लिंग भेद पर निबंध | Essay On Ling Bhed In Hindi

मित्रों आज के इस लिंग भेद पर निबंध Essay On Ling Bhed In Hindi  में हम भारत में सामाजिक आधार पर हो रहे भेद, लैगिक असमानता की समस्या, भारतीय समाज में प्रचलित लैंगिक भेदभाव के विभिन्न रूपों के  पर विस्तृत रूप से निबंध में प्रस्तुत किया गया हैं. 

लिंग भेद निबंध में महिलाओं के साथ अथवा लड़के और लड़कियों में भेदभाव,स्कूली शिक्षा में असमानता, स्त्री पुरुष भेदभाव, सामाजिक असमानता व जेंडर संवेदनशीलता को रोकने के लिए उठाए गये कदम तथा सरकारी उपायों की जानकारी यहाँ दी गई हैं.

लिंग भेद पर निबंध Essay On Ling Bhed In Hindi

लिंग भेद पर निबंध | Essay On Ling Bhed In Hindi

महिलाओं के उत्पीड़न, शोषण और उन पर होने वाली हिंसा की खबरें हमे रोज पढ़ने और सुनने को मिलती हैं. अक्सर हम लैंगिक बोध जैसी चर्चाए भी सुनते हैं. इससे जुड़ी हुई बातों के साथ इसे समझना जरुरी हैं.

लिंग भेद- एक माता अपने शिशु को अपना दूध पिलाती हैं, परन्तु इस प्रकार की विशेषता प्रकृति ने पुरुष को प्रदान नही की हैं. स्त्री और पुरुष का यह अंतर लिंग भेद हैं.

लिंग भेद स्त्री और पुरुष की शारीरिक बनावट पर आधारित जैविक अंतर हैं, जो स्त्रीत्व और पुरुषत्व का आधार हैं. प्राकृतिक होने के कारण इस प्रकार का अंतर सभी जगहों और सभी समय समान होता हैं.

लैंगिक भेद– लैंगिक भेद को लैंगिक असमानता भी कह सकते हैं. सामाजिक असमानता का यह रूप न्यूनाधिक मात्रा में दुनिया में प्रायः हर स्थान पर मौजूद रहा हैं.

ऐसा नही हैं कि पुरुष घरेलू व घर की देखभाल के लिए कार्य नही कर सकते, किन्तु ऐसी सोच बनी हुई हैं कि घर के भीतर का कार्य महिलाओं की जिम्मेदारी हैं, जबकि वे घर से बाहर के व धन कमाने के कार्य भी कर सकती हैं. और कर भी रही हैं. यह सोच लैंगिक भेद का एक उदाहरण हैं.

लिंग भेद क्या हैं (Essay on Gender Discrimination in Hindi )

स्त्रियों और पुरुषों के बिच अधिकारों, अवसरों, कर्तव्यों तथा सुविधाओं के बिच असमानता पर आधारित बंटवारा लैंगिक भेद हैं. यह अवधारणा एक सामाजिक सांस्कृतिक निर्माण हैं, जो समय और स्थान के साथ बदलती रही हैं.

अनेक सामाजिक मूल्य और रुढ़िवादी धारणाएं लैंगिक भेद को हमारे स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होने के जैविक अंतर को जोड़ती रही हैं.

लैंगिक संवेदनशीलता क्या हैं इसका अर्थ

लैंगिक संवेदनशीलता का अर्थ हैं, कि स्त्री और पुरुष दोनों के प्रति समान भाव अनुभव करना. लैंगिक संवेदनशीलता को लैंगिक समानता भी कहते हैं.

लैंगिक संवेदनशीलता को समझकर बालक-बालिका के पालन-पोषण, शिक्षा व स्वास्थ्य में कोई अंतर नही करना चाहिए.

उन्हें अपने विकास के लिए समान अवसर और अधिकार देने चाहिए. हमारे समाज की खुशहाली स्त्री और पुरुष दोनों के ही समान सहयोग पर निर्भर हैं.

महाकवि कालिदास ने कहा हैं, कि यह स्त्री है यह पुरुष हैं. यह निरर्थक बात हैं. वस्तुतः सत पुरुषों का चरित्र ही पूजा के योग्य होता हैं. अब हम समाज में मौजूद लैंगिक भेद (असंवेदनशीलता) के अनेक रूपों पर चर्चा करते हैं.

लैंगिक भेदभाव के विभिन्न रूप (Different Forms Of Gender Discrimination In Hindi)

श्रम का लैंगिक विभाजन-

लड़के लड़कियों के पालन पोषण के दौरान ही यह मान्यता उनके मन में बैठा दी जाती हैं, कि महिलाओं की मुख्य जिम्मेदारी घर चलाने और बच्चों का पालन पोषण करने की हैं.

हम देखते हैं कि परिवार में खाना बनाना, सफाई करना बर्तन और कपड़े धोना आदि घरेलू कार्य करती हैं.

इसके अलावा गाँवों में दूर दूर से पानी लाने और जलाऊ लकड़ी के गट्ठर ढ़ोने का कार्य भी करती हैं, वही महिलाएं खेतों में पौधे रोपने, खरपतवार निकालने, फसलें काटने और दुधारू पशुओं की देखभाल का कार्य भी करती हैं.

फिर भी जब हम किसान के बारे में सोचते है तो हमारे मस्तिष्क में महिला किसान की बजाय पुरुष किसान की छवि उभरती हैं.

एक तरफ ये कार्य भारी और थकान वाले होते हैं, तो दूसरी तरफ महिलाओं को इन कार्यों से कम महत्व का आँका जाता हैं. ऐसे कार्यों में लगी महिलाओं को मजदूरी भी कम दी जाती हैं.

इन कार्यों में लगी लड़कियां शिक्षा से वंचित रह जाती हैं. वास्तव में यदि हम महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घर और बाहर के कामों को जोड़े तो हमे पता चलेगा कि कुल मिलाकर सामान्यतः महिलाएं पुरुषों से अधिक काम करती हैं.

शिक्षा और काम के अवसर-

पुरुषों की तुलना में शिक्षित स्त्रियों की संख्या कम हैं. वर्तमान समय में बड़ी संख्या में लड़कियाँ स्कूल जा रही हैं. परन्तु बहुत सी लड़कियाँ गरीबी, शिक्षण सुविधाओं के अभाव व अन्य कारणों से शिक्षा पूरी किए बिना ही विद्यालय छोड़ देती हैं.

विशेषकर वंचित वर्ग, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग की लड़कियां बड़ी संख्या में बिच में ही स्कूल छोड़ देती हैं.

समाज में प्रायः सोचा जाता हैं कि घर के बाहर महिलाएं कुछ खास तरह के काम ही कर सकती हैं. कि लड़कियों और महिलाओं को तकनीक कार्य की समझ नही हैं.

इस प्रकार की रूढ़िवादी धारणाओं के चलते लड़कियों को अनेक कार्यों व व्यवसायों की शिक्षा और प्रशिक्षण लेने के लिए परिवार का सहयोग नही मिल पाता हैं.

फलस्वरूप उन्हें अनेक क्षेत्रों में कार्य के अवसरों से वंचित रहना पड़ता हैं. सरकार के प्रोत्साहन और प्रयासों के बाद अब स्थितियां बदलने लगी हैं. अब सभी कार्य क्षेत्रों में महिलाओं को भूमिका निभाते हुए देखा जा सकता हैं.

सामुदायिक सहभागिता-

सामुदायिक स्तर पर भी महिलाओं और पुरुषों की भूमिका और सहभागिता में बड़ा भेद मौजूद हैं. घर की चार दीवारी तक सीमित कर दिए जाने के कारण सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में महिलाओं की भूमिका नगण्य हैं.

सार्वजानिक जीवन पुरुषों के कब्जे में हैं और महिलाओं को कम भागीदारी दी जाती हैं, उन्हें सामुदायिक कार्यों के नेतृत्व के पर्याप्त अवसर नही दिए जाते हैं.

यदपि भारत में महिलाओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, न्यायधीश जैसे पदों को सुशोभित किया हैं. किन्तु संसद, विधानसभाओं और मन्त्रिमंडलो में पुरुषों का ही वर्चस्व रहा हैं.

भारत में लिंग भेद रोकने के उपाय Measures To Prevent Gender Discrimination In India

अब हम महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए किए जाने वाले कार्यों की चर्चा करेगे. महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सामाजिक और वैधानिक दोनों स्तर पर अनेक प्रयास किए गये हैं.

इन प्रयासों से होने वाले सामाजिक परिवर्तनों के कारण महिलाओं में गतिशीलता बढ़ी हैं और अब सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी में वृद्धि हो रही हैं.

धीरे-धीरे सामाजिक धारणाएं भी बदल रही हैं. आज सेना, पुलिस, वैज्ञानिक, डोक्टर, इंजिनियर, प्रबन्धक और विश्विधालयी शिक्षक जैसे पेशे भी बहुत सी महिलाएं कर रही हैं. बहुत सी महिलाएं सफलतापूर्वक व्यापारिक प्रतिष्ठानों का संचालन कर रही हैं.

महिला आंदोलन और नारी उत्थान

महिलाओं ने पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन में बराबर मांग उठाई. महिला संगठनों ने समाज, विधायिका और न्यायालय की ओर इसका ध्यान खीचा हैं. जहाँ कही भी महिलाओं के अधिकारों का उल्लघंन होता हैं, तो उसके विरुद्ध आवाज उठाई जाती हैं.

मामले को उचित स्तर पर न्याय दिलाने का प्रयास किया गया हैं. महिलाएं जागरूक और संगठित हुई हैं. महिला संगठन विधानसभाओं और संसद में 33 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित करवाने की मांग प्रमुखता से उठा रहे हैं.

महिला संरक्षण और सशक्तिकरण के लिए अनेक कानून और योजनाएं बनाई गई हैं. नतीजतन महिलाओं के लिए वैधानिक और नैतिक रूप से अपने प्रति गलत मान्यताओं और व्यवहारों के खिलाफ संघर्ष करना आसान हो गया हैं.

लिंग भेद को रोकने के सरकारी उपाय (Government Measures To Curb Gender Discrimination)

सरकार दो तरह से महिलाओं की प्रगति सुरक्षा और संरक्षण का कार्य कर रही हैं. पहला महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कानून बनाए हैं, दूसरा महिलाओं की प्रगति के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं.

  1. सरकार ने सामाजिक कुप्रथाओं के विरुद्ध दहेज़ प्रथा निषेध कानून, बाल विवाह निषेध कानून, सती प्रथा निषेध कानून जैसे कानून बनाकर इन्हें दंडनीय अपराध घोषित किया हैं.
  2. महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए दंडात्मक कानून बनाए हैं.
  3. पंचायतीराज व्यवस्था और नगरीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान आरक्षित कर दिए हैं.
  4. महिला समस्याओं के हल में मदद के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य महिला आयोग बनाए हैं.
  5. सरकारी नौकरियों में महिलाओ के लिए पद आरक्षित कर दिए हैं.
  6. समान कार्य के लिए समान मजदूरी का कानून बनायक गया हैं.

महिला उत्थान की योजनाएं

  • राजस्थान के प्रत्येक जिले में थानों और महिला सलाह के लिए सुरक्षा केन्द्रों का गठन किया गया हैं.
  • शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए छात्रवृति व अन्य सुविधाएं देना तथा 9 वीं कक्षा में प्रवेश लेने वाली लडकियों को साइकिल देना. शैक्षिक रूप से पिछड़े उपखंडों में आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं.
  • रोजगार का प्रशिक्षण देना और रोजगार के लिए ऋण उपलब्ध करवाना.
  • महिला के नाम की सम्पति की रजिस्ट्री करवाने पर शुल्क में छुट.
  • गरीब परिवारों को मकान के लिए निशुल्क जमीन महिला के नाम आवंटित करना.
  • बालिकाओं की उच्च शिक्षा के लिए बचत द्वारा धन जुटाने हेतु सुकन्या सम्रद्धि योजना प्रारम्भ की गई हैं.
  • भामाशाह योजना में महिला को परिवार का मुखिया बनाना.
  • महिला और बाल कल्याण के लिए जननी सुरक्षा योजना जैसी अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं.
  • लिंगानुपात में समानता लाने के लिए बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ अभियान चलाया जा रहा हैं, परिवार समाज एवं देश की प्रगति महिलाओं व पुरुषों का बराबर महत्व हैं. महिला और पुरुष दोनों की समानता से ही परिवार में खुशहाली और समाज की प्रगति संभव हैं.

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