिनका कारण बाल श्रम (Child Labour) जैसी बुराइयों का हमारे समाज में व्याप्त होना हैं. “बाल मजदूरी” व बालश्रम पर निबंध में विद्यार्थियों के लिए चाइल्ड लेबर एस्से कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए 5 लाइन, 10 लाइन 100, 150, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में छोटा बड़ा उपलब्ध करवा रहे हैं.
Essay On Child Labour In Hindi बाल श्रम निबंध हिंदी में
देश भर में हर रोज सवा सौ से अधिक बच्चे लापता हो जाते है. जिनमे से ज्यादातर कभी लौटकर नही आते है. लापता बच्चे आखिर जाते कहाँ है? इसका जवाब ज्यादा मुश्किल नही है. कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के अध्ययन से यह साबित हो चुकि है कि मानव तस्करी करने वाले गिरोह इस काम में बड़े पैमाने पर सक्रिय है.
भारत में चाइल्ड लेबर अथवा बाल मजदूरी का अर्थ 14 वर्ष से कम आयु के बालक बालिकाओं को जोखिम भरे कामों में लगाने से हैं भारत में 14 वर्ष से कम उम्रः का बच्चा यदि अपने दिन का अधिकांश हिस्सा कार्य करने में/श्रम / मजदूरी में लगाता हैं तो यह बाल श्रम कहलाता हैं.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 15 वर्ष से कम उम्रः का श्रमिक बाल श्रमिक बाल श्रमिक कहलाएगा. भारत में सर्वाधिक 79 प्रतिशत बाल श्रमिक कृषि में संलग्न हैं.
भारत में बाल श्रम उन्मूलन हेतु संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान के भाग 3 अर्थात मूल अधिकारों के तहत अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्रः के बालक का किसी कारखाने/ खान/ अन्य खतरनाक उद्यम में श्रम निषेध हैं.
- भारतीय संविधान के भाग 4 अर्थात नीति निर्देशक तत्व के तहत अनुच्छेद 39 ड /39 E के अनुसार राज्य का यह दायित्व हैं कि बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो, किसी भी पुरुष / महिला कर्मिक के स्वास्थ्य व शक्ति का दुरूपयोग न हो व बच्चों की आयु व शक्ति के प्रतिकूल व्यवसाय न करने पर राज्य ध्यान दे.
- अनुच्छेद 39 F के अनुसार बालकों को स्वतंत्र व गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर व सुविधाएं दी जाए तथा शैशव व किशोरावस्था से शोषण से नैतिक व आर्थिक परित्याग से संरक्षण करे.
- कैलाश सत्यार्थी भारत के प्रमुख बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्होंने बाल श्रम के विरोध में अभियान छेड़ते हुए 1980 में बचपन बचाओं आंदोलन आरम्भ किया, 80,000 से अधिक बच्चों को बाल श्रम से निजात दिलाई. वे ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर के अध्यक्ष हैं.
- उन्हें 2014 में शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
बाल श्रम रोकने के कानून
कारखाना अधिनियम 1948
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- 15वर्ष से कम उम्रः – बाल श्रम
- बालक व महिलाओं के 7 PM से अगले दिन 6 AM के बीच कार्य के प्रतिषेध
- कार्य में सप्ताह घंटे- 48
- वर्ष में 18 दिन का संवैधानिक अवकाश
- फैक्ट्री में 30+ महिलाएं होने पर एक शिशु सदन
खान अधिनियम 1952
- खानों में बाल श्रम निषेध
प्रशिक्षु कानून 1961
- 14 वर्ष से कम उम्रः के बालक प्रशिक्षु के रूप में नियोजन प्रतिषेध
बीड़ी एवं सिंगार कर्मकार कानून 1966
- बीड़ी व सिंगार उद्योग में बाल श्रम प्रतिषेध
बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) कानून 1986
- वर्तमान में प्रचलित बाल श्रम विरोधी व्यापक कानून हैं
- 1979 में भारत सरकार ने गुरुपद स्वामी कमेटी का गठन किया गया, जिसकी सिफारिश पर बाल श्रम कानून, 1986 बना तथा इसे स्पष्ट व सारगर्भित बनाने हेतु 14 अगस्त 1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति जारी की गई. साथ ही 1988 में बाल श्रम नियमों को प्रारूपित किया गया.
1986 के अधिनियम के अनुसार
- 14 वर्ष से कम उम्रः के बच्चों का 13 व्यवसाय व 57 प्रक्रियाओं में निषेध
- कानून के उल्लंघन पर 3 माह से 1 वर्ष का कारावास अथवा दस हजार से 20 हजार तक जुर्माना या दोनों
- घरेलू इकाईयों को छोड़कर अन्य प्रतिष्ठान/ निश्चित एवं विनिर्दिष्ट जोखिम भरे कार्य व प्रक्रियाओं में बाल नियोजन का निषेध
- वर्ष 2006 में आतिथ्य उद्योग भी इस कानून के दायरे में लाया गया.
- गुरुपद स्वामी समिति की सिफारिश पर जारी राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987 के तहत राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना 1988 प्रारम्भ कर बाल श्रमिकों के पुनर्वास व भोजन की व्यवस्था के प्रयास
- 13 मई 2015 को भारतीय कैबिनेट ने बाल श्रम कानून में संशोधन को मंजूरी दी जिसके अनुसार-
- बच्चे को पारिवारिक कारोबार की छूट बशर्ते खतरनाक कार्य/ प्रक्रिया न हो तथा स्कूली समय के अतिरिक्त करें.
- बच्चा विज्ञापन, फिल्म, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री सर्कस आदि में भाग ले सकता हैं.
- खतरनाक कार्य व प्रक्रियाओं में 14-18 वर्ष के बालक का भी कार्य निषेध
- पहली बार अपराध पर सजा न्यूनतम 6 माह अधिकतम 2 साल तथा जुर्माना 20 हजार से 50 हजार होगा.
- दूसरी बार अपराध पर न्यूनतम 1 वर्ष से अधिकतम 3 वर्ष कैद.
बाल श्रम के तथ्य
- 26 सितम्बर 1994 को राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन प्राधिकरण का गठन
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत 2007 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग गठित किया गया, जिसके प्रथम चेयरमैन शांता सिन्हा थी.
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की वर्तमान अध्यक्षा स्तुति नारायण कक्कड़ हैं.
- विश्व बालश्रम निरोध दिवस – 12 जून
- राष्ट्रीय बाल दिवस – 14 नवम्बर
- राष्ट्रीय बालिका दिवस – 24 जनवरी
बाल श्रम निबंध 200 शब्दों में
भारत में भगवान के बाल रूप में अनेक मंदिर हैं, जैसे बाल गणेश, बाल हनुमान, बाल कृष्ण एवं बाल गोपाल इत्यादि. भारतीय दर्शन के अनुसार बाल रूप को स्वयं भगवान का अवतार माना जाता हैं. धुर्व, प्रहलाद, लव कुश एवं अभिमन्यु आज भी भारत में सभी के दिल दिमाग में बसे हैं.
आज के समय में गरीब बच्चों की स्थिति अच्छी नही हैं. बाल श्रम समाज की गम्भीर बुराइयों में से एक हैं. गरीब बच्चों का भविष्य अंधकारमय हैं. पूरे समाज में गरीब बच्चों की उपेक्षा हो रही हैं. तथा उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ता हैं. उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है और शिक्षा से वंचित होना पड़ता हैं.
साथ ही बाल मजदूरी हेतु मजबूर होना पड़ता हैं. समाज में गरीब लड़कियों की स्थिति और भी नाजुक हैं. नाबालिग बच्चे घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं. वे होटलों कारखानों, दुकानों एवं निर्माण स्थलों में कार्य करते हैं. और रिक्शा चलाते भी दीखते हैं. यहाँ तक कि वे फैक्ट्रियों में गम्भीर एवं खतरनाक काम के स्वरूप को भी अंजाम देते दिखाई पड़ते हैं.
बाल मजदूरी पर निबंध 250 शब्दों में
भारत में बाल श्रम अथवा बाल मजदूरी आम बात हैं. इस कलंक के पीछे जुडे सामाजिक आर्थिक कारणों, सरकार द्वारा इसे रोकने के लिए बनाये गये एक्ट (कानून) व रोकथाम के उपायों पर जानकारी दी गई हैं. बालश्रम की इस समस्या ने करोड़ों बच्चों के बचपन को अजगर की तरह निगल डाला हैं.
समाज को इस दिशा में जागरूक होकर इसे रोकने के लिए और शख्त कदम उठाने की आवश्यकता हैं. यह न सिर्फ उन गरीब मासूम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हैं बल्कि उनके मानवाधिकारों का भी हनन हैं
बालश्रम का अर्थ उस कार्य को करने वाले बालक से है जो विधि द्वारा नियत न्यूनतम आयु से कम आयु वर्ग का हो. आज हमारे समाज में बाल मजदूरी एक अभिशाप की तरह बन गया हैं. जहाँ बच्चों के पढने और खेलने कूदने की उम्रः होती हैं.
उस समय उन्हें परिवार को चलाने की जिम्मेदारी तथा अनियमित रूप से कार्य पर जाना पड़ता हैं. भले ही बाल श्रमिक अधिक आय का अर्जन नही कर पाते हो मगर गरीब माँ बाप की रोजी रोटी के लिए उन्हें यह कार्य विवशता के कारण करना पड़ता हैं.
स्कूल, खेल, प्यार-स्नेह, आत्मीयता ये कुछ ऐसे शब्द है जो एक बाल श्रमिक के लिए ड्रीम वर्ड बनकर रह जाते हैं. सरकार द्वारा 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक कार्य में लगाना अवैधानिक घोषित कर रखा हैं.
मगर भारत में बाल श्रम की समस्या का मूल कारण गरीबी हैं इस कारण इसे इतनी आसानी से समाप्त कर देना संभव नही हैं. आमजन में इस कुप्रथा के प्रति जागरूकता फैलाने के साथ ही उन्हें आर्थिक मदद देकर मासूम बच्चों के भविष्य को इस दलदल में फसने से बचाया जा सकता हैं.
बाल श्रम निबंध 300 शब्दों में
भारतीय संविधान 1950 के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी फैक्ट्री अथवा खान में नौकरी नही दी जाएगी. इस सम्बन्ध में भारतीय विधायिका ने फैक्ट्री एक्ट 1958 एवं चिल्ड्रन एक्ट 1960 में भी उपबन्ध किये हैं.
बाल श्रम एक्ट 1986 इत्यादि बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु भारत सरकार की पहल दर्शित करते हैं. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 49 के अनुसार राज्यों का कर्तव्य है कि वे बच्चों हेतु आवश्यक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करे.
गत कुछ वर्षों से भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा इस सम्बन्ध में प्रशंसा योग्य कदम उठाए गये हैं. बच्चों की शिक्षा एवं उनकी बेहतरी के लिए अनेक कार्यक्रम व नीतियाँ बनाई गई हैं. तथा इस दिशा में सार्थक प्रयास किये गये हैं. किन्तु बाल श्रम (बाल मजदूरी) की समस्या आज भी ज्यो की त्यों बनी हुई हैं.
इसमें कोई शक नही हैं कि बाल श्रम की समस्या का जल्द से जल्द कोई समाधान निकाला जाए. यह एक गम्भीर सामाजिक चुनौती हैं तथा इसे जड़ से समाप्त करना आवश्यक हैं.
बाल श्रम निबंध 400 शब्दों में
बाल मजदूरी भारत में बड़ा सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा हैं जिसे नियमित आधार पर हल करना चाहिए, ये केवल सरकार की जिम्मेदारी नही हैं. बल्कि इसे सभी सामाजिक संगठनों, मालिकों और अभिभावकों द्वारा भी समाधित किया जाना चाहिए. यह मुद्दा सभी के लिए हैं. जोकि व्यक्तिगत तौर पर सुलझाना चाहिए, क्योंकि ये किसी के भी बच्चें के साथ हो सकता हैं.
भयंकर गरीबी और खराब स्कूली मौके की वजह से बहुत सारे विकासशील देशों में बाल मजदूरी आम बात हैं. बाल मजदूरी की उच्च दर अभी भी 50 प्रतिशत से अधिक हैं. जिसमें 5 से 14 साल तक के बच्चें विकासशील देशों में काम कर रहे हैं. कृषि क्षेत्र में बाल मजदूरी की दर सबसे उच्च हैं. जो ज्यादातर ग्रामीण और अनियमित शहरी अर्थव्यवस्था में दिखाई देती हैं. जहाँ कि अधिकतर बच्चें अपने दोस्तों के साथ खेलने और स्कूल भेजने की बजाय प्रमुखता से अपने माता-पिता द्वारा कृषि कार्यों में लगाये जाते हैं.
बाल मजदूरी इंसानियत के लिए अपराध हैं जो समाज के लिए श्राप बनता जा रहा हैं तथा देश के वृद्धि एवं विकास में बाधक के रूप में बड़ा मुद्दा हैं. बचपन जीवन का सबसे यादगार क्षण होता हैं. जिसे हर एक को जन्म से जीने का अधिकार हैं. बच्चों को अपने दोस्तों के साथ खेलने का, स्कूल जाने का, माता-पिता के प्यार और परवरिश के एहसास करने का तथा प्रकृति की सुन्दरता का आनन्द लेने का पूरा अधिकार हैं. जबकि केवल लोगों की गलत समझ की वजह से बच्चों को बड़ों की तरह जीवन के हर जरुरी संसाधनो की प्राप्ति के लिए उन्हें अपना बचपन कुर्बान करना पड़ रहा हैं.
5 से 14 साल तक के बच्चों का अपने बचपन से ही नियमित काम करना बाल मजदूरी कहलाता हैं. विकासशील देशों में बच्चें जीवन जीने के लिए बेहद कम पैसों पर अपनी इच्छा के विरुद्ध जाकर पूरे दिन कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर हैं. वो स्कूल जाना चाहते हैं और दूसरे अमीर बच्चों की तरह अपने माता-पिता का प्यार और परवरिश पाना चाहते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें अपनी इच्छाओं का गला घोटना पड़ता हैं.
विकासशील देशों में, खराब स्कूलिंग मौके, शिक्षा के लिए कम जागरूकता और गरीबी की वजह से बाल मजदूरी की दर बहुत अधिक हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में अपने माता-पिता द्वारा कृषि कार्य में शामिल 5 से 14 साल तक के ज्यादातर बच्चें पाए जाते हैं. पूरे विश्व में सभी विकासशील देशों में बाल मजदूरी का मुख्य कारण गरीबी और स्कूलों की कमी हैं.
बाल श्रम पर निबंध 1
परिचय (बाल श्रमिक कौन)
14 वर्ष से कम आयु के मजदूरी या उद्योगों में काम करने वाले बालक आते हैं. खेलने कूदने और पढ़ने की उम्रः में मेहनत मजदूरी की चक्की में पीसता देश का बचपन समाज की सोच पर एक कलंक हैं. ढाबों, कारखानों और घरों में अत्यंत दयनीय स्थतियों में काम करने वाले ये बाल श्रमिक देश की तथाकथित प्रगति के गाल पर एक तमाचा है, इनकी संख्या लाखों में हैं.
बाल श्रमिक की दिनचर्या
इन बाल श्रमिकों की दिनचर्या पूरी तरह से इनके मालिकों या नियोजकों पर निर्भर हैं. गर्मी हो, वर्षा या शीत इनको सवेरे जल्दी उठकर काम पर जाना होता हैं, इनकों भोजन साथ ले जाना पड़ता हैं या फिर मालिकों की दया पर निर्भर रहना पड़ता हैं. इनके काम में घंटे नियत नही होते हैं बारह से चौदह घंटे तक भी काम करना पड़ता हैं. कुछ तो चौबीस घंटे के बधुआ मजदूर होते हैं. बिमारी या अन्य किसी कारण से अनुपस्थित रहने पर इनसे कठोर व्यवहार यहाँ तक की निर्मम पिटाई भी होती हैं.
गृहस्वामियों व उद्यमियों द्वारा बाल श्रमिकों का शोषण
घरों में या कारखानों में काम करने वाले इन बाल मजदूरों का तरह तरह से शोषण होता हैं. इनको वेतन बहुत कम दिया जाता हैं. काम के घंटे नियत नही होते हैं. बीमार होने या अन्य किसी कारण से अनुपस्थित रहने पर उनका वेतन काट लिया जाता हैं. इनकी कार्यस्थल पर बड़ी दयनीय स्थिति होती हैं. सोने और खाने की कोई व्यवस्था नही होती हैं, नगी भूमि पर खुले आसमान या कहीं कौने में सोने को मजबूर होते हैं.
रुखा सूखा या जूठन खाने को दिया जाता हैं. बात बात पर डांट फटकार, पिटाई, काम से निकाल देना तो रोज की कहानी हैं. यदि दुर्भाग्य से कोई नुकसान हो गया तो पिटाई या वेतन काट लेना आम बात हैं. वयस्क मजदूरों की तो यूनियन है जिनके द्वारा वह अन्याय और अत्याचार का विरोध कर पाते है किन्तु इन बेचारों की सुनने वाला कोई नही. केवल इतना ही नही मालिकों और दलालों द्वारा इनका शारीरिक शोषण भी होता हैं.
बाल श्रम को रोकने के कानूनी प्रयास उपाय (stop child labour in hindi)
बाल श्रमिकों की समस्या बहुत पुरानी हैं इसके पीछे गरीबी के साथ ही माता पिता का लोभ और परिवारिक परिस्थियाँ कारण होती है. बाल श्रम की समस्या के रोकथाम के लिए सामाजिक और शासन के स्तर पर प्रयास आवश्यक हैं. सामाजिक स्तर पर माँ बाप को बालकों को शिक्षित बनाने के लिए समझाया जाना आवश्यक हैं.
इस दिशा में स्वयंसेवी संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. सरकारी स्तर पर बाल श्रम रोकने के लिए कठोर कानून बनाए गये हैं. लेकिन उनका पालन भी सही ढंग से होना चाहिए. विद्यालयों में पोषाहार एवं छात्रवृति आदि की सुविधाओं को दिया जाना, बाल श्रमिकों के माता-पिता की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाना आदि प्रयासों से बाल श्रम की समस्या समाप्त हो सकती हैं.
बाल श्रम से जूझता बचपन पर निबंध 2
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प्रस्तावना
प्रथमे नार्जिता विद्या कहकर जीवन के आरम्भ में बचपन में विद्या ग्रहण न करने वाले को प्रशंसनीय नहीं माना गया हैं. बचपन शारीरिक और मानसिक विकास का समय हैं यह समाज का कर्तव्य हैकि वह बालकों को इसका अवसर उपलब्ध कराए. समाज की आर्थिक संरचना ऐसी हो कि बच्चों को पेट भरने के लिए श्रमिक बनकर न जूझना पड़े. आचार्य चाणक्य ने उन माता पिता को शत्रु की संज्ञा दी है, जो अपने बच्चों की शिक्षा नहीं दिलाते.
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठित
बाल श्रम
14 वर्ष से कम आयु के बालक बालिका को बाल श्रमिक माना जाता हैं. इस आयु में शारीरिक श्रम करना ही बाल श्रम हैं. भारतीय संविधान में 14 वर्ष से कम उम्रः के बालक बालिकाओं से श्रमिक के रूप में कार्य लेना गैर कानूनी तथा वर्जित हैं. इस आयु वर्ग के बालकों से किसी व्यावसायिक संस्था अथवा घर में काम लेना निषिद्ध घोषित किया गया हैं.
बाल श्रम की स्थिति
संविधान सम्मत न होने पर भी हमारे देश में बाल श्रम निरंतर जारी हैं. छोटे छोटे बच्चें कारखानों, लघु उद्योगों, दुकानों तथा घरों में काम करते देखे जा सकते हैं. घरों में बर्तन सफाई का काम करने, चाय की दुकानों पर कप प्लेट धोने, साइकिल स्कूटर की दुकानों पर पंचर जोड़ते, हलवाइयों की दुकानों पर बर्तन माजते आदि अनेक छोटे मोटे काम करते बच्चे देखे जा सकते हैं. कुछ बच्चें तो कांच उद्योग जैसे उद्योगों में भी कार्यरत देखे जा सकते हैं जिसमें कार्य करने में गंभीर जोखिम रहता हैं.
बाल श्रम के कारण
बाल श्रम भारत में जारी रहने का प्रमुख कारण गरीबी हैं. माता पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वे अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने भेजें. बालकों के लिए शिक्षा की निशुल्क तथा अनिवार्य व्यवस्था होने पर भी वे उससे वंचित रहते हैं. मध्यान्ह पोषण आहार भी उनको वहां जाने के लिए आकर्षित नहीं करता. उनके लिए चार पैसे कमाकर पेट भरने में सहयोग देना जरुरी होता हैं.
बाल श्रमिकों का शोषण
घरों अथवा उद्योगों में काम करने वाले बालकों का दिन रात शोषण होता रहता हैं. उनको नियत समय से अधिक बारह चौदह घंटे काम करना पड़ता हैं. उनका वेतन किसी वयस्क श्रमिक के वेतन से आधा या चौथाई ही होता हैं बीमारी अथवा किसी अन्य कठिनाई के कारण काम पर न आने पर उनको अवकाश नहीं मिलता तथा वेतन काट लिया जाता हैं.
उनका कार्य करने का स्थान गंदा और अस्वास्थ्यकर होता हैं. जिससे वे बीमार हो जाते हैं. उनको बात बात पर डांट फटकार और मारा पीटा जाता हैं. नियोक्ता जानते हैं कि उनका दुर्व्यवहार सहकर भी बच्चे काम करेंगे. उनके मजबूर माता पिता उनको काम पर अवश्य भेजेगे. वे भयंकर सर्दी, गर्मी, बरसात सहकर भी काम करते हैं. उनके अपना खाना साथ ले जाना पड़ता हैं. नियोक्ता की ओर से उनकों कोई सुविधा नहीं दी जाती हैं.
मालिक जानता है कि ये बाल श्रमिक उसकी किसी भी बात का विरोध नहीं करेगे. अतः वह उसके साथ मनमानी करता हैं और तरह तरह से उनका शारीरिक और मानसिक शोषण करता हैं.
बालकों का बचपन बचाने की आवश्यकता
बाल श्रम से बालकों का बचपन संकट में हैं. उसको बचाना बहुत जरुरी हैं. भारत के उत्तम भविष्य के लिए इन बालकों को शिक्षा प्राप्त करने तथा शारीरिक मानसिक विकास करने का अवसर मिलना ही चाहिए, यह समाज और सरकार दोनों का सम्मिलित दायित्व हैं.
माता पिता को छोटे परिवार का महत्व समझाया जाए. उनको बालक के भविष्य के लिए उसे नौकरी करने के लिए न भेजकर स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जाय. सुद्रढ़ आर्थिक स्थिति के लोग मिलकर ऐसे बच्चों की मदद करें. सामाजिक संस्थाएं आगे चलकर उचित वातावरण तैयार करे. सरकार गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के उपाय करे तथा बाल श्रम को रोकने के लिए कठोर कानून भी बनाए. तभी बालकों का बचपन सुरक्षित हो सकता हैं.
उपसंहार
बच्चे देश का भविष्य होते हैं. उनकी प्रगति और विकास पर ही देश की प्रगति और विकास पर निर्भर हैं. यदि उनके बचपन को कारखानों की भट्टियों में झोकना जारी रहेगा तो देश का भविष्य भी उसकी रास से दूषित हो जाएगा. अत आवश्यकता यह हैं. कि इस दिशा में इमानदारी पूर्वक गम्भीर प्रयास किये जाए.
बाल श्रम निबंध 3
बाल श्रम एक ऐसा अभिशाप है जो शहरों में गाँवों मर चारो तरफ मकडजाल की तरह बचपन को अपनी आगोश में लिए हुए हैं. खेलने कूदने के दिनों में कोई बच्चा बाल श्रम करने को मजबूर हो जाये तो इससे बड़ी विडम्बना किसी भी समाज के लिए और क्या हो सकती हैं.
बाल श्रम से परिवारों को आय स्रोत का केवल एक छोटा सा भाग ही प्राप्त होता है जिसके लिए गरीब परिवार अपने बच्चों के भविष्य को गर्त में झोक देते हैं. गोपालदास ने बाल श्रम की स्थिति पर छोटी कविता लिखी.
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूल
जूतों पर पॉलिश करे वो भविष्य के फूल
बाल श्रम की परिभाषा और अर्थ (child labour in hindi)
वास्तव में बाल श्रम मानवाधिकारों (child rights) का हनन है. मानवाधिकारों के अंतर्गत शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक विकास का हक पाने का अधिकार प्रत्येक बच्चे को हैं लेकिन यथार्थ में स्कूल, खेल, प्यार स्नेह आत्मीयता आदि उनकी कल्पना में ही रह जाता हैं.
कूड़े के ढेर से रिसाइकलिंग के लिए विभिन्न सामग्रियों को बटोरने वाले बच्चों में समय से पूर्व ही ऐसी बीमारियाँ घर कर जाती है, जिन्हें छोटी उम्रः में उन्हें ढ़ोना पड़ता हैं. कूड़े के ढेर से उन्हें कई संक्रामक रोग जकड़ लेते हैं जिससे बचपन एवं जवानी का उन्हें पता ही नही चल पाता है सीधे बुढ़ापे में ही उनके कदम चले जाते हैं.
यह एक सच्चाई है कि निर्धनता के कारण इन बच्चों को श्रम कार्यों में सामान्यतः उनके अभिभावक ही धकेलते हैं, जहाँ थोड़े से पैसे के लिए उनकी जिन्दगी तबाह हो जाती हैं. इनके दिन की शुरुआत ही गाली गलौच और लानत मलामत से होती हैं. ऐसी परिस्थियों में इनका कुंठित होना स्वाभाविक हैं. यह कुंठित मन धीरे धीरे नशे की ओर चला जाता हैं.
भारत में बाल श्रम की समस्या
भारत जैसे देश में जहाँ जनसंख्या के लगभग ४० प्रतिशत से अधिक व्यक्ति निर्धनता की स्थितियों में रह रहे हैं. वहां बाल श्रम एक गम्भीर विषय है. बच्चे निर्धनता के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हैं और उनकी कमाई के बिना उनके परिवारों का जीवन स्तर और भी गिर सकता हैं.
उनमें से कई बच्चों के तो परिवार ही नही होते हैं या सहारे के लिए आशा नही कर सकते. बाल श्रम का प्रमुख कारण निर्धनता है बच्चे या तो अपनी माता पिता की आय बढाते हैं या परिवार में वे अकेले ही वेतनभोगी होते हैं. दूसरा प्रमुख कारण सस्ते मजदूर पाने के लिए निहित स्वार्थों को जानबूझकर उत्पन्न किया जाता हैं.
बाल श्रमिकों का शोषण
रोजगार की खतरनाक परिस्थतियाँ, कई घंटे काम किये जाने के बदले अल्प वेतन आदि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे है जो बाल श्रम से जुडे हुए है, शिक्षा को छोड़ने के लिए बाध्य होकर, अपनी आयु से अधिक दायित्वों का निर्वाह करके ये बच्चें कभी जान नही पाते कि बचपन क्या होता है.
भारत में बाल मजदूरी को रोकने के लिए बनाए गये कानून और उपाय
भारतीय संविधान में बाल श्रम को रोकने या हतोत्साहित करने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं की गई हैं. जैसे चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को कारखाने में काम करने के लिए या किसी जोखिम वाले रोजगार में नियुक्त नही किया जाएगा.
बाल्यावस्था और किशोरावस्था को शोषण तथा नैतिक एवं भौतिक परित्यक्ता से बचाया जाएगा. संविधान के प्रारम्भ होने से 10 वर्ष की अवधि में सभी बालकों की, जब तक कि वे 14 वर्ष की आयु समाप्त नही कर लेते, राज्य निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयत्न करेगा.
बाल श्रम बाल मजदूरी पर निबंध 4
शहरों के गरीब इलाकों या गाँव देहांत से अपहरण कर या बहला फुसला कर लाए गये बच्चों को न सिर्फ बंधुआ मजदूरी या भीख मांगने के कार्य में लगा दिया जाता है. बल्कि बहुत सारे मानव अंगो के तस्करों के जाल में फस जाते है. लड़कियों को नौकरानी का काम करने या देह व्यापार के लिए बेच दिया जाता है.
बीते कुछ सालों में हमारे यहाँ यौन पर्यटन एवं बाल तस्करी एक संगठित अपराध के रूप में सामने आया है. इसमे मासूम बच्चो का, पैसो के लिए शोषण, मजदूरी कराने के लिए शोषण, अंगो की तस्करी, भीख मांगने आदि के लिए इस्तमोल होता है.
बाल श्रम व तस्करी के कारण
हमारे देश में भारी आर्थिक विषमता है, मात्र 50 लोगों के पास देश की आधी दौलत है. ज्यादातर लोग गरीब है. जिनके सामने परिवार पालन का बड़ा संकट है. इस स्थति के चलते माँ बाप नही चाहते हुए भी नाबालिग बच्चों को श्रमसाध्य कामों में लगाने पर विवश होते है.
जिनके परिणामस्वरूप बच्चें होटलों, ढाबों, एवं कारखानों में दिन रात मेहनत करते हुए सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते दीखते है. यहाँ वे विभिन्न अपराधिक व्यक्तियों के जाल में फस जाते है और कालान्तर में वे अपराधिक कार्य करने पर मजबूर हो जाते है. कई अपराधिक गिरोह नशीले पदार्थो की तस्करी, जेबकटी, जैसे अपराधों में बच्चों का दुरूपयोग करते है.
बीड़ी, माचिस, पटाखे,आरीतारी व चूड़ी निर्माण जैसे व्यवसायों में बच्चों को लगाना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है. कम मजदूरी में अच्छा श्रम उपलब्ध हो जाता है. लालची व्यवसायी बच्चों के माता-पिता को को भी पैसों का प्रलोभन देकर सहमत कर लेते है. वे बच्चों से दिनरात मेहनत करवाते है. उनके बचपन का भारी दुरूपयोग करते है.
कृषि प्रधान आर्थिक व्यवस्था
हमारे देश की 75 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है. जो खेती पर निर्भर है. वर्षा, अकाल, ओलावृष्टि जैसी कई अनिश्चिंताओ के अलावा खेती करने में भारी मानव श्रम की आवश्यकता होती है. खेती का धंधा लाभकारी नही होने के कारण हर आदमी खेती के लिए मजदूरों का प्रबंध नही कर पाता है और वह मजबूरन अपने नाबालिग बच्चों को पढ़ाई के स्थान पर खेतों के काम में लगा देते है.
नशाखोरी
समाज के बड़े वर्ग नशे की चपेट में है. शराब, भांग, गाजा, अफीम जैसे नशीले पदार्थ व्यक्ति की शारीरिक और बौद्धिक क्षमताओं को बुरी तरह प्रभावित किया है. नशीले पदार्थो की लत पड़ जाने से छोड़ना मुश्किल हो जाता है. तथा नशाखोर व्यक्ति शारीरिक और बौद्धिक बाल श्रम करने में असमर्थ होता है. इसी दशा में मज़बूरी में माताएं अपने नाबालिग बच्चों को श्रमसाध्य कार्यो में लगाने या भीख मंगवाने पर विवश होती है.
महंगी व रोजगार विहीन शिक्षा व्यवस्था
गरीब माँ बाप भी अपने बच्चों से अमीरों जितना प्यार करते है. वे भी अमीरों की तरह अमीरों की तरह अच्छी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है. किन्तु वे आर्थिक विफलताओं के कारण अच्छे स्कुलो का खर्चा वहन करने की स्थति में नही होते है.
इसके अलावा यह कटु वास्तविकता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में रोजगार की गारंटी नही है.अधिकाशं पढ़े लिखे व्यक्ति रोजगार हेतु इधर -उधर भटकते हैं इस स्थति में माँ बाप की यह सोच है कि वे पढ़ने की अपेक्षा बच्चो को रोजगार में लगाए. जिसकी परिणति बाल मजदूरी में हो रही है.
बाल श्रम पर निबंध बाल मजदूरी के दुष्परिणाम (Side effects of child labor)
- बच्चे देश के भविष्य है, बच्चे यदि स्वस्थ, शिक्षित एवं बुद्धिमान होंगे तो निश्चित रूप से देश भी विकसित होगा. अन्यथा बच्चो के अस्वस्थ, अशिक्षित व् अविकसित होने पर देश का पराभव निश्चित है.
- शिक्षा का अभाव-: माँ-बाप की गरीबी के चलते अधिकाश बच्चे या या तो शिक्षा प्रारम्भ ही नही कर पाते या वे जल्दी पढ़ाई छोड़कर काम में लग जाते है. अशिक्षित व्यक्ति नशाखोरी, अन्धविश्वास व अनेकों सैम,सामाजिक बुराइयों में आसानी से लिप्त हो जाता है. वह समाज की आर्थिक प्रगति में भागिदार नही हो पाता है. यह स्थिति उनके लिए व देश के लिए हानिकारक है.
- नशे के कारोबार व अपराध की दुनिया में लिप्त लोग स्वयं कानून से बचने के लिए नाबालिक बच्चों का दुरूपयोग करते है. ऐसे धंधो में लिप्त रहने पर बच्चे भी नशाखोरी में लिप्त हो जाते है. तथा उन्हें ये अपराधिक दुनिया अच्छी लगने लगती है. इस तरह उन्हें खूखार अपराधी बनने एवं अपराध की दुनिया में जाने में देर नही लगती है. यह स्थिति उनके साथ साथ समाज के लिए भी घातक है.
बाल मजदूरी रोकने हेतु कानून बाल श्रम अधिनियम 1986 (Laws to prevent child labor In Hindi)
- बच्चों का भीख मांगने के लिए अन्यथा अपहरण भारतीय दंड सहिता में दंडनीय अपराध है.
- भारतीय दंड सहिता की धारा 370, 367, 368
- बंधुआ श्रम पद्धति उन्मूलन अधिनियम 1976
- बाल अधिकार सरक्षण आयोग अधिनियम 2005
- उपरोक्त कानूनों में भीख मांगने के लिए या अन्यथा बच्चों का अपहरण भारतीय दंड सहिता में दंडनीय अपराध है. 14 वर्षो के बालकों को मजदूरी में लगाना वर्जित है. ऐसा किया जाने पर शासित एवं कठोर दंड के प्रावधान है.
- आर्थिक विषमताओं एवं उपरोक्त सामाजिक समस्याओं के चलते उक्त कानूनों का वास्तविक प्रभाव नही हो पा रहा है. इन बुराइयों पर नियन्त्रण के लिए कानूनी उपाय पर्याप्त नही है. बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए चौतरफा सघन प्रयास आवश्यक है.
बाल श्रम रोकथाम के उपाय
- सघन प्रचार प्रसार विधिक सेवा संस्थाओं का दायित्व है कि वे बाल श्रम व बाल तस्करी से जुड़े सरकारी विभागों से समन्वय स्थापित कर उनके साथ मिलकर बाल श्रम व बाल तस्करी के विरोध में एकजुट होकर जन जन तक जागृति फैलाए कि बाल श्रम व बाल तस्करी अपराध है तथा इसमे लिप्त होने पर सजा मिलना निश्चित है. ऐसी जन जागृति हो तो इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है.
- सस्ती, गुणवतापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा व्यवस्था-कल्याणकारी राज्य का दायित्व है. कि वह ऐसी सस्ती गुणवतापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा व्यवस्था करे कि देश का हर बच्चा शिक्षा प्राप्त कर सके तथा इसके उपरांत रोजगार प्राप्त कर अपना जीवन मानवीय गरिमा के अनुसार जी सके, ऐसा न किया जाने पर बाकी प्रयास वृक्षों की जड़ो को सीचने के स्थान पर पत्तों को पानी देने के समान है.
- विधिक सेवा संस्थाए पुलिस, स्वयंसेवी संस्थाओं एवं अन्य संस्थाओं से मिलकर कार्य योजना तैयार करे और बीड़ी माचिस फटाखे व आरी-तारी चूड़ी जैसे अन्य उद्ध्योगो पर निगरानी रखे इन स्थानों पर या भीख मांगने व नशाखोरी के धंधो में लिप्त बच्चों को मुक्त कराने एवं दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने व् बच्चों के मुक्त होने पर उनके पुनर्वास तथा प्रतिकर की माकूल व्यवस्था सुनिश्चित करे.
- वर्तमान में बाल श्रमिकों को मुक्त कराने पर वे जिस प्रदेश में होते है उन्हें उस प्रदेश की गाड़ी में बिठाकर उनके राज्य में भेज दिया जाता है, जो पुनः वहां जाकर उसी धंधे में लिप्त हो जाते है या दूसरे राज्यों में चले जाते है. ऐसी स्थति में हमे सुनिश्चित करना होगा कि मुक्त कराएं गये बच्चों को उनके माता-पिता के पास पहुचाया जाए और यदि उनके माता-पिता उन्हें रखने में समर्थ नही है तो पालनहार जैसी योजना की संस्थाओं में भेजकर उन बच्चों की देखभाल व शिक्षा की व्यवस्था की जाए.
बाल तस्करी से मुक्त कराये गये बच्चों का पुनर्वास एवं प्रतिकर व्यवस्था
- बाल तस्करी से मुक्त कराए गये बच्चों को पुनर्वास एवं प्रतिकर हेतु एक लाख रूपये प्रदान किये जाने की व्यवस्था है. लेकिन इसका लाभ नही मिल पा रहा है. राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने बाल बंधको को मुक्त कराने पर उनके पुर्नवास व प्रतिकर दिलाने में मदद करने की व्यवस्था की है. आशा है इसका परिणाम सामने आएगा.
- बाल पीड़ितो को विधिक सहायता- बंधुआ मजदूरी व बाल श्रमिक या बाल अपराध के मामले में यह सुनिश्चित किया जाए कि पीड़ित बालकों को समुचित सहायता मिले, उनके मामले में ठोस पैरवी हो और दोषियों को निश्चित रूप से सजा मिले.
- न्यायालय का दायित्व– बाल बंधुआ मजदूर, बाल अपराधों से जुड़े न्यायालयों का दायित्व है कि ऐसे मामले का प्राथमिकता से निस्तारण करे. बाल अपराध एक गंभीर समस्या है इसका प्रभाव पूरे देश व समाज पर पड़ता है. ऐसे में दोषी व्यक्ति को कठोर दंड दे जिससे वह बाल अपराधों से दूर रहे.
उपरोक्तानुसार ऐसे सम्मलित प्रयासों की आवश्यकता है कि बाल श्रम करवाने वालों को ऐसा साफ़ एवं वास्तविक संदेश दिया जाए कि ऐसी गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति नही बचेगे वे निश्चित रूप से कानून के हवाले होंगे, तो वह दिन दूर नही जब बाल बंधुआ मजदूरी पर नियंत्रण हो जाएगा.
बाल श्रम पर निबंध 5
बाल श्रम में कार्यरत अधिकतर बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में केन्द्रित हैं. उनमे से लगभग 60 प्रतिशत दस वर्ष की आयु से कम हैं. व्यापार एवं व्यवसाय में २३ प्रतिशत बच्चे सलग्न हैं जबकि ३६ प्रतिशत बच्चे घरेलू कार्यों में. शहरी क्षेत्रों में उन बच्चों की संख्या सर्वाधिक है जो कैंटीन एवं रेस्तरां में काम करते हैं या चिथड़े उठाने एवं सामान की फेरी लगाने में सलग्न है, लेकिन वे रिकॉर्ड में नही हैं. अधिक बदकिस्मत बच्चे वे हैं जो जोखिम वाले उद्यमों में कार्यरत हैं.
बच्चे हानिकारक प्रदूषित कारखानों में काम करते हैं जिनकी ईंटो की दीवारों पर जमी कालिख रहती हैं और जिनकी हवा में विशाद्जनक बू होती हैं. वे ऐसी भट्टियों में काम करते हैं जो 1400 सेल्सियस ताप पर चलती हैं. वे आर्सेनिक एवं पोटेशियम जैसे खतरनाक रसायन काम में लेते हैं. वे कांच धमन की इकाइयों में कार्य करते हैं जहाँ उनके फेफड़ों पर जोर पड़ता हैं जिससे तपेदिक जैसी बीमारियाँ हो जाती हैं.
कई बार ऐसा भी होता है जब उनके बदन में दर्द होता है, दिमाग परेशान होता है दिल रोता है और आत्मा दुखी रहती हैं लेकिन तब तक मालिकों के आदेश पर उन्हें 12 से 15 घंटे काम लगातार करना पड़ता हैं.
कारखानों खदानों एवं जोखिम वाले उद्यमों में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन में बालकों की कार्यस्थिति को नियंत्रित करना भारत सरकार की नीति हैं. बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 पहला विस्तृत कानून है जो 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को व्यवस्थित उद्योगों एवं अन्य कठिन औद्योगिक इकाइयों जैसे बीड़ी कालीन माचिस आतिश बाजी आदि के निर्माण में रोजगार देने पर प्रतिबन्ध लगाता हैं.
इन्हें अधिनियम की अनुसूची के भाग क और ख में सूचीबद्ध किया गया हैं. इस अधिनियम का खंड बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति के गठन का सुझाव देता हैं. जिससे अधिनियम की अनुसूची में व्यवसायों एवं प्रक्रमों को सम्मिलित करने के लिए केंद्र सरकार को सुझाव दिए जा सके.
बाल श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 को कार्यान्वित करने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया हैं. राज्य में श्रम विभाग को अपने निरिक्षणालय तन्त्र के माध्यम से परिवर्तित करने का अधिकार प्राप्त हैं. सरकार के बाल श्रम कानून 1986 के अंतर्गत ऐसे क्षेत्रों को चुना हैं जहाँ अधिक संख्या में बाल मजदूर कार्य कर रहे हैं. एवं हानिकारक उद्योगों में काम कर रहे हैं.
सरकार ने देश के 250 जिलों में राष्ट्रीय श्रम प्रोजेक्ट तथा २१ जिलों में इंडस प्रोजेक्ट द्वारा जिलाधिकारियों को आदेश दे रखा है कि वे बाल श्रम को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करे. इसके लिए विशेष स्कूल संचालित किये जाये बाल श्रमिकों के परिवारों हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाये तथा 18 वर्ष से पूर्व किसी भी स्थिति में उनसे मजदूरी ना कराई जाए.
बाल श्रम पर निबंध 6
वास्तव में हम यह सोचते है कि इस तरह की सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने का दायित्व सिर्फ सरकार का हैं. सब कुछ कानूनों के पालन एवं कानून भंग करने वालों को सजा देने से सुधारा जा सकता हैं. लेकिन यह असम्भव हैं हमारे घरों में ढाबों में होटलों में अनेक बाल श्रमिक मिल जायेगे. जो कड़ाके की ठंड या तपती धुप की परवाह किये बिना काम करते हैं.
सभ्य होते समाज में यह अभिशाप अभी तक क्यों बरकरार हैं. क्यों तथाकथित सभ्य और सुशिक्षित परिवारों में नौकरों के रूप में छोटे बच्चों को पसंद किया जाता हैं. आर्थिक रूप से सशक्त लोगों को घर में कामकाज हेतु गरीब एवं गाँव के बाल श्रमिकों को ही पसंद करते हैं. इन छोटे श्रमिकों की मजदूरी समझिये कि उनके छोटे छोटे कंधों पर बिखरे हुए परिवारों के बड़े बोझ हैं.
आज आवश्यकता इस बात की हैं कि सरकारी स्तर से लेकर व्यक्तिगत स्तर तक सभी लोग इसके प्रति सजग रहे और बाल श्रम के कारण बच्चों का बचपन न छीन जाए, इसके लिए कुछ सार्थक पहल करे. हम सबका दायित्व है कि इनकी दशा परिवर्तन हेतु मनोयोगपूर्वक सार्थक प्रयास करे, जिससे राष्ट्र के भावी नागरिकों के बालपन की स्वाभाविकता बनी रह सके.
आज हम २१ वी सदी में विकास और सभ्यता की ऐसी अवस्था में जी रहे हैं जहाँ समानता धर्मनिरपेक्षता मानवीयता आदि की चर्चा बहुत जोर शोर से की जा रही हैं. लेकिन हमारी प्रगति शिक्षा संवेदना एवं मानवता पर बाल श्रम की समस्या कई गम्भीर सवाल खड़े कर रही हैं.
बालश्रम पर निबंध 7
बाल श्रमिक कौन
बाल श्रमिक कौन? इस बिंदु पर विचार करने से पहले बाल श्रमिक समस्या पर दृष्टि डालना ज्यादा उचित रहेगा. भारत विकासशील देश हैं. आजादी प्राप्त करने के बाद देश के आमवासियों में व्याप्त गरीबी को मिटाने के लिए अनेक वृहद और सिमित योजनाए सरकार द्वारा समय समय पर बनाई गई और अब भी बनाई जा रही हैं.
फिर भी गरीबी की निर्धारित रेखा से नीचे जीवन जीने को विवश लोगों की संख्या यहाँ कम नहीं हो सकी. बाल श्रमिक समस्या का समाधान का सम्बन्ध मुख्यतया गरीबी अर्थात दो जून की रोटी जुटाने के साथ ही हैं. किन्तु दुःख और निराशा की बात यह हैं कि जिन नन्हे मुन्हे के खेलने खाने या पढ़ लिखकर भविष्य बनाने के दिन होते हैं.
उन्हें विषम एवं दयनीय परिस्थतियों के कारण भूखा रहकर जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता हैं. अपने और अपने परिवार की भूख शांत करने के लिए दो जून की रोटियों का प्रबंध करने हेतु बचपन से ही मजदूरी करनी पड़ती हैं. यही बाल श्रम हैं. और इसे करने वाला बाल श्रमिक हैं.
अब प्रश्न उठता हैं कि बाल श्रमिक कौन. इस बात पर विचार करने से स्पष्ट होता हैं कि प्रायः निम्नलिखित कोटि के बच्चे बाल श्रमिक बनने को मजबूर हुआ करते हैं.
- एक तो वे बच्चे जो घोर गरीबी से घिरे होते है, उन्हें अपने हाथ की स्लेट छोड़कर, हथोड़ा पकड़ना रहता हैं या फिर अन्य काम करने पड़ते हैं.
- दूसरे वे जो माता पिता के कठोर व्यवहार या शिक्षक की पिटाई से तंग आ जाते हैं.
- तीसरे वे जिनका उचित वातावरण के अभाव में पढ़ने खेलने में मन नहीं लगता हैं.
- चौथे वे जो विमाता के दुर्व्यवहार से पीड़ित होकर या कुसंगति में पड़कर घर से भाग जाते हैं और अपना पेट भरने के लिए ढाबा, होटलों, चाय की दुकानों, बड़े घरों या फैक्ट्रियों में काम करते हैं और वहीँ रहने लगते हैं.
बाल श्रमिक की दिनचर्या
किसी कारण से घर से भागने वाले या गरीबी के घेरे में घिरकर विवश जीवन जीने वाले इन बाल श्रमिकों की दिनचर्या इनके जीवन की भांति कठोर होती हैं. इन्हें गृहस्वामियों या उद्यमियों के पास बंधुआ मजदूरों की तरह 12-14 घंटों तक एक दिवस में कठोर श्रम करना पड़ता हैं. न ये आराम से रोटी खा पाते हैं और न आराम से सो पाते हैं.
पहनने के लिए फटे पुराने कपड़े या उतरन ही इनके तन की शोभा बढ़ाते हैं. ये बेबशीपूर्ण कठोर श्रम से पूरित जीवन जीते हैं. इनके गृहस्वामियों या उद्यमी वर्ग भद्दी गालियों, लात घूसों से स्वागत करने में भी पीछे नहीं रहते हैं.
गृहस्वामियों व उद्यमियों द्वारा शोषण
बाल श्रमिकों का गृहस्वामियों और उद्यमियों का खुलकर शोषण किया जाता हैं. इनको बंधुआ मजदूर समझकर काम कराया जाता हैं. और पगार के नाम पर इन्हें बहुत कम वेतन दिया जाता हैं. कम वेतन पर अधिक से अधिक काम लेना इन शोषकों की नियति बनी हुई हैं. ये बाल श्रमिक अपनी मजबूरी को अपना दुर्भाग्य मानकर शोषण करवा ने को मजबूर होते रहते हैं.
सुधार हेतु सामाजिक व कानूनी प्रयास
बाल श्रमिक समस्या हमारे देश मेंफैली एक अछूत बिमारी है. स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी सामाजिक एवं कानूनी प्रयासों के बावजूद यह घटने की बजाय बढ़ी हैं. इसका प्रमुख कारण बढ़ती हुई जनसंख्या के बीच बढ़ती हुई गरीबी ही हैं.
यों तो भारत में और अंतर्राष्ट्रीयता के स्तर पर चौदह वर्ष से कम अवस्था के बच्चे से काम न लेने का कानून बना हुआ हैं. केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें बने कानूनों में समय समय पर सुधार कर उन्हें लागू करवाने के लिए कार्यवाही करती हैं.
साथ ही सामाजिक संस्थाएं बाल श्रमिकों को मुक्त करवाने में सतत प्रयत्नशील हैं. फिर भी इस समस्या की स्थिति ढाक के तीन पात वाली बनी हुई हैं. मानवाधिकार, सामाजिक संस्थाएं, अन्त्योदय योजना इस समस्या के निदान के लिए प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं. परन्तु गरीबी के कारण पेट की भूख शांत नहीं हो रही हैं. इस पर सरकार और सामाजिक संस्थाओं को प्रभावी रूप से पुनर्विचार करना पड़ेगा तब कहीं इस समस्या का सुफल दिखलाई पड़ सकता हैं.
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आशा करता हूँ मित्रों आज का Essay On Child Labour In Hindi का यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा. यदि आपकों यहाँ दिया गया बाल मजदूरी /बाल श्रम पर निबंध पसंद आया हो तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.