मेरा प्रिय लेखक प्रेमचंद पर निबंध – Essay on My favorite Writer Premchand in Hindi

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कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए मेरे पसंदीदा कथाकार मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, जीवनी निबंध इतिहास को यहाँ संक्षिप्त में जानेगे.

प्रिय लेखक प्रेमचंद निबंध – Essay on My favorite Writer Premchand in Hindi

मेरे प्रिय लेखक प्रेमचंद पर निबंध-

अपनी सहज एवम उपयोगी रचनाओं के कारण जन- जन के दिलों में अपनी विशेष पहचान बनाने वाले मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 1880 में 31 जुलाई के दिन उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर के लम्ही गांव में पिता अजायब लाल शर्मा और माता अंजनी देवी शर्मा के परिवार में हुआ था। 

आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण इन्हे बचपन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था और इनके ऊपर दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब बचपन में ही इनकी माता की मौत हो गई।

इसके बाद तो इनकी परेशानी काफी बढ़ गई। आगे चलकर के इन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट की एजुकेशन हासिल की साथ ही इनकी शादी भी हो गई। एजुकेशन पूरी करने के बाद इन्होंने बतौर शिक्षक भी पर नौकरी की।

लेकिन देशप्रेम के लिए कुछ समय पश्चात् यह नौकरी त्यागकर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। और हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में कई कविताएं, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध तैयार किए और जन जन तक बतौर कुशल रचनाकार & लेखक अपने विचार पहुंचाएं। 

आपको मुंशी प्रेमचंद की रचनाए समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ जोरदार प्रहार करता हुआ दिखाई देती है।

इन्होंने ईदगाहक, बूढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, दूध का दाम जैसी कई प्रसिद्ध कहानी लिखी है। इसके अलावा इनके प्रसिद्ध उपन्यास गोदान है और इनका फेमस नाटक संग्राम है।

इन्होंने अपने उपन्यास, कहानी और कविताओं के माध्यम से भारत के दलितों, मजदूरों, महिलाओं और किसानों की समस्या से लोगों को अवगत कराया।

यही वजह है कि मुंशी प्रेमचंद्र को गरीबों की आवाज कहा जाता था। जिस स्थान पर यह शिक्षा देते थे वहीं पर वर्तमान समय में मुंशी प्रेमचंद्र सहित संस्थान स्थापित है।

400 words Essay on Premchand in Hindi

प्रेमचंद हिंदी साहित्य के एक ऐसे लेखक का हैं जिन्हें थोड़ा पढ़ा लिखा व्यक्ति भी जानता हैं. गरीबी में पले बड़े मुंशीजी के जीवन की शुरुआत झोंपड़ी से हुई, यह उनके साहित्य में भी देखने को मिलता हैं.

फर्श से उठकर अर्श तक जाने की यात्रा अनायास ही नहीं हुई, जीवन भर संघर्षों से जुझतों प्रेमचंद के जीवन में जो कुछ घटित हुआ, उसे उन्होंने अपनी लेखनी का विषय बना दिया.

एक ऐसा साहित्यकार जिसने अपनी जीवन यात्रा में जो कुछ मिला उसे स्वीकारा तथा अपने जीवन का अंग बना लिया. मंदिर का देवता हो या राह को रोड़ा वे किसी की उपेक्षा की बगैर सभी को समान दृष्टि से देखते थे.

दीन दुखी, किसान, शोषित की पीड़ा को प्रखर रूप से अपनी लेखनी से समाज के सामने रखा. ये वो भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं संस्कृति को धन्य मानते हैं जिनमें प्रेमचंद जैसे साहित्य के देव को जन्म दिया.

कुछ शब्द जैसे गवैया भुज्ज इंसान गाँव से चला आ रहा जिसे कपड़ा पहनने तक का तमीज नहीं हैं, आसानी से किसी को बोला जा सकता हैं. मगर ऐसे ही थे मेरे मुंशी प्रेमचंद.

घुटनों से नीचे तक पहुचने वाली मील की धोती, गाढ़ा कुर्ता तथा पैर में बंददार जूता ये रंगरूप था. सरल जीवन और सादगी की मिसाल मुंशी जी के जीवन का यह रूप मुझे ही नहीं सभी को भाता हैं.

31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास ही लमही नामक गाँव में हुआ था. अपनी मातृभूमि की सेवा और निरंतर साहित्य सेवा करते हुए साहित्य सम्राट आजादी के 11 वर्ष पूर्व 8 अक्टूबर 1936 को हमसे विदा हो गये.

हिंदी कथा साहित्य में आगमन के साथ ही एक नयें युग का शुरुआत हुआ जो हिंदी कहानी नाम से जाना गया. प्रेमचंद जी के योगदान की बदौलत यह अपने शीर्ष पर पहुंचा.

शाश्वत जीवन मूल्यों के कथाकार थे. उनकी दृष्टि ने जीवन की सच्चाई को देखा परखा और अपनी कलम से समाज के समक्ष रखा. इन्होने अपने जीवन में गुलामी के दौर को भोगा और उस परिस्थतियों एवं भावों का सच्चा दस्तावेज उनके साहित्य में हैं.

प्रेमचंद राष्ट्रवादी लेखक हैं. इनकी प्रथम कथा से लेकर अंतिम कहानी कफन तक उन रचनाओं में देशभक्ति का परिचय मिलता हैं.

गरीबी और शोषित वर्ग की प्रगति के लिए इनकी पीड़ा व अनुभूति को समझा जा सकता हैं. प्रेमचंद जी एक ऐसे अमूल्य रत्न हैं जिनके अनेक कटाव हैं और हर कटाव में साहित्य के अनेक रूप प्रतिबिम्बित होते हैं.

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