राज्यसभा पर निबंध | Essay on Rajya Sabha in Hindi

राज्यसभा पर निबंध | Essay on Rajya Sabha in Hindi भारत के संविधान के दो सदन है राज्यसभा और लोकसभा आज हम राज्यसभा में विस्तार से इस सदन का परिचय में संसद के उच्च सदन की जानकारी राज्यसभा पर निबंध में आपके साथ साझा कर रहे हैं. वर्तमान में इस सदन में 245 सांसद बैठते है जिनका सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता हैं.

राज्यसभा पर निबंध | Essay on Rajya Sabha in Hindi

भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत मोन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड प्रतिवेदन से भारत में द्वितीय सदन के रूप में काउंसिल ऑफ़ स्टेटस को मान्यता मिली. साल 1921 में यह अस्तित्व में आया.

वर्ष 1950 तक राज्यसभा को अनंतिम सदन के रूप में जाना जाता था, पहले लोकसभा चुनाव 1952 के पश्चात भारतीय संसद द्विसदनीय बनी तथा 23 अगस्त, 1954 को दूसरे सदन को राज्य सभा का नाम दिया गया.

राज्य सभा का गठन Composition Of Rajya Sabha

राज्य सभा को संसद का उच्च सदन, स्थायी सदन अथवा राज्यों के सदन के नाम से जाना जाता हैं. राज्य सभा का गठन संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत होता है. जिसके अनुसार इसकी कुल सदस्य संख्या 250 हो सकती हैं. इनमें से बारह सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित अथवा मनोनीत किये जाते हैं.

जो साहित्य, विज्ञान, कला अथवा समाजसेवा में विशेष ज्ञान अथवा व्यवहारिक अनुभव प्राप्त व्यक्ति होंगे. राज्य सभा में राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित व्यक्तियों का प्रावधान आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं. शेष 238 सदस्य राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों से निर्वाचित होते हैं.

यदपि वर्तमान में राज्य सभा की कुल सदस्य संख्या 245 निश्चित हैं, जिनमें से 229 सदस्य विभिन्न राज्यों से व 4 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों से निर्वाचित हैं.

जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं. राज्य सभा में राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों को स्थानों का आवंटन संविधान की चौथी अनुसूची के द्वारा जनसंख्या के आधार पर किया गया हैं.

इस कारण एक ओर जहाँ अकेले उत्तरप्रदेश से राज्यसभा के 31 सदस्य निर्वाचित होते है, वही गोवा, मणिपुर, मेघालय आदि अनेक राज्यों से केवल एक एक सदस्य निर्वाचित होता हैं.

राजस्थान से राज्यसभा के 10 सदस्य निर्वाचित होते हैं. जबकि संघ शासित राज्यों में केवल दिल्ली व पांडिचेरी को ही राज्यसभा में प्रतिनिधित्व प्राप्त हैं. शेष को नहीं.

इस प्रकार अमेरिकी कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट के समान सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व देने के स्थान पर भारत में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया हैं.

राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन (Election Of Members Of Rajya Sabha)

संविधान के अनुसार राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमनीय मत द्वारा किया जाएगा, अतः राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से होता हैं.

जैसे राजस्थान से राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राजस्थान विधानसभा के 200 विधायक मिलकर करेगे. राज्य सभा चुनाव के लिए हाल ही में दो संशोधन हुए हैं. प्रत्याशियों के लिए उस राज्य का निवासी होने की शर्त का निवारण किया गया, जिस राज्य से वह निर्वाचित होना चाहता है.

तथा गुप्त मतदान प्रणाली के स्थान पर खुली मतदान व्यवस्था को अंगीकार किया गया. राज्यसभा का निर्वाचन कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की हैं.

राज्य सभा की अवधि (Tenure Of Rajya Sabha)

राज्य सभा एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता हैं. संविधान में राज्य सभा के सदस्यों की पदावधि निर्धारित नहीं की थी, इसे संसद पर छोड़ दिया गया हैं. इसके आधार पर संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 द्वारा राज्य सभा सदस्यों का कार्यकाल छः वर्ष तय किया गया.

व्यवस्था ऐसी स्थापित है कि प्रत्येक दो वर्ष पश्चात राज्य सभा के एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल पूर्ण हो जाता हैं. जिनके स्थान पर पुनः छः वर्षों के लिए सदस्यों का निर्वाचन होता हैं. पुनः निर्वाचित होने के लिए कोई निश्चित अवधि निर्धारित नहीं हैं.

राज्य सभा के पदाधिकारी (Composition Of Lok Sabha)

संविधान के अनुच्छेद 64 व 89 के अनुसार भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता हैं. यदपि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है.

अनुच्छेद 89 के अनुसार सभापति के निर्वाचन के अतिरिक्त राज्य सभा का एक उपसभापति होता हैं. जिसका निर्वाचन राज्य सभा के सदस्य अपने में से ही एक का करते हैं.

इस तरह राज्य सभा का सभापति सदन का सदस्य नहीं होता है जबकि उपसभापति सदन का सदस्य होता हैं. जब उपराष्ट्रपति भारत के कार्यवाहक राष्ट्रप्ति के रूप में कार्य करता हैं अथवा सदन में अनुपस्थित रहता हैं. उस समय उपसभापति राज्य सभा की कार्यवाही का संचालन करता हैं.

राज्यसभा की शक्तियाँ (Powers of the Rajya Sabha)

भारत के संविधान में द्वितीय सदन को लोकसभा की तुलना में कम शक्तियाँ व अधिकार दिए गये हैं, मगर इसका आशय यह नहीं है कि राज्य सभा पुर्णतः निष्प्रभावी हैं, इसकी शक्तियों का विवरण इस प्रकार हैं.

विधायी शक्तियाँ

दूसरे शब्दों में हम इसे कानूनी शक्तियाँ भी कह सकते हैं. संसद में कानून बनाने को लेकर संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से लोकसभा तथा राज्य सभा को समान शक्तियाँ दी गई.

वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के ड्राफ्ट्स को राज्य सभा में प्रस्तुत किया जाता है तथा यहाँ से पारित होने के पश्चात ही लोक सभा को प्रेषित किया जाता हैं.

अगर राज्यसभा द्वारा पारित विधेयक को लोकसभा द्वारा भी पास कर दिया जाता है तो यह राष्ट्रपति के पास जाता है तथा उनकी सहमति पर कानून का रूप ले लेता हैं.

साथ ही अगर किसी विधेयक को जो राज्यसभा द्वारा बहुमत से पारित किया गया है तथा लोकसभा उसे पारित न करे तो इस स्थिति में छः माह की अवधि के पश्चात भारत के राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर उस विधेयक को पारित करवा सकते हैं.

वित्तीय शक्तियाँ

फाइनेशियल पावर्स के मामले में लोकसभा की तुलना में राज्य सभा को कम शक्ति प्राप्त हैं. संविधान के प्रावधान के अनुसार वित्त से जुड़े विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किये जा सकते हैं.

निम्न सदन में इसके पारित होने के बाद ही उच्च सदन में भेजे जाते हैं, राज्यसभा के पास वित्त विधेयक को न स्वीकार करने या लौटाने का कोई अधिकार नहीं है बल्कि सदन धन विधेयक को अधिकतम 14 दिन तक विचार के लिए रोक सकते हैं.

साथ ही राज्यसभा किसी धन विधेयक पर अपनी कोई सिफारिश या सुझाव देना चाहती है तो वह इसे लोकसभा को दे सकती हैं मगर लोक सभा को यह पूर्ण अधिकार है कि वो उन सुझावों को स्वीकार करे अथवा नहीं.

राज्य सभा धन विधेयक के मामलों में सिर्फ सुझाव ही दे सकती है अन्यथा विधेयक को नियंत्रित या बदलाव करने सम्बन्धी कोई बड़ा अधिकार नहीं हैं.

आपातकालीन शक्तियाँ & विशेष अधिकार

भारतीय संसद (दोनों सदन व राष्ट्रपति) द्वारा की गई कोई संकटकालीन उद्घोषणा के सम्बन्ध में प्रस्ताव पास कर सकती हैं. इस घोषणा के सम्बन्ध में उस प्रस्ताव पर दोनों सदनों की स्वीकृति आवश्यक है.

अन्यथा प्रस्ताव एक माह की अवधि के पश्चात स्वतः समाप्त हो जाता हैं. अगर आपातकालीन स्थिति में लोकसभा भंग हो तब संकटकालीन घोषणा की स्वीकृति केवल राज्यसभा की ही आवश्यक होगी.

संविधान के संशोधन 44 वें के तहत अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं स्थापित करने का अधिकार राज्यसभा संसद को दे सकती हैं. संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित और मतदान करने वाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से किसी राज्य सूची के विषय को राष्ट्रीय महत्व का होने की स्थिति में उस पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को दे सकती हैं.

संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा ही 2/3 बहुमत से पास प्रस्ताव के द्वारा अखिल भारतीय सेवाओं के सम्बन्ध में अधिकार केंद्र सरकार को दे सकती हैं.

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