Kaliyar Sharif History In Hindi में आज हम मुस्लिम संत पिरान कालियार शरीफ दरगाह का इतिहास और दरगाह से जुड़ी रोचक जानकारियाँ यहाँ की मान्यताएं इस दरगाह साबीर पाक तक पहुचने के रास्ते तथा यहाँ के इतिहास किवदंतियों के बारे में दरगाह में हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक इस स्थान के बारे में जानेगे.
पिरान कालियार शरीफ दरगाह का इतिहास | Kaliyar Sharif History In Hindi
भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता तथा आपसी सद्भाव को साक्षात स्वरूप दिखाने वाले कई धार्मिक स्थल हैं चाहे वो ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह हो या बाबा रामदेवजी का रुणिचा धाम हो.
ऐसा ही एक धार्मिक स्थल उत्तराखंड की देवभूमि में रुड़की के पास ही है जिन्हें हम पीरान कलियर शरीफ अथवा कलियर दरगाह साबीर पाक के नाम से भी जानते हैं.
हजरत अलाऊद्दीन साबीर साहब की पाक व रूहानी दरगाह हिन्दुओं के सबसे पवित्र स्थान हरिद्वार से मात्र 20 किमी की दूरी पर स्थित हैं. इस दरगाह का इतिहास काफी प्राचीन हैं. यहाँ हिन्दू मुस्लिम समान भाव से अपनी मन्नते पूरी करने के लिए जियारत को आते है तथा दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं.
कहाँ है दरगाह
13 वीं सदी के इस सूफी संत की दरगाह सबीर पाक अथवा साबिर पिया कलियारी के नाम से जानी जाती हैं. यह भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार शहर से 25 किमी की दूरी पर तथा सबसे नजदीकी शहर रुड़की से महज 10 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं.
Kaliyar Sharif History In Hindi
दरगाह से जुडी ख़ास बात यह है कि यहाँ न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोग आते है बल्कि सभी धर्मों के लोग भी अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए दरगाह में माथा टेकने आते हैं.
यहाँ कई सूफी संतों तथा मुस्लिम फकीरों की दरगाह भी है जिनमें हजरत इमाम साहब की दरगाह, हजरत किलकिली साहब , नमक वाला पीर, अब्दाल साहब और नौ गजा पीर कलियर जियारत विशेष उल्लेखनीय हैं.
यहाँ आने वाले जियारिन के लिए सामूहिक भोज (लंगर) का आयोजन भी होता हैं. दो नहरों के मध्य में स्थित इस दरगाह की शौभा देखते ही बनती हैं.
दरगाह साबीर पाक जो कि हजरत अलाऊद्दीन साबीर पाक की दरगाह है तथा यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटन स्थल हैं. मुख्य दरगाह में जायरीन के प्रवेश के लिए दो मुख्य द्वार हैं.
तथा इन दोनों द्वारो के मध्य में साबीर पाक की मजार बनी हुई हैं. इस मजार में साबिर के मृत शरीर को दफन किया गया था. लोग इस पर चादर तथा फूल चढ़ाते हैं.
यहाँ हर साल 12 रबी-उल-अव्वल को हर वर्ष उर्स बड़े धूमधाम से भरा जाता है जिसमें देश के दूर दराज इलाकों से लोग आते है. इस दरगाह से जुड़ी दूसरी ख़ास बात यह है कि भूत पिशाच, बुरी आत्मा तथा रूहों से मुक्ति पाने के लिए यहाँ आने वाले जायरीनों की संख्या अधिक हैं.
बताया जाता है कि साबीर पाक दरगाह में ऐसी पारलौकिक शक्ति है जो भूत प्रेतात्माओं को फ़ासी दे देती हैं तथा पीड़ित व्यक्ति को उससे छुटकारा मिल जाता हैं.
यहाँ की मान्यता के अनुसार दरगाह में एक बड़ा गुलर का पेड़ है जिस पर लोग अपनी अधूरी इच्छाओं को लिखकर पर्चा बांधते हैं. दरगाह में ही एक मस्जिद भी है जिसे साबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता हैं. यहाँ हर गुरूवार को कव्वाली गायन होता है जिसका सभी यात्री लुफ्त उठाते हैं.
इस दरगाह के पास ही एक और दरगाह बनी हुई है जो हजरत साबीर पाक के मामू दरगाह हजरत इमाम साहब की हैं. यह नहर के दूसरे किनारे पर स्थित हैं. इसमें प्रवेश के लिए भी एक सुंदर प्रवेश द्वार बना हुआ है कुछ दूरी तक आगे बढने पर इमाम साहब की दरगाह के दीदार होते है जो भूमितल से एक ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई हैं.
यहाँ अन्य दरगाहों से कुछ अलग ही नजारा दीखता है दरगाह के प्रवेश द्वार पर हमेशा ही मन्दिरों की तरह ही नगाड़े बजते रहते हैं. लोग अपनी जियारत के सलाम के लिए दरगाह के भीतर बने पेड़ पर अपनी मन्नतों का धागा बांधते हैं.
पिरान कालियार शरीफ का इतिहास Who Is kaliyar sharif history in hindi
हजरत सय्यद मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक रहमतुल्ला अलैह ये नाम साबीर पाक के ही है. 13 वीं सदी के ये महान मुस्लिम संत रहे है जो बाबा फकीर के शिष्य थे. इनकी मृत्यु के बाद शेरशाह सूरी ने कलियर शरीफ में दरगाह का निर्माण करवाया था.
ये एक ऐसे दौर में पैदा हुए जब इस्लाम पैगम्बर की बताई बातों को भूलकर अधकार भरे गलियारे में था. तलवार के बल पर मनमानी और धर्म परिवर्तन के इस दौर में सैय्यद खानदान में सय्यद अब्दुर्रहीम के यहाँ इनका जन्म हुआ था.
इनकी माँ का नाम हजरत हाजरा उर्फ जमीला खातून था जो बाबा फरीद की बड़ी बहिन थी. इनके पिता का खानदान इमाम हुसैन से मिलता है जिनका इस्लाम में बहुत बड़ा योगदान रहा.
16 रबिउल अव्लल 562 हिजरी को अफगान के हरात शहर में साबीर पाक का जन्म हुआ था. बचपन से ही इनका रुझान धर्म की ओर अधिक था. रोजे और नमाज इनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा था. मात्र छः साल की आयु में ही इनकी माताजी का देहांत हो गया था.
साबीर पाक के जीवन के बारे में कहा जाता है कि जब ये छोटे थे तो एक दिन दूध पीते तथा दूसरे दिन रोजा रखते थे. फिर दो दिन रोजा और एक दिन माँ का दूध पीते थे. इसके बाद वे अधिकतर समय रोजे ही रखा करते थे.
जब साबीर ग्यारह वर्ष के हुए तो इन्हें पाकिस्तान के पट्टन शहर में बाबा फरीद के पास भेज दिया गया. यही उन्होंने फरीद के शिष्य के रूप में रहकर धर्म की शिक्षा अर्जित की.
वे लंगर का प्रबंध स्वयं करते थे मगर बिलकुल भी नहीं खाते थे. हमेशा अल्लाह की यादों में खोये खोये से रहते थे. इनका विवाह बाबा फरीद की बेटी खतीजा के साथ हुआ. बताया जाता है कि साबीर की खतीजा पर नजर पड़ते ही वह जलकर राख हो गई.
पीरान कलियर शरीफ कैसे पहुचे (How to reach Piran Kaliyar Sharif Dargah in Hindi)
अगर आप कलियर शरीफ की दरगाह पर जियारत अथवा अपनी मन्नत के लिए जाना चाहते है तो आप सड़क मार्ग से बस द्वारा रेल या हवाई जहाज से भी पहुच सकते हैं.
अगर आप लम्बी दूरी से आ रहे है तो निकट का हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है जो कि देहरादून में है यहाँ से इस स्थान की दूरी 61 किलोमीटर हैं.
यदि आप देश के किसी अन्य शहर से रेलमार्ग के जरिये इस दरगाह पहुचना चाहते है तो रेल मार्ग से यह प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा स्थान नहीं हैं. आप नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार से आ सकते हैं. स्टेशन से कलियर शरीफ की दूरी 27 किमी हैं.
यदि आप बस से सफर तय करके यहाँ पहुचना चाहते हैं तो देश के सभी स्थानों से हरिद्वार या रुड़की पहुच सकते हैं. यहाँ से आप बड़ी आसानी से इस दरगाह के लिए जा सकते हैं.
Mere ghar mein bahut samasya hai iska HAL Mujhe chahie