कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास | Kumbhalgarh Fort History In Hindi

Kumbhalgarh Fort History- राजस्थान में किलों की संख्या अनगनित हैं जिनमें कुम्भलगढ़ का किला भी मुख्य हैं. 30 किलोमीटर के विशाल धरातलीय भूभाग में फैला यह किला मेवाड़ के प्राचीन इतिहास तथा वीरता का साक्षी रहा हैं. मेवाड़ के प्रतापी शासक महाराणा कुम्भा ने इसका निर्माण करवाया था.

कुम्भलगढ़ दुर्ग- Kumbhalgarh Fort के इस महान दुर्ग को बनाने में 15 वर्षों का समय लगा. राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित इस किले को अजेयगढ़ उपनाम से जाना जाता था. क्योंकि इसकी प्रहरी मोटी दीवार को चाइना वाल की बाद संसार की सबसे दूसरी बड़ी दीवार kumbhalgarh wall माना जाता हैं.

अरावली की घाटियों में अवस्थित कुम्भलगढ़ महाराणा प्रताप की जन्म स्थली रहा हैं. चलिए कुम्भलगढ़ के इतिहास से आपको अगवत करवाते हैं.

कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास | Kumbhalgarh Fort History In Hindi

Kumbhalgarh Fort History In Hindi

राजस्थान के कई किलों स्मारकों तथा ऐतिहासिक स्थलों को विश्व विरासत की सूचि में स्थान मिला हैं जिनमें चित्तौड़गढ़ का का किला तथा कुम्भलगढ़ के किले को भी शामिल किया गया हैं.

क्षेत्रफल के लिहाज से यह चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला भी हैं. यही वजह हैं कि इसे देखने के लिए नित्य हजारो पर्यटक राजसमंद places to see in udaipur आते हैं.

इस किले का इतिहास बेहद प्राचीन रहा हैं, जिनके सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं रहे हैं. ऐसा माना जाता हैं. कि मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र सम्प्रति ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया गया था.

कालान्तर में कई आक्रमणों के चलते यह विध्वस्त हो गया तथा राणा कुम्भा ने उन्ही अवशेषों पर १४४३ में कुम्भलगढ़ का निर्माण आरम्भ करवाया, जो १४५८ ई में बनकर तैयार हुआ. कुम्भा ने अपने शासनकाल में 32 बड़े दुर्गों का निर्माण करवाया जिनमें कुम्भलगढ़ भी था.

कुम्भलगढ़ दुर्ग का इतिहास – Kumbhalgarh fort history

कुम्भलगढ़ का दुर्भेद्य किला राजसमंद जिले में सादड़ी गाँव के पास अरावली पर्वतमाला के एक उतुंग शिखर पर अवस्थित हैं. मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर 1448 ई में महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग की नीव रखी.

जो प्रसिद्ध वास्तुशिल्प मंडन की देखरेख में 1458 ई में बनकर तैयार हुआ. वीर विनोद के अनुसार इसकी चोटी समुद्रतल से 3568 फीट और नीचे की नाल से ७०० फीट ऊँची हैं.

बीहड़ वन से आवृत कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ राजपरिवार का प्रश्रय स्थल रहा हैं. कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में दुर्ग के समीपवर्ती पर्वत श्रंखलाओं के श्वेत, नील, हेमकूट, निषाद, हिमवत, गंधमादन इत्यादि नाम मिलते हैं. वीर विनोद में कहा गया है कि चित्तौड़ के बाद कुम्भलगढ़ दूसरे नंबर पर आता हैं.

अबुल फजल ने कुम्भलगढ़ की उंचाई के बारे में लिखा हैं कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ हैं कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती हैं. कुम्भलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा हैं.

महाराणा प्रताप का जन्म उदयसिंह का राज्याभिषेक और महाराणा कुम्भा की हत्या का साक्षी यह किला मालवा और गुजरात के शासकों की आँख का किरकिरा रहा.

लेकिन काफी प्रयासों के बावजूद भी वे उस पर अधिकार करने में असफल रहे. 1578 ई में मुगल सेनानायक शाहबाज खां ने इस पर अल्पकाल के लिए अधिकार कर लिया था.

किन्तु समय बाद ही महाराणा प्रताप ने इसे पुनः अधिकार में ले लिया. तब से स्वतंत्रताप्राप्ति तक यह किला मेवाड़ के शासकों के पास ही रहा.

कुम्भलगढ़ किले की जानकारी Information About Kumbhalgarh Fort History

इस किले के चारो ओर सुद्रढ़ प्राचीर हैं, जो पहाडियों की ऊँचाई से मिला दी गई हैं. प्राचीरों की चौड़ाई सात मीटर हैं. इस किले में प्रवेश द्वार के अतिरिक्त कहीं से भी घुसना संभव नहीं हैं. प्राचीर की दीवारे चिकनी और सपाट हैं. और जगह जगह पर बने बुर्ज इसे सुद्रढ़ता प्रदान करते हैं.

कुम्भलगढ़ के भीतर ऊँचाई पर एक लघु दुर्ग हैं. जिसे कटारगढ़ कहा जाता हैं. यह गढ़ सात विशाल दरवाजों और सुद्रढ़ दीवार से सुरक्षित हैं.

कटारगढ़ में कुम्भा महल, सबसे ऊपर सादगीपूर्ण हैं. किले के भीतर कुम्भस्वामी का मंदिर, बादल महल, देवी का प्राचीन मंदिर, झाली रानी का महल आदि प्रसिद्ध इमारतें हैं.

हल्दीघाटी के युद्ध से पूर्व महाराणा प्रताप ने कुम्भलगढ़ में ही रहकर युद्ध सम्बन्धी तैयारियां की थी. तथा युद्ध के बाद कुम्भलगढ़ को ही अपना निवास स्थान बनाया था. कुम्भलगढ़ के दुर्भेद्य स्वरूप को निम्न दोहे में प्रकट किया गया हैं.

झाल कटाया, झाली मिले, न रंक कटाया राव
कुम्भलगढ़ रे कागंरे, माछर हो तो आव

इस तरह राजस्थान की शान के रूप में अपने अटल स्वरूप में खड़े कुम्भलगढ़ के किले को आपको भी देखने आना चाहिए. जो घनी अरावली की सुनहरी घाटियों में बसा हुआ हैं.

यह भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक रहा हैं. जिसे युद्ध अथवा आक्रमण के जरिये जीतने की किसी की तमन्ना पूरी नहीं हो पाई थी.

किले के निर्माण से जुड़ी अन्य रोचक बातें

कुछ विद्वानों के नजरिए से देखा जाए तो इस किले को राणा कुंभा के द्वारा नहीं तैयार करवाया गया था बल्कि लोगों के अनुसार यह किला 15 वी शताब्दी के पहले से ही मौजूद था।

सबूतों के अंतर्गत प्रारंभिक किले का निर्माण मौर्य काल में छठी शताब्दी में हुआ था और ऐसा करने वाले राजा का नाम राजा संप्रति था जिन्होंने इस किले का नाम मचंद्रपुर रखा था और फिर तत्कालीन किले का निर्माण राणा कुंभा के द्वारा करवाया गया था।

जब किले के निर्माण की प्रक्रिया चालू हुई थी तब यह प्रक्रिया काफी मुश्किल थी क्योंकि इसकी जो दीवार बनाई गई थी, वह पूरी बनने के पहले ही गिर गई थी और फिर एक साधु की एडवाइस पर एक मानव बलि दी गई थी। 

जिस व्यक्ति की मानव बलि दी गई थी उसका नाम मेहर बाबा था। मेहर बाबा की बलि देने के लिए उसके सर को धड़ से अलग कर दिया था और फिर सिर अलग होकर के जहां पर जा करके रुका, वहां पर ही मंदिर को बनाया गया और जहां पर धड़ गिरा, वहां से ही दीवार के काम को स्टार्ट किया गया।

19वीं शताब्दी के अंत होते-होते राणा फतेह सिंह ने फिर से किले का पुनरुत्थान करवाना चालू किया। कुंभलगढ़ का यह किला मेवाड़ के प्रतापी शासकों के संघर्ष का साक्षात गवाह है।

राणा कुम्भा एवं कुम्भलगढ़ 

किले के नीचे काम करने वाले किसानों तक रोशनी पहुंचाने के लिए राणा कुंभा अपने पास मौजूद बहुत सारे तेल के लैंप का इस्तेमाल करते थे और इसे वह हर शाम को जला देते थे ताकि किसानों तक रोशनी पहुंच सके परंतु ऐसा भी कहा जाता है कि जोधपुर की जो महारानी थी,

उन्हें इन लैंप और राणा कुंभा के प्रति बहुत ही तगड़ा अट्रैक्शन हो गया था और वह अट्रैक्ट होकर के कुंभलगढ़ किले के पास भी पहुंच चुकी थी परंतु राणा कुंभा ने स्थिति को संभालते हुए जोधपुर की महारानी को अपनी बहन माना और उन्हें बहन का सम्मान दिया।

साल 1468 में एक समय जब राणा कुंभा भगवान की भक्ति में लीन थे और भगवान की प्रार्थना कर रहे थे उसी समय उनके बेटे उदय सिंह प्रथम के द्वारा राणा कुंभा की हत्या कर दी गई थी। हालांकि यह जगह कुंभलगढ़ किला नहीं था बल्कि राणा कुंभा की हत्या चित्तौड़ के एकलिंग मंदिर में की गई।

कुम्भलगढ़ किले पर हुए आक्रमण

इस किले का निर्माण काफी मजबूती के साथ किया गया था, साथ ही इसमें सुरक्षा के भी कड़े इंतजाम थे। इसलिए कई बार हमला होने के बावजूद भी कुंभलगढ़ किसी के हाथ नहीं आया।

जब अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा इस किले पर हमला किया गया, तो उसके बाद इस किले पर दूसरा हमला अहमद शाह ने किया है जोकि गुजरात का था परंतु उसे भी असफलता ही हाथ लगी।

हालांकि अहमद शाह बन माता मंदिर को तोड़ने में कामयाब हो गया था। परंतु ऐसा भी कहा जाता है कि किले में मौजूद देवताओं ने किले को अन्य नुकसान होने से बचाया। साल 1458, 1459 और 1467 में महमूद खिलजी ने भी इस किले पर आक्रमण किया परंतु किले को जीतने में नाकामयाब रहा। 

इसके अलावा अकबर, मारवाड़ का राजा उदय सिंह, राजा मानसिंह और गुजरात के मिर्जा ने भी इस किले पर भयंकर आक्रमण किया परंतु राजपूतों की वीरता के आगे सभी शत्रु परास्त होते चले गए।

कुंभलगढ़ के किले को सिर्फ एक ही लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा था और उसके पीछे वजह थी पानी की कमी होना। ऐसा कहा जाता है कि उस लड़ाई में 3 बागबान ने धोखाधड़ी कर ली थी।

उस लड़ाई में शाहबाज खान ने किले को अपने कंट्रोल में कर लिया था। शाहबाज खान अकबर का सेनापति था।  साल 1818 में मराठों ने भी कुंभलगढ़ किले पर कब्जा करने में सफलता हासिल की थी।

किले के इतिहास से जुड़े किस्से और कहानियाँ 

मुगलो के द्वारा जब साल 1535 में चित्तौड़गढ़ किले पर कब्जा कर लिया गया था तो उस समय राणा उदय सिंह की उम्र काफी छोटी थी। उस टाइम उन्हें भी कुंभलगढ़ किले में लाया था और यहां पर उन्हें सुरक्षित रखा गया था।

इसी किले में माता पन्नाधाय ने राणा उदय सिंह को बचाने के लिए अपने बच्चे का बलिदान दिया था और राजवंश की रक्षा की थी। आपको बता दें कि वर्तमान में राजस्थान में जो उदयपुर शहर है उसे बचाने का श्रेय उदय सिंह को ही दिया जाता है।

इस किले में लाखों टैंक उपलब्ध है जिसका निर्माण राणा लाखा के द्वारा करवाया गया था, साथ ही किले में बादल महल नाम का एक सुंदर महल भी है और इसी किले में राजपूत वंश के प्रतापी शासक महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था जो कि सिसोदिया ठाकुर थे।

किले की विशेषताएं 

इस किले की गिनती राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े जिले में होती है, जोकि राजस्थान के उदयपुर शहर से 64 किलोमीटर दूर राजसमंद जिले में पश्चिमी अरावली की पहाड़ियों पर मौजूद है। 

इस किले की ऊंचाई समुद्र तल से तकरीबन 1914 मीटर है और टोटल 36 किलोमीटर लंबा कुंभलगढ़ का किला है। 

कुंभलगढ़ किले की दीवार 38 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसकी चौड़ाई इतनी है कि एक साथ 8 घोड़े जा सकते हैं। 

टोटल 7 दरवाजे इस किले में उपलब्ध हैं, साथ ही इसमें बहुत सारे मंदिर, पार्क और महल भी हैं, जो कुंभलगढ़ किले को बहुत ही आकर्षित बनाता है। 

यहां पर मंदिरों की संख्या 360 से भी अधिक है जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शंकर का है जहां पर बहुत ही बड़ा शिवलिंग स्थापित है साथ ही यहां पर जैन मंदिर भी मौजूद है।

कुंभलगढ़ किले में जैन और हिंदू मंदिरों की संख्या काफी ज्यादा है। 

वर्तमान के समय में कुंभलगढ़ किला पर्यटको के के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने के नाते हर साल लाखों देसी और विदेशी सैलानी यहां पर कुंभलगढ़ किला घूमने के लिए आते हैं।

कुंभलगढ़ किला आसानी से पहुंचा जा सकता है क्योंकि यहां पर जाने के लिए आपको भारत के हर कोने से ट्रेन और हवाई जहाज मिल जाएंगे। किले के आसपास अब विभिन्न होटल और धर्मशालाएं भी हो गई है जहां पर सैलानी ठहर सकते हैं।

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