लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi

लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi: नमस्कार साथियों आपका स्वागत हैं,

आज का लेख लिंग असमानता gender Equality & inequality और लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) के विषय पर दिया गया हैं.

लैंगिक समानता और असमानता क्या है इसके कारण परिभाषा समाज में प्रभाव शिक्षा में दुष्प्रभाव आदि बिन्दुओं पर यह लेख दिया गया हैं.

लैंगिक असमानता पर निबंध Essay On Gender Inequality In Hindi

लैंगिक असमानता पर निबंध। Essay On Gender Inequality In Hindi

वर्तमान में भारत की तरफ पूरी दुनिया नजर गाड़ी हुई है और शायद यकीनन हर भारतवासी को अपने भारतीय होने पर गर्व है लेकिन 21वीं सदी के भारत में भी कुछ ऐसे चिंताजनक विषय है.

जो समय के साथ हमें और भी गहराई से विचार करने पर मजबूर करते हैं। समाज महिला और पुरुष दोनों से बनता है।

अगर हमारे एक पैर में चोट लग जाती है तो हम ठीक से चल नहीं पाते। इसी तरह अगर समाज में किसी एक वर्ग की स्थिति चिंताजनक है तो वह समाज न आदर्शवादी समाज बन पाता है और ना अपने आपको तरक्की के रास्ते पर ले जा सकता है। 

क्योंकि समाज के संपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण होती है अगर महिलाओं की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण ना समझी जाए तो समाज अपने आप में आधा रह जाएगा जिससे उसका सतत विकास संभव नहीं होगा।

भारत जैसे विशाल पारंपरिक, लोकतांत्रिक और एक आदर्शवादी देश में लैंगिक असमानता कहे तो एक कलंक के समान है।

महर्षि दयानंद सरस्वती, राम मोहन रॉय, महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर जैसे अनेकों महापुरुषों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रयास किए और कुछ हद तक सफल भी हुए।

परंतु लैंगिक असमानता जैसी कुरीति को समाज से मिटा देना इतना आसान नहीं है। जब तक हर भारतीय अपनी व्यवहारिक जिम्मेदारी समझते हुए अपने व्यवहार और परंपराओं में परिवर्तन नहीं करेंगे तब तक ऐसी कुरीति को झेलना ही पड़ेगा।

क्योंकि बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए समय-समय पर हमें अपनी सामाजिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत होती है।

यानी सदियों-सदियों तक प्रयास करके भी हम आज तक लैंगिक असमानता को पूर्णतया खत्म नहीं कर सके हैं।

हर रोज ऐसी घटनाएं देखने को सुनने को मिलती है जो लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली होती है। समाज में आपसी कपट, राजनीति की लालसा, नेतृत्व की भावना जैसे अवगुण समाज के पतन का कारण बनते हैं।

विश्व बैंक समूह की एक आर्थिक रिपोर्ट यह बताती है कि लैंगिक असमानता से विश्व भर की अर्थव्यवस्था में करीब 160 खराब डॉलर का नुकसान हुआ है।

आर्थिक आंकड़े के नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है जिसकी वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था कितनी पीछे चल रही है क्योंकि संपूर्ण समाज का योगदान है समाज के विकास का आधार होता है

दुनिया भर में महिलाओं पर बढ़ते अपराध यौन उत्पीड़न सामाजिक एवं आर्थिक शोषण जैसी घटनाएं भी लैंगिक असमानता को बढ़ावा दे रही है।

लैंगिक समानता कब से है, इसके कारण, इसके प्रभाव और आने वाले समय में इसकी स्थिति को लेकर हम इस आलेख में चर्चा करेंगे।

 लैंगिक समानता का शाब्दिक अर्थ (Meaning of gender equality)

लैंगिक समानता का अर्थ है समाज में लैंगिक आधार पर भेदभाव यानी महिलाओं के साथ भेदभाव। जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तौर पर समाज में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कितनी प्राथमिकता है।

विभिन्न संस्थानों के द्वारा प्रकाशित होने वाले साल दर साल आंकड़े लैंगिक असमानता को एक सामाजिक चुनौती के रूप में स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं।

लैंगिक असमानता जैसी एक विशाल चुनौती के लिए कोई एक कारक जिम्मेदार नहीं है बल्कि हमारे अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग रीति रिवाज अर्थात पारिवारिक एवं धार्मिक मान्यताएं सबसे बड़ा कारण हैै।

भारत के देश के विभिन्न समुदायों में लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाली कई ऐसी प्रथाएं थी जिनका किसी समाज विशेष में पूर्णतया चलन था और वह समाज के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करती थी।

इसके अलावा कुछ ऐसी कुरीतियां भी समाज में थी जिनकी वजह से महिलाओं को अपना जीवन जीने  स्वतंत्रता भी नहीं थीी। (सती प्रथा – विधवा महिला को अपने पति की चिता में जीवित आहुति देनी पड़ती थी।,

जोहर- यह प्रथा राजपूत समाज में थी जिसमें हारे हुए राजपूत राजा की पत्नी विरोधियों के शोषण और उत्पीड़न से बचने के लिए अपनी इच्छा से आत्महत्या कर लेते थी) जिनकी वजह से समाज में महिलाओं का शोषण होता रहा।

लैंगिक असमानता के कारण (Due to gender inequality)

लैंगिक असमानता का सबसे प्रमुख कारण है समाज का पितृसत्तात्मक होना और महिलाओं को विकास के समान अवसर उपलब्ध ना होना।

जहां पुरुष वर्ग समाज का स्वामी समझा जाता है और महिलाएं आजीवन उन्ही रीति-रिवाजों को निभाती चली जाती है जो पुरुषों के द्वारा निर्देशित हो।

जैसे मुस्लिम धर्म में पुरुष के द्वारा पत्नी को तीन बार तलाक कहने से धार्मिक व सामाजिक रूप से दोनों एक दूसरे के पति पत्नी नहीं रह जाते। परंतु संवैधानिक रूप से अब यह रिवाज अपराध एवं दंडनीय है।

संवैधानिक रूप से संपत्ति का व्यवहार होने के बावजूद भी व्यवहारिक रूप से भारतीय समाज में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं है।

महिलाओं की आर्थिक स्थिति कमजोर होने का यह सबसे बड़ा कारण है। महिलाओं के द्वारा किए गए घरेलू अथवा अवैतनिक कार्यों को देश के आर्थिक विकास के आंकड़ों में शामिल नहीं किया जाता।

पंचायती राज व्यवस्था को छोड़ दिया जाए तो भारतीय संविधान में कहीं भी राजनीतिक स्तर पर महिलाओं को आरक्षण नहीं है।

जिसकी वजह से समाज में महिलाओं  की आवश्यकताएं एवं उनकी समस्याएं देश के राजनीतिक तौर पर प्रमुख संस्था तक नहीं पहुंच पाती।

समाज की संकीर्ण मानसिकता, सामाजिक सुरक्षा इत्यादि के कारण भारत में महिलाएं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से अभी भी बहुत पीछे हैं।

वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार यमन, पाकिस्तान और सीरिया शीर्ष तीन देश है जहां महिलाओं का शोषण अत्यधिक है या दूसरे शब्दों में कहे तो लैंगिक असमानता का ज्यादा प्रभाव इन 3 देशों में में देखने को मिलता है।

आंकड़ों की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंगानुपात 943 है अर्थात 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएंं।

अवसरों की उपलब्धता मेंअपवाद के तौर पर भारत एक 153 देशों में एकमात्र देश है जिसमें महिलाओं की आर्थिक क्षेत्र में भागीदारी राजनीतिक क्षेत्र की तुलना में कम है।

कहां कहां देखने को मिलती है लैंगिक असमानता

समाज के विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानता अखबार, टेलीविजन के माध्यम से या प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलती है।

नौकरशाही –

समाज की व्यवस्था का आधार नौकरशाही होती हैं।लेकिन लैंगिक असमानता यहां भी देखने को मिलती है। जैसे किसी बड़े निर्णय के निर्धारण में आमतौर पर पुरुषों की नीतियों अथवा सलाह को ही प्राथमिकता दी जाती है।

विभिन्न नीतियों अथवा योजनाओं की गाइडलाइंस तैयार करने के लिए बनाई गई समितियां भी पुरुष कर्मचारियों की अध्यक्षता में ही रहती है।

खेल जगत –

खेलों में भी लैंगिक असमानता बहुत देखने को मिलती है। पुरुष खिलाड़ियों का वेतन महिला खिलाड़ियों के वेतन से अक्सर ज्यादा होता है।

सामाजिक तौर पर भी पुरुष खिलाड़ियों को अधिक सम्मान मिलता है। इसके अलावा पुरुषों के खेलों को अधिक ख्याति प्राप्त है।

मनोरंजन जगत –

मनोरंजन के जगत में भी लैंगिक असमानता अपने पैर पसार चुकी है। जैसे किसी फिल्म को अभिनेता विशेष के नाम से ही ज्यादा जाना जाता है एवं प्रसिद्धि मिलती है। और अभिनेता ही मुख्य किरदार के रूप में जाने जाते हैं।

बाजारी कार्यशैली –

अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में लैंगिक असमानता सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। लगभग हर असंगठित क्षेत्र मैं समान कार्य के लिए वेतन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मिलता है एवं महिला कर्मचारियों को इतना महत्व भी नहीं दिया जाता।

स्वामित्व में असमानता –

भारत में संवैधानिक तौर पर महिलाओं को स्वामित्व का अधिकार दिया गया है परंतु जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। जब महिला बाल्यावस्था मैं या व्यस्क होती है तब सारे अधिकार उसके पिता के पास होते हैं।

शादी के बाद महिलाओं को अपने पति के कहने पर चलना होता है तथा वृद्धावस्था में महिलाएं अपने बच्चों के नियंत्रण में रहती है। हालांकि शहरी इलाकों में यह स्थिति कुछ हद तक बदली है

परंतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के पास स्वामित्व का अधिकार व्यवहारिक तौर पर कहीं नाम मात्र ही देखने को मिलता है.

जो की महिलाओं के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है और यह लैंगिक असमानता को और मजबूती प्रदान करता है जो देश के लिए चिंतनीय है।

शिक्षा जगत –

शिक्षाा के क्षेत्र में भी लैंगिक असमानता शिक्षित समाज के लिए एक बड़ी चुनौती है। कम उम्र में शादी कर देना सामाजिक सुरक्षा को लेकर जो स्थितियां भारत के विभिन्न समुदायों में है उनकी वजह से महिलाओं की शादी कम उम्र में कर दी जाती है।

जिसकी वजह से देश में महिला साक्षरता पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। समाज की व्यवस्था के चलते महिलाओं के पढ़ने लिखने को लेकर ग्रामीण भारत की मानसिकता अभी काफी संकीर्ण है।

जैसे तेलुगू भाषा में एक कहावत है- ‘लड़की को पढ़ाना दूसरे के बगीचे के पेड़ को पानी देने जैसा है जिसका फल हमें नहीं मिलता।’

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभिन्न समुदायों में महिलाओं को लेकर समाज के क्या मानसिकता है।

समाधान

लैगिकक असमानता को खत्म करने पर सरकारी एवं न्यायपालिका सक्रियता से कार्य कर रही है। उदाहरण के तौर पर- वर्तमान में व्याप्त है ऐसे कुछ उदाहरण जो लैंगिक समानता को बढ़ावा दे रहे थे परन्तु उन पर रोक लगी है।

कुछ सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक मुद्दे जिन पर रोक लगाई गई है, तीन तलाक का कानून, हाजी दरगाह में प्रवेश इत्यादि कुछ प्रमुख उदाहरण है।

भारत ने मैक्‍सिको कार्ययोजना (1975), नैरोबी अग्रदर्शी (Provident) रणनीतियाँ (1985) और लैगिक समानता तथा विकास एवं शांति पर संयुक्त‍ राष्‍ट्र महासभा सत्र द्वारा 21वीं शताब्‍दी के लिये अंगीकृत “बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्‍लेटफार्म फॉर एक्‍शन को कार्यान्‍वित करने के लिये और कार्रवाइयाँ एवं पहलें”  जैसे लैंगिक समानता की पहलों की शुरुआत की है। जो विश्वभर में क्रियान्वित होगी।

अलग-अलग राज्य सरकारों के द्वारा ऐसी अनेकों योजनाएं शुरू की जा रही है जिन से महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का स्तर ऊपर उठेगा। जैसे ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ााओ’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना शक्ति केंद्र’ ‘उज्जवला योजना’।

जेंडर रेस्पॉन्सिव बजट– महिला सशक्तिकरण एवं शिशु कल्याण के लिए राजकोषीय नीतियों के द्वारा सुधार करना जीआरबी कहलाता हैै। भारत सरकार ने अपने वित्तीय बजट में इस बजट को 2005 में औपचारिक रूप से पहली बार जगह दी थी।

पर तमाम राजनीतिक और न्यायिक प्रयासों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही है यानी लैंगिक असमानता समाज में व्याप्त वह बीमारी है जो सैकड़ों बरसो से अपनेेेे पैर जमाए हुए हैं। असाधारण प्रयासों से ही लैंगिक समानता पर विजय हासिल की जा सकती है।

देश में लैंगिक समानता की आवश्यकता को लेकर सभाएं की जाए, अलग-अलग कार्यक्रम किए जाए, अभियान चलाए जाए, कठोर एवं प्रभावी नीतियां बनाई जाए, कठोर कानून बनाए जाए तथा समाज को शिक्षित किया जाए।

जब तक समाज के पुरुष वर्ग के हर सदस्य को इस भावना से ओतप्रोत नहीं किया जाए कि सबको बराबरी का हकदार बनाने का यह मतलब नहीं है

कि हमारे अधिकार छीन लिए गए हो क्योंकि नीतियों और कानूनों से ज्यादा प्रभाव समाज की मानसिकता का होता है।

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