नई शिक्षा नीति 2020 पर निबंध | Essay on New Education Policy 2020 in Hindi

नई शिक्षा नीति 2020 पर निबंध | Essay on New Education Policy 2020 in Hindi: देश की शिक्षा में 34 सालों के बाद नई प्रस्तावित शिक्षा नीति लागू हो गई हैं.

स्वतंत्र भारत की तीसरी और वर्तमान की शिक्षा नीति के मुख्य बिदु प्रावधान उद्देश्य बदलाव, शिक्षा सुधार, नवाचार नवीन शिक्षण पद्धति आदि का विस्तृत विवेचन न्यू एजुकेशन पालिसी 2020 एस्से में किया गया हैं.

हमें उम्मीद हैं भारत की नई शिक्षा नीति के सम्बन्ध में जो जानकारी चाहते हैं वह इस निबंध में मिल जाएगी. वर्तमान शिक्षा नीति पर आधारित निबंध, भाषण, अनुच्छेद को अपने मुताबिक़ आप इस लेख की मदद से लिख सकते हैं.

नई शिक्षा नीति 2020 पर निबंध Essay on New Education Policy 2020 in Hindi

नई शिक्षा नीति 2020 पर निबंध | Essay on New Education Policy 2020 in Hindi

नई शिक्षा नीति को कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिली यह स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति है इससे पहले 1968 तथा 1986 में शिक्षा नीतियां लागू की गई थी. 1986 के बाद इस शिक्षा नीति को आने में 34 वर्ष लग गए शिक्षा नीति एक विजन होता है.

सरकार के लिए जिसमें आगामी समय के उद्देश्य तथा लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है वर्तमान में तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य तथा सामाजिक संरचना में होते आमूलचूल परिवर्तनों के मद्देनजर प्रत्येक 10 वर्ष में शिक्षा नीति की समीक्षा तथा आवश्यक बदलाव करने चाहिए.

शिक्षा समाज की दिशा तथा दशा का निर्धारण करती है कहा जाता है. कि अगर किसी देश तथा समाज में बड़े परिवर्तन करने हो तो शिक्षा में समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है.

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के आम चुनाव में अपना चुनावी वादा शिक्षा नीति में परिवर्तन भी रखा था. जून 2017 में इसरो के प्रमुख डॉक्टर के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 11 सदस्य कमेटी का गठन किया गया था,

जिसने मई 2019 में शिक्षा नीति से संबंधित प्रारूप तैयार किया नई शिक्षा नीति 2020 की परामर्श प्रक्रिया विश्व की सबसे बड़ी परामर्श प्रक्रिया रही यह जनवरी 2019 से 31 अक्टूबर 2019 तक व्यापक स्तर पर सभी पहलुओं को सम्मिलित करते हुए चर्चा की गई तथा सुझाव लिए गए.

29 जुलाई 2020 को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने नई शिक्षा नीति के प्रारूप को पेश किया तथा इसे नई युग की शुरुआत कहा वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री तथा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने इस नवीन शिक्षा नीति को ऐतिहासिक फैसला बताया.

भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति जुलाई 1968 में घोषित की गई यह कोठारी प्रतिवेदन पर आधारित थी दूसरी शिक्षा नीति 1986 में घोषित हुई.

जिसमें 1990 में गठित आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता वाली कमेटी तथा 1993 में गठित प्रोफेसर यशपाल समिति की समीक्षाओं के आधार पर संशोधन भी किए गए.

शिक्षा वर्तमान में समवर्ती सूची का विषय है इसे 42 वें संविधान संशोधन 1976 को राज्य सूची से समवर्ती सूची में जोड़ा गया अर्थात शिक्षा संबंधी नियम राज्य तथा केंद्र  दोनों बना सकते हैं.

इस शिक्षा नीति में प्रावधान किया गया है कि केंद्र तथा राज्य के बीच टकराव की स्थिति में दोनों आम सहमति से निर्णय लेंगे.

स्वतंत्रता के समय भारत में शिक्षा की स्थिति काफी कमजोर थी उस समय भारत की साक्षरता 15 से 18% थी  2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता 74.04% है.

जो विश्व की साक्षरता 84% से काफी कम है भारत में महिला साक्षरता की स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण 65.46 प्रतिशत है.

नई शिक्षा नीति 2020 के प्रमुख प्रावधान

नई शिक्षा नीति 2020 के द्वारा शिक्षा के सभी स्तरों तथा गतिविधियों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं शिक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण तथा सार्वभौमिक शिक्षा के साथ ही व्यवसायिक शिक्षा पर भी बल दिया गया है. इसमें भारतीय संस्कृति की विविधता का उचित समावेश किया गया है.

नई शिक्षा नीति 2020 मे 2030 तक सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा  तथा इस नीति को पूर्ण रूप से क्रियान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है.

इसमें छात्रों की क्षमताओं का आकलन करने पर जोर दिया गया ना कि छात्रों को कितना याद रहता है जैसी रटा फिकेशन पद्धति.

भारत में शिक्षा संबंधी परिवर्तनों में 2009 का शिक्षा का अधिकार अधिनियम महत्वपूर्ण है 2010 से लागू जिसमें निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान 5 से 14 वर्ष के बालकों के लिए किया गया इस शिक्षा नीति द्वारा इसे 3 से 18 वर्ष करने का प्रावधान है.

मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया बता दे 1986 से पहले इसे शिक्षा मंत्रालय के नाम से ही जाना जाता था.

शिक्षा नीति में शिक्षा को वरीयता देने का प्रावधान किया गया है जिसमें कहा गया है की जीडीपी का 6%  शिक्षा पर खर्च किया जाएगा इसके अलावा दो करोड़ के लगभग ड्रॉपआउट बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में जोड़ा जाएगा.

12 वर्ष की स्कूली शिक्षा प्रणाली के स्थान पर 5+3+3+4 फार्मूला लागू किया जाएगा जिसमें शुरुआती 3 वर्ष प्री प्राइमरी एजुकेशन के होंगे जिसमें आंगनवाड़ी शामिल होंगे.

इस प्रकार पहले 5 वर्ष में 3 वर्ष की प्री प्राइमरी शिक्षा तथा पहली व दूसरी क्लास को शामिल किया गया है. उसके बाद तीसरी चौथी और पांचवी क्लास को प्राथमिक शिक्षा में शामिल करते हुए मातृभाषा पर जोर दिया गया है

तथा क्लास 6 से 8 तक के 3 वर्षों में मैथ साइंस पर बल देते हुए व्यवसायिक शिक्षा का आरंभ किया जाएगा तथा स्कूली शिक्षा के अंतिम 4 वर्ष अर्थात 9वीं 10वीं 11वीं तथा 12वीं कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए वैकल्पिक विषय का चुनाव करने की छूट दी गई है तथा 12वीं तक मैथ साइंस की अनिवार्यता को लागू किया जाएगा.

3 से 6 वर्ष की आयु वाले बच्चों के लिए अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन का प्रावधान किया गया है. नवी से बारहवीं तक सेमेस्टर प्रणाली आधारित मूल्यांकन होंगे.

कक्षा 6 से प्रैक्टिकल बच्चों का विकल्प रहेगा प्राथमिक शिक्षा के बच्चों के लिए बस्ते का बोझ कम करने तथा मातृभाषा के साथ गैर शैक्षणिक गतिविधियां खेल व योग पर बल दिया जाएगा.

इस शिक्षा नीति के अनुसार रिपोर्ट कार्ड में विद्यार्थी के स्किल्स अन्य गतिविधियों में उसकी भूमिका अर्थात 360 डिग्री समग्रता रिपोर्ट कार्ड बनेगा, जिसमें अध्यापकों के साथ-साथ छात्र की फ्रेंड्स सर्कल का भी मूल्यांकन निहित होगा.

उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री तथा मल्टीपल एग्जिट की सुविधा होगी mphil को समाप्त करने की बात कही गई है. क्योंकि भारत अब रिसर्च के अमेरिकी मॉडल की ओर बढ़ रहा है.

इससे पहले एमफिल करने वाले विद्यार्थियों को किसी प्रकार की अतिरिक्त योग्यता नहीं मिलती थी यानी नेट और एमफिल दोनों योग्यता धारी पीएचडी कर सकते थे.

SRA -State School Regulatory Authority के गठन का प्रावधान है जिसके प्रमुख शिक्षा जगत से होंगे

4 ईयर इंटेग्रेटेड बीएड यानी 3 साल के ग्रेजुएशन के साथ 1 साल की B.Ed, 2 ईयर बीएड or 1 ईयर B Ed course संचालित किए जाएंगे 1 वर्षीय बीएड पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद की जा सकती हैं

 TET यानी अध्यापक पात्रता परीक्षा  होगा के बाद दसवीं तक के अध्यापक इस एग्जाम को पास करने के बाद योग्यता अनुसार अध्यापक बन सकेंगे

इस शिक्षा नीति में  शिक्षकों के द्वारा किए जाने वाले गैर शैक्षणिक कार्य जिनसे  शिक्षा की गुणवत्ता में कमी देखी गई  से शिक्षकों को  हटाया जाएगा, सिर्फ चुनाव ड्यूटी लगेगी, BLO ड्यूटी से शिक्षकों का कार्यभार कम किया जाएगा

उच्च शिक्षा में सकल नामांकन को वर्तमान 26.5% से बढ़ाकर 50%  का लक्ष्य रखा है  साथ ही  3.50 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएगी.

उच्च शिक्षा हेतु एक ही रेगुलेटर तथा  समान एंट्रेंस एग्जाम का प्रावधान किया गया है, शिक्षा में तकनीकी को बढ़ावा देने के साथ दिव्यांग जनों हेतु शिक्षा में आवश्यक बदलाव किए जाएंगे.

ग्रेजुएशन को 4 वर्ष तथा पोस्ट ग्रेजुएशन को 1 वर्ष  किया जाएगा उसके उपरांत रिसर्च करने वाले विद्यार्थियों के लिए राह आसान की है तथा ग्रेजुएशन बीच में छोड़ देने वाले विद्यार्थियों के लिए भी प्रावधान किया गया है,

कि 1 वर्ष के बाद उन्हें सर्टिफिकेट प्रदान किया जाएगा तथा 2 वर्ष ग्रेजुएशन करने के बाद डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा तथा अंतिम वर्ष के बाद डिग्री प्रदान की जाएगी.

नई शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षक बनने के लिए एग्जाम के साथ-साथ डेमो तथा साक्षात्कार का भी प्रावधान किया गया

इस शिक्षा नीति में शिक्षकों के स्थानांतरण संबंधित  मुख्य प्रावधान किया गया है जिसमें शिक्षकों का स्थानांतरण पर लगभग रोक लग जाएगी और पदोन्नति के समय ही स्थानांतरण किया जा सकेगा.

इस प्रावधान को शामिल करने का प्रमुख उद्देश्य दुर्गम तथा कम सुविधाओं वाले क्षेत्रों के विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की समस्या से निजात पाना है आमतौर पर देखा गया है

की ऐसी जगहों पर नियुक्त होने वाले अध्यापक गण अपना स्थानांतरण करवाने को इच्छुक रहते हैं तथा वे क्षेत्र लगातार शिक्षा केेे क्षेत्र में  पीछे रह जाते हैं

नवीन शिक्षा नीति के जारी होने के बाद देश  बुद्धिजीवी वर्ग ने स्वागत किया तथा देश के लिए सबसे जरूरी कदम बताया कुछ आलोचकों ने इसे आर एस एस का एजेंडा बताया यहां यह जाना आवश्यक है.

कि आरएस एस की प्रमुख मांगों में भारतीय प्राचीन परंपरागत शिक्षा जैसे वैदिक गणित तथा दर्शन पर बल देना तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करना प्रमुख था.

इसके अलावा r.s.s. में भारतीय विश्वविद्यालयों में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस स्थापित करने का विरोध किया था  जिसे सरकार ने नहीं माना.

इस नीति से संबंधित दूसरा प्रमुख मुद्दा मातृभाषा को लेकर है,  नीति के समीक्षक बताते हैं कि पहले  की शिक्षा नीतियों में भी मातृभाषा पर बल देने की बात कही गई थी.

लेकिन धरातल पर क्रियान्वित नहीं हो पाई तो सवाल  यह है कि क्या नवीन शिक्षा नीति में किए गए प्रावधान के अनुरूप मातृभाषा को बढ़ावा देने में सफल हो पाएंगे इसका दूसरा कारण मातृ भाषाओं में शिक्षण सामग्री की उपलब्धता का ना होना भी है.

कुछ बुद्धिजीवी लोग यह भी तर्क देते हैं कि आगे चलकर जब विद्यार्थियों को कॉन्पिटिशन के एग्जाम हिंदी तथा इंग्लिश में फेस करने हैं तो मातृभाषा कहां तक उपयोगी है उन्हें यह भी जानना चाहिए कि मातृभाषा संस्कृति का दर्पण होती है तथा  हमारे पूर्वजों के ज्ञान को स्थानांतरण करने में महत्वपूर्ण होती है

भारत में भाषाई आधार पर स्वतंत्रता के बाद से ही विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. नवीन शिक्षा नीति के जारी होते ही तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों के कुछ संगठनों ने उन पर हिंदी थोपे जाने के आरोप लगाएं परंतु उल्लेखनीय है.

कि इस नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है. इसके अंतर्गत त्रिभाषा पैटर्न में  अंग्रेजी तथा हिंदी के साथ संस्कृत तथा तमिल भाषाओं तथा क्षेत्रीय भाषाओं को भी शामिल किया जाएगा.

इस प्रकार बहस के  मुद्दों की एक लंबी श्रंखला है परंतु नवीन शिक्षा नीति शिक्षा के भारतीय करण तथा बदलते समय के अनुसार ज्ञान कौशल तथा मूल्यों का सामंजस्य स्थापित करने में अहम भूमिका अदा करेगी. 

वर्तमान में शिक्षा जगत से जुड़ी प्रमुख समस्याओं में शिक्षकों की कमी विद्यालयों की कमी कमी शिक्षा सुधार कार्यक्रमों का सफल ना हो पाना ग्रामीण शिक्षा की गुणवत्ता में कमी का होना

उच्च शिक्षा में प्रोफेसर की जवाबदेही व प्रदर्शन का फार्मूला निर्धारित ना होना तथा विश्व की टॉप 200 यूनिवर्सिटीज  की लिस्ट में कम संख्या में भारतीय विश्वविद्यालयों का शामिल होना यह सब कारण है जो शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़े परिवर्तन  की गुंजाइश को दर्शाते हैं तथा नवीन शिक्षा नीति इस दिशा में सराहनीय कदम है.

21वीं सदी के विश्व में भारत को प्रमुख महाशक्ति बनने में इस शिक्षा नीति का समुचित क्रियान्वयन मील का पत्थर साबित होगा तथा भारत अपने प्राचीन ज्ञान तथा संस्कृति को नई दिशा प्रदान कर विश्व गुरु बनने में नवीन शिक्षा नीति उपयोगी साबित होगी.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 | National Education Policy In Hindi

1968 और 1986 की शिक्षा नीति

राष्ट्र की स्वतंत्रता के लगभग 21 वर्षों के बाद जब पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति कि घोषणा कि गई तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 का विशेष ख्याल रखा गया था, जिसके अनुसार 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है।

इस पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से समूचे देश में समान संरचना 10 + 2 + 4 की बात हुई। देश के सभी जाति, धर्म या क्षेत्र के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्राप्ति के सामान अवसर पर जोर दिया गया था।

1968 की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सरकारों को समय – समय पर देश में शिक्षा की प्रगति की समीक्षा करने का प्रावधान था, यह देखते हुए 18 वर्षों के प्रश्चात 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई.

जिसको 1992 की श्री पी वी नरसिंह राव की सरकार में संशोधित किया गया जिसमें शिक्षा के आधुनिकीकरण और आवश्यक सुविधाओं पर जोर दिया गया था।

इस शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर बच्चों के स्कूल छोड़ने पर रोक लगाने, 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा और पिछड़े, दिव्यांगों तथा अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया गया था।

महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ाने तथा इनके व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा के लिए व्यापक प्रावधान किये गए थे।

इस शिक्षा नीति के माध्यम से कंप्यूटर तथा पुस्तकालय को बढ़ावा देने का कार्य किया गया तथा गैर सरकारी संगठनों को देश में शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रावधान था।

नयी शिक्षा नीति

आइये अब हम बात करते हैं राष्ट्र की तृतीय शिक्षा नीति जिससे विगत 29 जुलाई को देश की समक्ष प्रस्तुत किया गया।

यह शिक्षा नीति भारत में 34 सालों बाद आयी है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 से ही इस शिक्षा नीति को लेकर के तैयारियां शुरू कर दी थी।

नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्‍टूबर, 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी. एस. आर. सुब्रह्मण्यन की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की कमिटी बनायी, कमिटी ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी लेकिन सरकार को यह रिपोर्ट पसंद नहीं आयी।

इसके बाद 24 जून, 2017 को इसरो के प्रमुख रहे वैज्ञानिक के कस्तूरीगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। 31 मई, 2019 को ये ड्राफ्ट मानव संसाधन मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया।

ड्राफ्ट पर मानव संसाधन मंत्रालय ने लोगों के सुझाव आमंत्रित किये थे साथ ही शायद यह पहली बार हुआ की शिक्षा नीति को बनाने के लिए देश के 676 जिलों के 6600 ब्लाक की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों के सभी वर्ग के लोगों की सलाह ली गई हो।

इन सुझावों और सलाहों के आधार पर ही 66 पन्नों के ड्राफ्ट की तृतीय शिक्षा नीति को केद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी।

नयी शिक्षा नीति की कुछ महत्वपूर्ण बातें

  1. इस शिक्षा नीति में पूर्वत जारी संरचना 10 + 2 को 5 + 3 + 3 + 4 में बदल दिया गया। जहाँ पहले ‘पांच’ को 3 वर्ष से 8 वर्ष की आयु के बच्चों लिए बनाया गया जिसमें बच्चा प्री स्कूल के साथ प्रथम और द्वितीय कक्षा में शिक्षा ग्रहण करेगा। वहीँ 3 वर्ष से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये शैक्षिक पाठ्यक्रम का दो समूहों में विभाजन किया गया, जहाँ 3 वर्ष से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को प्री-स्कूल के माध्यम से मुफ्त, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने तथा 6 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 1 और 2 में शिक्षा प्रदान करने की योजना है। इसी प्रकार अगले चरण के ‘तीन’ को तृतीय से पांचवीं कक्षा के लिए बनाया गया। वहीँ अगले चरण के ‘तीन’ को छटवीं से आठवीं कक्षा के लिए बनाया गया है, जिसमें अब बच्चों को रोजगारपरक कौशल की शिक्षा दी जाएगी एवं इनकी स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। अंतिम चरण के ‘चार’ को नवीं से बारहवीं कक्षा के लिए बनाया गया जिससे विद्यार्थियों को दो बोर्ड परीक्षाओं से छुटकारा मिल सकेगा।
  2. प्रारंभिक शिक्षा को बहु-स्तरीय खेल और गति-विधि आधारित बनाने को प्राथमिकता दी गयी है।
  3. मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय किया गया। देश की स्वतंत्रता से लेकर १९८५ तक शिक्षा मत्रालय ही हुआ करता था लेकिन श्री राजीव गाँधी सरकार ने इसका नाम बदल कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय रखा था।
  4. नयी नीति में मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा पर ज्यादा जोर दिया गया।
  5. मल्टीपल एंट्री एंड एक्जिट पालिसी जोड़ी गयी है, जो की कॉलेजों में पढ़ रहे बच्चों के लिए है। जिसका उद्देश्य १ साल की पढ़ाई कर चुके छात्र को सर्टिफिकेट, दो साल पर डिप्लोमा और तीन साल पर डिग्री देने का प्रावधान है।
  6. अभी ग्रेजुएशन कोर्स तीन साल के होते हैं। अब नई सिख्स नीति में दो तरह के विकल्प होंगे, जो नौकरी के लिहाज से पढ़ रहे हैं, उनके लिए 3 साल का ग्रेजुएशन और जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, उनके लिए 4 साल का ग्रेजुएशन। चार साल की ग्रेजुएशन के बाद एक साल का पोस्ट ग्रेजुएशन और 4 साल का पीएचडी। एमफिल कोर्स को समाप्त कर दिया गया है।
  7. अब कोई भी विद्यार्थी मनचाहे विषय चुन सकेगा यानि फिजिक्स में ग्रेजुएशन कर रहा है और उसकी म्यूजिक में रुचि है, तो म्यूजिक भी साथ में पढ़ सकता है। आर्ट्स और साइंस वाला मामला अलग अलग नहीं रखा जाएगा। इसका नाम दिया गया है मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन।
  8. नयी शिक्षा नीति में यूनिवर्सिटी की साथ साथ सबंध कॉलेज को भी परीक्षा कराने की स्वायत्ता दी जा सकेगी।
  9. उच्च शिक्षा के लिए एकल रेग्युलेटर – भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा। अब यूजीसी, एआईसीटीई जैसी कई संस्थाएं, मेडिकल और लॉ लॉ की पढ़ाई के अलावा सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक ही रेग्युलेटर बॉडी होगी।
  10. नई शिक्षा नीति का लक्ष्य व्यवसायिक शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है।
  11. सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी या फिर डीम्ड यूनिवर्सिटी सहित देशभर की प्रत्येक यूनिवर्सिटी के लिए शिक्षा के मानक एक समान ही होंगे।
  12. नई शिक्षा नीति के अनुसार प्राइवेट संस्थान से लेकर सरकारी संस्थान सभी के लिए अधिकतम फ़ीस का माप दंड बनाया जायेगा।
  13. नई शिक्षा नीति में अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन भी बनाएं जाने का प्रावधान है, जो साइंस से लेकर आर्ट्स के विषयों पर हो रही रिसर्च प्रोजेक्ट्स को फण्ड करेगा।
  14. विश्व की टॉप यूनिवर्सिटीज को देश में अपने कैम्पस खोलने की अनुमति प्रदान की जाएगी।
  15. बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन सिर्फ टीचर ही नहीं बल्कि छात्र स्वयं तथा उसका सहपाठी भी मूल्यांकन करेंगे।
  16. इस नीति में बच्चों को रोजगारपरक कौशल की शिक्षा के साथ-साथ इनकी स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी।
  17. नई शिक्षा नीति को 2040 तक पूर्ण रूप से लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।
  18. नई नीति के अंतर्गत 2030 तक देश के प्रत्येक जिले में एक उच्च शिक्षण संस्थान बनाने के साथ स्कूलों तथा शिक्षण संस्थानों को डिजिटल संसाधनों, विर्चुअल लैब, डिजिटल लाइब्रेरी जैसी सुविधाओं से लैश करने एवं शिक्षकों को भी नई तकनीकी के ज्ञान से लैश करने की बात की गई है।
  19. छात्रों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर प्रशिक्षण करने के लिए नेशनल असेसमेंट सेंटर बनाये जाने का प्रावधान भी इस नयी शिक्षा नीति में जोड़ा गया है।
  20. नई नीति में शिक्षा पर सरकारी खर्च 43 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी के 6 प्रतिशत का लक्ष्य रखा गया है।
  21. स्कूल के बाद कॉलेज में दाखिले के लिए एक कॉमन इंट्रेस एक्जाम कराने की बात की गयी है।
  22. रोजगार के लिए विभिन्न परीक्षाओं से निजात दिलाने के लिए नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी का गठन किया जायेगा। जो ग्रुप बी और ग्रुप सी (गैर-तकनीकी) पदों के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) आयोजित करेगी।

यह भी पढ़े

लेखक परिचय: 

HIHINDI के लिए “नई शिक्षा नीति 2020 पर निबंध | Essay on New Education Policy 2020 in Hindi” का यह लेख   sher singhद्वारा लिखा गया. आप वेबसाइट के सह सम्पादकों में से एक हैं.

वर्तमान में राजस्थान विश्विद्यालय से इतिहास विभाग से मास्टर ऑफ़ आर्ट्स में अध्ययनरत हैं. आप अपने व्यस्त समय से HIHINDI के पाठकों के लिए शिक्षा से जुड़े विषयों पर लेख लिखते हैं.

यदि आप भी स्वरचित कोई मौलिक लेख प्रकाशन चाहते है कृपया [email protected] पर सम्पर्क करें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *