कमलेश्वर का जीवन परिचय | Kamleshwar Biography in Hindi

Kamleshwar Biography in Hindi: बीसवीं सदी के लेखक, कहानीकार कमलेश्वर का जीवन परिचय पढ़ेगे, बालपन में ही इनके पिताजी का देहांत हो गया, नई कहानी आंदोलन के प्रणेता के रूप में कमलेश्वर को याद किया जाता हैं.

इन्होने साहित्य लेखन के नयें स्वरूप फिल्म और ड्रामा स्क्रिप्ट लेखन का कार्य भी किया. कमलेश्वर की बायोग्राफी में उनकी जीवनी, इतिहास, रचनाएं आदि के बारें में यहाँ विस्तार से जानेंगे.

कमलेश्वर का जीवन परिचय | Kamleshwar Biography in Hindi

Kamleshwar Biography in Hindi
जीवन परिचय बिंदुKamleshwar Biography in Hindi
पूरा नामकमलेश्वर प्रशाद सक्सेना
जन्म6 जनवरी 1932
जन्म स्थानमैनपुरी, उत्तरप्रदेश
पहचानलेखक, उपन्यासकार, पटकथा लेखक
अवधि/कालनई कहानी
यादगार कृतियाँकितने पाकिस्तान

कमलेश्वर का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी

नई कहानी के प्रणेता कमलेश्वर का जन्म मैनपूरी उत्तरप्रदेश में 6 जनवरी 1932 को हुआ था. इलाहबाद विश्वविद्यालय से एम ए पास करने के बाद कुछ समय तक शिक्षण कार्य किया तत्पश्चात फ़िल्मी कहानियों एवं टीवी सीरियल भी लिखते रहे.

दूरदर्शन महानिदेशालय में संयुक्त निदेशक के पर भी कार्य किया. लम्बे समय तक मुंबई प्रवास में, बाद में दिल्ली आकर बस गये. सारिका नामक कहानी पत्रिका एवं नई कहानियाँ जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे.

कमलेश्वर नई कहानी के आंदोलनकर्ता रहे हैं. राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर नई कहानी की प्रतिष्ठा में योगदान किया. वे गम्भीर चिंतक, आलोचक, नाटककार, कहानीकार, निबंधकार एवं यात्रा संसमरण लेखक रहे हैं. आपने अनेक उपन्यास भी लिखे हैं.

कमलेश्वर ने मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में रहते हुए सार्थक फिल्मों को एक नई दिशा प्रदान की. आपने देश के राजनैतिक हालात, महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद एवं राजनैतिक अवसरवादिता पर बेबाक टिप्पणियाँ लिखी. प्रसिद्ध हिंदी समाचार पत्रों में आपके सम सामयिक लेख अत्यंत लोकप्रिय रहे हैं, जिनसे आमजन की विचारधारा प्रभावित हुई हैं.

कमलेश्वर का समस्त लेखन यथार्थवादी माना जाता हैं. जो कुछ समाज, देश व संस्कृति में घटित होता रहा हैं, उस पर निर्भीकता एवं स्पष्टता के साथ लिखा, जिसे सराहा भी गया. वे मिलनसार, साहित्यकारों के हितों के रक्षक एवं ओजस्वी व्यक्तित्व के धनी रहे हैं.

कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएं

यथार्थवादी रचनाकार कमलेश्वर ने शहरी और ग्राम्य परिवेश दोनों प्रकार की कहानियाँ लिखी हैं. आपकी रचनाओं में आम आदमी का दर्द झलकता हैं.

उनके प्रति सच्ची हमदर्दी व्यक्त करते हुए व्यवस्था दोष के खिलाफ सशक्त आवाज उठाई हैं. उनका समग्र सृजन निम्नलिखित हैं.

  • कहानी संग्रह – कस्बे का आदमी, नीली झील, माँस का दरिया, राजा निरबंसिया, खोई हुई दिशाएं, मेरी प्रिय कहानियाँ आदि.
  • उपन्यास– डाक, बंग्ला, एक सड़क, सतावन गलियाँ, काली आँधी, तीसरा आदमी, आगामी अतीत, कितने कितने पाकिस्तान
  • नाटक – अधूरी आवाज, रेगिस्तान
  • यात्रा संस्मरण – खंडित यात्राएं.

इसके अतिरिक्त आँधी फिल्म एवं महाभारत टीवी सीरियल के लेखक भी रहे हैं. कमलेश्वर सार्थक और सप्रयोजन लेखन में अग्रणी रहे हैं. उनमें यथार्थता और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का अनूठा समन्वय देखा जाता हैं.

इनकी प्रसिद्ध कहानियों में गर्मियों के दिन, कस्बे का आदमी तथा खोई हुई दिशाएँ, पराया शहर आदि प्रमुख हैं, जो क्रमशः ग्राम्य, कस्बे एवं शहरी जीवन की जदोजहद को चित्रित करती हैं.

वे जिस विषय को उठाते हैं, उसका सटीक प्रभावशाली चित्रण करते हैं, जो पाठक के ह्रदय को झकझोर देता हैं. आपकी कहानियों में मानवीय संवेदना के साथ यांत्रिक जीवन की तनावपूर्ण स्थितियों का सूक्ष्मता से चित्रण हुआ हैं.

कमलेश्वर की कहानी कला

साठोतरी कथा लेखकों के चर्चित हस्ताक्षर कमलेश्वर ने नई कहानी को जीवन दृष्टि एवं विशेष गति प्रदान की हैं. उनकी कहानियाँ नितांत व्यावहारिक जीवन पहलुओं पर आधारित हैं.

उन्होंने संवेदना के स्तर पर खंड या व्यक्ति के माध्यम से पिंड या समष्टि की संवेदना को स्वरूप प्रदान किया हैं. डॉ इन्द्रनाथ मदान के अनुसार एक कहानीकार, आलोचक और कहानी सम्पादक के नाते कमलेश्वर का चिंतन व्यापक, विस्तृत और प्रायः गम्भीर हैं.

वे कभी गहरे में उतरे है तो कभी उथले में ही रह गये हैं. इनकी आवाज को नजर अंदाज करना नई कहानी की आवाज को अनसुना करना होगा. वह नई कहानी की रचना भी करते है और दिशा भी देते हैं.

कमलेश्वर कस्बे की जिन्दगी का अनुभव कर, महानगर में आए थे, तभी तो उनकी कहानियाँ कस्बे से लेकर शहर की स्थितियों का बयान करती हैं.

उनहोंने कथ्य के साथ शिल्प को भी तराश तराश कर एक नवीन, आकर्षक, मोहक एवं प्रभावी स्वरूप प्रदान किया हैं. यथार्थ को अनुभूतिपरक आयाम दिया हैं.

कमलेश्वर की कहानियाँ कुंठित मानसिक विडम्बनाओं पर आधारित हैं. जैसे खोई हुई दिशाएँ का नायक चन्दर बिना किसी प्रयोजन के कनाटप्लेस की रेलिंग के सहारे खड़ा होकर आती जाती भीड़ को देखता हैं तथा बेवजह थकान का अनुभव करने लगता हैं. उसके मन में नारी के प्रति महज भोगवादी दृष्टि हैं.

पत्नी निर्मला के बारे में अनर्गल बातें सोचता हैं और अनायास ही अपनी पूर्व महिला मित्र इंद्रा के घर जा पहुँचता हैं, जो अब शादीशुदा थी. उसके रूखे व्यवहार से हताश होकर घर पहुँचता हैं और सो जाता हैं.

कहानीकार कमलेश्वर ने बेवजह कुंठित होने वाले युवक की मानसिकता का यथातथ्य चित्रण किया हैं. आज के शहरी जीवन में ऐसे युवक मिल जाते है जो व्यर्थ की भटकन में उलझकर अपना दाम्पत्य जीवन दूषित कर लेते हैं.

कमलेश्वर की कहानियों में आज के यांत्रिक युग की मानव चेतना व्यक्त हैं. उसकी सोच सभी यंत्रवत हो गई हैं. इसी कारण पारस्परिक विशवास का संकट उपस्थित हुआ ही हैं. आत्म विश्वास भी खत्म होता जा रहा हैं, आत्मीयता भी समाप्त होती जा रही हैं.

कथानायक चन्दर मित्र आनन्द से नहीं मिलना चाहता था तो पास पड़ौस से भी कटा कता रहता हैं. कमलेश्वर की कहानियाँ अस्तित्ववादी दर्शन पर टिकी हैं.

आजादी के बाद राजनैतिक विडम्बनाओं के कारण जिस व्यवस्था ने जन्म लिया, उसमें जीने के लिए आज का आदमी विवश है, इसलिए हताश भी हैं.

आज भी पुरुष नारी को मात्र भोग्या समझता हैं. उसकी भावनाओं की कद्र नहीं करता, तभी तो कहानी के अंत में चन्दर कामुक और संभोगेच्छा की दृष्टि से आधीरात को पत्नी निर्मला को झकझोर डालता हैं.

कथानक ही नहीं पात्र योजना और वातावरण चित्रण में भी कमलेश्वर यथार्थवादी हैं. कनाटप्लेस से लेकर करोल बाग़ की गहमागहमी, औरतें, भीड़, गाड़ियों की चिल्लीपौ का खोई हुई दिशा में सटीक चित्रण हैं.

जो चन्दन के भीतर कोलाहल को ही व्यंजित करता हैं. वातावरण चित्रण सजीव, ध्वन्यात्मक, गत्यात्मक एवं जीवंत हैं. कहानी की भाषा सरल एवं सपाट हैं. संवाद शैली प्रभावी है जिससे पात्रों का चरित्र व्यंजित हो जाता हैं. पात्रानुकूल भाषा, सहज एवं संवेद्य हैं.

विचार अभिव्यक्ति के लिए दुरूह भाषा का प्रयोग नहीं किया हैं. उर्दू अंग्रेजी के शब्द भी यथा स्थान आ गये हैं. इनकी सभी कहानियाँ उद्देश्यप्रधान हैं,

पाठक को निष्कर्ष तक ले जाती हैं. व्यक्ति के एकाकीपन व अजनबीपन को बखूबी चित्रित किया हैं. राजेन्द्र यादव ने कहा है कि टूटे हुए पुरुष का यही प्रारब्ध हैं.

निधन

एक उपन्यासकार के रूप में कमलेश्वर जी को सबसे अधिक प्रसिद्धि कितने पाकिस्तान से मिली. साल 2002 से 2008 तक कितने पाकिस्तान के ग्यारह संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं.

एक कालजयी साहित्यकार के रूप में जाने गये कमलेश्वर जी को कई सम्मान भी मिले हैं उन्हें 2005 में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया,

साथ ही कितने पाकिस्तान के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया. 27 जनवरी, 2007 को फ़रीदाबाद, हरियाणा में इनका देहावसान हो गया.

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