जल प्रदूषण पर निबंध Essay on Water Pollution in Hindi

Essay on Water Pollution in Hindi जल प्रदूषण पर निबंध: ईश्वर ने प्रकृति रचना में मानव को वह समस्त संसाधन प्रदान किये जिसकी उसे आवश्यकता थी,

जल प्रकृति की ऐसी ही महत्वपूर्ण देन हैं जो मानव, पशु, पेड़ पौधों के जीवन का मूल आधार हैं, इसलिए तो कहा गया हैं जल ही जीवन हैं.

मानव ने प्रकृति विजय की अभिलाषा में इसके सदुपयोग को भूलाकर जल के दुरूपयोग व जल स्रोतों के साथ मनमानी की राह चुनी.

जिसके कारण आज हम जल प्रदूषण (Water Pollution) के रूप में गंभीर समस्या एवं उसके परिणाम भुगत रहे हैं.

जल प्रदूषण पर निबंध Essay on Water Pollution in Hindi

जल प्रदूषण पर निबंध Essay on Water Pollution in Hindi

स्कूल में बच्चों को कई बार परीक्षा में short essay on water pollution in hindi अर्थात जल प्रदूषण पर संक्षिप्त निबंध लिखने को कहा जाए तो आप हमारे इस आर्टिकल की मदद से जल प्रदूषण पर अच्छा निबंध या भाषण तैयार कर सकते हैं.

जल प्रदूषण क्या है : जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती हैं. मानव शरीर के कुल भाग का 75 फीसदी भाग जल ही होता हैं, मनुष्य समेत सभी प्राणियों को जल की महत्ती आवश्यकता हैं. 

यदि प्रकृति जन्य जल में किसी बाहरी पदार्थ की मिलावट अथवा उपस्थिति से जल के स्वाभाविक गुणों में हुए परिवर्तन को जल प्रदूषण कहा जाता हैं. प्रदूषित जल स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक व कई बीमारियों का कारक होता हैं.

Essay on Water Pollution

सिंचाई या पीने के लिए जो पानी उपलब्ध होता है वह मनुष्य की विकृत जीवन पद्धति के कारण प्रदूषित होता जा रहा हैं. सिंचाई में कीटनाशकों का उपयोग, उद्योगों द्वारा दूषित पानी को जल स्रोतों में छोड़ा जाना, तेजाबी वर्षा, शहरों में सीवरेज के पानी को नदियों और झीलों में छोड़ा जाना, खनिजों का पानी में खुला होना आदि जल प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं.

जल प्रदूषित होने से मनुष्य केवल रोगग्रस्त ही नहीं होते वरन भूमि की उत्पादन क्षमता में गिरावट होने से कृषि उत्पादन में भी कमी आती हैं. जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोत इस प्रकार हैं.

  • घरेलू अपमार्जक
  • वाहित मल
  • औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ
  • कीटनाशकों का प्रयोग
  • ताप एवं आण्विक बिजलीघर आदि के प्रयोग से निकलने वाला प्रदूषित जल आदि

जलीय प्रदूषण से जलीय पौधों व जन्तुओं की वृद्धि रूकने व इनकी मृत्यु हो जाने के साथ साथ भूमि की सतह पर जल अवरोधी सतह बन जाने से भूमिगत जल के स्तर में कमी आती हैं. उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल को उपचारित कर उद्योगों में पुनः काम लिया जाना चाहिए.

सागरीय जल का प्रदूषण (Marine Pollution in Hindi)

सागरीय जल का प्रदूषण निम्न स्रोतों से होता हैं.

  • सागर के तटवर्ती भागों में नगरीय एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों से अपशिष्ट जल, मलजल, कचरा तथा विषाक्त रसायनों का विसर्जन
  • ठोस अपशिष्ट पदार्थों खासकर प्लास्टिक की वस्तुओं का सागरों में निस्तारण
  • तेल वाहक जलयानों में भारी मात्रा में खनिज तेल का रिसाव तथा अपतट सागरीय कूपों से निस्सृत प्रदूषक. खनिज तेल के रिसाव से सागरीय जल की सतह पर तेल की परत बन जाती हैं जो सागरीय जीवों को नष्ट कर देती हैं.
  • भारी धात्विक पदार्थों यथा सीसा, तांबा, जस्ता, क्रोमियम, निकल आदि का वायुमंडलीय मार्ग से सागरों में पहुंचना.
  • रेडियोसक्रिय तत्वों का नाभिकीय संयंत्रों नाभिकीय चलित जलयानों तथा नाभिकीय शस्त्रों के परीक्षण से निकलकर सागरों में पहुंचना आदि.

सागरीय जल के प्रदूषण को रोकने के उपाय (Measures to prevent pollution of ocean water)

सागरीय जल को विश्व समुदाय की ओर से प्रदूषण मुक्त रखने के लिए प्रभावी उपाय आवश्यक हैं. यदि प्रदूषकों के सागरों में विसर्जन एवं निस्तारण पर पूर्ण रोक सम्भव नहीं हैं तो कम से कम उसकी न्यूनतम मात्रा तो निर्धारित होनी चाहिए.

इस सन्दर्भ में कई कानून भी बनाए गये हैं. यथा उच्च सागर के कानून, महाद्वीपीय मग्न तट कानून, सागर तली के विदोहन से सम्बन्धित कानून आदि. लेकिन ये कानून पर्याप्त नहीं हैं.

गहरें सागरों के विदोहन, सागरों के सामरिक एवं सैनिक उपयोग वैज्ञानिक शोध आदि से सम्बन्धित कानून तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता हैं. सागरीय जैव प्रक्रिया के अध्ययन के लिए गहन एवं व्यापक पारिस्थितिकीय शोध की अति आवश्यकता हैं.

जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of water pollution)

  • पारे द्वारा प्रदूषित जल के उपयोग से मिनिमाटा रोग हो जाता हैं.
  • पेयजल में नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तथा इससे नवजात शिशुओं की मृत्यु भी हो जाती हैं.नाइट्रेट के कारण ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बिमारी हो जाती हैं.
  • पेयजल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से दांतों में विकृति आ जाती हैं.
  • जल में आर्सेनिक होने से ब्लैकफुट बिमारी हो जाती हैं. आर्सेनिक से डायरिया, पेरिफेरल, फेफड़े व त्वचा का कैंसर हो सकता हैं.
  • प्रदूषित जल से मानव की खाद्य श्रंखला प्रभावित होती हैं.
  • मछुआरों की आजीविका व स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होता हैं.

जल प्रदूषण का नियंत्रण (control of water pollution in hindi)

निम्नलिखित उपाय जल प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु कारगर हो सकते हैं.

  • मानव समुदाय को जल प्रदूषण के विभिन्न पक्षों के विषय में चेतना तथा जनजागरण कराना होगा तथा जल प्रदूषण का सही बोध कराना होगा.
  • आम जनता को जल प्रदूषण एवं उससे उत्पन्न कुप्रभावों के विषय में शिक्षित कराना होगा.
  • आम जनता को घरेलू अपशिष्ट प्रबंधन में दक्ष करना होगा.
  • औद्योगिक प्रतिष्ठानों हेतु स्पष्ट नियम बनाए जाएं, जिससे वे कारखानों से निकले अपशिष्टों को बिना शोधित किये नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित ना करे.
  • नगरपालिकाओं के लिए सीवर शोधन संयंत्रों की व्यवस्था कराई जानी चाहिए तथा सम्बन्धित सरकार को प्रदूषण नियंत्रण की योजनाओं के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के लिए आवश्यक धन तथा अन्य साधन प्रदान किये जाए.
  • नियमों एवं कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए तथा इनके उल्लंघन पर कठोर सजा एवं अर्थ दंड मिलना चाहिए.

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (national river conservation plan in hindi)

देश में नदी संरक्षण कार्यक्रम 1985 में गंगा एक्शन प्लान के साथ प्रारम्भ किया गया था. वर्ष 1995 में इसका विस्तार करते हुए इसे राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना का रूप दिया गया तथा अन्य नदियों को भी इसमें कवर किया गया था.

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) का उद्देश्य प्रदूषण नियंत्रण कार्यों के क्रियान्वयन के माध्यम से नदियों के जल की गुणवत्ता को बेहतर बनाना हैं. इस परियोजना में जल प्रदूषण के लिए निम्न उपाय किये गये हैं.

  • खुले नालों के माध्यम से नदी में गिरने वाले अशोधित मलजल के बहाव को रोकना, मोड़ना व उनका शोधन करना
  • अपवर्तित किये गये मलजल के शोधन के लिए सीवेज शोधन संयंत्रों की स्थापना करना
  • नदियों के तट पर खुले में शौच करने को रोकने के लिए अल्प लागत शौचालयों का निर्माण करना
  • लकड़ी की खपत को कम करने के लिए विद्युत् शवदाह गृहों व उन्नत काष्ट शवदाह गृहों का निर्माण करना.
  • नदी तटाग्र विकास कार्यों जैसे कि नहाने के घाटों को बेहतर बनाना.

नदी के किनारे नवीकरण– दिनांक 31 जुलाई 2014 की अधिसूचना के अनुसार गंगा व इसकी सहायक नदियों से सम्बन्धित कार्य जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय को आवंटित किया गया हैं.

तदनुसार गंगा, यमुना, गोमती, दामोदर ,महानंदा, चम्बल, बीहर खान, शिप्रा, बेतवा, रामगंगा व मंदाकिनी जैसी नदियों को इस मंत्रालय को अंतरित कर दिया गया.

पुणे में NRCP के तहत मूला मुथा नदी के प्रदूषण उपशमन की परियोजना को जनवरी 2016 में मंजूरी दे दी गई हैं. इसमें JICA से सहायता प्राप्त होगी. इसमें केंद्र एवं राज्य का 85:15 का योगदान हैं.

नागालैण्ड के दीमापुर में दिफु व धानसिरी नदी के प्रदूषण उपशमन के लिए NRCP के तहत स्वीकृति दी गई हैं. NRCP के तहत सिक्किम के नगरों गंगटोक, रानिपुल व सिंगतम में रानी चु नदी का संरक्षण किया जा रहा हैं.

झीलों का संरक्षण– इसके तहत 14 राज्यों में 63 झीलों के संरक्षण के लिए परियोजनाओं को मंजूरी दी गई हैं. बड़ी परियोजनाएं जिन पर वर्तमान में कार्य चल रहा हैं, निम्न हैं.

  • जम्मू कश्मीर में डल झील
  • मध्यप्रदेश में शिवपुरी व सिंध सागर झील
  • नागालैण्ड के मोकोकचुआंग में जुड़वाँ झील
  • राजस्थान में आनासागर, पुष्कर व पिछोला झील
  • उत्तरप्रदेश में रामगढ़ ताल व लक्ष्मी ताल

नमामि गंगे – गंगा संरक्षण मंत्रालय ने गंगा कंजर्वेशन मिशन के तहत गंगा के संरक्षण के लिए नमामि गंगे के नाम से एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन की स्थापना की गई हैं.

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