सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption In Social Life in Hindi

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Essay on Corruption In Social Life in Hindi

सामाजिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption In Social Life in Hindi

400 शब्दों में भ्रष्टाचार पर निबंध

दुनिया के अधिकतर देशों में भ्रष्टाचार की समस्या देखी हीं जाती है परंतु हमारे भारत देश में भ्रष्टाचार की समस्या बहुत ही विकराल है, क्योंकि इसकी जड़ें इतनी गहरी है कि कोई भी इंसान इसकी चपेट में आए बिना रह नहीं पाता है। 

यहां तक कि भ्रष्टाचार बढ़ने का एक कारण यह भी है कि जो भ्रष्टाचारी होता है उसे पता होता है कि अगर वह भ्रष्टाचार में पकड़ा भी जाता है, तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा उसे सस्पेंड कर दिया जाएगा बस इसके अलावा कुछ नहीं होगा और कुछ महीने या फिर साल के बाद उसे फिर बहाल कर दिया जाएगा। इसलिए भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार करने से बाज नहीं आता है।

भारत में सबसे भ्रष्ट सरकारी काम करने वाले कर्मचारी होते हैं। यह होते तो सरकारी कर्मचारी है परंतु पैसे जनता से लेते हैं और अक्सर सरकारी कर्मचारी के द्वारा घूस लेने की बात अखबारों और टीवी में आती रहती है।

इनका सबसे अधिक शिकार सामान्य जनता ही होती है क्योंकि उन्हें लगता है कि सामान्य जनता की पकड़ ऊपर तक नहीं है इसलिए इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी।

हालांकि कभी कबार कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ अगर ठोस सबूत होते हैं तो कार्रवाई भी होती है परंतु फिर भी भ्रष्टाचार का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है।

यहां तक की नेताओं में भ्रष्टाचार खूब जोर शोर से चलता है। ग्राम प्रधान से लेकर के पटवारी, लेखपाल सभी भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं। सभी किसी न किसी प्रकार से भ्रष्टाचार करके काली कमाई अर्जित करने का प्रयास करते हैं जिसमें बहुत सारे लोग सफल भी हो जाते हैं।

भ्रष्टाचार का प्रवाह ऊपर से चालू होकर के नीचे की ओर आता है जहां कोई उच्च अधिकारी भ्रष्टाचारी होता है तो वहीं उसके नीचे के अधिकारी भी भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं।

नीचे का अधिकारी भ्रष्टाचार करके उसमें से अपना हिस्सा निकालकर के बाकी बचा हुआ हिस्सा ऊपर के कर्मचारी तक पहुंचाता है। इस प्रकार उस लाइन से जुड़ा हुआ हर कर्मचारी भ्रष्टाचारी होता है।

सामान्य जनता का गवर्नमेंट ऑफिस में कोई भी काम बिना घूस दिए हुए संभव नहीं हो पाता है। फर्जी बिल भी बनाए जाते हैं ताकि गवर्नमेंट के पैसे का गबन किया जा सके।

ठेकेदार ठेका प्राप्त करके घटिया सामग्री से पुल और सड़कें बनाता है और बाकी पैसे डकार जाता है। सरकारी सर्वेक्षण भी इस बात को बताता है कि गवर्नमेंट के द्वारा दिया जाने वाला पैसा सही कामों में काफी कम‌ ही इस्तेमाल हो पाता है, उसे बीच में ही बैठे सरकारी अधिकारी बंदरबांट करके आपस में मिल बांट लेते हैं।

600 शब्द

प्रस्तावना- आज देश में भ्रष्टाचार सबसे ज्वलंत और व्यापक समस्या बना हुआ हैं. इस संक्रामक बिमारी के नित्य नये मरीज सामने आ रहे हैं. जिस देश की ख्याति कभी सदाचार के लिए थी. आज वह भ्रष्टाचार के क्षेत्र में नये नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा हैं.

भ्रष्टाचार क्या है- सत्य, प्रेम, अहिंसा, धैर्य, क्षमा, अक्रोध, विनय, दया, अस्तेय, शूरता आदि गुण प्रत्येक समाज में सम्मान की दृष्टि से देखे जाते है.

जो व्यक्ति इनमें से यथासम्भव अधिकाधिक गुणों को आचरण में उतारता हैं, वही सदाचारी हैं. इन गुणों की अपेक्षा करना या उनके विरोधी दुर्गुणों को अपनाना ही आचरण से श्रेष्ट होना अर्थात भ्रष्टाचार हैं.

भ्रष्टाचार के विविध रूप– आज भ्रष्टाचार ने देश के हर वर्ग और क्षेत्र को ग्रसित कर रखा है. चाहे शिक्षा हो चाहे धर्मचाहे व्यवसाय हो, चाहे राजनीति यहाँ तक कि कला और विज्ञान भी इस घ्रणित व्याधि से मुक्त नहीं हैं. सरकारी कार्यालयों में जाइए तो बिना सुविधा शुल्क के आपका काम नहीं होगा.

न्यायालयों में न्याय भी बिकने लगा हैं. धार्मिक क्षेत्र में पाखंड और प्रदर्शन का बोलबाला पूंजी निवेश के नाम पर उपभोक्ता के निर्मम शोषण को वैध रूप दिया जाना आदि व्यावसायिक भ्रष्टाचार के ही बदले हुए स्वरूप हैं.

राजनीतिक भ्रष्टाचार ने तो देश में बड़े बड़े कीर्तिमान स्थापित किये हैं. सन 1962 में जीप खरीद काण्ड से प्रारम्भ हुए भ्रष्टाचार की कीर्ति  कथा  केतन  देसाई और आईपीएल क्रिकेट तक अक्षुण्य चली आई हैं.

राजनीतिक भ्रष्टाचार के नये नये चमत्कार सामने आना जारी हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला आदर्श सहकारी समिति घोटाला, कोयला आवंटन में घोटाला की कथा, विकलांगों के ट्रस्ट में बेईमानी आदि. इस उपलक्ष्य में अनेक राजा, राजकुमारी, दरबारी, पदाधिकारी, कार्पोरेट और व्यापारी तिहाड़ तपोवन में एकांत आत्मचिन्तन के लिए भेजे जा चुके हैं.

काला धन- भ्रष्टाचार विदेशी पूंजी निवेश की देन हैं. इसी से काला धन पैदा होता हैं, जिस पूंजी का बैंकों के माध्यम से लेन देन नहीं होता तथा जिस पर देय कर अदा नहीं किया जाता, उसक काला धन कहते हैं.

इसमें कमीशन, रिश्वत भेंट आदि सम्मिलित हैं जो विधि विरुद्ध तरीके से पूंजीपतियों को लाभ पहुचाने के कारण राजनेताओं तथा सरकारी अफसरों को प्राप्त होते हैं.

भ्रष्टाचार का प्रभाव- आज जीवन के हर क्षेत्र में विश्वसनीयता का संकट छाया हुआ हैं. लगता है हमने भ्रष्टाचार को सामान्य व्यवहार का अंग मान लिया हैं.

भीड़ अंधों की खड़ी खुश रेबडी खाती
अँधेरे के इशारों पर नाचती गाती

जब शीर्षस्थ लोग भ्रष्ट होगे तो सामान्य व्यक्ति का तो कहना ही क्या हैं. जब देश का कोई भी भेद बिक सकता हैं. कोई भी अधिकारी बिक सकता हैं तो एक दिन देश भी बिक सकता हैं.

विदेशी शक्तियाँ देश को अपने अर्थ बल से गुलाम बनाना चाहती हैं. वे भ्रष्टाचार के संधि द्वार से भारत पर अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने में सफल हो सकती हैं.

निवारण के उपाय- भ्रष्टाचार की इस बाढ़ से जनजीवन की रक्षा केवल चारित्रिक दृढता ही कर सकती हैं. समाज और देश के व्यापक हित में जब व्यक्ति अपने नैतिक उत्तरदायित्व का अनुभव के तो उसका पालन करे तभी भ्रष्टाचार का विनाश हो सकता हैं. कुछ अन्य उपाय हैं.

भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को कठोरतम दंड दिया जाए, न्यायपालिका को व्यवस्थापिका का पूर्ण समर्थन प्राप्त हो. न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से कार्य करती रहे, प्रशासन के हर क्षेत्र में शुचिता और पारदर्शिता हो.

उपसंहार- भारतीय जन जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार की उपस्थिति देखकर ऐसा लगता हैं कि सरकार  और  जनता  अब भ्रष्टाचार के साथ जीने की अभ्यस्त हो गई हैं. यदपि न्यायपालिका की सक्रियता ने भ्रष्टाचार पर प्रहार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं.

किन्तु भ्रष्टाचार का सीधा सम्बन्ध मनुष्य के चरित्र और संस्कारो से होता हैं. जब तक चरित्रनिष्ठ लोग देश का और समाज का नेतृत्व नहीं करेगे.

तब तक लोकपाल भी लोकतंत्र को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं कर पाएगे. इससे मुक्ति के लिए लोगों को त्याग बलिदान तथा कठोर संघर्ष के लिए तत्पर रहना होगा.

वक्त की तकदीर स्याही से लिखी नहीं जाती
खून की कलमें डुबाने का जमाना आ गया हैं.

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