Ganga Singh Biography In Hindi: महाराजा गंगा सिंह की जीवनी राजस्थान राजा महाराजाओं की भूमि रही हैं. यहाँ पर कई पराक्रमी शासक हुए जिनके पराक्रम की गाथाएं जनजन जानता है आज हम ऐसे ही एक बीकानेर के शासक गंगा सिंह के इतिहास के बारे में बता रहे हैं जिन्हें कलयुग का भागीरथ भी कहा जाता हैं.
अंग्रेजों के जमाने में जब भारत की जनता कराह रही थी तो किस तरह इस शासक ने अपनी प्रजा के लिए सुख सुविधा के द्वार खोले, जानेगे गंगासिंह के जीवन परिचय में.
महाराजा गंगा सिंह की जीवन Ganga Singh Biography In Hindi
गंगा सिंह लालसिंह की तीसरी सन्तान थे. इनके बड़े भाई डूंगरसिंह बीकानेर रियासत के शासक थे. जिनकी मृत्यु के बाद के बीकानेर के शासक बने.
इनका जन्म 3 अक्टुबर 1880 को बीकानेर में हुआ था. इनकी शुरूआती शिक्षा अपने राजदरबार में ही हुई तथा उच्च शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज से प्राप्त की. बाद में ये ले.कर्नल बैल की मिलिट्री प्रशिक्षण रेजिमेंट में शामिल हो गये.
यह चीन के बोक्सर विद्रोह को दबाने के लिए गंगा रिसाला लेकर चीन गये. फलतः अंग्रेजों ने इन्हें चीन युद्ध मेडल प्रदान किया.
1913 ई में इन्हें बीकानेर में नाम मात्र का अधिकार देते हुए प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की. प्रथम विश्व युद्ध में इन्होने अंग्रेजों की सभी प्रकार से सहायता की.
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद हुए वर्साय के शान्ति समझौते में इन्होने भाग लिया. इन्होने देशी राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रमंडल के सम्मेलन में भी भाग लिया.
इन्के प्रयत्नों से ही 1921 ई में नरेंद्रमंडल का गठन किया गया, जिसका 1921 से 1925 तक महाराजा गंगासिंह अध्यक्ष भी रहे.
ये देशी राज्यों के अधिकारों को लेकर बड़े सतर्क थे. गंगासिंह ने बटलर समिति के समक्ष यह मांग की कि उनके सम्बन्ध भारत सरकार से न होकर इंग्लैंड के राजतन्त्र के साथ माने जाए.
गंगासिंह ने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया एवं एक सर्वोच्च न्यायालय, वायसराय को परामर्श देने के लिए एक राज्य परिषद् और सामूहिक हितों के प्रश्न के वर्गीकरण की मांग रखी.
महाराजा गंगासिंह प्रतिक्रियावादी व निरंकुश शासक थे. यदपि वे अंग्रेजों की दृष्टि में प्रगतिशील दिखने के लिए उन्होंने न्यायालय, प्रतिनिधि सभा, आदि की स्थापना की.
मगर ये नाममात्र की संस्थाएं गंगासिंह की इच्छा पर चलती थी. इसके राज्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कड़ा प्रतिबंध था.
बीकानेर एक दिग्दर्शन नामक पैम्पलेट् में इनकी दमन नीतियों की आलोचना करने पर सार्वजनिक सुरक्षा कानून लागू किया गया एवं स्वामी गोपालदास, चन्दनमल बहड, सत्यनारायन सराफ, खूबचंद सर्राफ आदि को बीकानेर षड्यंत्र केस के नाम से गिरफ्तार कर लिया.
रघुवर दयाल ने 22 जुलाई 1942 को बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की. जिसका उद्देश्य महाराजा के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था.
रघुवर दयाल गोपाल को राज्य से निष्कासित कर दिया गया. भारत छोड़ो आंदोलन का इस राज्य की गतिविधियों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. क्योकि महाराजा की दमन नीति बहुत व्यापक थी.
तिरंगे को फहराना उस समय राजद्रोह के समान माना जाता था. महाराजा गंगासिंह के सारे क्रियाकलाप अंग्रेजों को खुश करने के लिए होते थे.
उसने पंजाब से गंगनहर लाकर व गंगानगर को बसाकर उसे पूर्णतया सिंचित बना दिया. वह एक कुशल प्रशासक था, जिसने बीकानेर में कई प्रशासनिक सुधार के कार्य किये तथा कई विशाल भवनों का निर्माण कराया. 1943 में इसकी मृत्यु हुई.
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