मगरमच्छ पर निबंध Short Essay On Crocodile In Hindi Language

मगरमच्छ पर निबंध Short Essay On Crocodile In Hindi Language: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत करता हूँ आज हम मगरमच्छ के विषय में निबंध Crocodile Essay पढ़ेगे,

इस लेख में हम जानेगे कि यह प्राणी किस वर्ग का हैं शारीरिक विशेषताएं तथा इसके जीवन यापन व आवास स्थल के बारे में यहाँ जानकारी निबंध के रूप में दी गई हैं.

Essay On Crocodile In Hindi

मगरमच्छ पर निबंध Short Essay On Crocodile In Hindi Language

दुनिया में कई भयानक जानवर रहते हैं जिनके विषय में जानकर भी मन में भय बैठ जाता हैं, ऐसा ही एक जलीय जीव हैं मगर जिन्हें आप तौर पर मगरमच्छ के नाम से जाना जाता हैं.

यह भयावह, क्रूर, हिंसक एवं जीव भक्षी जानवर हैं जो नदी तालाबो व नहरों में अधिकतर पाया जाता हैं, कई खारे समुद्रों में भी मगरमच्छ पाए जाते हैं.

इतना समझ लीजिए कि कोई मानव या जीव यदि इसके जबड़ों की पकड़ में आ जाए, तो स्वयं काल भी उससे बचा नहीं सकता. इतने भयंकर इस जीव को उभयचर भी माना गया हैं क्योंकि यह जल में रहने के साथ ही कई बार जमीन पर भी रेंगता हैं. सांप आदि जानवरों की तरह चलने वाले मगर को सरीस्रप श्रेणी का जानवर भी माना जाता हैं.

इनके सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि यह जल में रहने वाला जलीय जीव हैं मगर श्वास लेने के लिए जल स्रोत के बाहर जमीन अथवा जल की सतह पर आता हैं. अब तक मगरमच्छ की 23 प्रजातियाँ ज्ञात हो चुकी हैं,

वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि मगर पिछले 55 मिलियन वर्षों से इस ग्रह पर रह रहे हैं. यह बेहद चतुराई के साथ अपने शिकार को पकड़ता हैं, तथा अपने तीखें दांतों व जबड़े की मदद से उसे काटकर निगल लेता हैं.

पानी में रहने वाले लगभग सभी छोटे बड़े जीव जंतु इसके शिकार बन जाते हैं. कई ख़ास बाते इनके जीवन व शिकार करने में मददगार साबित होती हैं.

मगरमच्छ के सन्दर्भ में कहा जाता हैं कि यह रात के अँधेरे में भी जल में देखने की क्षमता रखता हैं साथ ही इसकी निद्रा की अवधि बेहद कम व कमजोर होती हैं. मांसाहारी श्रेणी का यह जीव छोटी सी आहट से नींद से जग जाता हैं.

मगरमच्छ में तैरने की भी उत्कृष्ट क्षमता होती हैं इसकी साधारण गति से तैरने की चाल 20 मील प्रति घंटा होती हैं. यदि आप भी समुद्र किनारे रहते है अथवा घूमने के लिए जाते है तो चेतावनी मिलने पर कभी भी पानी में नहीं उतरें.

क्योंकि मगरमच्छ जैसे जीव से मुकाबला कर जान बचाना सम्भव नहीं हैं. यदि हम मगर के जीवनकाल की बात करे तो इसकी आयु 70 से 100 वर्ष तक मानी जाती हैं.

एशिया, अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप समेत लगभग सभी महाद्वीपों में मगरमच्छ पाया जाता हैं. यह अपने पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए न केवल जलीय जीवों का भक्षण करता हैं बल्कि यह स्थलीय जीवों का भी भक्षण कर जाता है यहाँ तक कि मानव का भी.

एक मगरमच्छ के जबड़े में 24 बेहद पैनें एवं धारीदार दांत होते हैं. जिसके चलते यह भैंसे, गेंडा, चीता आदि जीवों को भी जबड़े में पीसकर निगलने की क्षमता रखती हैं.

मगर के आसू या घड़ियाली आसू एक प्रसिद्ध मुहावरा हैं जो मगर के जीवनचर्या से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ हैं. ऐसा माना जाता हैं कि जब तक मगर भोजन करता हैं तब तक उसकी आँखों में आंसू बहते रहते हैं.

इसके शरीर में पसीने को स्रावित करने वाली ग्रंथी न होने के कारण मगर को कभी पसीना नहीं आता हैं. एक मगरमच्छ की लम्बाई 7 से 10 फीट तथा इसका कुल वजन एक किव्टल से अधिक होता हैं.

मीठे पानी के जल में मगर अपेक्षाकृत बेहद छोटे होते हैं. जिसकी लम्बाई 5 फुट तथा वजन 35 किलों तक ही होता हैं. मगरमच्छ कई दिनों तक बिना भोजन के भी रह सकता हैं.

भारत में मगरमच्छ की प्रजाति

भारत के उड़ीसा का केंद्रपाड़ा मगर की तीन प्रजातियों घड़ियाल, खारे पानी के मगरमच्छ तथा मगर वाला एकलौता स्थान हैं. मगर या मार्श मगरमच्छ यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप तक ही सिमित हो गया हैं.

खारे पानी का मगरमच्छ जिन्हें विश्व का ज्ञात आदमखोर भी कहाँ जाता है यह अब तक के ज्ञात मगर प्रजाति का सबसे बड़ा जीव है जो ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ही पाया जाता हैं.

भारत में मगर की तीसरी प्रजाति घड़ियाल की है जिन्हें गेवियल भी कहा जाता है ये स्वच्छ जल में रहने वाला जीव हैं. चंबल नदी तथा हिमालयी नदियाँ इनका मुख्य आवास हैं.

मगरमच्छ की लड़ाई

जिस तरह जंगल में शेर की दहशत होती है उसी तरह जल में मगरमच्छ रूपी दानव का भय हमेशा बना रहता हैं. बड़े से बड़े और शक्तिशाली जीव जब जल में प्रवेश करते है तो इस आदम के भयातुर रहते हैं.

शेर, हाथी, जेबरा क्या सभी इसके जबड़ों की मार से बचना चाहते हैं. जो जीव एक बार इसके जबड़ों की जकड़ में आ गया उसका बचना मुश्किल हो जाता हैं.

हालांकि मगर जमीन पर भी रहते हैं परन्तु पानी में रहते हुए यह अधिक खतरनाक हो जाता हैं. समुद्री जीवों के अलावा वन्य जीव या कई बार मानव की इसका ग्रास बन जाते हैं. वर्तमान में इसकी कई प्रजातियाँ लुप्त होने की कंगार पर हैं.

विश्व मगरमच्छ दिवस (World Crocodile Day)

प्रतिवर्ष 17 जून को अंतर्राष्ट्रीय मगरमच्छ दिवस मनाया जाता हैं, इस लुप्तप्राय प्रजाति की दुदर्शा को सामने लाने के लिए यह एक जन जागरूकता लाने का प्रयास हैं.

भारत में मगर संरक्षण की दिशा में पहला कदम 1975 में उठाया गया जब मगरमच्छ संरक्षण परियोजना देश के कई राज्यों में शुरू की गई.

इन कार्यक्रमों का असर खासकर खारे जल के मगर के संरक्षण में सराहनीय रहा. साल 1976 में इनकी संख्या महज 96 थी जो साल 2012 में बढ़कर 1640 हो गई.

1950 और 1960 के दशक में भारत में मगरमच्छों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई, इनकी दुदर्शा का बड़ा कारण मांस एवं त्वचा के लिए इनका शिकार था.

बाद में कई सरकारी प्रयासों के चलते इनके संरक्षण में बड़ी सफलता मिली और आज भारत में करीब 4000 मगरमच्छ हैं. भारत के अलावा इन घड़ियालों की बड़ी संख्या पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और ईरान में भी हैं.

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