कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध Essay on Krishna Janmashtami in Hindi नमस्कार मित्रों आपका हार्दिक स्वागत है आज जन्माष्टमी पर निबंध शेयर कर रहे है। द्वापर युग में अवतरित योगेश्वर श्रीकृष्ण सभी के आदर्श है उनके जन्मदिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। आज के भाषण, निबंध स्पीच अनुच्छेद आर्टिकल पैराग्राफ में हम कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में जानेंगे।
कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध । Essay on Krishna Janmashtami in Hindi
हिन्दू ग्रंथ पुराणों में कालचक्र को चार युगों में वर्गीकृत किया गया था। सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलयुग। द्वापर युग मे योगेश्वर श्री कृष्ण जी मामा कंस की कैद में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अवतरित हुए थे।
इन्हें सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी का आठवां अवतार भी माना जाता है। इनके जन्म दिवस भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
हिन्दू सनातन धर्म के मुख्य त्योहारों में कृष्ण जन्माष्टमी भी एक है. भगवान कृष्ण को हिंदू धर्मानुयायी महान पूर्वज एवं इष्ट देव के रूप में मानते है.
यही वजह है कि उनके जन्म दिवस कृष्ण जन्माष्टमी को भारत सहित अनेक देशों में श्रद्धा एवं भक्ति भाव से मनाया जाता हैं.
श्री कृष्ण को अनुयायी योगेश्वर के रूप में याद करते हैं, भक्त उनके जीवन से जुडी शिक्षाओं तथा उपदेशो का स्मरण करते हुए उनके अवतरण दिवस को बड़े पर्वोत्सव के रूप में मनाते हैं. भारत के अलावा जन्माष्टमी का पर्व एशिया के कई देशों में इस्कान द्वारा मनाया जाता हैं.
पाकिस्तान के स्वामी नारायण मन्दिर, बांग्लादेश स्थित ढाकेश्वर मन्दिर, नेपाल, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा इंडोनेशिया जैसे देशों में भी कृष्ण के भक्तों द्वारा मनाया जाता हैं. बांग्लादेश में जन्माष्टमी को राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाते हैं, इस दिन देश भर में सार्वजनिक अवकाश रहता हैं.
हमारे भारत के लगभग प्रत्येक प्रान्त में इसे अलग अलग तरीको से मनाया जाता हैं, सामान्य रूप से भक्त इस दिन श्री कृष्ण के लिए व्रत रखते है. पालने में उनकी प्रतिमा को झुलाया जाता है तथा पाठ पूजा व भजन कीर्तन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. भगवान को इस दिन ताजे फलों के साथ पूर्ण सात्विक भोजन कराया जाता हैं.
इस दिन दही हांडी प्रथा विशेष लोकप्रिय है जो महाराष्ट्र व गुजरात से सम्बन्धित हैं. ऐसी मान्यताएं है कि भगवान श्री कृष्ण के मामा कंस अत्याचारी शासक थे जो प्रजा से दूध दही आदि की लूट किया करते थे.
कृष्ण ने उसकी रोक लगा दी तथा कंस तक दही दूध पहुँचने से रोक दिया. इस एतिहासिक घटना को आधार बनाकर आज भी भक्तों द्वारा दूध दही को एक हांडी में ऊंचाई पर लटकाया जाता हैं. जिसे युवक मानव श्रंखला बनाकर तोड़ देते हैं.
आराध्य श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े दो महत्वपूर्ण स्थल मथुरा और वृन्दावन है जो उनके विरासत स्थल के रूप में जाने जाते हैं. यहाँ जन्माष्टमी पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता हैं. यहाँ आयोजित होने वाली रासलीला को देखने के लिए देश दुनिया से भक्त आते हैं.
अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार जन्माष्टमी का पर्व अगस्त या सितम्बर माह में पड़ता हैं. जो दो दिनों तक मनाया जाता हैं. इस मौके पर बाजारों में रौनक लौट आती है. कृष्ण जी के जीवन पर आधारित रंगीन मूर्तियाँ, झूले तथा पूजा व सजावट की सामग्रियों से बाजार भरे नजर आते हैं.
प्रत्येक सनातन अनुयायी के लिए कृष्ण जन्माष्टमी का बड़ा महत्व हैं. यह पर्व उस योगिराज के जीवन को समर्पित है जिन्होंने हमें गीता ज्ञान दिया. उन्होंने धर्म के बारे में कहा था जब जब संसार में धर्म की हानि होगी, मैं पुन जन्म लूँगा तथा बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो एक दिन उसका अंत निश्चित हैं.
हमारी पीढ़ी अपने आराध्य के जीवन बोध से प्रेरणा ले सके तथा इस दिन उनकी बातों को याद कर, कृष्ण द्वारा बताई गयी राह पर चलने का प्रयास करें. जन्माष्टमी का पर्व हमारी पुरातन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रतीक पर्व हैं.
जन्माष्टमी व्रत कथा (janmashtami vrat katha)
कथा- द्वापर युग की बात हैं, जब पृथ्वी पर पाप व अत्याचार बढ़ने लगा तो पृथ्वी इन पापों के बोझ को मिटाने का निवेदन करने के लिए गाय के रूप में विधाता के पास गई. ब्रह्माजी ने पृथ्वी की इस दुःख भरी गाथा को सभी देवताओं के साथ साझा किया. सम्पूर्ण वृतांत सुनने पर सभी देवगण ने विष्णु जी के पास चलने का सुझाव दिया.
गौ माता, ब्रह्माजी सहित सभी देवगण क्षीर सागर पहुचे, जहाँ विष्णु अनन्त शय्या पर विराजमान थे. सभी ने विष्णु जी की स्तुति की, तब वे नीद से जगे तथा सभी के आने का कारण पूछा. तभी पृथ्वी करुणा भरे स्वर में बोली- महाराज मुझ पर बड़े बड़े अत्याचार हो रहे हैं, किसी तरह आप उनका निराकरण कर, मेरे दुखों का अंत कीजिए.
तब विष्णु जी ने कहा- इसके लिए मुझे पृथ्वी पर अवतार लेना होगा. ब्रज में वासुदेव के घर, कंस की बहिन देवकी के यहाँ मैं स्वयं जन्म लेकर आपके सभी दुखों का नाश करुगा. अपने कथनानुसार जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जी के रूप में विष्णु जी ने अवतार लिया.
कुछ समय बीतने के बाद वासुदेव जी देवकी के साथ गोकुल गाँव को जा रहे थे. उसी वक्त तेज गर्जना के साथ आकाश से आवाज आई, हे कंस, जिसे तू अपनी बहिन समझ के अपने साथ ले जा रहा हैं. उसी की गर्भ से जन्म लेने वाला 8 वां पुत्र तेरी जीवनलीला समाप्त करेगा.
तभी कंस अपनी तलवार निकालकर देवकी को मारने को दौड़ा. वासुदेव जी हाथ जोड़कर कंस से विनती करने लगे. हे राजन ये औरत बेकसूर हैं. इनकी जान लेना ठीक नही हैं.
इसकी सन्तान जैसे ही जन्म लेगी मैं आपकों सौप दूंगा, फिर वो आपको कैसे मार सकेगा. कंस वासुदेव की बात मान गया तथा अपनी बहिन देवकी तथा बहनोई वासुदेव को काराग्रह में बंद कर दिया.
कंस को कही गई बात के अनुसार वसुदेव उसे एक के बाद एक कुल सात पुत्र देते गये, पापी कंस ने उन सभी को बेरहमी से मार डाला. जब आठवें पुत्र के जन्म की बारी आई तो कंस ने देवकी को एक विशेष कारागृह में बंद करवाकर सैनिकों का पहरा लगवा दिया.
भादों की अष्टमी के दिन घनघोर रात्रि में कृष्ण ने कंस की जेल में जन्म लिया तथा स्वयं को नन्दबाबा के घर पहुचाने तथा वहां जन्मी कन्या को लाकर देवकी को देने का आदेश हुआ.
कृष्ण की वाणी के साथ ही वसुदेव को बाँधी गईं, सभी हथकडियाँ टूट कर गिर गईं तथा अपने आप कारागृह का द्वार खुल गया. तथा सभी पहरेदारों को आँख लग गईं. जब वसुदेव कृष्ण को लेकर यमुना जी के किनारे पहुचे तो,
यमुना का बहाव बढ़ते बढ़ते उनके गले तक आ गया. कृष्ण के पैर के स्पर्श से यमुना का बहाव अचानक गिर गया. इस तरह वे यमुना को पार कर गोकुल पहुचे तथा जसोदा के साथ सो रही, कन्या के स्थान पर कृष्ण को सुला दिया. तथा उस कन्या को लेकर वापिस चल दिए.
जैसे ही उन्होंने कारावास में प्रवेश किया, अचानक सारे दरवाजे यथावत बंद हो गये. वासुदेव तथा देवकी के हाथों पर पैरों में फिर से हथकडियाँ पड़ गई. तभी कन्या रुदन करने लगी, जिससे वहां सोये हुए पहरेदारों की आँख खुल गई. उन्होंने तुरंत कन्या का जन्म होने की खबर कंस को दी.
कंस ने कन्या को पकड़कर एक पत्थर पर पटककर मारना चाहा, अचानक वो कन्या उसके हाथ से छूटकर आसमान की तरफ चली गई. कन्या ने देवी का रूप धारण कर कंस से कहा- हे कंस तुझे मारने वाला काफी समय पूर्व गोकुल में जन्म ले चूका हैं. गोकुल में कृष्ण बड़े होकर बकासुर, पूतना तथा कंस जैसे राक्षसों का नाश कर मानव जाति की रक्षा की.
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