स्थानीय स्वशासन का अर्थ व निबंध | Essay On Local Self Government In India In Hindi

स्थानीय स्वशासन का अर्थ व निबंध | Essay On Local Self Government In India In Hindi: आज हम जानेगे कि भारत में स्थानीय शासन क्या हैं अर्थ व निबंध परिभाषा के बारें में जानेगे.

देश के इतिहास में संविधान का 73 वें संशोधन और 74 वें संशोधन के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया हैं. इस लेख में हम आपकों स्थानीय स्वशासन का अर्थ व्यवस्था में सुधार हेतु गठित कमेटी कौन कौनसी बनाई गई इस पर जानकारी बता रहे हैं.

स्थानीय स्वशासन का अर्थ व निबंध Essay On Local Self Government In India In Hindi

स्थानीय स्वशासन का अर्थ व निबंध Essay On Local Self Government In India In Hindi

स्थानीय स्वशासन की विशेषताएं (Features of local self-government) स्थानीय स्वशासन क्या है अर्थ : स्थानीय स्वशासन के दो स्तर हमारे देश में विद्यमान हैं. पहला ग्रामीण स्थानीय शासन जिसे पंचायती राज के रूप में जानते हैं व दूसरा शहरी स्थानीय शासन हैं.

भारत में पंचायती राज शासन प्रणाली प्राचीन काल से ही विद्यमान रही हैं. चोल शासन में तो इसका आदर्श रूप देखा जा सकता हैं. इतिहासकार अल्टेकर ने भारतीय गाँवों को छोटे छोटे गणराज्यों की संज्ञा दी हैं.

स्वतंत्रता के पश्चात 1957 में बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया गया जिन्होंने पूरे देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू करने सिफारिश की. मेहता समिति की सिफारिश लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बना. 2 अक्तूबर 1959 को नागौर जिले में प्रधानमंत्री द्वारा इसका आगाज किया गया.

1960 के दशक में पंचायती राज को देश के विभिन्न राज्यों में अपनाया गया किन्तु राज्यों द्वारा गठित इन संस्थानों में स्तरों की संख्या, उनका कार्यकाल, निर्वाचन के तरीको आदि में समानता नहीं थी. राजस्थान में मेहता समिति द्वारा सुझाए गये त्रिस्तरीय स्वरूप को अपनाया गया.

पंचायती राज व्यवस्था में सुधार हेतु गठित अन्य समितियां (Committees Constituted For Reforms In Panchayati Raj System)

अशोक मेहता समिति 1977 सिफारिशे 

  • द्विस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को अपनाया जाय, अर्थात ग्राम पंचायत के स्थान पर मंडल पंचायते गठित की जाय.
  • जिला कलक्टर सहित सभी अधिकारी जिला परिषद के अधीन रखा जावे.
  • संस्थाओं के चुनाव दलगत आधार पर करवाएं जाए.
  • समाज के अनुसूचित जाति, जनजाति व महिला वर्ग को आरक्षण दिया जाए.
  • पंचायती राज व्यवस्था में स्वयं सेवी संस्थाओं की भूमिका बढ़ाई जाएँ.

जी वी के राव समिति 1985 की सिफारिशे

  • ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय शक्तियाँ दी जाय
  • राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाय
  • संस्थाओं का कार्यकाल 8 वर्ष के लिए किया जाय

एल एम सिंघवी समिति 1986

इस समिति में पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की गई. 64 वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा तत्कालीन केंद्र सरकार ने प्रयास भी किया, किन्तु विधेयक संसद से पास न हो सका.

पी के थुंगन समिति 1988

इस समिति ने भी इन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की थी.

भारत में स्थानीय शासन की संवैधानिक स्थिति

देखा जाए तो हमारे इंडिया के संविधान में स्थानीय शासन को परिभाषित नहीं किया गया है। सातवीं अनुसूची में इस बात को कहा गया है कि स्थानीय शासन का मतलब इंप्रूवमेंट ट्रस्ट, जिला परिषद और म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए दूसरे स्थानीय अभिकरण के गठन एवं शक्तियां। 

साल 1992 के आसपास तक हमारे इंडिया में स्थानीय शासन स्टेट के विवेक पर डिपेंड था और इसी कमी को दूर हटाने के लिए भारत के संविधान में 2 संशोधन किए गए। जो दो संशोधन किए गए उसके जरिए भारतीय स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा हासिल हुआ।

भारतीय संविधान में 73 वा संशोधन ग्रामीण पंचायती राज से संबंधित था और 74वां संशोधन नगरीय प्रशासन से। इन दोनों संशोधन को करके सत्ता का लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण किया गया और इंडिया दुनिया में संविधान में ऐसा करने वाला पांचवा देश बना।

स्थानीय स्वशासन के लाभ

1: स्थानीय विषयों का कुशलतापूर्ण प्रबन्ध

अगर लोकल इंस्टीट्यूट ना हो तो लोकल सब्जेक्ट का मैनेजमेंट भी सेंट्रल या फिर स्टेट गवर्नमेंट के द्वारा किया जाएगा और इसकी वजह से उनके पास काफी अधिक काम हो जाएगा। 

लोकल स्वशासन की वजह से लोगों के जमीनी उत्तर दायित्व का निर्वहन लोकल गवर्नमेंट अच्छी प्रकार से करती है। इसकी वजह से प्रॉब्लम का सलूशन काफी जल्दी से निकल कर के आता है, साथ ही इंस्टिट्यूट और लोगों के बीच सहभागी संबंध भी स्थापित होते हैं।

2: केन्द्रीय शासन का भार कम होना

लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की वजह से सेंट्रल गवर्नमेंट के काम में काफी  बढ़ोतरी हो गई है और इसकी वजह से अगर लोकल सब्जेक्ट को भी सेंट्रल गवर्नमेंट के द्वारा पूरा करवाया जाएगा.

इसकी वजह से केंद्र सरकार के काम में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हो जाएगी और केंद्र सरकार अपने खुद के काम भी सही ढंग से नहीं कर पाएगी। इसलिए लोकल इंस्टीट्यूट सेंट्रल गवर्नमेंट के काम के भार को कम करने में सहायता करती हैं।

हमारा कहने का मतलब है कि लोकल इंस्टिट्यूट केंद्रीय शासन का कुछ भार कम कर देता है। सेंट्रल गवर्नमेंट के द्वारा कुछ काम लोकल इंस्टिट्यूट को सौंप दिए जाते हैं, जिसकी वजह से स्थानीय शासन के द्वारा सेंट्रल या फिर स्टेट गवर्नमेंट को बहुत से काम अथवा जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाती है।

3: सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति जागरूक करना

लोकल लोगों के द्वारा पब्लिक फील्ड में कितना इंटरेस्ट लिया जा रहा है, इस बात पर भी प्रजातंत्र की सफलता निर्भर करती है। अगर लोकल लोगों के मन के अंदर सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति इंटरेस्ट पैदा होता है तो इसकी वजह से उत्तरदायित्व और डेवलपमेंट की भावना भी पैदा होती है। 

पब्लिक लाइफ के प्रति जागरूकता बढ़ाना लोकल इंस्टिट्यूट की जिम्मेदारी होती है, क्योंकि लोकल जनता शासन के सबसे ज्यादा करीब होती है। इसलिए यह भी माना जाता है कि वह इन इंस्टिट्यूट पर अच्छे कामकाज के लिए काफी ज्यादा इफेक्ट डालती हैं।

4: राजनीतिक शिक्षण एवं राष्ट्र के प्रति निष्ठा उत्पन्न करना

लोकल शासन राजनीतिक एजुकेशन का भी जरिया बनता है, वही स्थानीयता से राष्ट्रीयता की एकता की भावना को भी पैदा करता है।

लोकल एजुकेशन की वजह से नागरिकों को अपने घर के आस-पास में ही एजुकेशन प्राप्त हो जाती है, जिसकी वजह से वह राष्ट्र रक्षा की एकता के सूत्र में बंध जाते हैं और देश के प्रति निष्ठावान बनते हैं। 

इसके अलावा लोग पब्लिक मुद्दों से भी परिचित होते हैं। लोकल इंस्टिट्यूट लोगों को देश की और राज्य की पॉलिटिक्स में पार्टिसिपेट करने के लायक भी बनाती है।

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