बाल तस्करी पर निबंध | Essay On Child Trafficking In Hindi

Essay On Child Trafficking In Hindi: नमस्कार दोस्तों बाल तस्करी पर निबंध आज आपके साथ शेयर कर रहे हैं. भारत में बच्चों की तस्करी पर भाषण, लेख, निबंध, अनुच्छेद यहाँ सरल भाषा में बता रहे हैं.

इस निबंध पढ़ने के बाद हम जान पाएगे कि तस्करी क्या है अंग तस्करी भारत में इस समस्या का क्षेत्र, प्रभाव व रोकथाम के उपाय व कानून के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.

बाल तस्करी पर निबंध, Essay On Child Trafficking In Hindi

Essay On Child Trafficking In Hindi बाल तस्करी पर निबंध

बाल तस्करी पर निबंध, 200 शब्द:

बाल तस्करी अर्थात बच्चों का अवैध व्यापार उन्हें विभिन्न उद्देश्यों के लिए खरीद फरोख्त करना हैं. भारत में मानवता को शर्मसार करने वाला यह कुकृत्य बड़े स्तर पर चल रहा हैं. जब कभी ऐसे रैकेट पकड़े जाते हैं तो इनसे मिली जानकारियां रूह कपा देने वाली होती हैं.

एक माँ बाप यदि उनका बेटा दस मिनट भी देरी से घर पहुचे तो उनकी जान हलक तक आ जाती हैं. जरा सोचो वे बच्चें जो अनाथ है अथवा किसी जालसाज की चाल में आकर अपने माँ बाप से दूर हो गये हैं उनका जीवन किस दर्द के साथ गुजर रहा होगा.

बाल तस्करी के कुकृत्य के पीड़ित बच्चों के साथ शारीरिक श्रम के साथ ही उनके अंगों को निकालने बेचने, उनका यौन शोषण करने अथवा वेश्यावृत्ति तक में धकेल दिए जाते हैं. हर साल देश में करीब 50 हजार बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट थानों में दर्ज करवाई जाती हैं.

इतनी बड़ी संख्या में बच्चें कैसे गायब हो जाते हैं, हमारे देश की कानून व आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था इन अपराधों के आगे बेबश नजर आती हैं. भारतीय कानून में बच्चों के अवैध व्यापार के आरोपी को सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा देने का प्रावधान हैं.

मगर आरोपियों को सजा तभी मिलेगी जब वे पकड़े जाएगे. हमारे समाज में से ही ऐसे लोग निकलते हैं जो ऐसे घ्रणित कर्मों में शामिल होते हैं.

अपने बच्चों के प्रति माता पिता को सचेत रहने के साथ ही आस पास की संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत हैं तभी हम इन मानवता के दुश्मनों को उनके कर्मों की सजा दिलवा सकते हैं.

बाल तस्करी पर निबंध, 1000 शब्द:

वर्तमान में बाल तस्करी एक भयावह समस्या बनकर उभरी हैं. भारत समेत दुनिया के लगभग सभी विकासशील देशों में यह बड़े स्तर पर जारी हैं. आए दिन हमें स्कूल जाने वाले बच्चों के अपहरण, गुमशुदा की खबरें सोशल मिडिया पर देखने को मिल जाती हैं

ये बाल तस्करी का ही वीभत्स एवं भयंकर स्वरूप हैं, 18 वर्ष की आयु से कम के बच्चे जो नाबालिग होते है उन्हें अवैध तरीको से काम करना, यौन शोषण, बाल श्रम, घर, उद्योग आदि में काम करवाना चाइल्ड ट्रैफिकिंग के अंतर्गत आता हैं जो कि गैरकानूनी हैं.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की ओर से जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख बच्चों की तस्करी होती हैं.

जोर जबरदस्ती, अपहरण, माता पिता को लालच देकर आदि तरीकों से बच्चों को कठिन परिश्रम, मजदूरी, अंग निकालकर बेचना, भीख मंगवाना आदि कार्य करवाएं जाते हैं.

बाल तस्करी के अधिकतर मामलों की शिकार लड़कियाँ होती हैं. मानव तस्कर इन्हें बड़ी कर आगे बेच देते है अथवा वेश्यावृत्ति के धंधे में ढकेल देते हैं.

अवैध रूप से बाल तस्करी के चलते बच्चों को उनके परिवार एवं घरेलू वातावरण से दूर कर दिया जाता हैं. वे अपने माता पिता व परिवार के प्यार से वंचित हो जाते है, उनसे शिक्षा के अवसर छीन जाते हैं.

इस तरह उनका सुनहरा बचपन शुरू होने से पूर्व ही समाप्त हो जाता हैं. बाल तस्कर बच्चों को इसलिए अपना शिकार बनाते है क्योंकि वे लालच एवं प्रलोभन में जल्दी आ जाते है अपने अधिकारों की न तो उन्हें समझ होती है न ही शोषण के प्रति आवाज उठा पाते हैं.

उनकी मानसिक अपरिपक्वता का फायदा उठाकर वस्तुओं की तरह बच्चों को बेचने व खरीदने का यह कारोबार दिनों दिन चलता रहता हैं.

आमतौर पर तस्करी के शिकार अशिक्षित, गरीब एवं आदिवासी परिवारों से सम्बन्धित होते हैं. विद्यालय तथा शिक्षा से उनका जुड़ाव परिस्थितिवश कम ही होता हैं.

उन्हें मजदूरी या धन का लालच देकर बहला फुसला दिया जाता हैं. काम के बहाने उन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य यहाँ तक कि दूसरे देशों में भेजकर उनका मनचाहे तरीके से शोषण किया जाता हैं,

भारत में प्रतिदिन बच्चों के अपहरण की 200 घटनाएं होती है, जिनके पीछे किसी न किसी तरह ये बाल तस्कर ही जुड़े होते हैं.

तस्करी का शिकार हुए बच्चों का जीवन नरकीय बन जाता हैं उनके स्वास्थ्य, भोजन, शिक्षा आदि का कोई ध्यान नहीं दिया जाता हैं, शारीरिक, मानसिक शोषण अत्याचार एवं पिटाई यहाँ तक की उन्हें ड्रग सेल के रूप में उपयोग में लिया जाता हैं.

अंग व्यापार के धंधों में बच्चों के अमूल्य ओर्गंस निकालकर विदेशों में बेचे जाते हैं. लड़कियों के साथ यौन शोषण कर उन्हें जीवन भर के लिए देह व्यापार के धंधे की ओर प्रवृत्त कर दिया जाता हैं.

कई मामलों में भयंकर एवं अमानवीय तथ्य सामने आए है जिनमें बाल तस्करी करने वाले बच्चों के आँखों में एसिड डालकर उन्हें अपाहिज कर भीख मांगने के लिए तैयार करते है अथवा उनके अंगों को विकृत कर इस लायक बनाया जाता है, जिससे वे भिक्षावृत्ति में लोगों की सहानुभूति प्राप्त कर सके.

दुनियाभर में आज बाल तस्करी एक भयानक समस्या बनकर उभरी हैं. इसका शिकार हुए बच्चों का जीवन अत्याचारियों के हाथों तबाह हो जाता हैं.

वे न केवल अपने मूल जीवन से कट जाते है बल्कि उनके दिल की आवाज शांत हो जाती है खुद को नित्य दर्द भरे जीवन का आदि बना लिया जाता है जहाँ न किसी से कोई रिश्ता न नाता.

बस स्वार्थ सिद्धि के लिए ड्रग्स और एल्कोहल का सहारा देकर उन्हें अधिक से अधिक काम में लिए जाने के प्रयास किये जाते हैं. कुछ बच्चें इस तरह के अन्यायी चक्र से तंग आकर या तो भाग निकलने में सफल होते है अथवा आत्महत्या कर स्वयं को इससे मुक्ति दिला देते हैं.

सरकार एवं समाज द्वारा संयुक्त प्रयासों से बाल तस्करी को सिमित किया जा सकता हैं. इस समस्या को रोकने के लिए सरकार कठोर कानून बनाएं तथा इस कार्य में लिप्त लोगों को कठोर सजाएं दी जाए.

साथ ही समाज स्तर पर लोगों में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाएं जाने की जरुरत हैं. बाल शोषण मुक्ति के लिए कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठन इन पीड़ितों के पुनर्वास, समुदाय द्वारा प्यार व देखभाल की व्यवस्था में अहम भूमिका अदा कर सकती हैं.

बाल तस्करी कानून (Child Trafficking Law)

अभी तक भारत में बाल तस्करी की रोकथाम की दिशा में कोई बड़ा प्रभावी कानून नहीं हैं. हालांकि इस क्षेत्र में कुछ कानून अवश्य बने है मगर वे कठोर नहीं होने के कारण अपर्याप्त से हैं.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा समय समय पर बाल तस्करी को रोकने के लिए विविध प्रावधान किये जाते हैं. गौरतलब है कि अंगों की तस्करी, यौन उत्पीडन एवं बाल श्रम के लिए बाल तस्करी की जाती हैं.

भारत में बाल तस्करी कानून में अनैतिक तस्करी रोकथाम कानून और पोक्सो कानून प्रभावी हैं. भारत में वर्ष 1956 में मानव तस्करी को पूर्ण रूप से गैर कानूनी बनाया गया था.

संविधान के अनुच्छेद 23 क के अनुसार नैतिक व्यापार अवैधानिक हैं. वर्ष 2018 में केंद्र सरकार द्वारा मानव तस्करी निवारण संरक्षण व पुनर्वास विधेयक लोकसभा में पारित किया था मगर लोकसभा के विघटन के चलते यह उच्च सदन में नहीं गया.

भारत में बाल तस्करी (Child Trafficking in India)

हमारे भारत में अशिक्षा एवं गरीबी बाल तस्करी के बड़े कारण है जिस कारन इसे व्यापक स्तर पर अंजाम दिया जाता हैं. भारत में बाल तस्करी की स्थिति बड़ी भयावह है इस सम्बन्ध में जारी आंकड़े भयभीत करने वाले हैं.

आए दिन बढ़ रही तस्करी की घटनाएं समाज के लिए कोई शुभ संकेत नहीं दे रही हैं. हमारे देश में हरेक 8 मिनट के बाद एक बच्चा गायब हो जाता है जिनमें ८० प्रतिशत लड़कियाँ होती हैं.

देश में सर्वाधिक बाल तस्करी एवं गुमशुदगी की शिकायते पश्चिम बंगाल की है. वर्ष 2011 में राज्य में कुल 11 हजार से अधिक बच्चे गायब हुए थे, उस वर्ष भारत में यह आकंडा 35 हजार था.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल 45 हजार बच्चें गायब हो जाते हैं. इन गुमशुदा बच्चों को अंग तस्करी अथवा भीख मांगने के धंधे में बेच दिया जाता हैं.

भारत में बाल तस्करी की वास्तविक घटनाएं कितनी अधिक हो सकती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र गुमशुदी की 30 प्रतिशत घटनाओं की रिपोर्ट ही दर्ज करवाई जाती हैं.

बाल तस्करी के कारण (Causes of child trafficking)

देश में बड़े स्तर पर हो रही बाल तस्करी का बड़ा एवं अहम कारण गरीबी हैं. देश की आर्थिक विषमता की स्थिति के चलते आधी से अधिक आबादी गरीबी का शिकार हैं.

गरीबी और बेरोजगारी के चलते बच्चें स्कूल न जाकर आजीविका के लिए संघर्ष करने पर विवश होते हैं. कुछ जालसाज लोग इन्हें बाहर अच्छे काम का झांसा देकर अपने चंगुल में फंसा लेते हैं.

बाल तस्करी का दूसरा बड़ा कारण बंधुआ मजदूरी हैं, जिसमें बच्चों को काम के बदले कोई वेतन नहीं दिया जाता हैं. इसके अतिरिक्त बाल श्रम भी बड़ा कारण है जिसमें स्वार्थी माँ बाप अपने बच्चो को चंद पैसों के लिए काम पर भेजते हैं अथवा बेच देते हैं.

आगे चलकर उनसे मनचाहा काम करवाया जाता हैं. उनके साथ घरेलू नौकर, फैक्ट्रियों में काम करवाया जाता हैं.

बाल तस्करी करने वालो को सजा (Child traffickers Punishment)

भारतसरकार ने बाल तस्करी को रोकने के लिए इस कार्य में सलग्न लोगों के लिए कठोर कानूनी सजाओं का प्रावधान किया हैं.

बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ मजदूरी के रोकथाम के लिए ये कानून बने हैं

जिनमें अपराध साबित होने पर बाल तस्कर को सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया हैं. कोर्ट ने प्रत्येक राज्य में किशोर पुलिस की स्थापना के आदेश भी दिए हैं.

बालक की गुमशुदा एफआई आर मिलने पर प्रत्येक थाने में नियुक्त एक पुलिस कर्मचारी को किशोर पुलिस के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने का अधिकार दिया गया हैं.

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