भारतीय राजनीति पर निबंध | Essay on Politics in Hindi

Essay on Politics in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं आज हम भारतीय राजनीति पर निबंध पढेगे. किसी  महाशय ने पोलिटिक्स को अत्यधिक वायदों का व्यापार कहा है.

जो आज के समय की राजनीति को देखकर समीचीन प्रतीत होता हैं. आज के निबंध में हम राजनीति पर भाषण, स्पीच, लेख, आर्टिकल, अनुच्छेद सरल भाषा में बता रहे हैं.

भारतीय राजनीति पर निबंध | Essay on Politics in Hindi

Essay on Politics in Hindi

राजनीति को चतुर लोगों का खेल माना जाता हैं, जो राष्ट्र, राज्य के हितार्थ के नाम पर स्वयं के प्रलोभनों को साधनें का यत्न करते हैं. अधिकतर लोग राजनीति के बारें में ऐसे ही विचार रखते है, जो कि गलत है.

किसी क्षेत्र की समीक्षा एक नजरिये से नहीं की जा सकती हैं, महात्मा गांधी ने कहा था यदि आप अपने समाज को बदलना चाहते है उसके लिए त्याग करना चाहते है तो युवा राजनीति में आए.

पहला पहलू निश्चय ही राजनीति को एक गंदगी के ढेर के रूप में परिभाषित करता हैं. जहाँ चंद स्वार्थी पार्टियों के नेता सत्ता पाने के लिए नित्य नयें हथकंडे अपनाते रहते हैं.

ये अधिकतर नेता अपराधिक बेकग्राउंड से होते हैं तथा करप्शन इनका मूल चरित्र होता हैं. समाज सेवा के नाम पर घोटाले करना, अपने दल को भविष्य के लिए तैयार करना व विरोधियों को चित करने का विचार सदैव इनके मस्तिष्क में रहता हैं.

राजनीति का दूसरा पहलू इसका सकारात्मक उपयोग हैं. वर्तमान में देश की केंद्र सरकार को इसका उदाहरण माना जा सकता हैं,

जब राष्ट्र का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति पूर्ण ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं लग्नशील होकर स्वयं को जनता के प्रधान सेवक के रूप में जनहित की भलाई के कार्य में लगाए तो निश्चय ही लोग राजनीति के सम्बन्ध में सकारात्मक नजरिया रखकर इससे जुड़ने की चाह रखेंगे.

पोलिटिक्स की सॉफ्ट पॉवर सबसे अधिक होती हैं. यह दो देशों के युद्धों को रोक सकती हैं, दीर्घकालीन समस्याओं के समाधान खोज सकती हैं.

राष्ट्र या समाज को बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और गरीबी जैसी समस्याओं से निकाल सकती हैं, वैसे देखा जाए तो इन बड़ी समस्याओं की जनक भी राजनीति ही रही हैं. 

राजनीति का परिष्कृत रूप कूटनीति को माना जाता हैं जो बाहरी मौर्चे पर अन्य देशों के साथ स्थापित की जाती हैं. भारतीय संविधान द्वारा देश में दोहरी शासन प्रणाली स्थापित हैं, जिसके तहत केंद्र व राज्य में पृथक सरकारें होती हैं. 

भारत की राजनीति में एक लम्बे अरसे तक एक दलीय राजनीति का वर्चस्व रहा, पहली अंतरिम सरकार से 1967 तक व मोरारजी देसाई की सरकार गिरने के बाद 90 के दशक तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना दबदबा बनाएं रखा था,

90 के दशक में राजनीति ने एक नई करवट ली और यह गठबंधन की राजनीती के दौर की शुरुआत मानी जाती हैं, जो आज भी कई राज्यों में देखने को मिली हैं.

हालांकि एक दशक से केंद्र सरकार गठबंधन की अनावश्यक बुराई से दूर हैं. इस तरह हम कह सकते हैं भारत की राजनीति का स्वभाव परिस्थितियों व समय के अनुसार बदलता रहा हैं.

राजनीति को समाज संचालित करता हैं, विगत सात दशकों के इतिहास में भारत के परिपेक्ष्य में यह बात सिद्ध हो चुकी हैं, जब जब समाज पर राजनीति हावी हुई और समाज उदासीन बना है तब तब इसके घातक परिणाम भुगतने पड़े हैं.

देश के चहुमुखी विकास के लिए अच्छे एवं ईमानदार लोगों का राजनीति में आना जरुरी हैं, साथ ही एक पक्षीय मजबूत सरकार के अतिरिक्त एक मजबूत प्रतिपक्ष भी सरकारों को समाज के हितों की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध बनाता हैं.

आज के दौर में युवाओं और विद्यार्थियों की राजनीति में भागीदारी पहले से अधिक बढ़ी हैं. अब प्रत्येक महाविद्यालय में छात्र संघ के चुनाव होते हैं. छात्र देश व केंद्र की राजनीति को पैनी निगाह से अवलोकन करते हैं.

कई युवा नेता नेतृत्व के लिए आगे आ रहे हैं. विशेष्यज्ञ इसके पक्ष और विपक्ष में अपना तर्क देते हैं. कुछ का मानना है कि विद्यार्थियों को सक्रिय राजनीति से दूर रहकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए,

जबकि इसका समर्थन करने वाले तर्क देते है कि यह भावी जीवन की राजनीतिक समझ पैदा करता हैं, अतः उन्हें राजनीति को समझने का अवसर देना चाहिए.

दोनों तरह के तर्क अपनी अपनी कसौटी पर सही प्रतीत होते हैं, मगर सभी स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों का राजनीती में भाग लेना उनके कीमती समय की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं हैं.

राजनीति में अधिक रुचि रखने वाले अथवा राजनीति विज्ञान के छात्र छात्राओं को ये अवसर देना चाहिए ताकि वे समय के साथ पोलिटिक्स के विभिन्न पहलुओं को समझ सके और स्वयं को भावी जीवन के लिए एक समझदार मतदाता, राजनेता के रूप में स्थापित कर सके.

राजनेता जनता की नब्ज को बड़ी गहराई से समझने वाले होते हैं. यही कारण है कि वे लोगों को लामबंद करने के लिए चुनावी समय में ऐसे मुद्दों को हवा देते है जिससे एक वर्ग उनके साथ आ खड़ा होता हैं.

धर्म को एक अफीम के नशे की तरह माना जाता हैं. जाति और धर्म के नाम पर समाज को बांटकर राजनेता अपना स्वार्थ पूरा कर लेते हैं.

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद इसका उदाहरण हैं अब तक के सभी छोटे बड़े चुनावों ने नेताओं ने इसे उछालकर अपना वोटबैंक तैयार किया. मगर सकारात्मक राजनीति के इस दौर में अब भारत लम्बे समय से चले आ रहे समाज को बांटने वाले विवादों का निपटान किया जा रहा हैं.

अब भारत में धर्म, जातिवाद और परिवार वाद की राजनीति का लगभग समापन हो चूका हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में भारत के मतदाताओं ने इस पर अपनी मुहर लगा दी हैं.

समाज को चाहिए कि वह अपने नाक व आँख खुली रखे तथा इस परिपाटी को आगे तक चलाने के लिए लीक से हटने वाले राजनेताओं को चुनावों के समय मुहतोड़ जवाब भी देना जरुरी हैं.

मौजूदा राजनीति को अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और विभाजनकारी सोच से बाहर निकालने में जागरूक नागरिकों की बड़ी भूमिका हैं जिसे हम और आपकों पूर्ण ईमानदारी से अदा करनी होगी.

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