रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध Essay On Rabindranath Tagore In Hindi And English

नमस्कार आज का निबंध रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध Essay On Rabindranath Tagore In Hindi And English पर दिया गया हैं. सरल भाषा में टैगोर के जीवन उनकी रचनाओं योगदान पर सरल भाषा में निबंध दिया गया हैं.

स्कूल स्टूडेंट्स के लिए हिंदी और अंग्रेजी भाषा में रवीन्द्रनाथ टैगोर पर दिया गया निबंध उम्मीद करते है आपको पसंद आएगा.

रवीन्द्रनाथ टैगोर निबंध Essay On Rabindranath Tagore Hindi English

रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध Essay On Rabindranath Tagore In Hindi And English

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Indian national anthem Jan gan man and Bangladesh’s  anthem  Amar Sonar Bangla written by Rabindranath Tagore.

he is the great writer, Bangla poet, and painter also. he gets a noble prize in 1913 in Literature. here is giving short Rabindranath Tagore In Hindi & English for students and kids,

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Essay On Rabindranath Tagore In English

Rabindranath Tagore was a great son of India. he was a great patriot and poet. his father’s name was devindranath Tagore.

devindranath was a rich man. still, he was very simple. he was a lover of books. he had a good library of his own.

Rabindra Nath Tagore was brought up in a different way. he did not get clothes to wear. his food was also simple.

he could not move freely with of family. servants looked after him. they did not take care of him properly.

Tagore never liked to go to school. still, he was very intelligent. he got the highest marks at the normal school.

he was the lover of his country. when he heard jallianwala Bagh tragedy. he gave up his title to knight India can never forget such a man.

Essay On Rabindranath Tagore In Hindi

रवींद्रनाथ टैगोर भारतमाता के महान पुत्र थे. वो एक सच्चें देशभक्त कवि एवं अच्छें चित्रकार थे. इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था. देवेन्द्रनाथ एक अमीर व्यक्तित्व थे.

उनकें लिए सभी राहें आसान थी. इन्हें किताबों का बहुत शौक था. इसलिए उन्होंने एक निजी पुस्तकालय खोला, जिनमें दुनियाभर के प्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाएं उपलब्ध थी.

रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन जीने का अपना एक अलग नजरिया था. वों बहुत कम कपड़े पहना करते थे, तथा आम इंसानों की तरह साधारण भोजन करते थे. हालांकि वों परिवार के सदस्यों तथा पिताजी की इच्छा में बंधे थे.

स्वतंत्र रूप से कुछ नही कर सकते थे. वकालत की पढाई के लिए रवींद्रनाथ टैगोर को विदेश भी भेजा गया, मगर मन न लगने के कारण एक साल में ही वापिस लौट आए.

रवींद्रनाथ टैगोर जैसा व्यक्ति कभी भी अपनी एकेडमिक पढाई के लिए विद्यालय नही गयें. फिर भी वों स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों से कही अधिक पढाई में तेज थे. इन्होनें सामान्य विद्यालय में सभी स्टूडेंट्स से अधिक अंक प्राप्त करते थे. वो महान देशभक्त थे.

जब उन्हें १९१९ के जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बारे में पता चला तो उन्होंने अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गईं नाईट की उपाधि लौटा दी. इस तरह भारत रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान इन्सान को कभी नही भूल सकता.

रवीन्द्रनाथ टैगोर पर निबंध Essay On Rabindranath Tagore In Hindi

विश्व साहित्य में अद्वितीय योगदान देने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर को एक महान कवि उपन्यासकार और साहित्य के प्रकाश स्तम्भ के रूप में याद किया जाता है.

वे केवल लेखनी में ही नही वरन एक महान कवि संगीत रचयिता और एक प्रेरक शिक्षक के साथ साथ एक अनूठी शैली के चित्रकार भी थे.

इसके अलावा देश व् स्वाधीनता के प्रति उनके अनूठे द्रष्टिकोण ने महात्मा गांधी जैसे नेताओं को भी सुद्रढ़ आत्मबल प्रदान किया. सही अर्थो में वे एक ऐसे प्रकाश स्तम्भ थे जिन्होंने जिन्होंने अपने प्रकाश से विश्व को आलोकित किया.

7 मई 1861 के एतिहासिक दिन साहित्य और कला से ओत प्रेत तेजस्वी और समर्द्ध परिवार के युवक देवेन्द्रनाथ टैगोर की पत्नी शारदा देवी टैगोर ने अपनी चौहदवी सन्तान के रूप में एक शिशु को जन्म दिया.

प्यार से इस बालक का नाम रवि रखा गया था. यही रवि आगे चलकर संसार में रवीन्द्रनाथ टैगोर के रूप में विख्यात हुआ.

रवीन्द्रनाथ के बौधिक और काव्यात्मक विकास में उनके बड़े भाई ज्योतिरिन्द्रनाथ का बहुत प्रभाव पड़ा. वे एक कुशल स्वर सयोजक कवि नाटककार और संगीतज्ञ भी थे. स्कूली शिक्षा पद्दति से खिन्न होकर 1875 में रवीन्द्रनाथ ने स्कुल को अलविदा कह दिया.

भले ही उन्होंने स्कुल का त्याग कर दिया मगर वे जन्म से ही शिक्षा की देवी के पुजारक रहे थे. अतः स्कुल छोड़ने के बाद इन्होंने गहन चिन्तन मनन और स्व अध्ययन पर जोर दिया. और जीवन के इसी पड़ाव में रवीन्द्रनाथ में लेखनी का कार्य भी शुरू कर दिया.

उनकी विलक्ष्ण प्रतिभा को देखते हुए सत्येन्द्रनाथ ने इन्हें डॉक्टर अन्त राम के पास मुंबई भेज दिया, डॉक्टर अनंतराम की बेटी अन्ना ने रवि को व्यवाहरिक रूप से शिक्षित करने का भार अपने उपर ले लिया.

और दौ महीने तक इन्हें अपने सानिध्य में रखा. रवीन्द्रनाथ पहले अपनी पारिवारिक पत्रिका भारती के लिए लिखते थे. बाद में वे नई परिवारिक पत्रिका बालक के लिए भी शिशु गीत कविताएँ कहानियाँ नाटक और लघु उपन्यास लिखने लगे.

22 अगस्त 1880 को दुबारा उन्हें लन्दन भेज दिया गया. और 10 साल के प्रवास के बाद नवम्बर 1890 को रवीन्द्रनाथ वापिस भारत लौटे, प्रवास के इन 10 सालों में उनकी लेखनी में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ चूका था.

अब उनकी लेखनी पाठकों के अंतर्मन को झंकझोर करने लगी थी. रवीन्द्रनाथ भले ही लेखन कार्य में प्रतिष्ठित हो चुके थे.

मगर उनके पिताजी चाहते थे कि परिवार और उनकी परिसम्पतियों का उतरदायित्व भी पूर्ण रूप से वहन करे. अतः पिता के निर्देश पर रवीन्द्रनाथ बीवी बच्चों के साथ सिलाइदह आ गये. यही से इन्होने विलक्षण नाटिका चित्रगंदा का स्रजन किया, जो बाद में अंग्रेजी में चित्रा के नाम से प्रकाशित हुई.

इस समय उन्होंने उदार जमीदार के रूप में केवल अपनी रैयत के असहाय और निर्बल लोगों की सहायता की, बल्कि उन्हें लेखन कला के दायरे में समेटकर आलिगनबद्ध करके प्यार भी किया. इसी समय इन्होने बाल कहानी डाकपाल और विश्व प्रसिद्ध कहानी काबुलीवाला की रचना की.

1909 से 1910 के बिच लिखे गीतों का संग्रह उन्होंने गीतांजली के माध्यम से बंगला भाषा में प्रकाशित करवाया. मार्च 1912 में रवीन्द्रनाथ को बहुत तेज ज्वर हो गया अतः ये आराम के लिए सिलाइड आ गये.

यही पर इन्होने गीतांजली का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया. इस अंग्रेजी अनुवाद को इण्डिया सोसायटी ऑफ लंदन द्वारा नवम्बर 1912 में प्रकाशित किया गया था. गीतांजली के छपते ही रवीन्द्रनाथ का नाम अंग्रेजी पत्र पत्रिकाओं में छा गया और उनकी प्रसिद्धि की खुशबु समस्त विश्व में फैलने लगी.

13 नवम्बर 1913 के दिन उन्हें गीतांजली के लिए नोबल पुरस्कार देने की घोषणा की गई. उनके इस सम्मान से सारा भारत ख़ुशी से झूम उठा. मार्च 1915 में उनकी मुलाक़ात मोहनदास करमचन्द गांधी से हुई.

उस समय तक मोहनदास करमचन्द गांधी महात्मा की उपाधि तक नही पहुचे थे. 23 सितम्बर 1921 को शांति निकेतन के विश्व भारती विश्वविध्यालय का औपचारिक उद्घाटन किया गया. इस अवसर पर टैगोर ने नोबल पुरस्कार की राशि और सभी कॉपीराइट शान्तिनिकेतन को सौप दिए.

1906 में रवीन्द्रनाथ का प्रकाशित नौका डूबी उपन्यास महान ग्रंथो में गिना जाता है. सही मायनों में यह उनका अनूठा उपन्यास है. जिसे विश्व साहित्य समाज से अपूर्ण गौरव मिला.

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