घोड़ा पर निबंध – Essay on Horse in Hindi

Essay on Horse in Hindi प्रिय मित्रों यहाँ घोड़े पर निबंध लिखा हैं. हॉर्स यानी घोड़ा तेज गति से भागने वाला पालतू पशु हैं. कई घोड़ो की प्रजातियाँ हॉर्स राइडिंग के लिए विश्व विख्यात हैं.

आज के निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद 10 लाइन शोर्ट एस्से में घोड़े के बारे में विस्तार से जानेगे.

घोड़ा पर निबंध – Essay on Horse in Hindi


Get Here Short Paragraph & Essay on Horse in Hindi for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 students. स्कूल में पढने वाले बच्चों को मेरा प्रिय घोड़े का निबंध लिखने को कहा जाए तो विद्यार्थी इस निबंध की रूप रेखा के अनुसार अच्छा हिंदी निबंध तैयार कर सकते हैं.

घोड़े के बारे में अपने अलग-अलग सीमा में निबंध लिखे हैं जो कि सभी विद्यार्थियों को घोड़े के बारे में निबंध लिखने के लिए काम आएगा.

10 line Essay on Horse in Hindi

(1) घोड़ा जिसे अश्व भी कहते है, यह खुरदार स्तनधारी प्राणी हैं जो ऐक़्वडी कुल से संबंधित हैं.

(2) आमतौर पर घोड़े शाकाहार करते है इसे अश्वशाला / अस्तबल में रखकर पाला जाता हैं.

(3) चार टांगों पर चलने वाले इस चौपाये जानवर का वजन 3 से 6 क्विंटल होता हैं.

(4) घोड़े के दो आंखें, दो कान और एक लंबी पूंछ होती है. मजबूत टांगों एवं खुरों की मदद से यह लम्बी दूरी तक तेज दौड़ लगाने में सक्षम होता हैं.

(5) साधारनतया घोड़े कभी बैठते नहीं है ये अपना अधिकतर जीवन खड़े खड़े ही व्यतीत कर देते हैं.

(6) दुनिया के लगभग समस्त महाद्वीपों में पाये जाने वाले घोड़ो के रंग भूरा, काला, सफेद होता है.

(7) संसार में पहली बार घोड़ो की नस्ल सुधारने के लिए हेनरी अष्टम ने महत्वपूर्ण कार्य किये.

(8) महाभारत काल में राजा नल और पांडवो में नकुल अश्वविद्या का प्रकांड विद्वान् माना जाता था.

(9) होर्स राइडिंग और पोलो खेल आज भी बेहद लोकप्रिय हैं.

(10) एक घोड़े की जीवन अवधि तीस वर्ष होती हैं घोड़े का नवजात बच्चा जन्म के समय से ही चलने लगता हैं.

Horse Essay in Hindi मेरा प्रिय जानवर घोड़ा निबंध

घोड़े संसार के उष्णकटिबंधीय अर्थात गर्म स्थानों पर तुलनात्मक रूप से अधिक पाए जाते है. वैसे घोड़ों की अलग अलग प्रजा तियाँ संसार के हर कोने में पाई जाती हैं.

चार पैरो पर चलने वाला यह चौपाया जन्तु काफी बुद्धिमान एवं शक्तिशाली होता हैं, आपकों जानकर हैरत होगी, कि घोड़ा अधिकतर समय खड़ा रहता है तथा इस दौरान यह एक टांग ऊपर किये रहता हैं.

प्राचीन काल में घोड़ों का अत्यधिक महत्व था. खासकर राजाओं के लिए इसकी अहमियत अधिक थी. प्रत्येक राजा की सेना में तथा सवारी के लिए हजारों की तादाद में अच्छी नस्ल के घोड़े हुआ करते थे. घोड़ों पर बैठकर युद्ध और यात्रा आदि की जाती थी.

घोड़े की शारीरिक सरंचना बेहद मजबूत होती हैं. उसके सुडौल शरीर की सरंचना के कारण बेहद आकर्षक लगते हैं. इनके पैर की मांसपेशियाँ सर्वाधिक मजबूत होती हैं.

जिससे वह मजबूत चट्टानों, पहाड़ो एवं घाटियों में भी तीव्र गति से दौड़ लगा सकता हैं इसके दौड़ने की गति 70 से 80 किमी प्रति घंटा तक हो सकती हैं.

सवारी करने योग्य जानवरों में घोड़े को सर्वश्रेष्ठ माना जाता हैं. ताकत से लबरेज होने के कारण हमारे दैनिक जीवन में शक्ति का मात्रक भी हॉर्स पावर रखा गया हैं.

हमारे महापुरुषों एवं इतिहास के महान यौद्धाओं में उनके प्रिय घोड़े का बड़ा महत्व रहा हैं. आपने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े के बलिदान और त्याग की कहानियां तो सुनी ही होगी.

ये घोड़े स्वामिभक्त होने के साथ ही साथ भागने की सारी सीमाओं को लांघने वाले थे. यदि आज हम प्रताप को महान वीर सपूत मानते है तो उनके जीवन में चेतक का बड़ा महत्व था.

एक दौर में घोड़े ही शक्ति और सामर्थ्य के प्रतीक थे. जिनके पास ज्यादा से ज्यादा घोड़े होते थे युद्ध में वही विजयी होते हैं. युद्ध में तेज दौड़ने वाले प्रशिक्षित घोड़े निर्णायक साबित होते थे. आज भी कई पहाड़ी स्थलों पर सेना गश्त के लिए घुड़सवारी का सहारा लेते हैं.

आदि काल से मानव एवं घोड़े का स्वामी सेवक का संबंध रहा हैं. परिवहन के सबसे तीव्र साधन एवं बौझा ढोने के अतिरिक्त घोड़ों को हल जोतने के काम भी लिया जाता हैं. प्रशिक्षित किये जाने योग्य जानवरों में घोडा प्रमुख है जो अपने स्वामी की एक आवाज से उनकी तरफ भागा चला आता हैं.

घोड़ा तेजी से भागता हुआ सबसे अधिक सुंदर लगता हैं, गर्दन पर लम्बी बाल उड़ने लगते हैं. दुनियां में घोड़े काले, सफेद एवं भूरे रंगों में पाया जाता हैं. दौड़ने के लिए सबसे अच्छी नस्ल का घोड़ा अरबी हैं.

घोड़े के चार मजबूत टाँगे, श्वास लेने के लिए नाक लम्बी पूंछ होती हैं. अब तक घोड़ो की कुल 160 नस्लों का पता लगाया जा चूका हैं. सबसे उम्र दराज घोड़े का नाम ओल्ड बील्ली था जो 62 वर्ष जीया, आमतौर पर हॉर्स की जीवन अवधि 25 से 30 वर्ष की होती हैं.

घोड़ा एक शाकाहारी पालतू जानवर है जिन्हें हरी घास एवं सूखा चारे की काफी मात्रा में जरूरत होती है. इसके अतिरिक्त मालिक उन्हें चना भी खिलाते है जिसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में होते हैं ये घोड़े की ताकत को बढ़ाते हैं.

हरे घास के मैदानों में इन्हें झुण्ड में चरते हुए देखा जा सकता हैं. इन्हें अस्तबल में बांधकर रखा जाता था तथा दिन के समय चरने हेतु छोड़ दिया जाता था.

आजकल घोड़ों के प्रयोग बेहद सीमित हो गये हैं परिवहन के साधनों के विकास से इनकी उपयोगिता के साथ ही तादाद भी घटी हैं. अब इनका प्रयोग महज टाँगे या विवाह के अवसर पर और शौक के लिए हॉर्स राइडिंग तक रह गया हैं.

पथरीले रास्तों एवं सड़क पर दौड़ते समय खुर न टूटे इसके लिए धातु की बनी नाल लगाई जाती हैं. बड़े बड़े शहरों में घुड़दौड़ का आयोजन होता हैं, यह मनोरंजन के लिहाज से एक अच्छा एवं प्राचीन खेल हैं.

हिन्दू धर्म में घोड़े को शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं. प्राचीन समय में हिन्दू शासकों द्वारा कराए जाने वाले अश्वमेध यज्ञ में घोड़ों का ही प्रयोग किया जाता था. आज विश्व में घोड़ों की कुल आबादी ६ करोड़ के लगभग हैं.

बदलते समय चक्र में इनकी उपयोगिता में कमी जरुर आई है मगर निरुपयोगी नहीं हुए हैं. कम उपयोग की सम्भावनाओं के चलते अश्व पालन का कार्य भी कठिन और खर्चीला हो चूका हैं.

Ghoda par nibandh 1000 words

घोड़ा एक शक्तिशाली जानवर होने के साथ ही साथ बहुत ही बुद्धिमान जानवर होता है। इसीलिए यह इंसानों का एक अच्छा दोस्त भी बन जाता है। घरों में इंसान घोड़े को पालतू जानवर के तौर पर पालते हैं।

इसके टोटल 4 पैर होते हैं और जब यह एक जगह पर खड़ा हुआ रहता है तब अक्सर यह अपनी एक टांग को ऊपर उठा करके रखता है। दुनिया के अधिकतर देशों में घोड़ा पाया जाता है

परंतु जिन देशों में गर्म जलवायु होती है वहां पर इनकी संख्या अधिक होती है अर्थात गर्म जलवायु वाले इलाके में घोड़े रहना ज्यादा पसंद करते हैं।

इनकी बॉडी बहुत ही सुड़ौल होती है और इसीलिए यह दिखाई देने में बहुत ही सुंदर लगते हैं। अपनी मजबूत मांसपेशियों के कारण घोड़ा 80 किलोमीटर से लेकर के 90 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है।

इसलिए प्राचीन काल से ही घोड़े का इस्तेमाल रेस लगाने के लिए और युद्ध में किया जाता है। आज भी घोड़े का इस्तेमाल रेस में किया जाता है।

इसमें जो घोड़ा सबसे पहले क्रॉसिंग लाइन को पार करता है उसे विजेता घोषित किया जाता है और उस घोड़े के मालिक को इनाम के तौर पर लाखों और करोड़ों रुपए प्राप्त होते हैं।

हमारे भारत देश में बहुत सारे बहादुर घोड़े हुए हैं जिनमें महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का नाम सबसे पहले लिया जाता है। चेतक की खासियत यह थी कि यह पलक झपकते ही हवा की रफ्तार से दौड़ने लगा था और इसी घोड़े की सहायता से महाराणा प्रताप ने कई बार युद्ध में दुश्मन को परास्त किया था।

अपने आखिरी सांस तक चेतक घोड़े ने महाराणा प्रताप का साथ दिया था जो इस बात को साबित करता है कि घोड़े स्वामी भक्त होते हैं।

पहले के समय में यह कहा जाता था कि जिसके पास अधिक घोड़े होते थे, वही लड़ाई में विजय प्राप्त करता था क्योंकि घोड़े काफी तेज दौड़ते हैं और पहले के समय में युद्ध लड़ने के लिए गाड़ियां नहीं थी। इसीलिए घोड़े का ही इस्तेमाल घुड़सवार करते थे।

प्राचीन काल से ही घोड़े का इस्तेमाल युद्ध लड़ने के अलावा परिवहन के साधन के तौर पर भी किया जा रहा है। कई जगह पर इसका इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए होता है और वर्तमान में भी कई जगह पर इसका इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए किया जाता है।

जिस प्रकार कुत्ते इंसानों के वफादार जानवर होते हैं, उसी प्रकार घोड़े भी इंसानों के बहुत ही वफादार होते हैं। यह अपने मालिक की आवाज पर दौड़े दौड़े चले आते हैं।

घोड़ा लगभग 20 साल से लेकर के 30 साल तक जिंदगी जीता है परंतु 19वीं शताब्दी में ओल्ड बिल्ली नाम का एक ऐसा भी घोड़ा हुआ था, जिसने 62 साल की उम्र पूरी की थी।

दुनिया भर में 160 से भी अधिक घोड़े की प्रजातियां मौजूद है और सबसे अच्छे घोड़े की नस्ल अरबी घोड़े की होती है। इसके बाद मारवाड़ी घोड़े का नंबर आता है।

घोड़े अलग-अलग रंगों में उपलब्ध होते हैं, जैसे कि काला घोड़ा, सफेद, नीला इत्यादि परंतु अधिकतर सफेद और काले रंग के घोड़े दिखाई देते हैं। इनकी टोटल दो आंखें होती है जो काफी बड़ी बड़ी होती है,

साथ ही आवाज को सुनने के लिए इनके दो कान भी होते हैं और यह हमेशा नाक से ही सांस लेते हैं। इनकी गर्दन थोड़ी सी लंबी होती है और इनकी गर्दन के पीछे थोड़े से बड़े बाल होते हैं। यही वजह है कि जब घोड़ा दौड़ता है, तो इसके गर्दन के बाल हवा में लहराने लगते हैं।

घोड़े की पीछे की साइड में एक लंबी पूछ भी होती है और पूछ पर भी काफी बड़े बड़े बाल होते हैं। भारत में कई जगह पर प्राकृतिक खाद के तौर पर घोड़े के गोबर का इस्तेमाल खेतों में डालने के लिए किया जाता है।

इसकी ऊंचाई 4 फुट से लेकर के 6 फुट के आसपास में होती है और इसके मुंह के अंदर टोटल 40 दांत होते हैं। सामान्य तौर पर यह भी झुंड में रहना ही पसंद करते हैं।

अलग-अलग भाषाओं में घोड़े को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। अंग्रेजी भाषा में घोड़े को होर्स कहा जाता है। इसके पैरों के नीचे का भाग काफी मजबूत होता है, जिसे हिंदी भाषा में खुर्र कहा जाता है। आज के समय में विभिन्न पर्यटन स्थलों पर आने वाले पर्यटको को घुमाने के लिए घोड़े का इस्तेमाल होता है। 

वैष्णो देवी की यात्रा करने के लिए जब पर्यटक जाते हैं तो उन्हें पहाड़ी पर पहुंचाने के लिए भी घोड़े का इस्तेमाल होता है। घोड़े के पैरों में लोहे की नाल लगाई जाती है.

यही घोड़े की नाल हिंदू धर्म के लोग अपने घरों में भी लगाते हैं क्योंकि उनका ऐसा मानना होता है कि घोड़े की नाल को घर में लगाने से घर में सुख शांति होती है साथ ही लक्ष्मी जी का आगमन भी होता है।

वर्तमान के समय में लोग घुड़सवारी करने के लिए अपने घरों में घोड़े को पालते हैं। हालांकि इसे पालने का शौक अधिकतर ऐसे ही लोग रखते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है, क्योंकि घोड़े का रखरखाव करने के लिए पैसों की आवश्यकता अधिक पड़ती है। 

हमारे भारत देश में आज भी घोड़े का इस्तेमाल बारातो में दूल्हे को बिठा कर के ले जाने के लिए किया जाता है। हमारे भारत देश में घोड़े की घुड़सवारी करना बहुत ही शान की बात मानी जाती है.

साथ ही 15 अगस्त और 26 जनवरी के मौके पर दिल्ली में विभिन्न गवर्नमेंट कार्यक्रम में भी घोड़े पर बैठ कर के घुड़सवार कर्तब दिखाते हैं अथवा परेड निकालते हैं।

भारत में कई लोगों के लिए घोड़ा आज भी आजीविका का साधन है।  जो लोग बोझा ढोने का काम करते हैं वह घोड़े पर बोझा ढोते हैं और उसके बदले में लोगों से पैसे लेते हैं।

शहरों के मुकाबले आज भी ग्रामीण इलाके में घोड़ा अधिक देखा जाता है। जब घोड़े का बच्चा पैदा होता है तो उसकी लंबाई लगभग 2 फीट के आसपास में होती है और पैदा होने के बाद से ही वह अपने पैरों पर खड़ा होना सीख जाता है।

घोड़ा संतान उत्पत्ति करने के लिए घोड़ी के साथ समागम करते हैं। हालांकि पहले के मुकाबले में वर्तमान के समय में घोड़े का महत्व कम हो गया है परंतु फिर भी आज भी घोड़े से प्रेम करने वाले लोगों की कमी नहीं है। कुत्ते की तरह घोड़ा भी इंसानों का वफादार होता है।

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