पाबूजी राठौड़ का इतिहास | history of pabuji rathore in hindi

पाबूजी राठौड़ का इतिहास | history of pabuji rathore in hindi: पाबूजी राठौड़ कोल्हुगढ़ के रहने वाले थे. चांदा और डामा दो वीर इनके प्रिय सहयोगी थे.

जब पाबू जी युवा हुए तो अमरकोट के सोढा राणा के यहाँ से सगाई का नारियल आया. सगाई तय हो गई. पाबू जी ने देवल नामक चारण देवी को बहन बना रखा था.

देवल के पास एक बहुत सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न घोड़ी थी. जिसका नाम था केसर कालवी .

पाबूजी राठौड़ का इतिहास | history of pabuji rathore in hindi

पूरा नामवीर पाबूजी राठौड़
जन्म1239 ई.(विक्रम संवत् 1296)
स्थानकोलू/ कोलूमंड (जोधपुर)
राजवंशराठौड़
पिताधांधलजी राठौड़
माताकमला दे
भाईबूडोजी
बहनेसोनल बाई और पेमल बाई
पत्नीफूलमदे
घोड़ीकेसर कालमी
निधनदेचू

देवल अपनी गायों की रखवाली इस घोड़ी से करती थी इस घोड़ी पर जायल के जिंदराव खिचीं की आँख थी. वह इसे प्राप्त करना चाहता था. जींदराव और पाबूजी में किसी बात को लेकर मनमुटाव भी था.

विवाह के अवसर पर पाबू जी ने देवल देवी से यह घोड़ी मांगी. देवल ने जिंदराव की बात बताई. तब पाबू ने कहा कि आवश्यकता पड़ी तो वह अपना कार्य छोड़कर बिच में ही आ जायेगे. देवल ने घोड़ी दे दी.

बारात अमरकोट पहुची. जिंदराव ने मौका देखा और देवल देवी की गायें चुराकर ले भागा. पाबूजी जब शादी के फेरे ले रहे थे. तब देवल के समाचार पाबू को मिले कि जिंदराव उनकी गायें लेकर भाग गया है.

समाचार मिलते ही अपने वचन के अनुसार शादी के फेरों को बिच में ही छोड़ कर केसर कालवी घोड़ी पर बैठकर जिंदराव का पीछा किया.

गायों को तो छुड़ा लिया लेकिन पाबू जी खेत में ही रहे. अर्धविवाहित सोढ़ी पाबूजी के साथ सती हो गई. इनकी यह यशगाथा पाबूजी की फड़ में संकलित है, जिसका वाचन बड़ा लोकप्रिय है. तथा पाबूजी की लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है.

पाबूजी राठौड़ कौन थे?

राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं में पाबूजी महाराज की गिनती की जाती हैं, राजस्थान के अलावा इन्हें सिंध पाकिस्तान और गुजरात के लोग भी पूजते हैं. गौरक्षक पाबूजी को ऊंटों का देवता भी कहा जाता हैं. मवेशियों के बीमार होने पर इनकी पूजा की जाती हैं.

राठौड़ कुल में जन्मे पाबू जी के पिता का नाम धांधल जी और माँ का नाम कमलादे था. ये लक्ष्मण के अवतार माने जाते है. आज भी गाँवों में पाबूजी की फड़ बेहद लोकप्रिय मानी जाती हैं.

इतिहास में विवाह के फेरो को बीच छोड़कर देवल की गायों को बचाने के लिए रणभूमि में उतरे पाबूजी ने युद्ध भूमि में ही अपना बलिदान दे दिया था उस समय उनकी आयु 37 वर्ष बताई जाती हैं.

प्रिय घोड़ी केसर कालमी

जब पाबू जी की उम्र बहुत कम थी तभी वे कही से गुजर रहे थे तभी एक गायों के झुण्ड के बीच से एक छोटी घोड़ी चर रही थी, पाबूजी को देखकर वह प्रफुल्लित हो उठी तथा नाचने लगी.

पाबूजी का भी घोड़ी को देखकर मन मोह गया तथा पता करने पर पाया कि वो देवल चारणी नामक महिला की घोड़ी हैं.

पाबू जी महाराज देवल से उस घोड़ी को लेने की बात करते हैं. मगर देवल एक वचन पर वह घोड़ी देने को तैयार होती है कि अगर मुझ या मेरी गायों पर कोई संकट आया तो आपको सुरक्षा करनी होगी. जब भी मुझ पर कोई संकट आएगा ये घोड़ी विचित्र आवाज में हिनहिनाने लगेगी.

पाबू जी ने घोड़ी का नाम केसर कालमी रखा, यह उन्हें प्राणों से प्रिय थी सदैव इसे वे अपने साथ रखते थे. अपने अंतिम समय में भी कालमी ने पाबूजी का साथ नहीं छोड़ा था.

पाबू जी राठौड़ के बारे में कहा जाता है कि मारवाड़ में सबसे पहले ऊंट यही लाये थे. मुसलमानों की मेवल जाति इन्हें पीर मानकर पूजती है वही रेबारी जाति के लोग पाबूजी को अपना आराध्य मानते हैं.

पाबूजी राठौड़ का विवाह

पाबूजी महाराज की सगाई हुई थी. कहते है कि फूलमदे ने स्वेच्छा से पाबूजी को अपना वर चुना था. जब अमरकोट में पाबूजी बरात लेकर गये तथा शादी के सात फेरे ले रहे थे उसी समय विवाह में विघ्न डालने के लिए देवल की गायों को जिंदराव खींची चुराकर ले जाता हैं.

जब पाबू जी की पिताजी की मृत्यु हुई तो सत्ता की बागडौर उनके बड़े भाई बुड़ोजी के हाथ में आई, उनके पड़ोस के जायल राज्य के जिन्दराव खीची के साथ किसी विवाद को लेकर झगड़ा हो गया, बुड़ोजी ने अपनी जान बख्शने के बदले में अपनी बहिन का विवाह खीची के साथ करवा दिया.

राठौड़ और खीचीं परिवारों के बीच यह संघर्ष आगे भी चलता रहा, पाबू जी ने जैसे ही तीसरा फेरा लिया उनकी घोड़ी हिनहिनाकर विचित्र आवाजे निकालने लगी, यह देवल चारणी पर आइ किसी अनहोनी का संदेश था.

अपने दिए वचन के मुताबिक़ पाबू जी राठौड़ ने विवाह के फेरों को बीच में छोड़कर ही देवल की गायों को छुड़ाने का फैसला किया और रणभूमि में जा पहुंचे, कहते है इनके साथ चांदोजी, डेमाजी दो वीर भी थे,

एक भयानक संघर्ष के बाद पाबूजी ने गायों को छुडा लिया मगर उनका शरीर घायल हो चूका था और इस तरह 1276 ई में 37 साल की आयु में पाबू जी ने देह त्याग दी.

पाबूजी राठौड़ महाराज का मेला

जोधपुर के कोलूमंड में लोकदेवता पाबूजी का विशाल मन्दिर है यहाँ चैत्र महीने की अमावस्या को बड़ा मेला भरता है. देश के कोने कोने श्रद्धालु अपनी मन्नते लेकर यहाँ पहुचते हैं.

इनके यशोगान को पावड़े नामक गीतों में गाया जाता हैं. राजस्थान सरकार ने कालू में पाबू जी के पैनोरमा का निर्माण हाल ही में करवाया है.

फड़

राजस्थान की संस्कृति में फड या पड़ एक चित्रित जीवन गाथा हैं. जो एक लम्बे कपड़े पर किसी लोक चरित्र की जीवनी का चित्रात्मक अंकन है जिसे बाचकर गायन शैली में सुनाया जाता हैं,

खासकर पश्चिमी राजस्थान में भील जाति के भोपों पाबूजी की फड़ अर्थात रात्रि जागरण करते है जिसमें रावणहत्था वाद्य यंत्र के साथ वाचन होता है.

FAQ

कौन थे पाबूजी?

इनका पूरा नाम पाबूजी राठौड़ था, जो जोधपुर के कोलू परगने में जन्मे लोक देवता थे इन्होने अपने वचन पालना और गौरक्षार्थ जीवन का बलिदान दिया था.

पाबू जी की ओरण किसे कहते है?

गाँवों में पाबूजी के मंदिर (थान) के पास की आरक्षित गौचरण भूमि को ओरण कहा जाता हैं.

पाबू जी की प्रिय घोड़ी का नाम क्या था?

केसर कालमी

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