केशवचंद्र सेन का जीवन परिचय Keshab Chandra Sen Biography in Hindi: बंगाल के एक प्रमुख धार्मिक एवं समाज सुधारक के रूप में सेन का नाम लिया जाता हैं. इन्होने भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की.
इनके गुरु ने इन्हें ब्रह्मानंद की संज्ञा दी हालांकि स्वामी दयानन्द सरस्वती से इनका वैचारिक मतभेद भी माना जाता है. इनका ईसाईयत के प्रति झुकाव भी देखा जाता है इन्होने कई यूरोपीय देशों की भी यात्रा की.
केशवचंद्र सेन जीवन परिचय Keshab Chandra Sen Biography in Hindi
पूरा नाम | केशव चन्द्र सेन |
जन्म | 19 नवम्बर, 1838 |
जन्म भूमि | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 8 जनवरी, 1884 |
मृत्यु स्थान | कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी |
अभिभावक | प्यारेमोहन |
प्रसिद्धि | समाज सुधारक |
पंथ | भारतीय ब्रह्म समाज |
एक प्रसिद्ध समाज सुधारक व धर्म प्रचारक केशव चन्द्र सेन 1838 में कलकत्ता में पैदा हुए थे. अपने जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही वे एक मेधावी छात्र थे.
उन्होंने कलकत्ता के हिन्दू कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की तथा कॉलेज के सभी क्रिया कलापों में विशेष रूचि लेते रहे जिसके चलते वह पढ़ाई के साथ साथ रंगमंच के एक मंझे हुए नायक के रूप में प्रसिद्ध हुए.
केशवचन्द्र सेन को विश्वास था कि सामाजिक परिवर्तन केवल धार्मिक पुन रुत्थान के द्वारा लाया जा सकता हैं. उनके अनुसार सभी सुधारपूर्ण आंदोलनों के मूल में धर्म को स्थापित करना चाहिए.
इसी उद्देश्य को सार्थक करने के लिए वे 1857 में ब्रह्मा समाज में सम्मिलित हुए थे और शीघ्र ही कुछ दिनों बाद उनका सबसे महान कदम जो उन्होंने उठाया था वह था, मूर्तिपूजा का विरोध.
उन्होंने उस तरह की शिक्षा का घोर विरोध किया जिसके अंतर्गत धर्म व ईश्वर को केंद्रीभूत रूप से उपेक्षित किया गया व इस संदर्भ में 1860 में उनके द्वारा रचित ग्रन्थ यंग बंगाल, दिस इज फॉर यू प्रकाश में आया. केशव ने देश के राष्ट्रभक्तों के जीवन में धार्मिक सक्रियता की कमी की भी जमकर आलोचना की.
धार्मिक रूपांतरण तथा प्रार्थना को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 1860 में संगत सभा की स्थापना की. देवेन्द्र नाथ टैगोर जो कि ब्रह्म समाज में केशवचन्द्र सेन से वरिष्ठ थे ने केशव को ब्रह्मनंद नामक उपाधि से विभूषित किया ब्रह्म समाज के अंतर्गत आपस में मतभेद हो जाने के फलस्वरूप केशव व उनके साथियों ने 1866 में भारतीय ब्रह्म समाज की स्थापना की.
वह समाज देवेन्द्रनाथ के आदि ब्रह्मा समाज से भिन्न था. उन्होंने विचार दिया सार्वभौमिकता ईश्वर के मन्दिर के स्वरूप हैं सत्य कभी नष्ट न होने जैसे ग्रन्थ स्वरूप हैं. विश्वास, सभी धर्मों के जड़ स्वरूप हैं, तथा प्रेम, सच्चे आध्यात्मिक संस्कृति का स्वरूप हैं.
केशव ने जातिप्रथा पद्धति तथा ब्राह्मणों के उपनयन संस्कार का प्रबल रूप में विरोध किया. केशव के ब्रह्म समाज ने समाज की पांडुलिपियों या ग्रंथों में बहुत से धार्मिक समुदायों की पवित्र पुस्तकों के सारांश रूप को ग्रहण किया था.
केशव ने 1868 में ब्रह्म मंदिर की भी स्थापना की, जिसका लक्ष्य था सभी धार्मिक पद्धतियों का आदर करना तथा पूर्व स्थापित ब्रह्म समाज के सिद्धांतों से प्रगति करना. केशवचन्द्र सेन के अनुसार हिंदू समाज का मुख्य रूप से मूर्ति पूजक तथा जाति प्रथा को बढ़ावा देना था.
1870 में इंग्लैंड से वापस आने के बाद उन्होंने भारतीय सुधार संस्था की स्थापना की. संस्था के कार्यों को सुचारू रूप से संचा लन व सहायता के लिए उन्होंने सुलभ समाचार पत्र तथा संडे मिरर का सम्पादन किया था. तथा 1861 में भारतीय दर्पण का सम्पादन शुरू किया.
भारतीय दर्पण का सम्पादन शुरू किया. भारतीय दर्पण एक दैनिक समाचार पत्र था. इसके साथ ही साथ उन्होंने नारमल स्कूल फॉर नेटिव, सोसायटी फॉर द बेनिफिट ऑफ वुमेन तथा औद्योगिक स्कूल आदि का भी संचालन किया.
केशवचन्द्र सेन जो कि शुरू से ही सदैव इस सुधार के प्रति लोगों से आग्रह करते रहे, जैसे बाल विवाह बंद हो, विधवा पुनर्विवाह को महत्व दो तथा बहुपत्नी प्रथा को समाप्त करो आदि.
उनका वह स्वप्न 1872 में उस समय साकार हो पाया जब सरकार ने नेटिव मैरिज एक्ट लागू कर दिया जिसके अंतर्गत विधवा पुनर्विवाह के साथ साथ अंतरजातीय विवाह को भी बढ़ावा दिया तथा बाल विवाह व बहुपत्नी विवाह प्रथा को समाप्त कर दिया.
केशवचन्द्र सेन के बाद के अपने जीवन में उनके अपने ही धर्म व समाज के सिद्धान्तवादियों द्वारा उनके कार्यकलाप का विरोध करने लगे. इसके बाद समाज के कार्यों का संचालन खुद करने लगे.
और पूरे अधिकारोधिकार के साथ संचालित करने लगे व इस संबंध में न तो किसी से वाद विवाद करते थे न उनकी राय व विचारों को महत्व देते थे.
स्थापना
भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज | 1866 |
विश्वधर्म | 1875 |
साधारण ब्रह्मसमाज | 1878 |
टेबरनेकल ऑफ न्यू डिस्पेंसेशन | 1868 |
इण्डियन रिफार्म एसोसिएशन | 1870 |
मृत्यु
इण्डियन रिफ़ोर्म ऐसोसियेशन के माध्यम से भारतीय समाज में सुधारों की नींव रखने वाले केशवचन्द्र सेन का एक बड़ा योगदान बालिकाओं की विवाह आयु बढ़ाने वाले कानून निर्माण में भी रहा, इन्ही के प्रयासों के चलते 1872 में एक कानून अस्तित्व में आया. 8 जनवरी, 1884 को कोलकाता में इनका निधन हो गया.
जाति, वर्ग, अन्धविश्वास एवं रुढ़ियों से मुक्त एक आदर्श समाज का सपना देखने वाले सेन राष्ट्रवादी होने के साथ साथ समाज सुधारक के रूप में भी याद किये जाते रहेगे. वे मानवतावादी सोच के पक्षधर और पश्चिमी सभ्यता के मूल आदर्शों की वकालत करने वालों के रूप में भी याद किये जाएगे.
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