महर्षि दधीचि का जीवन परिचय कहानी Maharshi Dadhichi In Hindi

महर्षि दधीचि का जीवन परिचय कहानी Maharshi Dadhichi In Hindi : भारतवर्ष में कई ज्ञानी सिद्ध पुरुष और योगी हुए हैं. जिनमें एक नाम महर्षि दधीचि का नाम भी प्रमुख हैं.

मानव जाति के कल्याण तथा दैत्यों से पृथ्वी लोक को बचाने के लिए ऋषि दधीचि ने अपने प्राणों का त्याग कर अपनी अस्तियो के वज्र को इंद्र को दिया जिनकी मदद से उन्होंने असुरो पर विजय प्राप्त की थी.

महर्षि दधीचि का जीवन परिचय कहानी Maharshi Dadhichi In Hindi

महर्षि दधीचि का जीवन परिचय कहानी Maharshi Dadhichi In Hindi

दधीचि भारत के वैदिक काल के महान ऋषि थे. जिनकें पिता का नाम अथर्व तथा माता का नाम शान्ति बताया जाता हैं.

वृत्रासुर व इंद्र के मध्य हुए ऐतिहासिक युद्ध के संदर्भ में कहा जाता है कि देवराज इंद्र जिस धनुष का उपयोग कर रहे थे वह महर्षि दधीची की हड्डियों से निर्मित था.

धार्मिक ग्रंथों में इनके एक अन्य नाम दध्यंच का उल्लेख भी मिलता हैं. इनके सम्बन्ध में कई कथाएँ प्रचलित हैं इनके बेटे का नाम पिप्पलाद था, इसके बारे में कहा जाता है कि पिप्पलाद का जन्म दधिची की म्रत्यु के उपरान्त हुआ था.

देवताओं ने ऋषि के कुल को समाप्त होते देख सती होने से पूर्व शान्ति के गर्भ में पीपल को सौप दिया था इस वजह से उनके पुत्र का नाम पिप्पलाद रखा गया.

महर्षि दधीचि अपने बाल्यकाल से ही परोपकारी और साहसी थे. एक बार एक पेड़ पर जहरीला सांप चढ़ गया. उस पेड़ पर एक तोते का परिवार रहता था. 

साँप ने तोते के नन्हे बच्चे को पकड़ लिया. बच्चा बचने के लिए फडफडाने लगा. अपने बच्चे की मृत्यु समीप देख तोता और तोती बिलखने लगे.

पेड़ के नीचे तमाशबीन लोगों की भीड़ जमा हो गई, लेकिन किसी ने तोते के बच्चे को बचाने की हिम्मत नही दिखाई. वही पास में ही दधीचि खेल रहे थे. शौरगुल सुनकर वे वहां पहुचे.

वस्तुस्थिति को समझते ही वे पेड़ पर चढ़ गये. नीचे खड़े लोग चिल्लाने लगे- दधीची नीचे उतर आओ, सांप तुम्हे डंस लेगा. दधीचि बोले- जीव की रक्षा करना मनुष्य का धर्म हैं. मैं तोते के परिवार को विपत्ति में पड़ा देख, उससे मुह मोड़ नही सकता.

उन्होंने लकड़ी मार मारकर सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ा लिया. अपने बच्चे को जीवित देख तोता और तोती चहचहा उठे. इससे पहले कि क्रोधित सांप उन पर हमला करता, उन्होंने पेड़ से छलांग लगा दी, उन्हें काफी चोटे आई.

लोगो ने पूछा दधीचि तुम्हे डर नही लहै. महर्षि ने उत्तर दिया- डरना कैसा, डरना हैं तो गलत काम से डरो. अच्छा काम करने वालों की रक्षा तो स्वयं भगवान करता हैं.

दधीचि की यही लोक रक्षा की भावना आगे इतनी प्रगाढ़ हो गई कि उन्होंने अपने शरीर की हड्डियों तक असुरता के नाश हेतु दान दे डाली. आज भी दधीची अपने इन्ही भाव के कारण विश्वविख्यात हैं.

दधीचि द्वारा अस्थियों का दान

वलोक पर वृत्रासुर राक्षस का अधिकार हो गया था. उन्होंने देवताओं को खदेड़ दिया. वह हर तरीके से देवताओं और जनता को प्रताड़ित करने लगा. दिन ब दिन उसके अत्याचार बढ़ रहे थे.

अब देवराज इंद्र को अपने राज्य को बचाने की चिंता सता रही थी. वृत्रासुर का वध करना उनके लिए आसान कार्य नही थे. वे पहले से उसकी शक्ति से परिचित थे. अतः उन्होंने महर्षि दधीचि के पास जाना ही उपयुक्त समझा.

जब वे ऋषि की कुटिया में पहुचे तो दधीचि ने देवराज का आदर सत्कार किया और उनके आने का कारण पूछा. तब उन्होंने अपनी सम्पूर्ण व्यथा ऋषि को बताई.

इस पर दधीचि बोले महाराज में देव्राज्य एवं देवताओं की किस तरह मदद कर सकता हूँ. इस पर इंद्र ने उन्हें सारी विधि बताई तथा उनसे अपनी हड्डियों का दान माँगा.

महर्षि ने बिना कोई सवाल किये अपनी देह त्याग कर देवताओं की मदद करने की बात पर राजी हो गये. उसी समय उन्होंने समाधि मुद्रा में ध्यान लगाया और अपनी देह का त्याग कर दिया.

संयोगवश उस समय उनकी पत्नी वहा नही थी. अब देवताओं के सामने सबसे बड़ी मुसीबत यह थी कि ऋषि के शरीर की चमड़ी और मांस कैसे हटाकर वे हड्डियाँ प्राप्त करे.

ऋषि की एक प्रिय कामधेनु गाय थी, देवताओं के आग्रह पर कामधेनु ने इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया. गाय ने अपनी जीभ से महर्षि को चाट चाटकर उनका सारा मांस अलग कर दिया. अब केवल हड्डियों का ढांचा ही बचा था, जिनकी देवताओं को आवश्यकता थी.

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आज भी इस ऋषि का वंश दाधीच कहलाता है, जिन्हें वे भगवान स्वरूप मानते हैं. Maharshi Dadhichi In Hindi में हमने आपकों महर्षि दधीचि का संक्षिप्त जीवन परिचय एवं उनकी कहानी के बारे में बताया हैं.

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