नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं, आज हम सभी के लिए शिक्षा पर निबंध Essay On Education For All In Hindi लेकर आए हैं.
शिक्षा का अधिकार और सभी के लिए शिक्षा विषय पर आज का हमारा निबंध हैं. इस निबंध में हम जानेगे कि शिक्षा की आवश्यकता सभी के लिए क्या है इसका महत्व, तो चलिए आरंभ करते हैं.
सभी के लिए शिक्षा पर निबंध Essay On Education For All In Hindi

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्व हैं. शिक्षा को जीवन का आधार माना गया हैं, अर्थात शिक्षा ही जीवन हैं. किसी भी देश के आधुनिक या विकसित होने का प्रमाण उस देश के नागरिकों के शिक्षा स्तर पर निर्भर करता हैं.
मानव सभी जीवों और प्राणियों में इसलिए श्रेष्ट हैं, क्युकि वह शिक्षित हैं, उन्हें जीवन में सही तरीके से जीने की शिक्षा प्राप्त हैं. आधुनिक समय में शिक्षा को ही किसी राष्ट्र या समाज की प्रगति का सूचक समझा जाता हैं.
हमारे देश में आजादी के बाद शिक्षा के महत्व को समझते हुए सभी को शिक्षा की दिशा में काम करते हुए इसे शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तक 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया.
वर्ष 2009 में पारित शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Education For All Act 2009) बेसिक स्तर तक 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण महैया करवाने का प्रावधान किया गया हैं.
वर्ष 2002 में भारतीय संसद द्वारा पारित संविधान के 68 वें में देश के सभी 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिर्वाय और निशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया गया था.
इसी कार्यक्रम में सुधार कर शिक्षा के अधिकार के रूप में इन्हें 2005 में मान्यता मिली, और सभी के लिए शिक्षा का अधिकार के रूप में 4 अगस्त 2009 को लोकसभा ने इस बिल को पारित कर दिया.
1 अप्रैल 2010 को देशभर में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित होते ही, भारत उन 135 देशो की लिस्ट में सम्मलित हो गया, जो अपने नागरिकों के लिए शिक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दे चुके थे.
इसी एक्ट के कानूनी जामा पहनने के साथ ही केंद्र सरकार,राज्य सरकार और हमारे समाज की यह नैतिक जिम्मेवारी भी बनती हैं, कि इस महान कार्य में बिना स्वहित सभी मिलकर काम करे. और एक सुद्रढ़ भारत का निर्माण किया जा सके.
सभी के लिए शिक्षा पर निबंध Essay On Education For All In Hindi
सभी को शिक्षा देने की दिशा में आजादी के शुरूआती वर्षो से ही प्रयास किये जाने लगे. उसी का परिणाम था कि भारत सरकार ने वर्ष 1950 में शिक्षा के अधिकार को राज्य के निति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया.
मगर इसके इतने प्रभावी न होने की स्थति में 12 दिसम्बर 2002 को सविधान के 86वें संशोधन के द्वारा भाग 21 के तीसरे उपभाग के रूप में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा का तत्वाधान किया गया.
इस मौलिक अधिकार को पारित करने से पूर्व इसका खाका तैयार कर अक्टूबर 2003 में इसे देश के लोगों के सामने सुझावों एवं अपनी राय देने बाबत प्रस्तुत किया.
सभी सुझावों और विवादित विषयों पर सुधार करने के पश्तात इन्हे निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार विधेयक 2004 के लिए में तैयार किया गया.
राष्ट्रिय शिक्षा सलाहकार परिषद ने इस विधेयक को जून 2005 में पूर्ण रूप से तैयार कर केन्द्रीय मानव एवं संसाधन मंत्रालय (शिक्षा क्षेत्र इस विभाग अंतर्गत आता हैं.) सौपा गया, जिनको प्रधानमन्त्री के लिए भेज दिया गया.
सभी तरह की कानूनी स्विक्रतिया मिलने के बावजूद योजना आयोग ने इसके वहन के लिए पर्याप्त धन राशि की अनुलब्धता की मज़बूरी बताते हुए लौटा दिया था.
अपने पहले प्रयास में परवार न चढ़ पाने वाला शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में मन्त्रिमन्डल में प्रस्तुत किया गया.
2 जुलाई को राज्यसभा, 4 अगस्त को लोकसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक 3 सितम्बर 2009 को राष्ट्रपति द्वारा पास किये जाने के साथ ही 1 अप्रैल 2010 को पुरे भारत में इसे लागू कर दिया गया.
सभी को निशुल्क और गुणवता पूर्ण शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से राज्य एक केन्द्रीय स्तर पर शिक्षक पात्रता परीक्षा का तत्वाधान किया गया.
जो युवक आगे बढ़कर एक शिक्षक बनना चाहता हैं, उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य रूप से उतीर्ण करनी होती हैं.
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की विशेषताएं (Characteristics of the Right to Education Act)
- देश के सभी बच्चे जो 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के हैं, उन्हें निशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिलाना.
- किसी भी बालक को किसी शुल्क अथवा शिक्षा पर खर्च के आधार पर शिक्षा देने से वंचित नही किया जा सकता.
- यदि 14 वर्ष से कम आयु का बच्चा नियमित रूप से विद्यालय कभी नही गया, इस एक्ट के तहत उनके उचित स्तर की क्लास में प्रवेश दिलाया जा सकता हैं.
- यदि किसी क्षेत्र में कोई विद्यालय नही हैं, तो राज्य और केंद्र सरकार का दायित्व हैं कि वे 3 वर्ष की अवधि तक कोई विद्यालय का निर्माण सुनिश्चित करे.
- वर्षपर्यन्त किसी भी स्टूडेंट को किसी भी कक्षा में प्रवेश दिया जा सकेगा.
- किसी तरह के प्रमाण पत्र यथा-जन्म प्रमाण, आय प्रमाण पत्र न होने की स्थति में भी उसे प्रवेश से नही रोका जाएगा.
- पांचवी तक विधिवत शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् प्रत्येक स्टूडेंट्स को उनकी शैक्षिक योग्यता का प्रमाण पत्र दिया जाए.
- विद्यालय में मुलभुत सुविधाए, पुस्तकालय, खेल मैदान,कक्षा-कक्ष और अन्य सुविधाएं राज्य सरकारे सुनिश्चित करे.
- प्रति 40 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का प्रावधान किया गया हैं, शिक्षकों की कमी पड़ने पर राज्य सरकार शिक्षक भर्ती निकाले.
- शिक्षक बनने के पश्चात् पांच वर्ष तक उस अध्यापक को अपने प्रोफेशनल कोर्स की डिग्री देना अनिवार्य हैं, अन्यथा उन्हें नौकरी से निकाला जा सकेगा.
- शिक्षा संस्थान यदि अपने आरम्भिक तीन वर्षो में सभी मूलभूल सुविधाएँ उपलब्ध नही करवा पाता हैं, तो उसकी मान्यता रद्द की जाएगी.
- सभी निजी और सरकारी विद्यालयों में पहली क्लास में 25 फीसदी गरीब बच्चों के प्रवेश आवश्यक.
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम में कुल वित्तीय खर्च में राज्य और केंद्र की सामूहिक भागीदारी होगी.
शिक्षा का अधिकार की सीमाएं कमियां (Limitations of Right to Education)
एक तरफ सभी के लिए शिक्षा अधिकार अधिनियम में बहुत सारी खुबिया और विशेषताओं होने के बावजूद भी कुछ कमिया भी हैं, जो इस प्रकार हैं.
- इस एक्ट में 0 से 6 वर्ष के बच्चों के बारे में विशेष ध्यान नही दिया गया हैं.
- 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की शिक्षा के भी कोई प्रावधान नही हैं.
- अंतराष्ट्रीय चाइल्ड राईट अग्रीमेंट में 18 वर्ष तक बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का प्रावधान हैं, जो शिक्षा अधिनियम 2009 में नही हैं.
शिक्षा का अधिकार का महत्व व आवश्यकता (importance & need of education for all)
इस राईट टू एजुकेशन एक्ट की कुछ सीमाओं को एक तरफ कर दिया जाए तो यह कानून 6 से 14 वर्ष की आयुसीमा के विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हो सकता हैं.
इस अधिनियम से प्राथमिक शिक्षा और उच्च प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा की नीव को भी मजबूत किया जा सकेगा.
इस एक्ट का मुख्य पात्र कम आयवाले परिवार के बच्चे, मजदूरों, किसानों व गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले सभी सुकुमारों के लिए भविष्य में नई दिशा और राह दिखाने में मददगार साबित हो सकता हैं.
इस अधिनियम के पारित होने के साथ ही प्राथमिक विद्यालयों में प्रवेश दर उपस्थति में बढ़ोतरी और बिच में विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी करने में मदद कर सकता हैं. प्रत्येक व्यक्ति के सामजिक आर्थिक विकास के लिए जीवन में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं.
शिक्षा न केवल बच्चे के वर्तमान को बेहतर बनाती हैं, बल्कि उनके सुनहरे भविष्य के रूप में भी काम आती हैं. शिक्षा के सभी पहलुओ पर विचार करने के बाद शिक्षा के इस मौलिक अधिकार का महत्व स्वत सिद्ध हो जाता हैं.
खेद इस बात का हैं. आजादी के 60 साल बाद जिस शिक्षा के अधिकार को 1 अप्रैल 2010 में मौलिक अधिकारों के रूप में दर्जा देकर पारित किया.
काश ये 1 अप्रैल 1990 के दिन ही हो जाता तो हमारी कितनी पीढियाँ इसका फायदा उठा सकती थी. आज हमारी शिक्षा और प्रगति का एक नया आयाम छूते.
मगर देर ही सही दुरस्त आए, यह शिक्षा का मौलिक अधिकार 6 से 14 वर्षो के बालक-बालिकाओं के लिए निशुल्क और गुणवतापूर्ण शिक्षा की सहायता से उन्हें समान रूप से शिक्षा और रोजगार के समान अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करवाएगा. इससे हमारा भारत शिक्षित और विकसित बनेगा.
सभी के लिए शिक्षा पर निबंध 2 Short Essay On Education For All In Hindi
मनुष्य को ज्ञान देकर सामाजिक बनाने, उसे सभ्य नागरिक बनाने की प्रक्रिया का नाम ही शिक्षा हैं. सामाजिक विज्ञान विश्वकोष के अनुसार शिक्षा ही वयस्क हो रहे बालकों के व्यक्तित्व का विकास होता हैं.
उनमें भविष्य में स्वावलम्बी बनने की योग्यता और क्षमता बढ़ती है, लोकतंत्र में सुनागरिक का निर्माण शिक्षा प्रसार से ही होता हैं.
शिक्षा का अधिकार (Right to Education)
स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही हमारे संविधान में यह निश्चय किया गया कि आगामी दस वर्षों में चौदह वर्ष के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जायेगी,
परन्तु इस व्यवस्था को लागू करने में पूरे साठ वर्ष लग गये और अब निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के रूप में सामने आया हैं.
जो 1 अप्रैल 2010 से पूरे भारत में लागू हो चूका हैं. इससे शिक्षा के क्षेत्र में कमजोर वर्ग के बालकों को अधिक लाभ मिलने लगा हैं, शिक्षा जीवन जीना सिखाती हैं. तो शिक्षा के अधिकार से सभी बालकों को जीवन जीने का बुनियादी अधिकार प्राप्त हो गया हैं.
शिक्षा के अधिकार का स्वरूप
भारत सरकार द्वारा जारी निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम में यह व्यवस्था है कि प्रारम्भिक कक्षा से आठवी कक्षा तक तक प्रत्येक बालक को निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार दिया गया हैं. इसके लिए केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारे समस्त व्यय वहन करेगी.
किसी विद्यालय में प्रविष्ट बालक को कक्षा 8 तक किसी कक्षा में रोका नही जाएगा अर्थात अनुतीर्ण न दिखाकर अगली कक्षा में प्रमोंन्त करना होगा और प्रारम्भिक शिक्षा पूरी किये बिना किसी विद्यालय से निष्काषित नही किया जाएगा.
बालक को शारीरिक दंड या मानसिक उत्पीडन नही मिलेगा, राष्ट्रीय बालक अधिकार आयोग के अधिनियमों के अनुसार बालकों को समस्त अधिकारों का संरक्षण दिया जाएगा.
शिक्षा का अधिकार से लाभ
शिक्षा का अधिकार अधिनियम से समाज को अनेक लाभ हैं इससे प्रत्येक बालक को प्रारम्भिक शिक्षा निशुल्क मिलेगी, समाज में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ेगा, शिक्षा परीक्षाउन्मुखी न होकर बुनियादी हो जायेगी, शिक्षा का व्यवसायीकरण रुक जाएगा.
सभी बालकों के व्यक्तित्व का उचित विकास होगा, गरीब अभिभावकों को इसका पूरा लाभ मिलेगा.
उपसंहार
इस प्रकार भारत सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करने से सभी बालको के लिए ज्ञान मंदिर के द्वार खोल दिए हैं इससे समाज का विकास तथा शिक्षा का उचित प्रसार हो सकेगा तथा साक्षरता की शत प्रतिशत वृद्धि होगी.
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