महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन: हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बीसवीं सदी का युगपुरुष भी कहा जाता हैं. उनका जीवन आदर्शों एवं मूल्यों पर पूर्ण रूप से आधारित था. वे प्रयोजनवाद के विचारों से गहरे प्रभावित थे.
दुनिया भर में आज गांधीजी को महान नेता एवं समाज सुधारक के साथ साथ शिक्षा दार्शनिक के रूप में भी जाना जाता हैं. उनका मानना था कि समाज की उन्नति में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका हैं.
शिक्षा के प्रति इनकी विशेष सोच थी, जो कालान्तर में गांधीजी के शिक्षा दर्शन के रूप में जानी जाती हैं. वे शिक्षा के माध्यम से शोषण विहीन समाज का निर्माण करना चाहते थे.
जहाँ किसी तरह जाति, वर्ग, लिंग का भेद न हो, सभी समरसता के साथ जी सके. उनका मानना था कि समाज के प्रत्येक सदस्य का शिक्षित होना जरुरी हैं, शिक्षा के बगैर एक आधुनिक समाज का सपना असम्भव ही हैं.
गांधीजी का शिक्षा दर्शन बेहद व्यापक एवं जीवनोपयोगी हैं. उन्होंने शिक्षा के मुख्य सिद्धातों, उद्देश्यों तथा शिक्षा की योजना को मूर्त रूप देने का प्रयत्न किया.
गांधीजी का आधुनिक शिक्षा दर्शन उन्हें समाज में एक शिक्षाशास्त्री का दर्जा दिलवाता हैं. उन्होंने बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह अद्वितीय था.
भारत में शिक्षा को स्वावलंबी बनाने की दिशा में उन्होंने 3H की अवधारणा प्रस्तुत की, गांधी जी का मानना था कि बच्चों को हार्ट, हैण्ड और हेड (भावात्मक, गत्यात्मक और बौद्धिक) शिक्षण कराया जाना चाहिए. जिसमें ये तीनों अंग सक्रिय हो.
देश को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने में शिक्षा एक महत्वपूर्ण टूल हैं जिसकी मदद से हम देश को स्वालम्बी बना सकते हैं.
महात्मा गांधी और भारतीय शिक्षा
गांधीजी ने लम्बे समय तक भारतीय शिक्षा का अध्ययन किया और अंत में इस परिणाम पर पहुचे कि शिक्षा समाज आधारित हो चुकी हैं, जिसमें सरकार की कोई भागीदारी नहीं रही हैं. वे भारतीय शिक्षा को एक सुंदर वृक्ष (ब्यूटीफुल ट्री) की संज्ञा देते थे.
डोक्टर धर्मपाल प्रसिद्ध गांधीवादी शोधकर्ता रहे हैं. जिन्होंने गांधीजी द्वारा भारतीय शिक्षा को लेकर कहे गये द ब्यूटीफुल ट्री को लेकर अपना शोध आरम्भ किया. उन्होंने अंग्रेजी दौर और उससे पूर्व के शिक्षा से जुड़े दस्तावेजों को खंगाला.
वे भारत व ब्रिटेन में भारतीय संग्रहालयो और ग्रंथालयों से ब्रिटिशकालीन शिक्षा से जुड़े स्रोत खोजते रहे. उनके शोध का निष्कर्ष यह था, ब्रिटिश सरकार ने भारत को न केवल औद्योगिक बल्कि साहित्यिक, नैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी खोखला बना दिया था.
मेकाले की शिक्षा पद्धति ने गोरी मानसिकता के गुलामों को जन्म दिया, अंग्रेजी शिक्षा के चलते ही यहाँ कुछ घराने भारत के भाग्य निर्माता बन पाए.
महात्मा गांधी का आधारभूत शिक्षा दर्शन सिद्धान्त
गांधीजी ने शिक्षा को अपने शब्दों में परिभाषित करते हुए कहा कि शिक्षा से मेरा अर्थ मानव या बालक के शरीर, आत्मा और मन मस्तिष्क का चहुमुखी विकास.
वे बालक के शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और मानसिक विकास का आधार शिक्षा को मानते थे. महात्मा गांधी ने शिक्षा दर्शन में शिक्षा के 7 आधारभूत सिद्धांतों का वर्णन किया, जो इस प्रकार से हैं.
- 7 से 14 वर्ष की आयु के सभी बालक बालिकाओं को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा मिले.
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए.
- साक्षरता और शिक्षा अलग अलग हैं, इन्हें एक न माना जाए
- शिक्षा का उद्देश्य बालक में मानवीय गुणों का विकास करना हैं.
- बालक को ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे उसके ह्रदय, मन और आत्मा का संतुलित विकास हो सके.
- शिक्षा में स्थानीय उद्योग को माध्यम बनाया जाए
- शिक्षा रोजगारपरक हो, पढ़े लिखे बेरोजगार न हो
गांधीजी के शिक्षा दर्शन के उद्देश्य
महात्मा गांधी ने अपने शिक्षा दर्शन में शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों को दो भागों में विभक्त किया हैं. पहला तात्कालिक उद्देश्य एवं दूसरा सर्वोच्च उद्देश्य जो इस प्रकार हैं. जिनकों नियमित शिक्षा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता हैं.
- रोजगार का साधन: महात्मा गांधी के विचार में शिक्षा ऐसी हो बालक की आर्थिक आवश्यकताओ को पूरा करती हो, बालक शिक्षा के द्वारा आत्मनिर्भर बन सके तथा बेरोजगारी से मुक्त हो.
- सांस्कृतिक लक्ष्य: गांधीजी ने शिक्षा को संस्कृति का आधार माना हैं. बालक की शिक्षा ऐसी हो जो उनको अपनी संस्कृति तथा परम्पराओं व मूल्यों से जोडकर रखे.
- बालक का समग्र विकास: उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालक का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास करने वाली हो.
- गांधीजी ने नैतिक एवं चारित्रिक उत्थान वाली शिक्षा पर बल दिया.
- महात्मा गांधी ने शिक्षा का पांचवा उद्देश्य मुक्ति बताया, सभी तरह के बन्धनों से मुक्ति वाली हैं. बालक को आध्यात्मिक स्वतन्त्रता हो. वे सत्य और ईश्वर प्राप्ति को शिक्षा के साथ समायोजित करना चाहते हैं, जिससे मानव अपने सर्वोच्च लक्ष्य को पा सके.
गांधीजी की बेसिक अथवा बुनियादी शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में गांधीजी का बेसिक शिक्षा का फार्मूला एक महानतम देन हैं. उन्होंने बच्चें की बुनियादी शिक्षा कैसी हो उसका स्वरूप क्या हो, इसका सम्पूर्ण मॉडल प्रस्तुत किया था.
उन्होंने 1937 में वर्धा के राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन के दौरान भारत में शिक्षा का यह मॉडल प्रस्तुत किया था. जिसमें दसवीं तक अंग्रेजी मुक्त कुटीर उद्योग आधारित थी.
जाकिर हुसैन समिति द्वारा गांधीजी द्वारा प्रस्तावित स्कूल शिक्षा की योजना तैयार की और 1938 के हरिपुर सम्मेलन में इसे स्वीकृति मिल गई थी. गांधीजी की बुनियादी शिक्षा को वर्धा शिक्षा योजना के नाम से भी जाना जाता हैं.
बुनियादी शिक्षा की विशेषताएँ
- बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रम 7 वर्ष की अवधि का था.
- इसमें 7 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की बात कही गई.
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होगी, मगर हिंदी भाषा सभी के लिए अनिवार्य रहेगी.
- बुनियादी शिक्षा का आधार शिल्प था.
- शिल्प शिक्षा के माध्यम से बालकों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य थे.
- शिल्प शिक्षा में सामाजिक एव वैज्ञानिक शिक्षण को महत्व दिया जाए
- शारीरिक श्रम को महत्ता
- यह शिक्षा बालक के परिवेश उनके गाँव और शिल्प उद्योग से घनिष्ठ सम्बन्धित हो
- बालक स्वयं निर्मित उत्पाद का विक्रय कर विद्यालय पर व्यय कर सके
- लड़के तथा लड़कियों के लिए समान पाठ्यक्रम की व्यवस्था
- कक्षा 6 और 7 में पढ़ने वाली बालिकाएं बेसिक शिल्प से गृह विज्ञान ले सकती हैं.
- पाठ्यक्रम का स्तर दसवीं के तुल्य हो
- पाठ्यक्रम में धर्म एवं अंग्रेजी का कोई स्थान नहीं होगा.
महात्मा गांधी के जीवन मूल्यों में राष्ट्रीय सभ्यता और संस्कृति का अहम स्थान था. उनकी बुनियादी शिक्षा का प्रारूप भी इन उच्च आदर्शों के साथ बालक के परिवेश से जड़े व्यवसायों से सम्बन्धित था.
उनके मुताबिक़ एक बालक अपने स्थानीय शिल्प में शिक्षा अर्जित कर कुशल कारीगर बनकर अपने जीवन का निर्वाह आसानी से कर सकता हैं. गांधीजी की शिक्षा का जुड़ाव जीवन से था, उसका आधार और उद्देश्य ही जीवन था, इसलिए उन्होंने बुनियादी या आधारभूत शिक्षा का नाम दिया.
इनकी बुनियादी शिक्षा में कृषि, कताई-बुनाई, लकड़ी, चमड़े, मिट्टी का काम, पुस्तक कला, मछली पालन, फल व सब्जी की बागवानी, बालिकाओं हेतु गृहविज्ञान ये समस्त विषय थे, जो हमारे सामाजिक परिवेश से जुड़े हुए हैं.
इनके अतिरिक्त वे बालकों को मातृभाषा, गणित, सामाजिक अध्ययन एवं सामान्य विज्ञान, कला, हिंदी, शारीरिक शिक्षा देने की वकालत करते हैं. गांधी जी के अनुसार शिक्षक द्वारा बालकों को कार्य क्रिया और अनुभव आधारित शिक्षण कराना चाहिए.
गांधीजी के बुनियादी शिक्षा स्वरूप में हस्त शिल्प आधारित शिक्षा पर बल दिया गया. उनके मुताबिक समस्त विषयों को समवाय पद्धति से पढाया जाना चाहिए, जिसमें बालक करके सीखे, अपने अनुभव द्वारा सीखे तथा क्रिया करके सीखे.
वे व्यावहारिक शिक्षण विधि के पक्षधर थे. उनका मानना था कि सभी विषयों की शिक्षा आधारभूत शिल्प के माध्यम से दी जानी चाहिए.
आज के समय में भी महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन अपनी वर्तमान प्रासंगिकता बनाए हुए हैं. बुनियादी शिक्षा की सही व्याख्या और इसका मूल्यांकन किया जाए तो ये दर्शन न केवल आज उपयोगी हैं, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को जीवनउन्मुख बना सकता हैं,
इससे देश पढ़े लिखे युवा बेरोजगार भी नहीं होंगे. भारतीय जीवन को ध्यान में रखते हुए ऐसी पहली शिक्षा योजना का प्रस्ताव रखने वाले गांधीजी ही थी. जिसके क्रियान्वयन से समाज के ढांचागत स्वरूप में गुणात्मक बदलाव किये जा सकते थे.
जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को आदर्श मानने वाले गांधीजी आदर्शवाद और प्रयोजनवाद आधारित शिक्षा प्रणाली पर बल देते थे. ये बालक को अपनी रूचि के अनुसार क्रिया करके सीखने की पद्धति के समर्थक थे.
बालक को उसकी प्रकृति के अनुसार उनको शिक्षा दिलाना चाहते थे, अतः इन्हें प्रकृतिवादी भी कहा जा सकता हैं. उनका शिक्षा दर्शन आदर्शवाद, प्रयोजन वाद और प्रकृतिवाद का समन्वित रूप था.
देश में आजादी के 65 वर्षों के बाद गांधी के शिक्षा दर्शन से प्रेरणा लेकर निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार वर्ष 2009 में प्रदान किया गया, जिसमें 6 से 14 वर्ष के बालकों को अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान किया गया.
साथ ही बालक बालिकाओं को मातृभाषा में शिक्षा के साथ ही सभी के लिए समान पाठ्यक्रम पर आज भी निरंतर प्रयास किये गये हैं.
महात्मा गांधी के विकास में सभी बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए, मगर वह शिक्षा जीवनोपयोगी हो तथा रोजगार पैदा करने वाली हो, आज जब हम अपने देश में बेरोजगारी की स्थिति देखते हैं, तो निश्चय ही शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठेगे. गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा पर जोर दिया जिसमें औद्योगिक प्रशिक्षण भी सम्मिलित था.
इस तरह बच्चा दसवीं तक पढ़ते पढ़ते किसी हस्त कौशल में निपुण बन जाता तथा यह बेरोजगारी की समस्या से मुक्ति दिलाने वाला कारगर उपाय था. वर्तमान में शिक्षा में व्यावसायिकता पर बल उसी बुनियादी शिक्षा की अवधारणा से प्रेरित हैं.
गांधीजी ने अपने शिक्षा दर्शन में मानवीय मूल्यों आधारित शिक्षा देने की बात की हैं. आज हमारी सामाजिक विकृतियों का मूल कारण शिक्षा में मानवता के शिक्षण की कमी ही हैं. वे क्रिया करके सीखने पर बल देते थे.
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 में भी गांधी के एक तत्व को अपनाया गया हैं. NCF कहता हैं कि बच्चों को करके सीखने के अधिकतम अवसर दिए जाने चाहिए, इससे सीखा हुआ ज्ञान मात्र सैद्धांतिक न होकर स्थायी हो जाता हैं.
उन्होंने परिश्रम को भी शिक्षा में अनिवार्य तत्व माना. मानव को अपना कार्य स्वयं करने की आदत डालनी चाहिए, इससे वह किसी पर निर्भर नहीं रहेगा.
साथ ही श्रम के आधार पर समाज में उंच नीच भी समाप्त हो जाएगी. आज भी कला शिक्षा जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में अनिवार्य करके बालक में श्रम के प्रति आदर का भाव पैदा किया जा रहा हैं. जिससे वह बेझिझक उत्पादन कार्य से जुड़ सकेगा.
महात्मा गांधी अपने शिक्षा दर्शन में शिक्षा के माध्यम से सर्वोदय समाज की स्थापना का सपना देखते हैं. उनके सर्वोदय समाज में परिश्रम का सम्मान होगा, धन की बजाय परस्पर सहयोग और स्नेह की भावनाएं होगी, घ्रणा व पृथकता के स्थान पर पर हित के भाव होंगे. लोग संचय की बजाय त्याग पर बल देगे.
आज के समाज में जिस तरह मानवता पैरों तले कुचली जा रही हैं, इससे यह कहा जा सकता हैं कि आज भी गांधी के सर्वोदय समाज की अवधारणा की प्रांसगिकता हैं.
उन्होंने शिक्षा को धर्म से पूरी तरह अलग रखने की बात कही थी. उनका मानना था कि धर्म लोगों में विवाद और झगड़ों को जन्म देता हैं, आज की स्थिति उनकी इस बात का प्रमाण भी देती हैं.
अंत में निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता हैं कि गांधी का शिक्षा दर्शन भारतीय जीवन पर आधारित था, इसलिए इसका महत्व कल भी था और आज भी हैं. बापू द्वारा बताए गये शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि को आज भी किसी न किसी रूप में हमारी शिक्षा व्यवस्था में अमल में लाया जा रहा हैं.
बेसिक शिक्षा चाहे ग्रामीण क्षेत्र के लिए हो अथवा शहरी क्षेत्र के लिए यह बालक को अपने परिवेश से जोडकर क्रिया आधारित शिक्षा देने पर बल देती हैं. जो बच्चे के मानसिक, शारीरिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास पर विशेष ध्यान देती हैं.
शिक्षा का माध्यम
जैसा कि पूर्व विदित हैं, महात्मा गांधी ने बुनियादी शिक्षा दर्शन में बच्चे को मातृभाषा में शिक्षा देने की बात प्रमुखता से कही हैं, उनके विचार में अंग्रेजी भाषा शोषण की प्रतीक हैं. उसके स्थान पर बच्चे को मातृभाषा में शिक्षा के साथ ही हिंदी की अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जानी चाहिए.
विद्यालय का वातावरण बालक के परिवेश से पूरी तरह जुड़ा हो तो उन्हें सीखने में सहजता होगी. ऐसा केवल मातृभाषा के प्रयोग से ही सम्भव हैं. वे शिक्षा में मातृभाषा को कितना महत्व देते थे, उनके एक कथन से इस बात को समझा जा सकता हैं.
“यदि मैं तानाशाह होता तो आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा दिया जाना बंद कर देता जो आनाकानी करते उन्हें बर्खास्त कर देता मैं पाठ्य पुस्तकों के तैयार किए जाने का इंतजार न करता।”
Thank you Sir/Mam
This is so helpful…