बहरामशाह का इतिहास history of Bahram Shah in hindi: रजिया के बाद तुर्क सरदारों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह को दिल्ली के सिंहासन पर बैठाया. उसने मुइजुद्दीन की उपाधि धारण की.
शासन की सम्पूर्ण सत्ता विद्रोहियों के नेता एतिगीन को सौप दी गई. शायद इसी शर्त पर बहरामशाह को सुल्तान बनाया गया था.
परन्तु कुछ दिनों बाद बहरामशाह और एतिगीन के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई और सुल्तान ने कृपापात्रों के माध्यम से एतिगीन को मरवा डाला.
history of Bahram Shah in hindi

सुल्तान ने वजीर निजामुलमुल्क मुह्ज्ज्बुद्दीन की हत्या करवाने का प्रयास भी किया. परन्तु वह बच गया. सुल्तान ने वजीर निजामुलमुल्क मुह्ज्जबुद्दीन की हत्या करवाने का प्रयास किया,
परन्तु वह बच गया. सुल्तान ने अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए दिखावे के तौर पर वजीर से मैत्री कायम रखी. एतिगीन की मृत्यु के बाद मलिक बदरुद्दीन सुंकर को अमीर ऐ हाजिब के पद पर नियुक्त किया गया.
उसने सुल्तान तथा वजीर दोनों की उपेक्षा करते हुए शासन सत्ता पर अपना कब्जा जमाने का प्रयास किया. जिससे वजीर उसका शत्रु बन गया और उसने सुंकर के विरुद्ध सुल्तान के कान भरने शुरू कर दिए.
सुंकर ने तुर्क सरदारों की सहायता से बहरामशाह को पदच्युत करने का षड्यंत्र रचा परन्तु षड्यंत्र का भंडाफोड़ हो गया. चूँकि सुल्तान में सभी तुर्क सरदारों को सख्त सजा देने की हिम्मत नहीं थी.
अतः षड्यंत्रकारियों को दूर दूर के स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया. सुंकर को बदायूँ का सूबेदार नियुक्त किया गया. चार मास बाद सुंकर सुल्तान की पूर्व स्वीकृति के बिना ही दिल्ली लौट आया.
जिससे रुष्ट होकर बहरामशाह ने उसका वध करा दिया. सुंकर के सहयोगी तुर्क सरदार सैय्यद ताजुद्दीन अली को भू मौत के घाट उतार दिया गया. अमीरों के विरुद्ध सुल्तान की सफलता का मुख्य कारण तुर्क सरदारों में आपसी फूट थी.
तुर्क सरदारों के अलावा धर्माधिकारी वर्ग भी सुल्तान का विरोधी बन गया था. क्योंकि सुल्तान ने काजी जलालुद्दीन मुसाबी का भी वध करा दिया था. एतिगीन और सुंकर के रास्ते से हट जाने के बाद वजीर ने सुल्तान से अपना पुराना हिसाब चुकाने का निश्चय किया.
संयोगवश 1241 ई में मंगोलों ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया. उन्होंने नगर को जी भरकर लूटा और हजारों मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया.
दिल्ली के प्रमुख तुर्क सरदारों के साथ मंगोलों के विरुद्ध सेना भेजी गई. वजीर ने भी सेना का साथ दिया. मार्ग में उसने तुर्क सरदारों को बतलाया कि सुल्तान ने उन सभी को खत्म करने के आदेश दिए हुए हैं. तुर्की सरदारों में पहले से ही असंतोष फैला हुआ था.
वजीर की बात ने उनके असंतोष को भड़का दिया और वे राजधानी को लौट आए. उन्होंने राजमहल को घेर लिया व बहरामशाह को बंदी बना लिया. कुछ दिनों के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया.
सुल्तान के विरुद्ध तुर्की सरदारों की निर्णायक विजय से यह पुनः स्पष्ट हो गया कि कोई सुल्तान उनके सहयोग के बिना अधिक दोनों तक शासन नहीं कर सकता था.
मुइज़-उद-दीन बहराम शाह का व्यक्तिगत परिचय
नाम | बहराम शाह |
जन्म | 9 जुलाई 1212 |
वास्तविक नाम | मुईज़ उद दीन बहराम शाह |
पिता का नाम | इल्तुतमिश |
माता का नाम | तुरकास खातून |
पत्नी | ज्ञात नहीं |
बहन | रजिया सुल्तान |
मजहब | इस्लाम |
जाति | ज्ञात नहीं |
जन्म | अखंड भारत |
पद | दिल्ली का सुल्तान |
हत्या | 1242 |
हत्या का कारण | विद्रोह |
हत्या का स्थान | दिल्ली |
बैरम शाह का समय काल
- रजिया सुल्तान को साल 1240 के अप्रैल के महीने में कैदी बनाकर के भटिंडा की जेल में डाल दिया गया था। यह काम इक्तादार मलिक अल्तूनिया के आदेश पर हुआ था।
- रजिया सुल्तान के बंदी बनाए जाने की बात जैसे ही दिल्ली में मौजूद तुर्को सरदारों को पता चली तो उन्होंने सामूहिक मीटिंग करके बैरम शाह जोकि इल्तुतमिश के तीसरे बेटे थे, उन्हें दिल्ली के सुल्तान का पद देने की घोषणा कर दी।
- तुर्क सरदारों के समर्थन से साल 1240 में दिल्ली के लाल महल में ही 21 अप्रैल के दिन बैरम शाह ने दिल्ली के नए सुल्तान के पद को संभाला।
- नाईब ए ममलिकात, यही वह पद है, जिसे दिल्ली का सुल्तान बनने के बाद बैरम शाह ने बनाया और इस पर मलिक एतगीन को तैनात किया।
- मलिक एतगीन तुर्क सरदारों का नेता था और यह वजह थी कि वह अपने आप को बैरम शाह से भी ज्यादा ताकतवर मानता था।
- मलिक एतगीन के लगातार बढ़ते हुए प्रभाव के कारण बैरम शाह अत्याधिक परेशान हो गया था और इसीलिए उसने प्लान करवा करके मलिक एतनीन का खून करवा दिया और उसे अपने रास्ते से हटा दिया।
- बैरम शाह ने मलिक का खून तो करवा दिया परंतु उसे यह अंदाजा नहीं था कि दिल्ली के सरदार उसके खिलाफ हो जाएंगे और यही वजह से अंदर ही अंदर दिल्ली के सरदारों ने बैरम शाह के खिलाफ उसके वजीर मुहाजबुद्दीन के साथ मिलकर के साजिश रचना चालू कर दिया।
- मंगोलो ने जब साल 1241 में लाहौर पर हमला करके उस पर अपना अधिकार जमा लिया तो बैरम शाह ने अपने वजीर को कुछ तुर्क सरदारों के साथ भेजा परंतु उन सभी का खात्मा मंगोल की सेना ने कर दिया।
- मंगोलों की सेना के द्वारा तुर्क सरदारों का खून कर देने के बाद दिल्ली में जो बचे हुए तुर्क सरदार थे, उन्होंने बैरम शाह को अपनी कैद में ले लिया और साल 1242 में 15 मई के दिन उसे भी इस दुनिया से रुखसत कर दिया।
- इसके बाद तुर्क सरदारों ने आपसी सहमति के द्वारा अलाउद्दीन मसूद शाह को दिल्ली का सुल्तान बनाने की घोषणा की, जो कि रुकनुद्दीन फिरोज शाह के बेटे थे।
FAQ:
Q: बैरम शाह के पिता का नाम क्या था?
Ans: इल्तुतमिश
Q: बैरम शाह की माता का नाम क्या था?
Ans: तुरकान खातून
Q: बैरम शाह की बहन का नाम क्या था?
Ans: रजिया सुल्तान
Q: रजिया सुल्तान कौन थी?
Ans: दिल्ली की शासिका
Q: बैरम शाह ने कब तक शासन किया?
Ans: 1240 – 1242
Q: बैरम शाह की हत्या कब हुई?
Ans: 15 मई, 1242
Q: बैरम शाह की हत्या किसने की?
Ans: तुर्क सरदारों ने
Q: बैरम शाह के तुर्क सरदारों का खात्मा किसने किया?
Ans: मंगोली सेना ने
यह भी पढ़े-
- रजिया सुल्तान का इतिहास जीवन परिचय
- रुकनुद्दीन फिरोजशाह का इतिहास
- इल्तुतमिश का इतिहास
- कुतबुद्दीन ऐबक का इतिहास जीवनी
आशा करते है दोस्तों history of Bahram Shah in hindi का यह लेख आपकों पसंद आया होगा. यदि आपकों Bahram Shah history का लेख पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे.