द्रविड़ आंदोलन पर निबंध Essay on Dravid Movement in Hindi: एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये विरोध प्रदर्शन और छोटे बड़े आंदोलन जरुरी समझे जाते हैं.
देश के भिन्न भिन्न भागों से क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर आंदोलनों का लम्बा इतिहास हैं, दक्षिण का द्रविड़ आंदोलन इन मायनों में बेहद ख़ास है.
इस आंदोलन ने दक्षिण की राजनीति को लम्बे समय तक भी प्रभावित किया, क्या था द्रविड़ आंदोलन आज के निबंध में हम इसके बारें में जानकारी प्राप्त करेगे.
Essay on Dravidian Movement In Hindi
ईवीके रामास्वामी ‘पेरियार’ ने दक्षिण भारत में द्रविड़ आंदोलन को आरम्भ किया. हिन्दू समाज में व्याप्त धार्मिक अन्धविश्वास, ब्राह्मणवादी सोच तथा कुरीतियों के विरुद्ध किया गया आंदोलन था जिसने बाद में करुणानिधि के साथ राजनीतिक रूप धारण कर लिया.
द्रविड़ आंदोलन भारत के क्षेत्रीय आंदोलनों में एक शक्तिशाली आंदोलन था. देश की राजनीती में यह आंदोलन क्षेत्रीय भावनाओं को सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्त था. द्रविड़ आंदोलन को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता हैं.
आंदोलन का स्वरूप– सर्वप्रथम इस आंदोलन के नेतृत्व में एक हिस्से की आकांक्षा एक स्वतंत्र द्रविड़ राज्य बनाने की थी, परन्तु आंदोलन ने कभी सशस्त्र संघर्ष का मार्ग नहीं अपनाया. इस आंदोलन के प्रारम्भ में नारा दिया गया जिसका हिंदी रूपांतरण हैं उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन दिन घटता जाए.
उपर्युक्त नारे में यह स्पष्ट हैं कि इसके संचालक देश के उत्तर और दक्षिण दो विशाल भागों में विभक्त करना चाहते थे. द्रविड़ आंदोलन का उद्देश्य अखिल भारतीय संदर्भ मे अपनी बात को रखना था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों का समर्थन न मिलने के कारण यह आंदोलन धीरे धीरे तमिलनाडू तक ही सिमट कर रहा गया.
नेतृत्व के साधन– द्रविड़ आंदोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई वी रामास्वामी नायकर जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए, के हाथ में था. पेरियार ने अपने नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन की मांग आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बहसें और चुनावी मंच का ही प्रयोग किया.
आंदोलन का संगठन- द्रविड़ आंदोलन की प्रक्रिया को एक राजनैतिक संगठन द्रविड़ कषगम सूत्रपात हुआ. यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व की खिलाफत करता था. उत्तरी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिस्ठा पर जोर देता था.
कालांतर में द्रविड़ आंदोलन दो धड़ों में बंट गया. और आंदोलन की समूची राजनीतिक विरासत द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पाले में केन्द्रित हो गई. इस आंदोलन की तीन मांगे थी. पहली कल्लाकुडम नामक रेलवे स्टेशन का नया नाम डालमियापुरम किया जाए
दूसरी मांग थी स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृति के इतिहास को अधिक महत्व दिया जाए. तीसरी मांग राज्य सरकार की व्यावसायिक शिक्षा की नीति को लेकर थी. संगठन के अनुसार यह नीति समाज में ब्राह्मण दृष्टिकोण को बढ़ावा देती थी, डी एम के हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के खिलाफ थी.
डी एम के की सफलताएं– 1965 के हिंदी विरोधी आंदोलन की सफलता ने डी एम के को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया. राजनीतिक आंदोलन के एक लम्बे सिलसिले के बाद DMK को 1967 के विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हाथ लगी तब से लेकर आज तक तमिलनाडू की राजनीति में द्रविड़ दलों का वर्चस्व कायम हैं.
DMK का विभाजन एवं कालान्तर की राजनीतिक घटनाएं– DMK के संस्थापक सी अन्नादुरे की मृत्यु के बाद दल के दो टुकड़े हो गये. इसमें एक दल का नाम डी एम के को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को आल इंडिया अन्ना द्रमुक कहने लगा.
यह दल स्वयं को द्रविड़ विरासत का असली हकदार बताता था. तमिलनाडु की राजनीति में ये दोनों दल चार दशकों से दबदबा बनाए हुए हैं. इनमें से एक दल 1996 से केंद्र सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा रहा हैं.
1990 के दशक में एमडीएमके, पीएमके, डीएमडी जैसे कई अन्य दल अस्तित्व में आए. तमिलनाडु की राजनीति में इन सभी दलों ने क्षेत्रीय गौरव के मुद्दे को किसी न किसी रूप में जिन्दा रखा है.
एक समय क्षेत्रीय राजनीति को भारतीय राष्ट्र के लिए खतरा माना जाता था लेकिन तमिलनाडु की राजनीति क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच सहकारिता की भावना का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती हैं.
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