मुद्रा क्या है अर्थ, कार्य परिभाषा What Is Money Meaning Functions Importance In Hindi: नमस्कार मित्रो आज हम करेंसी अर्थात मुद्रा के बारे में जानेंगे।
इस निबंध में यह समझने की कोशिश करेंगे कि मुद्रा का अर्थ परिभाषा क्या है इसके कार्य महत्व इतिहास तथा अर्थव्यवस्था में महत्व को जानेंगे।
मुद्रा क्या है अर्थ, कार्य एवं परिभाषा । What Is Money In Hindi
मुद्रा का आविष्कार मानवीय आविष्कारों में सबसे महत्वपूर्ण है, ज्ञान की प्रत्येक शाखा में एक महत्वपूर्ण आविष्कार हुआ है।
जैसे यन्त्र कला में पहिये का, विज्ञान में आग का, राजनीति शास्त्र में वोट का, उसी प्रकार अर्थशास्त्र तथा मनुष्य के सामाजिक जीवन के व्यापारिक पक्ष में मुद्रा एक महत्वपूर्ण आविष्कार हैं।
आदिकाल में मनुष्य अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर निर्भर था। मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ उसने समूह में रहना सीखा।
समूहों में रहते हुए मनुष्यो ने अपनी रुचि, कौशल एवं क्षमता के आधार पर अलग अलग व्यवसायों का चयन किया, जिनसे उनकी विभिन्न आवश्यकताए पूरी होने लगी।
प्रारम्भिक काल मे समूह छोटे होने के कारण मनुष्य अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का लेन देन सहज और सरल रूप में करने लगे। वस्तु के बदले वस्तु खरीदने या बेचने की इस व्यवस्था को वस्तु विनिमय कहा जाता हैं।
वस्तु विनिमय प्रणाली
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत दो व्यक्तियों द्वारा परस्पर स्वयं द्वारा उत्पादित अतिरिक्त वस्तु अथवा सेवा का लेन देन किया जाता था। प्राचीन काल मे मनुष्य केवल प्राथमिक व्यवसाय में ही संलग्न था.
जैसे कृषि, पशुपालन, मछली पालन व आखेट इत्यादि। अतः सामान्यतः अनाज के बदले वस्त्र, वस्त्र के बदले दूध, दूध के बदले अनाज तथा पालतू पशुओं का भी क्रय विक्रय इस प्रणाली के माध्यम से किया जाता था। यह व्यवस्था पूर्णतः आपसी समझ और विश्वास पर आधारित थी।
वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयां
मानव सभ्यताओं के विकास के साथ मनुष्यों के आर्थिक क्रियाकलाप बढ़ते चले गए और वस्तु विनिमय प्रणाली में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होने लगी, जिसके कारण इसका लोप हो गया।
फलस्वरूप इसका स्थान मुद्रा व्यवस्था ने ले लिया। आइये कुछ प्रमुख कठिनाइयों को समझने का प्रयास करते हैं।
- दोहरे संयोग की कठिनाई– बाजार में वस्तु विनिमय तभी सम्भव हो सकता है जब दो व्यक्ति एक दूसरे के लिये उपयोगी वस्तुओ का लेन देन हेतु तत्पर हो। ऐसा सहयोग सदैव मिलना कठिन है, यदि एक किसान अपने अतिरिक्त गेहूं के बदले चीनी खरीदनी है तो उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश करनी पड़ेगी जिसके पास अतिरिक्त चीनी विनिमय हेतु उपलब्ध हो, ऐसा संयोग आसानी से मिलना संभव हो यह आवश्यक नहीं होता था।
- वस्तु के मूल्य मापने में कठिनाई – विनिमय हेतु अतिरिक्त वस्तु मापना कठिन कार्य होता है। लेन देन तथा विनिमय करने वाले दोनों व्यक्ति करते थे। वास्तव में प्रत्येक सौदे में वस्तुओ का नये सिरे से मोलभाव करना अत्यंत कठिन कार्य हैं।
- भावी बचत सम्भव नही – इस व्यवस्था में ऐसी वस्तुओं का भी लेन देन होता था जिनका दीर्घकाल तक संचय करना कठिन होता था। विशेष तौर पर दुध, फल, सब्जियाँ आदि खाद्य पदार्थ भावी समय के लिए बचाकर नही रखे जा सकते हैं। अतएव इस प्रणाली में अतिरिक्त उत्पादों की भावी बचत सम्भव नही थी।
- अविभाज्य वस्तु के विनिमय में कठिनाई – वस्तु विनिमय प्रणाली में प्रायः वस्तु विभाजन की समस्या भी उत्त्पन्न हो जाती थी, उदाहरण के लिए एक भैंस का विनिमय मूल्य चार बोरी गेंहू है तो ऐसे में यदि किसान की जरूरत एक बोरी गेंहू है तो वह अपनी भैंस को एक बोरी से विनिमय नही कर सकेगा।
- उधार के लेखे में कठिनाई – वस्तु विनिमय में सौदे तत्कालिक ही सम्भव हो पाते थे, यदि कोई व्यक्ति उधार रख कर वस्तु विनिमय के द्वारा प्राप्त करना चाहता था तो उधार रखी गयीं वस्तु की भावी कीमत कितनी होगी यह पता लगाना अत्यंत कठिन कार्य था।
वस्तु विनिमय प्रणाली के अंतर्गत उपरोक्त कठिनाइयों के कारण कालांतर में इस व्यवस्था का लोप हो गया और मुद्रा का प्रादुर्भाव विनिमय के माध्यम के रूप में हुआ।
मुद्रा का प्रादुर्भाव जन्म शुरुआत इतिहास – करेंसी /मनी हिस्ट्री इन हिंदी
प्राचीन भारतीय इतिहास राजा महाराजाओं का इतिहास रहा है। ऐसी राजव्यवस्था में समस्त आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों के अंतिम निर्णयकर्ता राजा हुआ करते थे।
यहां तक कि वे अपनी मोहर जिस वस्तु या धातु पर टंकित कर देते थे वह राजकीय मुद्रा का रूप धारण कर लेती थी। सिक्कों का चलन इसी प्रणाली के विकास को दर्शाता है।
देशकाल और परिस्थिति के अनुसार सोने, चांदी, ताँबे व कांसे के सिक्के चलाये गए। इस प्रकार जारी मुद्रा सर्वग्राह्यता एवं वैधानिकता के गुणों के साथ विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाने लगी।
मुद्रा का अर्थ व परिभाषा Meaning And Defination Of Money In Hindi
मुद्रा को अंग्रेजी में मनी (money) कहते है। इस मनी शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के मोनेटा शब्द से हुई है। मोनेटा देवी जूनो का दूसरा नाम है। प्राचीन रोम में देवी जूनो को स्वर्ग की रानी कहकर संबोधित किया जाता था।
उनका विचार था कि देवी जूनो स्वर्ग का आनन्द देने वाली देवी है, ठीक उसी प्रकार देवी जूनो के मन्दिर में बनाई गई मुद्रा भी स्वर्गीय सुखों को देने वाली हैं।
विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की भिन्न भिन्न परिभाषा दी हैं। अतः एक सर्वमान्य परिभाषा को जानना कठिन है, फिर भी अपने अध्ययन को व्यापक बनाने की दृष्टि से हम कुछ विद्वानों द्वारा दी गईं परिभाषाओं को समझने का प्रयास करेंगे।
- हार्टले विदर्स के अनुसार मुद्रा वह सामग्री है जिससे हम वस्तुओ का क्रय विक्रय करते हैं।
- नेप के अनुसार कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है मुद्रा कही जाती हैं।
- मार्शल के अनुसार मुद्रा में वे समस्त वस्तुए सम्मिलित की जाती है जो विशेष समय अथवा स्थान में बिना सन्देह या विशेष जांच पड़ताल के वस्तुओ एवं सेवाओं को खरीदने तथा व्यय के भुगतान के साधन के रूप में सामान्यतया स्वीकार की जाती हैं।
- सैलिग मैन के अनुसार मुद्रा वह वस्तु है जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।
- किनले के अनुसार मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यतया विनिमय के माध्यम अथवा मूल्य के मान के रूप में स्वीकार एवं प्रयोग किया जाता हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात हम मुद्रा के दो महत्वपूर्ण गुणों को मान सकते हैं, पहला सामान्य स्वीकृति और दूसरा वैधानिकता। इस प्रकार मुद्रा की सर्वमान्य परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती हैं।
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, स्थापित भुगतानों के मान तथा मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र , विस्तृत तथा सामान्य रूप से लोगों द्वारा स्वीकार की जा सकती हैं।
मुद्रा के कार्य Functions Of Money In Hindi
मोटे तौर पर मुद्रा के प्रमुख या प्राथमिक कार्य इस प्रकार हैं।
विनिमय का माध्यम
यह एक ऐसा महत्वपूर्ण कार्य है जो इसकी प्रमुख पहचान भी है समस्त प्रकार के लेन देन मुद्रा के माध्यम से ही सम्पन्न होते है क्योंकि मुद्रा में सर्वग्राह्यता का गुण विद्यमान होता है। बाजार में संव्यवहार प्रयोजन हेतु मुद्रा एक उपयुक्त माध्यम है।
मूल्य का मापक
यह दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है मुद्रा के माध्यम से ही वस्तु का निर्धारण सम्भव होता है। वस्तु और सेवा के मूल्य मुद्रा के रूप में मापने से विनिमय आसान हो जाता है।
राष्ट्रीय आय की गणना भी आसान हो जाती है। व्यय विधि उत्पादन विधि और आय विधि द्वारा देश की राष्ट्रीय आय मुद्रा के रूप में सरलता से की जा सकती हैं।
सहायक कार्य- मुद्रा के सहायक कार्य, गौण कार्य अथवा द्वितीयक कार्य ऐसे कार्य है जो आर्थिक सुगमता के लिए होने लगे है यदपि मुद्रा का आविष्कार इन कार्यों के लिए नहीं हुआ । ये सहायक कार्य इस प्रकार है।
भावी भुगतानों का आधार
ऐसे आर्थिक सौदे जिनका भुगतान भविष्य में किया जाना है तो मुद्रा ऐसे भावी भुगतानों के लिए आधार प्रदान करती है, अर्थात भविष्य में उस वस्तु की कीमत का अनुमान लगा लिया जाता है।
अतः मुद्रा स्थगित भुगतान के आधार के रूप में भी कार्य करती है। जनता के विभिन्न प्रकार के ऋण जैसे गृह ऋण, शिक्षा ऋण, उद्यम ऋण आदि का लेनदेन आसान हो जाता है।
इसी प्रकार शेयर, डिबेंचर और प्रतिभूतियों को खरीदना व बेचना भी मुद्रा के माध्यम से आसान हो जाता है। मुद्रा एवं पूंजी बाजार का विकास सम्भव हो पाता है, जो एक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक होता हैं।
मुद्रा मूल्य संचय का आधार
मुद्रा के माध्यम से किसी ऐसी वस्तु जिसका टिकाऊपन कम है बेचकर उसके मूल्य को भविष्य के लिए संचित रखा जा सकता है। मूल्य संचय तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन सम्भव हो पाता है।
मुद्रा द्वारा क्रय की गई जमीन, मकान, सोना, चांदी बॉण्ड इत्यादि के रूप में मुद्रा का संचय किया जा सकता है। यदपि कभी कभी मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन होने पर लाभ व हानि की आशंका बनी रहती है।
क्रय शक्ति हस्तांतरण
मुद्रा के द्वारा एक व्यक्ति द्वारा संचित क्रय शक्ति को आसानी से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरीत किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रा क्रय शक्ति हस्तांतरण के साधन के रूप में भी कार्य करती है।
एक व्यक्ति नकद के रूप में मुद्रा दूसरे व्यक्ति को सौपकर क्रय शक्ति का हस्तांतरण भी कर सकता है। आज के समय मे नकदी विहीन अर्थव्यवस्था में कोई भी व्यक्ति डेबिट, क्रेडिट एटीएम अथवा चेक इत्यादि के माध्यम से भी अपनी क्रय शक्ति अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त एक व्यक्ति स्वयं की खरीदी गई परिसम्पत्तियों को दूसरे व्यक्ति को बेचकर भी क्रय शक्ति का हस्तांतरण कर सकता है।
इस प्रकार मुद्रा की सहायता से व्यक्तियों के मध्य एवं विभिन्न स्थानों के मध्य परिसम्पत्तियों का क्रय शक्ति हस्तांतरण सरलता से सम्भव हो जाता है।
मुद्रा के आकस्मिक कार्य
मुद्रा के द्वारा कुछ ऐसे आकस्मिक कार्य भी सम्पादित किये जाते है जो मुद्रा को और भी उपयोगी एवं सुविधाजनक माध्यम के रूप में सिद्ध करते है, ये इस प्रकार है।
राष्ट्रीय आय का वितरण
वर्तमान युग मे बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपभोग किया जाता है, जो कि मुद्रा के माध्यम से ही सम्भव है।
राष्ट्रीय आय का अनुमान भी मुद्रा के मूल्य से लगाया जाता है तथा कुल उत्पादन से प्राप्त मूल्य का समाज के विभिन्न वर्गों को भुगतान भी मुद्रा के माध्यम से ही सम्भव है।
साख का आधार
बाजारीकरण के इस दौर में बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा अनेक प्रकार के ऋण उपलब्ध करवाए जाते है तथा जमाओ को भी स्वीकार किया जाता है। ये सभी कार्य मुद्रा के माध्यम से ही सम्पन्न हो सकते है।
सम्पति की तरलता
प्रो जे एम किन्स के अनुसार मुद्रा का एक महत्वपूर्ण कार्य पूंजी अथवा धन को तरल रूप प्रदान करना है। तरल रूप में किसी मुद्रा को किसी भी रूप में उपयोग लिया जा सकता है।
मुद्रा एक ऐसी वस्तु या माध्यम है जो मनुष्य को अपनी इच्छानुसार आर्थिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है, मुद्रा की सहायता से व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है.
उपभोक्ता जिस वस्तु के लिए सबसे अधिक कीमत देने को तत्पर होता है। उन्ही वस्तुओं का उत्पादन बाजार में अधिक किया जाता है। इसलिए पूंजीवाद में बाजार की एक प्रसिद्ध कहावत भी है उपभोक्ता बाजार का राजा होता है।
मुद्रा का महत्व Importance Of Money In Hindi
वर्तमान समय मे मुद्रा आर्थिक परिक्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटक बन चुकी है। अतः मुद्रा के महत्व को हम निम्न बिंदुओं के आधार पर समझ सकते हैं।
- बाजार व्यवस्था की धुरी – आधुनिक समय मे मुद्रा अर्थ व्यवस्था में विनिमय का सरल माध्यम है। अतः बाजार व्यवस्था में समस्त लेनदेन मुद्रा के माध्यम से किये जाते है।
- आर्थिक विकास का मापक – मुद्रा देश की उन्नति एवं विकास का मापक है। लोक हितकारी सरकारें सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करके विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
- अर्थव्यवस्था की बचतों के निवेश परिवर्तन- अर्थ व्यवस्था में लोगों के द्वारा की जाने वाली बचते मुद्रा के रूप में संग्रह करके बैंकों में जमा की जाती है जो भविष्य में निवेश का आधार बनती है।
- श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण – मुद्रा के माध्यम से देश मे श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण करके उत्पादन का उच्चतम स्तर प्राप्त किया जाता है जो मुद्रा से संभव हुआ है।
- आर्थिक जीवन मे स्वतन्त्रता – मुद्रा के प्रयोग से उपभोक्ता एवं उत्पादक दोनों ही बाजार में विवेकानुसार निर्णय लेने में स्वतंत्र होते है।
- सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार- मुद्रा अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्वतंत्रता के साथ साथ मूल्य संग्रह की सुविधा भी प्रदान करती है जो सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार बनती हैं।
उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि मुद्रा आर्थिक क्षेत्र में अत्यधिक महत्व है, किन्तु फिर भी कुछ अर्थशास्त्री मुद्रा के प्रचलन को नियंत्रण में रखने की सलाह देते है.
क्योंकि अनियंत्रित होने पर यह मुद्रा स्फीति का कारण बनती है जिसके अर्थव्यवस्था को गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ते है, इसलिए किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि मुद्रा एक अच्छी सेविका किन्तु बुरी स्वामिनी है।