मुर्गी पालन पर निबंध | Essay On Poultry Farming In Hindi

मुर्गी पालन पर निबंध | Essay On Poultry Farming In Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज हम मुर्गी (Hen) पर निबंध लेकर आए हैं.

इस निबंध अनुच्छेद, भाषण, स्पीच लेख में मुर्गीपालन व्यवसाय के संबध में सरल भाषा में जानकारी निबंध एस्से के रूप में यहाँ उपलब्ध करवा रहे हैं.

मुर्गी पालन पर निबंध

मुर्गी पालन पर निबंध | Essay On Poultry Farming In Hindi

मुर्गियों के पालने के व्यवसाय को मुर्गी पालन या कुक्कुट पालन कहलाता हैं. मुर्गी पालन व्यवसाय बहुत ही कम लागत में शुरू किया जा सकता हैं.

मुर्गियों से अंडे, चूजे व मांस प्राप्त होता हैं. मुर्गी पालन अन्य पशुपालन से सरल भी हैं. 2012 की गणना के अनुसार भारत 729.21 मिलियन मुर्गियों और प्रतिवर्ष 73.89 बिलियन अंडा उत्पादन के आधार पर विश्व के तीन शीर्ष अंडा उत्पादक देशों में शामिल हैं.

भारत में दुनियां की कुल मुर्गियों का लगभग 3 प्रतिशत हैं. मुर्गी पालन क्षेत्र लगभग 30 लाख लोग को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराने के अतिरिक्त बहुत से भूमिहीन तथा सीमांत किसानों के लिए सहयोगी आमदनी पैदा करने के साथ साथ ग्रामीण गरीबों को पोषण तथा सुरक्षा प्रदान करने का एक शक्तिशाली साधन हैं.

अंडे व कुक्कुट मांस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मुर्गी पालन किया जाता हैं. मुर्गी के मांस को सफेद मांस भी कहते है, इसलिए कुक्कुट पालन में उन्नत मुर्गी की नस्लें विकसित की जाती हैं.

अंडों के लिए अंडे देने वाली लेअर मुर्गी पालन किया जाता है तथा मांस के लिए ब्रालर मुर्गियों को पाला जाता हैं. मुर्गी पालन के उत्पाद प्राणी प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं.

इसके अलावा इनसे हमारे शरीर में वसा, विटामिन्स एवं खनिज पदार्थों की भी पूर्ति होती हैं. मुर्गी पालन से पक्षियों की बीट भी प्राप्त होती है, इसका उपयोग कृषि एवं बागवानी में खाद के रूप में किया जाता हैं.

मुर्गीपालन के लिए उत्तम किस्में– भारत में मुर्गी पालन के लिए दो प्रकार की नस्लों का उपयोग किया जाता हैं.

  • देशी नस्ल– देशी नस्ल के रूप में लाल जंगली मुर्गा प्रमुख हैं. इसके अलावा असील, चटगाँव, कड़कनाथ एवं घोघस भी देशी नस्लें हैं. इन नस्लों का मुख्य रूप से मांस के लिए पालन किया जाता हैं.
  • विदेशी नस्लें- इनमें प्रमुख रूप से रोड, आइलैंड रेड, प्लाईमाउथ रॉक, ब्रह्मा, लेग हॉर्न, कार्निश आदि हैं.

देशी नस्लों की तुलना में विदेशी नस्लों को श्रेष्ठ माना जाता हैं, क्योंकि उनसे कम समय में अधिक उत्पाद प्राप्त होता हैं. व्हाईट लेगहॉर्न नस्ल की मुर्गियाँ सबसे अधिक अंडे देने वाली नस्ल हैं.

प्रतिवर्ष एक मुर्गी लगभग 220 से 260 अंडे देती हैं. इसी तरह मांस के लिए कार्निस, न्यूहेम्पशायर एवं प्लाई माउथ रॉक उत्तम किस्में होती हैं.

इनके नर का वजन 4.5 किलोग्राम और मादा का 3.5 किलोग्राम होता हैं. इन नस्लों में अन्डोत्पादन में कम समय लगता हैं.

वर्तमान समय में मुर्गी पालन हेतु संकर नस्लों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा हैं. इसका कारण यह है कि संकर नस्लें, रोगरोधी, जल्दी वृद्धि करने वाली एवं अधिक उत्पाद अर्थात अधिक अंडे एवं मांस देने वाली होती हैं.

संकरण कार्य में देशी मुर्गियों के साथ विदेशी मुर्गे की क्रॉस ब्रीडिंग करवाई जाती हैं. मुर्गी की उन्नत नस्ल में निम्न गुण होने आवश्यक हैं.

  • चूजों की संख्या व गुणवत्ता अधिक हो
  • गर्मी अनुकूलन क्षमता/ उच्च तापमान को सहने की क्षमता हो
  • देखभाल में कम खर्च की आवश्यकता
  • अंडे देने वाली तथा ऐसी क्षमता होना जो कृषि के उपोत्पाद से प्राप्त सस्ते रेशेदार आहार का उपभोग कर सके. नई किस्में विकसित करने के लिए एसिल तथा लेगहॉर्न नस्लों का संकरण कराया जाता हैं.

चूजों को पालना – मुर्गी के छोटे छोटे बच्चों को चूजे कहते हैं, चूजे दो प्रकार से पैदा किये जाते हैं.

प्राकृतिक विधि– प्राकृतिक तरीके में मुर्गी प्राकृतिक ढंग से अपने चूजों को पालती है. मुर्गी के अंडों से चूजे तैयार करने एक अलग ही विधि हैं. मुर्गी के 10-12 अंडों को कुडक मुर्गी के बैठने की जगह नीचे रख देते हैं.

मुर्गी के इन अंडों को अपने पंख फैलाकर ढककर इन पर बैठती हैं. अंडों को मुर्गी के शरीर की गर्मी मिलती हैं. इससे अंडों में चुजें तैयार होने लगते है इस प्रक्रिया को अंडे सेना कहते हैं.

करीब 20 दिनों तक अंडों को मुर्गी सेती हैं. तत्पश्चात अंडों से छोटे छोटे चूजे बाहर निकल आते हैं. चूजों पर भी जब मुर्गी बैठती है तो ये धीरे धीरे बड़े होने लगते हैं. इस प्रकार मुर्गी अंडे व चूजे दोनों का पालन पोषण करती हैं.

मुर्गियों व चूजों को उनके शत्रुओं व हानिकारक मौसम से बचाने के लिए दड़बे बनाये जाते हैं. ये दड़बे बेलनाकार व या झोपड़ीनुमा आकृति के होते हैं.

इन दड़बों में चूजे व मुर्गियां सुरक्षित रहती हैं. इन्ही दड़बों में चूजों को खाने के लिए चुग्गा दिया जाता है व चूजे बड़े होते हैं.

कृत्रिम विधि – कृत्रिम पालन पोषण का मतलब चूजों को बिना मुर्गी की सहायता के लिए अंडों से चूजे तैयार करना एवं उनका पालन पोषण करना हैं.

कृत्रिम पोषण के लिए पोषक गृह बनाये जाते हैं. पोषक गृहों को चूजों की संख्या के आधार पर छोटा, बड़ा या सुरक्षित बनाना होता हैं.

पोषक गृहों में चूजे ठंडी, गर्म व बैटरी दड़बा विधि से किये जाते हैं. बड़े पैमाने पर पालन पोषण के लिए कृत्रिम विधि ही प्रयोग में लायी जाती हैं. चूजों के पोषण में उन्हें गर्म रखना, आराम देना तथा संतुलित भोजन देना आवश्यक होता हैं.

मुर्गी पालन के लिए आवास

मुर्गी पालन को व्यावसायिक स्तर पर करने के लिए आरामदायक एवं सुरक्षित आवास की आवश्यकता होती हैं. मुर्गी घर को आबादी से दूर तथा खुले स्थान पर बनाया जाना चाहिए.

यह स्थान ढलान वाला होना चाहिए. जिससे मुर्गी घर के आस पास पानी जमा नहीं हो सके. हवा एवं धूप प्रवेश के लिए मुर्गी घर का दक्षिण अथवा पूर्वी भाग खुला रखा जाना चाहिए.

मुर्गे मुर्गियों के रहने के स्थान ऐसे होने चाहिए जहाँ हवा का प्रवेश हो सके, परन्तु वर्षा, ठंडी एवं गर्म हवा के झोंको से बचाव हो सके, एक मुर्गे/ मुर्गी के लिए कम से कम पौने दो वर्ग मीटर जगह दड़बे के अंदर मिलनी चाहिए.

इसके साथ बाहर खुले बाड़े में ढाई से पौने तीन वर्ग मीटर जगह पेड़ पौधों की छाया का होना आवश्यक हैं. अन्य जानवरों से बचाव के लिए बाड़े के चारों ओर तार के जाली का घेरा भी रखा जाता है जो प्रायः एक से डेढ़ मीटर तक ऊँचा होता है.

दडबा को बंद करने के लिए दरवाजा और उनके नीचे तार की जाली लगाते है. कुछ आवास स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाए जा सकते है, जिन्हें चल आवास कहते हैं.

बाड़े का आकार

प्रायः बाड़े की लम्बाई 12 मीटर और चौड़ाई 6 मीटर रखी जाती हैं. यह मुर्गियों के घूमने फिरने और उनके दड़बे के लिए पर्याप्त होता हैं. यह मुर्गी खाना ईंट, लकड़ी या धातु का भी बनाया जा सकता हैं.

बहुत ठंडी, जगहों के लिए ईंट का मुर्गी खाना ही ठीक होता हैं. जहाँ मौसम खराब रहता है और पानी खूब बरसता है, वहां धातु के हवादार मुर्गी खाने बनाते हैं.

मुर्गी घर निर्माण के लिए पिंजरा प्रणाली अथवा डीपलिटर प्रणाली प्रयुक्त की जाती हैं. कम संख्या में मुर्गी पालन के लिए पिंजरा प्रणाली एवं व्यावसायिक स्तर पर पालन के लिए डीप लिटर प्रणाली उपयुक्त रहती है.

मुर्गी घर में दाना दाने, पानी रखने, हरा चारा पात्र, अंडे संग्राहक बक्से आदि उचित स्थान पर रखे जाते है. मुर्गियों को गिट भी प्राप्त हो सके इसके लिए भी व्यवस्था की जाती हैं.

मुर्गी घर की सफाई व देखभाल

मुर्गी घर हमेशा साफ़ सुथरा रखना चाहिए. इनके पात्रों में दाना, पानी एवं अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध रहनी चाहिए, सभी बर्तनों की नियमित सफाई की जानी चाहिए.

फर्श पर बिछावन को प्रति सप्ताह उलटते रहना चाहिए. दो तीन माह बाद बिछा वन में चूने का छिड़काव कर देना चाहिए. जहाँ बीट गिरने का पटरा रखते हैं, उसकी सफाई सप्ताह में दो बार या हर दूसरे रोज की जाती हैं.

मुर्गियों का भोजन

मुर्गियों के लिए भोजन चयन करते समय उसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स, खनिज लवण, जल आदि की मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

मुर्गियों के लिए भोजन मुख्यतः पीली मक्का, जौ, मूंगफली की खल, गेहूं की चापड़, चावल की कुंदा, ज्वार, शीरा, मछली का चुरा, संगमरमर के कंकड़, खनिज लवण आदि निश्चित मात्रा में दिए जाने चाहिए.

मुर्गियों के भोजन में रिबोमिक्स भी मिलाते हैं. भोजन देने का समय भी निश्चित रखना चाहिए, प्रातःकाल भोजन में दाने का आधा भाग देना चाहिए. 11-12 बजे हरी घास, सब्जियाँ के टुकड़े देते हैं. दाने का शेष आधा भाग तीन चार बजे दिया जाना चाहिए.

मुर्गियों के रोग

रानी खेत तथा खूनी दस्त मुर्गियों में होने वाले मुख्य रोग हैं. रानी खेत की बिमारी होने पर एफ वन आर डी डी टीका लगाया जाता हैं. खूनी दस्त होने पर बाईफुरान गोली दी जाती हैं.

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