मातृ नवमी कब है 2022 तिथि महत्व एवं कथा | Matra Navami Tithi Importance Kahani In Hindi इस साल 2 अक्टूबर 2018 मंगलवार को हैं. आश्विन कृष्ण पक्ष की नवमी को मातृ नवमी कहा जाता हैं. जिस प्रकार पुत्र अपने पिता, पितामह आदि पूर्वजों के निमित पितृपक्ष में तर्पण करते हैं, उसी उसी प्रकार सदगृहस्थों की पुत्र वधुएँ भी अपनी दिवंगता सास, माता आदि के निमित्त पितृपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक तर्पण कार्य करती हैं.
मातृ नवमी कब है 2022 तिथि महत्व एवं कथा
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नवमी के दिन स्वर्गवासी माँ तथा सास की आत्मा की शान्ति के लिए ब्राह्मणी को दान दिया जाता हैं. मातृ नवमी को माता के श्राद्ध करने का विधान हैं. इस तिथि को सधवा अथवा पुत्र पुत्रवती स्त्रियों को भोजन कराना पूण्यकारी माना गया हैं.
नवमी श्राद्ध का महत्त्व (Matra Navami Importance)
डोकरा नवमी एवं सौभाग्यवती श्राद्ध मातृ नवमी को ही कहा जाता हैं. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार हर एक कर्तव्यपरायण सन्तान के लिए श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व हैं. आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृपक्ष की शुरुआत हो जाती हैं. इन 16 दिनों के दौरान परलोक को गमन अपने माता-पिता तथा रिश्तेदारों के श्राद्ध किये जाते हैं. कहा जाता हैं इन 16 दिन की अवधि में यमराज गत आत्मा को अपने बंधन से मुक्त कर देता हैं ताकि वे अपने स्वजनों द्वारा किये जा रहे श्राद्ध को स्वीकार कर सके.
मातृ नवमी की शुरुआत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि से होती हैं. जिस विशेष दिन अपनी माता या सास का परलोक गमन हुआ हो उस दिन श्रद्धाजंलि देकर दान पूण्य किया जाता हैं. इस दिन बहुओं अथवा पुत्रवधुओं द्वारा व्रत रखा जाता हैं. मातृ नवमी का यह श्राद्ध कर व्रत रखने से सौभाग्य, धन, संपत्ति व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं.
2022 में मातृ नवमी कब है तिथि व समय (Matra Navami 2022 date time)
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार अश्विन कृष्ण नवमी के दिन माताओं सुहागन महिलाओं और अज्ञात पूर्वज महिलाओ के नाम के श्राद्ध किये जाते है. विधि विधान से उनका तर्पण करने से मातृ शक्ति प्रसन्न होती है तथा मनोकामना पूर्ण होती हैं. साल 2022 में यह व्रत 19 सितम्बर के दिन मनाया जाएगा.
तिथि | सोमवार, 19 सितंबर 2022 |
नवमी तिथि शुरू | 18 सितंबर 2022 अपराह्न 04:32 बजे |
नवमी तिथि समाप्त | 19 सितंबर 2022 शाम 07:01 बजे |
मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि (Matra Navmi Shradh Vidhi)
- श्राद्धकर्ता को सवेरे जल्दी उठने के बाद अपने नित्यादी कर्मों से निवृत होकर दक्षिण दिशा में अपनी स्वर्गवासी माँ अथवा सास की तस्वीर या फोटो लगानी चाहिए.
- इस दिन हरे वस्त्र पर मूर्ति स्थापित करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुगधित धूप करें, जल में मिश्री और तिल डालकर अपनी माता का तर्पण करे.
- इसके पश्चात कुशासन पर बैठकर गीता के नौवे अध्याय का पाठन करे.
- अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्रह्मनियों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करे.
- इस तिथि को कोई भोजन करने वाला न मिलने की स्थति में आटा, चीनी, घी, फल, आलू, नमक, दाल आदि किसी भूखे को अथवा मंदिर में दे देना चाहिए.
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