भारत इजरायल संबंध पर निबंध | Essay on India Israel Relations In Hindi

आज का लेख भारत इजरायल संबंध पर निबंध | Essay on India Israel Relations In Hindi पर दिया गया हैं. यहूदियों के प्रमुख देश एवं मध्य पूर्व की शक्ति के रूप में विख्यात आधुनिक इजरायल देश की उत्पत्ति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई हैं. विश्व के कई देशों खासकर खाड़ी के देशों के साथ इजराइल के सम्बन्ध काफी तनावपूर्ण रहे है. वहीं भारत के साथ शुरू से सोहार्दपूर्ण एवं एक सच्चे सहयोगी के रूप में दोनों देशों के मधुर रिश्ते रहे हैं. इस निबंध में हम 1950 से आज तक दोनों देशों के बीच सम्बन्धों के उतार चढ़ाव और प्रमुख घटनाओं का अध्ययन करेंगे.

भारत इजरायल संबंध पर निबंध | Essay on India Israel Relations In Hindi

मध्य पूर्व में फिलिस्तीन नामक देश को तोड़कर 1948 यहूदियों के एक देश का निर्माण किया गया, जिसे इजराइल का नाम दिया गया. तत्कालीन भारतीय सरकार इजराइल के निर्माण के खिलाफ थी, हालांकि स्वयं भारत का विभाजन भी फिलिस्तीन की तरह दो राष्ट्र सिद्धांत पर हुआ था.

भारत ने दो समय वर्ष 1947 में फिलिस्तीन योजना एवं 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ में इजराइल के प्रवेश के खिलाफ मतदान किया था. भारत के इस रवैये के पीछे बड़ी वजह खाड़ी के मुस्लिम देशों के साथ मैत्री सम्बन्ध और बड़ी संख्या में भारतीय मुस्लिम आबादी की भावना का सम्मान था.

17 सितंबर 1950 में अन्तोगत्वा भारत सरकार ने इजराइल को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी. इस घोषणा के समय पंडित नेहरु ने कहा था इजराइल के सच्चाई है हमने अब तक खाड़ी के दोस्तों की भावनाओं के सम्मान में इस निर्णय में देरी की थी.

इजरायल को मान्यता दिलाने के प्रयासों में अल्बर्ट आइंस्टीन का महत्वपूर्ण प्रयास भी शामिल था. उन्होंने 13 जून, 1947 को चार पन्नों का एक पत्र पंडित नेहरु को लिखकर समर्थन का अनुरोध किया था, मगर नेहरु ने भारत की विवशताओं और नीतिगत मजबूरियों के कारण इस अनुरोध को स्वीकार न करने की बात कही थी.

वर्ष 1953 में मुंबई में इजराइल की और से एक वाणिज्यिक कार्यालय खिला गया, जिसे बाद में कांसुलेट और 1992 में दूतावास में परिवर्तित कर दिया गया.

वर्ष 1992 में भारत में कई बड़े नीतिगत सुधार हुए, उदारीकरण जिनमें एक था. इसी समय भारत में नरसिम्हा राव की सरकार ने इजराइल के सम्बन्धों को मजबूत रूप दिया.

जनवरी 1992 में भारत ने तेल अवीव में अपना दूतावास खोला. राजनयिक स्तर पर दोनों देशों के सम्बन्ध मजबूत बनाने की दिशा में कई सतही कार्य हुए. 1950-1992 तक भारत और इजराइल के सम्बन्ध महज अनौपचारिकता भर के थे. इसकी कुछ वजहें भी थी.

जिनमें भारत द्वारा सोवियत संघ के गुट से जुड़े रहना, 1990 में सोवियत संघ का पतन, OIC में पाकिस्तान द्वारा भारत का विरोध, जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान का इस्लामिक आतंकवाद और भारत में यूपीए सरकार द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के चलते दोनों देशों के सम्बन्ध ठंडे बस्ते में रहे.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत इजराइल सम्बन्धों को मजबूत बनाने के बड़े समर्थक थे. उन्ही के दौर में इजरायली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने 2003 में भारत की पहली यात्रा की थी. 2015 में भारत की ओर से पहली इजरायली यात्रा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की. जुलाई 2015 में पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की.

वर्ष 2018 में भारत इजरायल रिश्तों के 30 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जनवरी में भारत की यात्रा पर आए. यही से दोनों देशों के बीच घनिष्ठता के रिश्तों की शुरुआत हुई.

इजरायल भारत के लिए सैन्य साजो सामान और तकनीक निर्यातक देशों में से प्रमुख देश हैं. इसरों ने इजरायल के 8 सैन्य उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है. दोनों देशों के बीच आर्थिक, सैन्य, सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत हुए हैं. इस्लामिक आतंकवाद पर दोनों देशों की रणनीति और खतरें दोनों को और अधिक करीब लाते हैं.

कृषि, निवेश, रक्षा, शिक्षा, तकनीक के अलावा दोनों देशों के बीच अच्छे सांस्कृतिक रिश्ते हैं. भारतीय मूल के लाखों लोग इजराइल में आईटी प्रोफेशनल, स्टूडेंट्स, व्यापारी एवं अकुशल मजदूर के रूप में कार्यरत हैं.

भारत में बसी एक बड़ी यहूदी आबादी भी दोनों देशों के रिश्तों को साझा आधार देती हैं. इजरायली शहर हाइफा की ओर से द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़े जोधपुर रेजिमेंट के मेजर दलपत सिंह एवं अन्य शहीद भी एक नाता बनाते हैं.

गाजा, फिलिस्तीन और इजरायल विवाद में भारत ने अभी तक इजरायल का उस तरीके से वैश्विक मंचों पर खुला समर्थन नहीं दिया है जिस तरह से इजरायल यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधित्व से लेकर अन्य मुद्दों पर पूर्ण समर्थन देता हैं.

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