भारत शासन अधिनियम 1919 मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार – Government Of India Act 1919 In Hindi Language

भारत शासन अधिनियम 1919 मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार Government Of India Act 1919 In Hindi Language: पहले स्वतंत्रता संग्राम के नतीजे के रूप में भारत में कम्पनी शासन समाप्त हो गया.

सत्ता को ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया. ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के सहयोग से सत्ता चलाने की योजना रखी.

Government Of India Act 1919 In Hindi  भारत शासन अधिनियम

भारत शासन अधिनियम 1919 मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार - Government Of India Act 1919 In Hindi Language

इसी क्रम में उन्होंने वर्ष 1861, 1892 तथा 1909 में भारत शासन अधिनियम पारित किये. मगर उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी अतः ब्रिटिश हुकुमत ने भारतीयों के सहयोग की बजाय उनकी आंशिक सत्ता में भागीदारी देने के लिए नई नीति अपनाई.

तथा एक अधिनियम पारित किया जिसे हम भारत शासन अधिनियम 1919 या मोंटेंग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में जानते हैं.

इन सुधारों के जन्मदाता भारत के सचिव मॉण्टेग्यु व गर्वनर जनरल चेम्सपफोर्ड थे, अतः इस अधिनियम का नाम भी मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार” या “मांट-फोर्ड रखा गया था. अब हम इन सुधारों का इतिहास प्रारूप विशेषताएं कमियां तथा निष्कर्ष को यहाँ विस्तार से जानेगे.

ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार द्वारा 1858 ई के बाद से ही निरंतर पारित अधिनियमों द्वारा शासन में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के प्रयत्न किये गये, लेकिन यह नीति असफल रही. अतः भारत में आंशिक उत्तरदायित्व की नीति का अनुसरण करना आवश्यक समझा गया.

1919 ई तक विश्व राजनीति में भी अनेक परिवर्तन आ चुके थे. भारत में 1909 ई के अधिनियम के प्रति भारी असंतोष व्याप्त था, साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली और अपर्याप्त मताधिकार के प्रति राष्ट्रवादी नेताओं तथा जनसामान्य में भी रोष व्याप्त था.

भारत शासन अधिनियम 1919 का इतिहास भूमिका आवश्यकता (History of Government of India Act 1919, background, requirement in hindi)

ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय उग्रवादी राष्ट्रवाद को कुचलने के प्रयत्न जारी थे. साथ ही भारत में क्रांतिकारी और आतंकी राष्ट्र वादी भी सक्रिय हो रहे थे. ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तावित विकेन्द्रीकरण आयोग की स्वीकृति भी औपचारिकता सिद्ध हुई. 19 12 ई में लोक सेवा आयोग की स्थापना से बंधी आशाएं उसकी निष्क्रियता से धूमिल हो गई.

क्योंकि ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के साथ भेदभाव तथा असमानता की नीति यथावत थी जिससे भारत में अंग्रेजों के प्रति असंतोष बढ़ रहा था.

भारत सचिव लार्ड क्रो ने 1911 ई के दिल्ली दरबार में सम्राट जार्ज पंचम के भाषण से बंधी आशाओं को 1912 में लार्ड सभा में अपने वक्तव्य से तार तार कर दिया. जिसमें कहा गया था कि भारत में संवैधानिक सुधार उन्हें स्वशासन देने के लिए होंगे.

इस दृष्टि से भारत में स्वशासन की दिशा में कोई भविष्य नहीं दिखाई देता था. अतः भारतीय राष्ट्रवादी निराश हुए.टर्की के प्रति ब्रिटिश नीति से भारत के मुसलमान भारतीय राष्ट्रवादी कांग्रेस से निकटता रखने लगे. 1916  में खिलाफत के प्रश्न पर कांग्रेस का लीग के साथ समझौता हुआ.

प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के प्रति सहानुभूति पूर्ण व्यवहार कर ना प्रारम्भ कर दिया. उपनिवेशों के प्रति आत्मनिर्णय की घोषणा और जनतंत्र की रक्षार्थ युद्ध करने जैसी बातों से आशा बंधी कि युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार उन्हें स्वशासन का अधिकार दे देगी.

अतः भारतीयों में राष्ट्रीय जाग्रति आई. श्रीमती एनीबेसेण्ट ने युद्ध की समाप्ति पर होमरूल आंदोलन चलाया, बाल गंगाधर तिलक ने भी उनका साथ दिया.

सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने का प्रयत्न किया. भारत में राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ. केन्द्रीय विधायी परिषद के निर्वा चित सदस्यों ने भी रूचि लेकर संवैधानिक सुधारों की पालना के लिए ब्रिटिश सरकार को ज्ञापन प्रस्तुत किये.

इसी समय टर्की के विरुद्ध ब्रिटिश कार्यवाही में भारत सरकार की असफलता के लिए मेसोपोटामिया कमिशन ने भारत सरकार को दोषी ठहराया और भारत में राजनीतिक सुधारों की सिफारिश की. भारत परिषद् के सदस्य विलियम ड्यूक ने भी भारतीय समस्याओं के बारे में स्मरण पत्र प्रस्तुत किया था.

इन परिस्थतियों में ब्रिटिश सरकार के पास भारत में सुधार अधिनियम लागू करने के पर्याप्त कारण उपस्थित हो गये. अतः 1917 ई में जब मित्र राष्ट्र युद्ध में हार रहे थे. भारत सचिव मोंटेग्यू ने 20 अगस्त 1917 ई को ब्रिटिश लोकसभा में घोषणा कि कि भारत में स्वशासन प्रणाली हेतु ठोस प्रयासों को आगे बढ़ाया जाएं.

मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट 1919 montague chelmsford reforms in hindi

तीन माह बाद मोंटेग्यू ने भारत की यात्रा की. गर्वनर जनरल चेम्सफोर्ड के साथ वह भारतीय नेताओं और प्रतिनिधि मंडलों से मिला.

1918 ई में उसने सुधार संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसे मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट कहते हैं. इसमें कहा गया कि भारत में स्थानीय निकायों में लोकप्रिय नियंत्रण रहे, प्रान्तों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए प्रयास किये जाए.

भारत सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी हो, लेकिन अनिवार्य विषयों में उसकी शक्ति सर्वोपरि हो. भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों पर संसद और भारत सचिव का नियंत्रण कम हो.

जून 1919 ई को यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया. दोनों सदनों में पारित होने के बाद 23 दिसंबर 1919 को  विधेयक को सम्राट की स्वीकृति मिली इसे मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम कहा जाता हैं.

अधिनियम की प्रस्तावना (Preamble of the Act 1919 in hindi)

1919 ई के अधिनियम की प्रस्तावना का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अंग रहेगा.

ब्रिटिश सरकार का लक्ष्य भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना होगा जो केवल बुद्धिपूर्ण विकास द्वारा ही होगा और उत्तरदायी शासन प्राप्ति की दो शर्ते होगी, प्रशासन में भारतीयों का बुद्धि पूर्ण सहयोग और स्वशासन संस्थाओं का क्रमिक विकास.

1919 भारत अधिनियम की विशेषताएं (what is the government of india act 1919 Features in Hindi)

  1. प्रांतीय कार्यपालिका को परिषद सदस्य और मंत्री दो भागों में बांटकर प्रांतीय शासन में आंशिक उत्तरदायित्व प्रारम्भ करने का प्रयत्न किया गया.
  2. केंद्र और प्रान्त के विषयों को पृथक कर, केंद्र के नियंत्रण के अधीन प्रान्तों को हस्तांतरित विषयों में स्वायत्त बनाने का प्रयास किया गया. इस प्रकार सत्ता विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाई गई.
  3. केन्द्रीय सरकार विधायी परिषद के स्थान पर भारत सचिव के प्रति उत्तरदायी बनी रही.
  4. केन्द्रीय विधायी परिषद की शक्तियों में वृद्धि की गई. केन्द्रीय विधायी परिषद में निर्वाचित सदस्यों का बहुमत व्यापक मताधिकार, प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रश्न और पूरक प्रश्न का अधिकार, स्थगन प्रस्ताव पेश करने का सरकार के वित्तीय मामलों को अस्वीकृत करने के अधिकार प्रदान किये गये. हालांकि गर्वनर जनरल के निषेधाधिकार के अधीन ये शक्तियाँ नगण्य है.
  5. पृथक अथवा सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को विस्तृत करते हुए मुस्लिम वर्ग के साथ सिखों, ईसाइयों और एंग्लो इंडियन को भी विशेष प्रतिनिधित्व दिया गया.
  6. गृह सरकार के भारत सचिव और ब्रिटिश संसद का नियंत्रण हस्तांतरित विषयों पर पुर्णतः हटा दिया गया. संरक्षित विषयों में हस्तक्षेप यथावत रहा.

भारत शासन अधिनियम 1919 के प्रमुख प्रावधान (Key provisions Of the government of india act 1919 pdf In Hindi)

गृह सरकार संबंधी

सपरिषद भारत सचिव की अधीक्षण, निर्देशन व नियन्त्रण की शक्तियाँ यथावत रही. अब भारत सचिव प्रांतीय शासन के हस्तांतरित विषयों में केवल दो प्रान्तों में मतभेद की स्थिति में साम्राज्य हित की सुरक्षा की दृष्टि से ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य अंगों और भारत के बीच उठे प्रश्नों पर और केन्द्रीय प्रशासन को सुरक्षित करने की दृष्टि से ही हस्तक्षेप हो सकता था.

संरक्षित विषय यथा केंद्र या प्रान्त की विधायी परिषद में प्रस्तुत विधेयक के लिए कर या राजस्व में परिवर्तन मुद्रा या ऋण सम्बन्धी आदेश प्रशासनिक नीतियों में परिवर्तन, सार्वजनिक कार्य, पद सृजन, अनुदान धार्मिक अनुदान और सेना पर अतिरिक्त व्यय संबंधी मामलों में भारत सचिव की अनुमति आवश्यक थी.

उक्त अधिनियम द्वारा भारत सचिव के नियंत्रण में कमी का प्रयास किया गया. प्रान्तों में आंशिक उत्तरदायित्व का प्रयास किया गया. भारत सचिव का वेतन, ब्रिटिश राजस्व से देना निश्चित किया गया.

1859 ई में स्थापित इंडिया कौंसिल की सदस्य संख्या भारत सचिव के विवेकानुसार 8 से 12 तक की तय की गई थी. भारतीयों को भी इसका सदस्य बनाया जा सकता था.

परिषद सदस्यों का वेतन ब्रिटिश राजस्व से दिया जाने लगा. भारत परिषद् एक परामर्श दात्री संस्था थी. गुप्त मामलों के अतिरिक्त सभी विषय परिषद में प्रस्तुत किये जाते थे. बहुमत से निर्णय की व्यवस्था थी. भारत सचिव को विशेषाधिकार प्राप्त था.

1919 के अधिनियम द्वारा भारत के लिए सपरिषद् गर्वनर जनरल द्वारा हाई कमिश्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की गई थी, जो भारत सरकार हेतु क्रय विक्रय के कार्य मूलतः करता था.

केन्द्रीय कार्यपालिका

भारत में केंद्र सरकार को केन्द्रीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया, यह ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी बनी रही. गर्वनर जनरल एवं वायसराय की नियुक्ति पांच वर्ष हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाती थी. वह भारत में ब्रिटिश सम्राट की प्रभुसत्ता के अधीन सर्वोच्च अधिकारी था.

1919 ई के अधिनियम के द्वारा भारत सरकार की कार्य पालिका शक्तियाँ परिभाषित कर दी गई थी. राष्ट्रीय स्तर के महत्व पूर्ण विषय जैसे विदेशी मामले, सुरक्षा, राजनयिक सम्बन्ध, डाक एवं तार, सार्वजनिक ऋण, संचार, नागरिक स्व दंड प्रक्रिया विधि आदि विषय केन्द्रीय सूचि में सम्मिलित किये गये.

अन्य विषय चिकित्सा, स्थानीय स्वशासन, शिक्षा राजस्व प्रबंध, पेयजल, अकाल राहत, कानून व्यवस्था, कृषि आदि कार्य प्रांतीय सूचि में रखे गये. गर्वनर जनरल की शक्तियाँ और अधिकार अत्यंत व्यापक थे. वह कार्यपालिका का प्रमुख अंग ही नहीं अपितु वहीँ पुर्णतः कार्यपालिका था.

गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी परिषद में 1919 ई के बाद भारतीयों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई. परिषद के आठ सदस्यों में से 3 भारतीय सदस्य नियुक्त किये जाने लगे. साधारण और असाधारण सदस्यों का अंतर समाप्त कर दिया गया.

सदस्यों की नियुक्ति भारत सचिव के परामर्श से सम्राट द्वारा की जाती थी. कार्यकारिणी के सदस्य भारत मंत्री के प्रति उत्तरदायी थी. इनका कार्यकाल 5 वर्ष था. भारतीय सदस्यों को कम महत्वपूर्ण विषयों के विभाग सौपे जाते थे. मुख्य कार्यकारी सत्ता गर्वनर जनरल के पास ही थी.

केन्द्रीय व्यवस्थापिका

केंद्र में द्विसदनातम्क व्यवस्थापिका बनाई गई. एक सदन राज्य सभा और दूसरा सदन विधानसभा था. राज्य सभा की सदस्य संख्या 60 रखी गई. इसमें मनोनीत सदस्यों की संख्या 27 और निर्वाचित सदस्यों की संख्या 33 रखी गई. 33 में मुसलमान 11, सिख 1, यूरोपियन 3, गैर मुस्लिम 11 और अन्य 3 सदस्य रखे गये.

सदन का कार्यकाल पांच वर्ष और इसके अध्यक्ष की नियुक्ति गर्वनर जनरल द्वारा होती थी. 27 मनोनीत सदस्यों में 17 सरकारी और 10 गैर सरकारी सदस्य थे.

महिलाएं इस सदन की सदस्यता हेतु अपात्र थी. द्वितीय सदन विधान सभा की सदस्य संख्या 145 निर्धारित की गई. जिनमें 41 सदस्य मनोनीत और 14 सदस्य निर्वाचित रखे गये. मनोनीत सदस्यों में से 26 सरकारी और 15 गैर सरकारी थे.

104 सदस्यों का निर्वाचन होता था जिनमें 52 सामान्य रखे गये, 32 सांप्रदायिक वर्गों से और शेष 20 विशेष वर्गों से विधान सभा का कार्यकाल तीन वर्ष रखा गया जिसे गर्वनर जनरल बढ़ा भी सकता था.

भारत शासन अधिनियम 1919 में मताधिकार Voting right in Government of India Act 1919 In Hindi

मताधिकार प्रबंधित था. दस हजार रूपये पर आयकर देने वाले अथवा न्यूनतम 750 रूपये का प्रतिवर्ष भूराजस्व अदा करने वाले को राज्यसभा हेतु मताधिकार का अधिकार प्राप्त था.

विश्वविद्यालय सीनेट का सदस्य परिषद् के पूर्व अनुभवी सदस्य, उपाधिधारक मत दे सकते थे. 1920 ई में लगभग 30 करोड़ की जनसंख्या में 17364 को ही मताधिकार प्राप्त था.

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