पुलिस सुधार पर निबंध Essay on police reform in hindi

नमस्कार आज हम पुलिस सुधार पर निबंध Essay on police reform in hindi पढ़ेगे. आज के निबंध भाषण अनुच्छेद में हम पुलिस सुधार क्या है आवश्यकता अर्थ लक्ष्य उद्देश्य आदि को समझने का प्रयास करेगे.

पुलिस हमारी आंतरिक सुरक्षा का प्रमुख स्तम्भ हैं समय की मांग के अनुसार व्यवस्था में बदलाव किये जाते हैं. भारतीय पुलिस व्यवस्था में किस तरह के बदलाव की आवश्यकता हैं इस विषय पर आज का निबंध दिया गया हैं.

पुलिस सुधार पर निबंध Essay On Police Reform In Hindi

पुलिस सुधार पर निबंध Essay On Police Reform In Hindi

भारतीय पुलिस व्यवस्था का इतिहास बेहद प्राचीन है यह ब्रिटिश सरकार द्वारा अपने शासन की सहूलियत के हिसाब से इसका गठन हुआ था.

डेढ़ सौ वर्षों के बाद आधुनिक भारत में पुलिस व्यवस्था में सुधार की आवश्यकताओं को मध्यनजर रखते हुए इसमें सुधार के लिए समय समय पर मांग की गई,

एक आधुनिक व्यवस्था में इस तरह की व्यवस्थाएं होती है जिन्हें समय व परिस्थिति के अनुकूल बनाया जाता रहे ताकि वह हर समय प्रासंगिक बनी रहे.

इक्कीसवीं सदी के भारत में हम ब्रिटिश सरकार की नीतियों से जनता की भलाई के लिए कार्य नहीं कर सकते, मगर यह हास्यास्पद ही है कि भारत की पुलिस व्यवस्था के प्रावधान आज भी वही है जो अंग्रेजों ने अपने लिए बनाए हैं.

ब्रिटिश हुकुमत ने अपने शासन में एक सहयोगी संस्था के रूप में पुलिस इकाई का गठन किया जिसे बांस का मोटा डंडा हाथ में थमाया गया ताकि जो लोग शासन के विरुद्ध कोई कार्य करे उस पर लाठियां भांजी जाए.

क्या आज के स्वतंत्र भारत में ये नजारा हम नहीं देखते है जब कभी किसान आंदोलन या स्टूडेंट्स पर ये लाठियां बरसती है अथवा एक पुलिस वाला अपनी पकड़ में किसी ठेले वाले या राहगीर के पीछे हाथ धोकर लग जाता हैं.

भारतीय पुलिस के बारे में आम आदमी का विचार यह है कि भले ही अपराधियों में पुलिस का डर हो या न हो आम जनता में पुलिस के बेपनाह खौफ हैं.

पुलिस की बर्बरता की कहानियां आज भी यह बताती है कि जब गर्म मिजाज के कांस्टेबल के हाथ में डंडा आ जाए तो वह जानवर या इन्सान में फर्क नहीं करता हैं. ऐसा लगता है मानों हमारी पुलिस आज अंग्रेजों की जगह सत्ता में बैठे लोगों की जी हुजूरी करने लगी हैं.

भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के तहत ही आज भी भारत की पुलिस कार्य कर रही हैं. भारत के लोकतंत्र तथा देश के नागरिकों के लिए यह शर्म का विषय है क्योंकि हमारी पुलिस जैसी व्यवस्थाएं आज भी अंग्रेजों के बनाए कानूनों के अनुसार चलती हैं.

यही वजह है कि एक भारतीय जो अपनी आँखों के समक्ष किसी जानवर की हत्या को नहीं देख सकता, आज तो दिन के उजाले में बीच चौराहे लोगों के कत्ल कर दिए जाते है मगर पुलिस की कार्यप्रणाली तथा अमानवीय ढंग से पूछताछ के तरीके के चलते लोग किसी झगड़े को मिटाने की बजाय उससे दूरी बनाकर निकल जाते हैं.

आज के समय में दो बड़े पुलिस सुधार (NEED FOR POLICE REFORMS) की आवश्यकता है ब्रिटिश सरकार से विरासत में मिले भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 को समाप्त कर इसके स्थान पर लोकतांत्रिक मानदंडों एवं मूल्यों के अनुसार पुलिस के कार्य व भूमिकाएं फिर से तय किये जाए.

एक लम्बे दौर के बाद भारतीय पुलिस प्रणाली में कई खामियां आ गई है जिनका त्वरित निदान आवश्यक हैं. जिस तरह एक पुलिस वाला किसी आरोपी के साथ अमानवीय बर्ताव करता है

अथवा पीड़ित लोगों की शिकायत अथवा उनके संघर्ष पर बर्बरता पूर्ण तरीके से कार्यवाही करता है उन्हें रोके जाने की आवश्यकता हैं. इस तरह के मूलभूत बदलाव पुलिस सुधार की मजबूत नीतियों से ही सम्भव हैं.

हमारा देश आजाद हुए सात दशक से अधिक का समय हो चूका है मगर हमारी पुलिस व्यवस्था जैसी की जैसी है. पुलिस की खौफनाक कार्यशैली आज भी यथारूप बनी हुई हैं.

देश के कई राज्यों में पुलिस सुधार के नाम पर नये अधिनियम पारित किये गये मगर पहले के नियमों और अब के नियमों में कोई बड़ा फर्क नहीं हैं.

गुजरात और महाराष्ट्र में 1951 का बम्बई पुलिस अधिनियम, कर्नाटक में 1963 का तथा दिल्ली में 1978 का पुलिस अधिनियम कार्यरत हैं मगर इनकें नतीजे में भी कुछ हासिल नहीं हो पाया हैं.

दूसरे राज्यों की तरह यहाँ की पुलिस भी आमजन का विश्वास जीतने में विफल रही है तथा फर्जी एनकाउंटर जैसे कृत्य यहाँ भी देखने को मिल रहे हैं.

देश में मोरारजी देसाई सरकार के दौरान वर्ष 1979 में राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन कर पुलिस सुधार की ओर कदम बढ़ाया गया. 1981 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, 1998 में रेबरो कमेटी ने भी अपनी सिफारिशे सरकार को दी.

पुलिस सुधार की दिशा में पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का योगदान उल्लेखनीय हैं. उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा न लागू करने पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की.

यूपी और असम जैसे विषम परिस्थितियों में सेवा दे चुके प्रकाश सिंह पुलिस की बाधाओं से भली भांति परिचित थे.

वर्ष 2006 के आते आते सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकाश सिंह के मुकदमे पर फैसला सुनाया जिसके तहत सरकारों को पुलिस आयोग की संस्तुतियां लागू करने, पुलिस को राजनीति व दवाब से अलग रखने तथा पुलिस को स्वायत्ता देने की बात की गई. केरल को छोड़कर भारत के लगभग सभी राज्यों की पुलिस में इन सुधारों को क्रियान्वित किया गया.

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