संध्याकाल का दृश्य पर निबंध | Essay on evening scene In Hindi

संध्याकाल का दृश्य पर निबंध Essay on evening scene In Hindi: सूर्यास्त रात्रि या शाम के समय का दृश्य बेहद मन भावन होता हैं, खासकर sunset का नजारा थके हारे दिल को सुकून देते हैं.

अस्त होते सूरज की ललिमा मन विभोर कर जाती हैं. आज संध्या के समय के दृश्य का वर्णन इस निबंध में आपकों संक्षिप्त में बता रहे हैं.

संध्याकाल का दृश्य पर निबंध | Essay on evening scene In Hindi

सूर्यास्त के समय को गोधुली वेला भी कहा जाता है जब सूर्य पश्चिम की ओर अपनी यात्रा आरंभ कर देता हैं. दिन भर की तेज तपन के बाद संध्या के समय जनजीवन को शीतलता का आभास होता हैं. हल्की मनमोहक लालिमा के बिच सूर्यास्त के समय प्रकृति आह्लादित प्रतीत होती हैं.

सूर्य की किरणें सोने की तरह जमीन पर पड़ने पर चमकने लगती हैं. आनन्द के इस मौसम में लोग अपने कामकाज को छोड़कर घरों की ओर प्रस्थान करते हैं.

आसमान में पक्षी से झुंड में अपने घरों की ओर जाते दीखते हैं. ज्यों ज्यो सूरज नीचे ढलता जाता है पृथ्वी पर हल्का हल्का अँधेरा सभी को अपने आगोश में ले लेता हैं.

मन्दिरों की घंटियाँ बज उठती हैं आरती, प्रार्थना और भजनों के बीच लोग शान्ति की तलाश करते हैं. सन्धा के कौतुहल भरे मौसम को कवियों साहित्यकारों ने नदियों घटाओं, पर्वतों, रेगिस्तान और समुद्र के तटों के दृश्य को आधार बनाकर भांति भांति की रचनाएं प्रस्तुत की हैं.

वाकई में संध्या का समय दिन का सबसे अच्छा वक्त माना जाता हैं जब उदास दिलों की जगह उल्लास भर आता हैं दिन की थकान अनायास ही दूर हो जाती हैं.

लोग अगले दिन की योजना बनाने में रत हो जाते हैं. बच्चों के लिए यह समय बेहद ख़ास होता है जब वे स्कूल से घर लौटकर अपने यारों दोस्तों के मध्य अठखेलियाँ करते हैं मम्मी पापा ऑफिस या बाजार से आते उनके लिए कोई ख़ास वस्तु लाएगे यह आश उन्हें हर शाम बंधी रहती हैं.

गर्मी के मौसम में संध्या होने पर वातावरण में अजीब सी ठंडक महसूस होने लगती हैं. यह सायंकालीन समय हर किसी के दिल को घूमने के लिए प्रेरित करता हैं.

हरिद्वार जैसे पवित्र स्थलों पर संध्या की रौनक कई गुनी हो जाती हैं. पवित्र माँ गंगा के तट पर गंगा आरती का नजारा दिल की गहराइयों को छूने वाला होता हैं.

संध्या के समय मानों माँ गंगा रौशनी की महक हम तक भेज रही हैं. इस समय प्रकृति का नजारा तो बस देखते ही बनता हैं. ठंडी ठंडी मद्काती रौशनी के मध्य पूरा संसार शांत प्रतीत होता हैं.

जहाँ भी नजर आती है अनुपम सुन्दरता के दर्शन होते हैं. शनै शनै अस्त होते सूरज का दृश्य पहाड़ों के बीच से आती स्वर्णिम किरणें मन को भाती हैं.

सायंकालीन सैर पर अनुच्छेद Paragraph on An Evening Walk in Hindi

टहलना स्वास्थ्य के लिहाज से एक अच्छी आदत है कुछ लोग सायंकाल को तो कुछ प्रातःकालीन सैर का लुप्त उठाते हैं, शाम के समय की सैर से शरीर स्वस्थ रहता ही साथ ही स्फूर्ति भी मिलती हैं. इस अनूठे आनन्द की प्राप्ति हर कोई चाहता हैं.

शाम से पूर्व का दिन बेहद तपन भरा था, सारे दिन कड़ाके की गर्मी से जनजीवन तपन के बीच झुलस रहा था. ऐसा लग रहा था मानों सूरज आग बरसा रहा था आसमान की तरफ आँख उठाने की हिम्मत नहीं होती थी.

धरा इस तपन से धधक रही थी, जहाँ भी पैर पड़ते है मानों वहां अंगीठी जलाई गई हो. पंखे भी गर्म हवा का कहर बरफा रहे थे. पसीने की धाराएं शरीर को लथपथ बना रही थी. हर किसी को आस थी कि दिन के ढलने के साथ ही सांय के समय जीवन को कुछ राहत मिलेगी.

शाम होते ही जी में जी आया, उधर से कुछ दोस्त भी आ गये तथा घूमने के लिए चलने को कहने लगा. सभी का मन था हम बाहर निकले और चाय की थड़ी तक गये ही थे कि एक दोस्त वहां मिल गया जिसनें चाय के लिए बुला दिया.

हम सभी ने चाय पी और घने ट्रैफिक से भरी सड़क के सहारे चलते चलते शहर को पार कर गये. यह सुनसान स्थान था जहाँ शहर के कोलाहल से दूर गहरी शांति थी. हमारा यह संध्याकालीन भ्रमण साबरमती के तट तक था.

कुछ ही वक्त में हम वहां तक पहुँच गये, ठंडी ठंडी बहार चल रही थी. जैसे ही मंद मुस्काती पवन शरीर को छूती मन गदगद हो जाता हैं. इस समय नदी में पानी बेहद कम था मगर बहते जल का नजारा मन को भाने वाला था.

कल कल मनोरम ध्वनि में प्रकृति का संगीत कानों तक पड़ रहा था. हमारे लिए घूमने का सबसे उपयुक्त स्थल नदी का किनारा था.

कुछ देर गप्पे मारते हम यूँ ही नदी के किनारे टहलते रहे, शरीर थोडा थक रहा था तब हमने विश्राम करने का निश्चय किया और जूते उतारकर पैर पानी में रख कर बैठ गये. ठंडे नीर के स्पर्श से शरीर में तरंगे सी उठने लगी.

अब तक सूरज अपनी पश्चिम की यात्रा पर चल पड़ा था. लाल लाल गोल गोल टमाटर की भांति पहाड़ियों और पेड़ों को चीरते हुए अपने गन्तव्य की ओर चल पड़ा था. नदी के जल में सूर्य की लाली जल को स्वर्णिम बना रही थी. हम फिर से खड़े हुए और वापिस अपने घरों की ओर निकल पड़े.

नदी के किनारे ठंडी बालू पर बच्चे खेलते नजर आ रहे थे. मस्ती में गाते मुस्काते बच्चों के झूंड सूर्य की शीतलता के मजे ले रहे थे. शीतल शाम ढल रही थी आसमान में तारे अपनी हाजरी देने लगे,

पक्षी कलरव करते अपने घरों की ओर लौट रहे थे. हमारा भी मन हो चला कि हम घर को लौट आए इस तरह हमारी आनन्दित सांयकालीन सैर समाप्त हुई.

संध्या के दृश्य पर निबंध | Essay on evening View In Hindi

जब बच्चे रोते हैं तो शाम के समय उनके माता-पिता उन्हें आसमान की तरफ दिखाते हैं और बोलते हैं कि वह देखो चंदा मामा तुम्हें देख रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं। ऐसा देखने पर कुछ बच्चे चुप हो जाते हैं।

हम सभी लोग दिन भर में अपने कार्यों को करने में व्यस्त होते हैं और शाम ढलते ढलते सभी अपने घरों पर आ जाते हैं। शाम होने पर पशु पक्षी भी अपने अपने घोंसले पर वापस आ जाते हैं, क्योंकि शाम का दृश्य काफी मनमोहक होता है। 

हर कोई शाम के समय में अपने घर पहुंचना चाहता है। कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो शाम होने पर अपने घर के आस-पास स्थित बने हुए पार्क में टहलने के लिए या फिर घूमने के लिए जाते हैं.

जो लोग समुद्र के आस पास रहते हैं वह समुद्र के तट पर घूमने के लिए जाते हैं। इसके अलावा कुछ लोग शाम को सैर भी करते हैं। वहीं कई लोग शाम के समय किसी जगह पर एक साथ इकट्ठा होते हैं और आपस में बातें करते हैं।

एक बार एक शाम की बात है, मैं कुछ आवश्यक काम निपटा करके वापस अपने घर आ रहा था, तभी रास्ते में मैंने एक मजदूर को देखा जो काफी जल्दी से अपने काम को निपटा रहा था।

हो सकता है कि उसे कहीं पर जाना हो। काम निपटाने के बाद वह तुरंत ही अपने मालिक से पैसे लेने लगा और उसके बाद कहीं पर जाने के लिए तैयार हो गया। वह पैदल ही काफी तेजी के साथ चला जा रहा था।

मुझे जिसे साइड मजदूर जा रहा था उसी साइड ही जाना था, तो मैं भी उसे देखता रहा। वह एक होटल में गया और वहां जाकर के बैठ गया और फिर खाने का आर्डर किया और खाना खाने लगा। यह दृश्य देख कर के मैं यह समझ गया था कि उस मजदूर को काफी जोर से भूख लगी थी।

उसे खाना खाते देखना न जाने मुझे क्यों बहुत ही खुशी हुई। दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग होते हैं जो दिन भर अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ करते हैं और शाम के समय ही उन्हें खाना नसीब हो पाता है।

वह दिन भर में यही सोचते रहते हैं कि कब शाम ढले और कब हमें अपने काम से छुट्टी मिले और कब हम अपने पेट की अग्नि को शांत करें। 

मजदूर को खाना खाते देख कर के मुझे वास्तव में यह लगा कि दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनकी जिंदगी मुझसे भी काफी संघर्ष भरी है। उस शाम मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने जो कुछ भी मुझे दिया है मैं उनका आभारी रहूंगा।

जब मजदूर ने खाना खा लिया तो मुझे उस मजदूर से बात करने की इच्छा हुई। इसके लिए मैं मजदूर के पास गया और उससे बातें करना चालू की तो उस मजदूर ने मुझे बताया कि मैं एक मजदूर हूं और दिन भर मजदूरी करता हूं। मेरे आगे पीछे कोई नहीं है, क्योंकि मेरे बीवी और बच्चों की एक सड़क एक्सीडेंट में मौत हो चुकी है। इसलिए मैं रोज कमाता हूं और रोज खाता हूं।

मजदूर की इस बात को सुनकर के मुझे काफी ज्यादा दुख हुआ और मैं इस सोच में पड़ गया कि एक यह भी इंसान है, जिसे घर का खाना खाने की जगह पर रोज बाहर का खाना, खाना पड़ता है.

अगर किसी दिन यह मेहनत ना करें तो इसे बाहर का खाना भी नसीब ना हो। इस प्रकार उस शाम में बहुत ज्यादा भावुक हुआ। इसके बाद मैंने मजदूर से विदा ली और मैं अपने घर चला आया।

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