भारत पाक युद्ध 1965 का इतिहास व ताशकंद समझौता | India Pakistan War 1965 History In Hindi एशिया के दो बड़े देश भारत पाक रिश्तों में कटुता का इतिहास 1947 से चला आ रहा हैं भारत पाक दोनों देशों के बीच दूसरी बार का बड़ा युद्ध था इससे पूर्व 1948 में एक छोटा युद्ध भी लड़ा गया था. इस लेख में आज हम जानेगे कि 1965 के भारत पाक युद्ध के कारण परिणाम प्रभाव हार जीत ताशकंद समझौते के बारे में विस्तार से यहाँ जानेगे.
भारत पाक युद्ध 1965 का इतिहास | India Pakistan War 1965 History In Hindi

अप्रैल 1965 में कच्छ के रण को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ. पाकिस्तानी सेना की दो टुकड़ियाँ भारतीय क्षेत्र में घुस गई और कच्छ के कई मार्गों पर अधिकार कर लिया. कच्छ के रण में उत्पात के साथ साथ पाकिस्तान ने कश्मीर में भी घुसपैठ आरम्भ कर दी.
यह घुसपैठ पूर्ण योजनाबद्ध थी. कश्मीर में आंतरिक रूप से उपद्रव एवं तोड़ फोड़ द्वारा ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की योजना थी जिससे भारतीय सेना को कश्मीर से मैदान छोड़ भागना पड़े.
पाकिस्तान को विश्वास था कि कश्मीर की मुस्लिम जनता छापामारों का साथ देगी. 4 तथा 5 अगस्त 1965 को हजारों पाकिस्तानी छापामार सैनिक कश्मीर में घुस आए. पाकिस्तानी घुसपैठ को सदैव से रोकने के विचार से भारत सरकार ने उन स्थानों पर अधिकार करने का निर्णय किया.
जहाँ से होकर पाकिस्तानी घुसपैठिये कश्मीर के भारतीय हिस्से में आते थे. इसी बीच पाकिस्तान की नियमित सेना ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को पार करके भारतीय भू भाग पर आक्रमण कर दिया और पूर्ण रूप से युद्ध प्रारम्भ हो गया.
4 सितम्बर 1965 को सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास कर भारत और पाकिस्तान दोनों से अपील की कि वे युद्ध विराम करे. 22 सितम्बर 1965 को दोनों देशों में युद्ध बंद हो गया. भारत ने युद्ध में 750 वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान को यहाँ मुहं की खानी पड़ी.
ताशकंद समझौता व 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध (tashkent agreement & indo pak war 1965 in hindi)
युद्ध के बाद बीच बचाव की दृष्टि से सोवियत प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को वार्ता के लिए ताशंकद में आमंत्रित किया. 4 जनवरी 1966 को यह प्रसिद्ध सम्मेलन प्रारम्भ हुआ और सोवियत संघ के प्रयासों के परिणामस्वरूप 10 जनवरी 1966 को प्रसिद्ध ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
समझौते के अंतर्गत भारतीय प्रधानमंत्री एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति परस्पर शांति बहाली के लिए सहमत हुए. यदपि इस समझौते के कारण भारत को वह सब प्रदेश पाकिस्तान को देने पड़े जो उसने अपार धन और जन हानि उठाकर प्राप्त किये थे.
तथापि यह समझौता निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में एक शांतिपूर्ण मोड़ आने का प्रतीक बन गया. साथ ही यह दिन भारत के लिए काला दिन भी साबित हुआ था क्योंकि समझौते के बाद की रात को भारत के सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की ताशकंद में ही रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गई थी.
Fact & History Of India Pakistan War 1965 Hindi
- आज से ५४ वर्ष पूर्व भारत पाक के मध्य लड़े गये 1965 के युद्ध का अंत बराबरी पर हुआ. जनवरी 1965 को पाकिस्तान ने कच्छ के रण में ओपरेशन डेजर्ट होक को आरम्भ कर भारत की जमीन को हडपने का प्रयत्न हुआ.
- 1965 के युद्ध परिणाम के रूप में भारत को 1920 वर्ग किलोमीटर तथा पाकिस्तान के 540 वर्ग किमी भूमि हाथ लगी.
- इस युद्ध में काफी बड़ी संख्या में जनहानि हुई भारत की ओर से 2862 सैनिक तथा 97 टैंक जबकि पाकिस्तान को 5800 सैनिक व 450 टैंक का भारी भरकम नुक्सान उठाना पड़ा.
- इस युद्ध में भारत के पास 7 लाख सैनिक, 720 टैंक तथा 628 हवाई जहाज जबकि पाकिस्तान के पास २ लाख ६० सैनिक ७५६ टैंक तथा ५५२ हवाई जहाज थे.
- 5 अगस्त को लगभग ३० हजार पाकिसानी सैनिक और मुजाहिद कश्मीर की सीमा में प्रवेश कर गये. भारतीय सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्यवाही में 15 अगस्त को घुसपैठियों को सीमा पार धकेला.
- अप्रैल 1965 में दोनों देशों की थल सेनाएं आमने सामने आ चुकी थी. औपचारिक तौर पर युद्ध का ऐलान हो चूका था जो अगले 22 दिनों तक चला था.
भारत पाकिस्तान 1965 के युद्ध का संक्षिप्त इतिहास (indo-pakistani war of 1965 in hindi)
भारत पाक के बीच हुई 65 की जंग का मूल विवाद गुजरात का कच्छ क्षेत्र था साथ ही बाद में यह कश्मीर तक भी फ़ैल गया था. इस कारण इसे कश्मीर का द्वितीय युद्ध भी कहा जाता है.
ब्रिटिश पीएम हैरॉल्ड विल्सन भारत पाक विवाद की मध्यस्था में थे. वे बातचीत के जरिये इस मुद्दे को सुलझाने चाहते थे जिसके लिए उन्होंने एक ट्रिब्यूनल का गठन भी किया मगर जब तक यह मामला हल होता उससे पूर्व दोनों देश स्वयं को 1965 के युद्ध में धकेल चुके थे.
पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों की गलतफहमी के चलते युद्ध की भूमिका तैयार हुई. पाकिस्तानी सेना के लोगों का मानना था कि जनरल अयूब खान कच्छ के मसले को हल तक ले आए है तो वे भारतीय सेना से इस क्षेत्र को छीन सकते हैं. साथ ही उनकों जम्मू पर कब्जा करने की ख्वाइश भी थी.
जब पाक सैनिकों ने कश्मीर के उरी और पूंछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया तो भारतीय फौज पाक अधिकृत कश्मीर से 8 किमी पार हाजी पीर की दरगाह को अपने अधिकार में ले लिया.
पाक आर्मी ने जम्मू कश्मीर में ऑपरेयान ग्रैंड स्लैम चलाया तो उन्हें मुह की खानी पड़ी हर तरफ हमले से घिरने से पूर्व पास सेना ने अपना निशाना पंजाब को बनाया मगर यहाँ भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इस तरह से यह युद्ध 6 सितम्बर 1965 को आरम्भ हुआ जो 23 सितम्बर को खत्म हो गया.
भारतीय सेना के 7 महावीर
वैसे तो भारत पाक युद्ध 1965 के समाप्ति तक करीब तीन हजार भारतीय सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर मातृभूमि की रक्षा की थी, मगर इस इंडो पाक वॉर में कुछ महावीरों का पराक्रम इतना अद्भुत था कि वे शौर्य की मिसाल बन गये और आज भी उनकी बहादुरी को झुककर हर भारतीय सलाम करता हैं.
मेजर जनरल गुरबख्श सिंह
महावीर चक्र विजेता गुरबख्श सिंह जी भारतीय सेना के माउंटेन डिविजन के कमांडिंग अधिकारी थे. 1965 के भारत पाक युद्ध में इनकी नियुक्ति खेमकरण सेक्टर में कर दी गई थी. बहुत सिमित संख्या में सैनिक साथियों के साथ इन्हें तीन आर्म्ड ग्रुप और पूरी इन्फेंट्री डिविजन से लोहा लेना था. इनका साहस और नेतृत्व इतना सुद्रढ़ था कि बहुत कम समय में जनरल सिंह की रेजिमेंट ने पाक सेना की करीब डेढ़ टैंक रेजिमेंट को धुल में मिला दिया तथा शेष बचे जीवित पाक फौजियों को सरेंडर करने के लिए मजबूर कर दिया.
मेजर जनरल राजिंदर सिंह
युद्ध भूमि में सियालकोट के फिल्लोरा और पगीवाल सेक्टर पर कब्जा करने का जिम्मा आर्म्ड डिविजन के मेजर जनरल राजिन्द्र सिंह और कर्नल तारापुर को दिया गया. बहुत कम संख्या में मैंन पॉवर होने के बावजूद इनकी रेजिमेंट ने 69 पाकिस्तानी टैंक बर्बाद कर दिए थे, इस लड़ाई में भारत के 9 टैंक भी बर्बाद हुए मगर भारतीय जाबाजों के पराक्रम और युद्ध कौशल ने पाक आर्मी को एक और सेक्टर में मुहं की खानी पड़ी. युद्ध के बाद तारापुर को परमवीर चक्र से तथा राजिन्द्र सिंह जी को महावीर चक्र से नवाजा गया.
मेजर जनरल एच के सिब्बल
6 सितंबर 1965 के दिन इन्फ्रेंटरी डिवीजन के जनरल कमांडिंग ऑफिसर मेजर जनरल एचके सिब्बल जी को पाक आर्मी को उन्ही के क्षेत्र में खालरा डिविजन में कार्यवाही की जिम्मेदारी दी गई. इछोगिल नहर के सामने वाले भाग में मौजूद पाक आर्मी का मेजर साहब ने बड़ी कुशलता से मुकाबला किया और गढ़वाले गाँव तक भारतीय सैनिकों ने तिरंगा फहराकर अपने लक्ष्य में कामयाबी पाई, उन्हें शौर्य को महावीर चक्र देकर सम्मानित किया गया.
ब्रिगेडियर खेमकरण सिंह
पाकिस्तान के बोर्डर पर सियालकोट सेक्टर में भारतीय आर्म्ड ब्रिगेड की कमान खेमकरण जी के हाथ में थी. 6 से 22 सितम्बर 1965 के दिनों में ब्रिगेडियर के सामने बड़ी चुनौती आधुनिक पाक आर्मी के टैंक थे, संख्या में वे भारतीय टैंक से बहुत अधिक थे. फिर भी कहते है न जंग हथियारों से नहीं हौसलों से लड़ी जाती हैं. ब्रिगेडियर के नेतृत्व में जाबाजों की टुकड़ी ने 75 टैंको को तबाह कर दिया. तीन दिन और तीन रात इस मौर्चे पर लड़ी भयानक लड़ाई में पाक फौजी पीठ दिखाकर भागने पर विवश हो गये थे. अद्भुत पराक्रम के लिए खेमकरण जी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
लेफ्टिनेंट कर्नल डीई हेडे
कर्नल हेडे को भारत पाक युद्ध में जाट रेजिमेंट की कमान दी गई थी. जाट बलवान जय भगवान के उद्घोष कर हेडे के नेतृत्व में जाट टुकड़ी ने लछोगिल सेक्टर पर कब्जा कर दिया. उन पर पाक वायु सेना और जंगी टैंको के ताबड़तोड़ आक्रमण के बीच दुश्मन की जमीन पर कब्जा कर तिरंगा फहराने में कामयाबी अर्जित की, हेडे के इस अद्भुत साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
लेफ्टिनेंट कर्नल एन एन खन्ना
सिख रेजिमेंट का नेतृत्व कर रहे कर्नल खन्ना जी को राजा पिकेट पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया. 2 सिख रेजिमेंट और टीम कम्पनियों के साथ मोर्चा लेने गये कर्नल की दो कम्पनियों को ऊँची पहाड़ी पर बैठी दुश्मन सेना ने ऑटोमेटिक फायर गन से बड़ा नुक्सान पंहुचा दिया था. स्वयं खन्ना जी भी ग्रेनेड के चलते एक हाथ जख्मी कर बैठे. इन सबके बावजूद उन्होंने पीकेट चोकी पर तिरंगा फहराया और युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने पर इन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
सूबेदार अजीत सिंह
1965 के युद्ध की शौर्य गाथाओं में एक पराक्रम कहानी सूबेदार अजित सिंह की भी हैं. 6 सितंबर 1965 को पाकिस्तानी बुर्कि पोस्ट पर भारतीय सेना ने धावा बोल दिया था. पाकिसानी बनकर से मशीनगन से लगातार आ रही गोलियां भारतीय बटालियन को आगे बढने से रोक रही थी, ऐसे में स्वयं अजित सिंह आगे बढ़े तथा अपने प्राणों का बलिदान देकर भी दुश्मन के बंकर के आगे जाकर मशीन गन की नाल को मोडकर भारतीय सेना को आगे बढने का रास्ता दिया था, म्रत्युप्रांत सूबेदार को महावीर चक्र से नवाजा गया.
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