मोहम्मद अली जिन्ना की जीवनी Muhammad Ali Jinnah Biography in Hindi: अविभाजित भारत के इतिहास के कुछ नामों तैमूर, बाबर और औरंगजेब के बाद किसी घटिया इंसान का नाम आता हैं तो वह मोहम्मद अली जिन्ना का ही हैं.
अपने स्वार्थ तथा अग्रेजों के बहकावे में आकर इस आदमी की वजह से भारत का विभाजन हुआ था, नयें इस्लामिक राष्ट्र ने इसे अपना पिता अर्थात कायदे आजम माना.
आज के लेख में आपकों संक्षिप्त में मोहम्मद अली जिन्ना का जीवन परिचय, जीवनी इतिहास बता रहे हैं.
मोहम्मद अली जिन्ना जीवनी Muhammad Ali Jinnah Biography Hindi
Muhammad Ali Jinnah in Hindi: मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म 25 दिसम्बर 1876 को कराची में हुआ था.इसने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा कराची व बम्बई में प्राप्त की. जिन्ना ने 1892 से 1896 तक कानून की पढ़ाई लंदन के लिंकन इन से करने गया था. भारत वापिस आने के बाद उसने बम्बई उच्च न्यायालय में वकालात शुरू की.
जिन्ना ने अपने राजनैतिक जीवन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ शुरू किया और वह उस समय के प्रसिद्ध नेता गोपाल कृष्ण गोखले से विशेष रूप से प्रभावित हुआ.
उस समय और दूसरे भारतीय नेताओं की तरह वह मुस्लिम समुदाय से कोई विशेष रूप से आकर्षित या प्रभावित नही था. वस्तुत उसने 1906 में एक स्मारक पत्र पर हस्ताक्षर किया जिसके अंतर्गत उसने मुसलमानों की अलग से हिमायत करने का विरोध किया था.
1909 में जिन्ना बम्बई से मुसलमानों के प्रतिनिधि के रूप में विधान परिषद में नियुक्त हुआ. 1913 में वह अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गया. मई 1914 में वह कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड की यात्रा पर गया.
1915 में कांग्रेस व मुस्लिम लीग को एक मंच पर लाने में जिन्ना ने सक्रिय भूमिका निभाई जिसका परिणाम रहा लखनऊ पैक्ट. जिसके अंतर्गत दोनों दल संयुक्त संविधान के द्वारा अपने देश की सरकार की मांग के लिए ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सहमत हुए.
1916 में मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिम लीग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 1917 में वह एनी बेसेंट द्वारा संचालित होमरूल आंदोलन में शामिल हो गया तथा इसकी बम्बई शाखा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 1919 में जिन्ना ने रोलेट एक्ट के खिलाफ ब्रिटिश विधान परिषद से त्यागपत्र दे दिया.
मोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज कौन थे (Who was the ancestor of mohammad ali jinnah)
आपकों जानकार ताज्जुब होगा धर्म के नाम पर भारत का विभाजन करने वाला मोहम्मद अली जिन्ना एक ब्राह्मण हिन्दू का पोता था. डायरेक्ट एक्शन के जरिये मुसलमानों को अलग देश की मांग करने वाला जिन्ना का दादा कश्मीर के सप्रू ब्राह्मण थे.
जिन्ना के अलावा अल्लामा इकबाल और उद्योगपति अजीम प्रेमजी भी काठियावाड़ गुजरात के हिन्दू थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म का त्याग कर इस्लाम को अपनाया था.
”मैं अस्ल का ख़ास सोमनाती, आबा मेरे लातियो-मनाती
है फलसफा मेरी आबो गिल में, पेशीदा है मेरे रेशहाए दिल में”
ये जिन्ना का लिखा उर्दू शेर हैं, जिसमें वह स्वीकार करते है कि मैं सोमनाथ की परम्परा को मानने वाला एक अनुयायी हूँ, मेरे पूर्वज मूर्ति पूजा करते थे. उनका रक्त मेरी नस नस में हैं.
जिन्ना की जीवनी लिखने वाले की माने तो इनका खानदान मुल्तान में रहता था तथा ये लोहाना जाति से सम्बन्ध रखते थे. बाद में आकर राजकोट के पास पानेली गाँव में बस गये. वही अजीज बेग मानते हैं कि जिन्ना के पूर्वज पंजाब के शाहिवाल राजपूत थे.
Biography Of Muhammad Ali Jinnah
कांग्रेस पार्टी में गांधी के शामिल हो जाने के बाद जिन्ना का सम्बन्ध कांग्रेस के साथ कड़वाहट में बदलने लगा. कांग्रेस पार्टी में बाद में जोड़ी गई नीतियों के खिलाफ वह खुलकर निंदा करने लगा और असहयोग आंदोलन को सख्ती के साथ अस्वीकार कर लिया.
इस समय तक हिंदू व मुसलमानों के बिच में महत्वपूर्ण वैचारिक भिन्नता स्पष्ट रूप से झलकने लगी. उसके बाद जिन्ना ने कांग्रेस व होमरूल लीग दोनों से त्यागपत्र दे दिया और पूर्णतया अपने आप को मुस्लिम लीग की राजनीति से जोड़ लिया.
1928 में उसने नेहरू रिपोर्ट में संशोधन हेतु प्रस्ताव पारित किया जिसके अंतर्गत मुसलमानों के लिए अत्यधिक सुविधाओं व रियायतों की मांग की.
1929 में जिन्ना ने मुसलमानों के लिए 14 सूत्रीय मांगों का प्रस्ताव रखा. जिन्ना ने 1930 में इंग्लैंड के राजा की गुप्त सभा में भाग लेने के लिए इंग्लैंड की यात्रा की तथा वहां से 1935 तक वह भारत वापिस नहीं आया. उसके बाद उसे मुस्लिम लीग का नेतृत्व करने के लिए निमंत्रित किया जिसे उसने स्वीकार कर लिया.
1937 के चुनावों में कांग्रेस की तुलना में मुस्लिम लीग का प्रदर्शन मुसलमानों की उन्नति के मार्ग में असंतोषजनक सिद्ध हुआ. चुनाव के बाद जिन्ना ने कठोर कदम उठाते हुए कांग्रेस व मुस्लिम लीग के बिच शांति या सांत्वना देने वाले सभी मार्ग अवरुद्ध कर दिए.
उसने मांग कि की कांग्रेस को पूर्ण रूप से हिन्दुओं की पार्टी तथा मुस्लिम लीग को मुसलमानों की पार्टी घोषित किया जाए. अन्तः मुस्लिम लीग ने जिन्ना के नेतृत्व में अलग प्रान्त स्थापित करने में सफलता प्राप्त की और इस तरह 14 अगस्त 1947 को एक अलग देश पाकिस्तान की स्थापना कर दी गई.
जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल के पर नियुक्त किये गये. सितम्बर 1948 में कराची में उनका देहांत हो गया.
राजनीतिक जीवन
नई नई बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जिन्ना 1896 में जुड़ गये. उस समय कांग्रेस दो खेमो नरमपंथ और गरमपन्थ में बटी हुई थी. जिन्ना भी नरमपंथी विचार के साथ राजनीति में उतरे.
उनके विचार थे कि अंग्रेज सत्ता में रहते हुए शिक्षा, उद्योग, कानून और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करे. अली जिन्ना 60 सदस्यों वाली इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के मेम्बर बन गये.
इस परिषद् के अधिकतर सदस्य ब्रिटिश सरकार के हितैषी ही थे, सदस्यों को कोई विशेष अधिकार भी प्राप्त नहीं थे. परिषद् के सदस्य के रूप में जिन्ना ने बाल विवाह निरोधक कानून, मुस्लिम वक्फ को जायज बनाने और साण्डर्स समिति के गठन के लिए कार्य किया.
इन्होने फर्स्ट वर्ल्ड वार में भारतीयों के ब्रिटेन की ओर से लड़ने का समर्थन भी किया. अभी तक जिन्ना एक साधारण राजनेता या कार्यकर्ता की भूमिका में थे. उसी वक्त 1906 में जव मुस्लिम लीग की स्थापन हुई तो वे इससे शुरुआत में तो दूर रहे, मगर बाद में मुसलमानों को नेतृत्व देने का निर्णय किया.
वर्ष 1913 में जिन्ना ने मुस्लिम लीग की सदस्यता हासिल कर ली और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता भी की. वर्ष 1916 में लखनऊ अधिवेशन के दौरान ही कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लखनऊ पैक्ट हुआ.
लखनऊ पैक्ट में जिन्ना ने भारत के जिन प्रान्तों में मुस्लिम अल्पसंख्यक है वहां अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की, निर्वाचन में प्रतिनिधित्व की लीग और कांग्रेस की यह लड़ाई अगले कई दशकों तक चलती रही.
मुसलमानों के हितों को लेकर जिन्ना ने लीग को पुनर्गठित किया, तथा कायदे आजम अर्थात महान नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए, वर्ष 1940 में पहली बार मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की.
मोहम्मद जिन्ना की प्रेम कहानी Love Story Of Muhammad Ali Jinnah In Hindi
बम्बई में रहते हुए जिन्ना ने मेट्रिक की परीक्षा पास की और उन्हें ब्रिटेन की एक कम्पनी ग्राहम शिपिंग एंड ट्रेडिंग में काम मिल गया. माँ के कहने पर जिन्ना ने ब्रिटेन जाने से पूर्व एक लड़की से शादी कर ली.
मगर यह शादी अधिक समय तक टिक नहीं सकी. साल 1918 में जिन्ना ने अपने पारसी दोस्त सर दिनशॉ पेतित की बेटी रती से 16 साल की आयु में ही प्रेम विवाह कर लिया.
अधिक विवाद के बाद रती ने इस्लाम अपना लिया और शादी के एक साल बाद उसने डीना को जन्म दिया. जिन्ना की इस प्रेम कहानी की शुरुआत तब हुई जब 1916 के समर के दिनों में दिनशॉ पेतित ने उनको गर्मिया बिताने के लिए दार्जलिंग आने का न्यौता दिया.
जब जिन्ना अपने दोस्त के घर दार्जलिंग जाते है तो उनकी मुलाक़ात दिनशा की बेटी रती से होती हैं. जो बेहद खुबसूरत थी. और जिन्ना को 40 साल की आयु में प्यार हो जाता हैं.
जब जिन्ना ने दिनशा से उनकी बेटी रति का हाथ माँगा तो यह बात उन्हें पसंद नहीं आई और दोनों की दोस्ती का यही खात्मा हो गया. मगर रति अभी भी जिन्ना को चाहती थी.
दोनों ने शादी कर ली और इस्लाम अपनाने के बाद वह रति से मरियम बाई बन गई. विवाह के एक साल बाद ही दोनों के रिश्तों में दूरियां आ गई. मरियम घरेलू विवाद और अकेलेपन से तंग आकर ड्रग्स लेने लग गई.
माता पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर शादी करने के पश्चात भी रति कभी भी खुश नहीं रह पाई. नशे और अकेपेपन के कारण वह बीमार रहने लगी, 20 फरवरी 1929 को बीमार हालत में इन्हें लंदन ले जाया गया मगर वह बच नहीं सकी और महज 30 साल की आयु में चल बसी.
जिन्ना ने जीवन के अंतिम समय में पाकिस्तान निर्माण को अपनी सबसे बड़ी गलती मानी
यहाँ दी गई घटना मोहम्मद याहिया जान के हवाले से दी गई हैं. उन्होंने 26 नवम्बर 1982 को फ्रंटियर पोस्ट न्यूज पेपर में एक लेख लिखकर पूरी दुनियां में सनसनी फैला दी थी.
उन्होंने लिखा कि मैं उस समय फ्रंटियर प्रान्त का शिक्षा मंत्री था तथा मेरी मुलाक़ात जिन्ना का ईलाज करने वाले डोक्टर कर्नल डॉ इलाहीब्श से मुलाक़ात हुई. उनके अनुसार जिन्ना जब अपनी अंतिम साँसे गिन रहे थे, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान जिन्ना से मिलने आए.
लियाकत को अपने पास पाकर जिन्ना आग बबूला हो गये और बोले तुम अपने आप को बड़ा इंसान मानने लग गये हो, तुम नाचीज हो, तुम क्या समझते हो पाकिस्तान तूने बनाया, नहीं मैंने बनाया और मैंने ही तुम्हे प्रधानमंत्री बनाया था,
पाकिस्तान बनाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी. वे आगे कहते है यदि वे ठीक हुए तो दिल्ली जाकर पंडित नेहरु से मिलेगे और अपनी पुरानी बेवकूफियों को भुलाकर फिर से दोस्त बन जाएगे.
स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह था जिन्ना
मोहम्मद जिन्ना की दो जिद्दे पहली ने देश को बर्बाद किया तो दूसरी ने उसका शरीर व्यक्तित्व के नाम पर नशेड़ी व महिलाओं का भोगी था. दिन में करीब 50 सिगरेंट फूक देता था क्रेवन ए उनकी पसंदीदा सिगरेट थी.
जब जिन्ना की मौत हुआ वह कई भयंकर बीमारियों से जकड़ चूका था. उसको टीबी. ब्रॉन्काइटिस. दिल भी कमजोर भी हो चला था, फेफड़े कैंसर से संक्रमित हो चुके थे, मगर डॉक्टर और दवाई से हमेशा दूर ही रहता. बहिन के द्वारा हजार बार करने पर भी वह डॉक्टर के पास नहीं जाता था,
मोहम्मद अली जिन्ना की मौत
11 सितम्बर 1948 शाम लगभग 4 साढ़े चार बजे थे, नयें नयें बने पाकिस्तान में कराची एयरपोर्ट और शहर के बीचो बीच एक एम्बुलेंस खड़ी थी. इस एम्बुलेंस में एक मरीज तडप रहा था. उसके मुहं पर मक्खियों के झुण्ड के झुण्ड भिनक रहे थे मगर उसके हाथों में उतनी जान नहीं बची थी कि मुहं से मक्खियों को हटा सके.
उसकी बहन फातिमा और एक नर्स (सिस्टर ड्नहम) थी बारी बारी से उसके मुहं पर पंखा झलती रही. दूसरी एम्बुलेंस के इंतजार में एक एक मिनट उसका युगों की भांति बीत रहा था. हर बीतता मिनट जैसे उसे जिन्दगी से दूर ले जा रहा था.
ये शख्स कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान का संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना था. संयोग देखिये जिस जगह यह एम्बुलेंस खड़ी थी, उसके आस पास सैंकड़ों तम्बू थे, वहां शरणार्थियों का ठिकाना था, वे शरणार्थी जिन्हें जिन्ना के कारण सरहद लांघकर आना पड़ा था.
जब लम्बे इन्तजार के पश्चात दूसरी एम्बुलेंस आई तो जिन्ना को गर्वनर जनरल के बंगले ले जाया गया. लम्बी देर तक प्लेन और एम्बुलेंस की यात्रा और भयंकर गर्मी के कारण जीने की उम्मीदे वैसे भी कम हो गई.
डॉक्टरों ने जिन्ना को उसकी बहन के पास छोड़ दिया, करीब दो घंटे की नींद के बाद वह सिर से ईशारा करके बहीन को पास बुलाया और गले से आधी अधूरी आवाज में फाति, खुदा हाफिज…. ला इलाहा इल अल्लाह…. मुहम्मद… रसूल… अल्लाह कहते ही सिर लुढक गया, आँखे बंद हो गयी और इस तरह मुहम्मद जिन्ना की मृत्यु हो गई.
मोहम्मद अली जिन्ना शिया थे या सुन्नी
जब तक जिन्ना जीवित रहे उनके शिया या सुन्नी होने का प्रश्न उतनी प्रबलता से नहीं उठा न ही किसी को यह जानने की उतनी तमन्ना थी. इसका एक कारण यह भी था कि मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम होकर भी मुसलमान नहीं थे.
एक मुसलमान के लिए दैनिक जीवन में इस्लाम की मान्यताओं नमाज, रोजा का पालन करना होता है हलाल हराम में कड़ाई से फर्क किया जाता है परन्तु जिन्ना का व्यक्तिगत इन चीजो से कोसो दूर था. किस्म किस्म की अंग्रेजी शराब, सिगरेट, लड़कीबाजी, सूअर का मांस खाना उनकी फिदरत थी.
जन्म से जिन्ना शिया समुदाय के इस्माइली समुदाय से ताल्लुक रखते थे. मगर जब 1948 में इनकी मृत्यु हुई तो मौलवियों में इस बात को लेकर संग्राम छिड़ गया कि अंतिम संस्कार शिया या सुन्नी रीती रिवाज से किया जाए. आखिरकार यह फैसला हुआ कि दोनों मतों की मान्यता के अनुसार संस्कार किया जाए.
पाकिस्तान में हिन्दुओं के बारे में जिन्ना के विचार
धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की टू नेशन थ्योरी का आधार यही था कि हिन्दू और मुस्लिम दो अलग कौमे है तथा वे साथ नहीं रह सकती हैं. इस कारण मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान का निर्माण होना चाहिए.
14 अगस्त को आधिकारिक रूप से पाकिस्तान बन गया लाखों की तादाद में लोग एक दूसरे देश में विस्थापित हो रहे थे. 11 अगस्त 1947 को जिन्ना ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया.
वो अपने भाषण में कहते है पाकिस्तान में सभी धर्म समुदाय के लोगों को रहने का अधिकार होगा उनकी पूजा विश्वास धार्मिक स्थलों की आजादी होगी. सभी नागरिक समान होंगे धर्म के आधार पर किसी का भेदभाव नहीं होगा.
राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होगा. यह वह भाषण था जो जिन्ना के अपने विचारों के विपरीत था उन्होंने जिस सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान बनाया यह उसके विपरीत था, उनकी पार्टी के अधिकतर लोग जिन्ना के इस विचार से सहमत भी नहीं थे.
पाकिस्तान निर्माण के 13 महीने बाद तक जिन्ना जीवित रहे मगर उनके जीते जी भी यह विचार झूठ साबित हो गया. इतना जरुर था पाकिस्तान के कानून मंत्री का पद एक अल्पसंख्यक का दिया गया.
मगर बाद में पाकिस्तान के संविधान और बाद की सरकारों ने हिन्दुओं समेत सभी अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण की नीति को जारी रखा.
यहाँ कुछ लोग ऐसा भी मानते है कि जब पाकिस्तान बना तो जिन्ना को इस बात का अंदाजा नहीं था कि कितने लोग दरबदर होंगे जब हिंसा भड़की तो पाकिस्तान में चंद लाख हिन्दू मुसलमानों से घिरे थे,
दूसरी तरफ भारत में करोड़ों मुसलमान हिन्दुओं के बीच थे. जिन्ना जानते थे यदि आपसी मारकाट यूँ ही चली तो मुसलमानों को बड़ा नुक्सान होगा साथ ही यदि भारत में रहने वाले करोड़ो मुसलमान पाकिस्तान आते है तो उनको बसाने की जगह नहीं बचेगी.
अतः उन्होंने सोची समझी साजिश और हिन्दुओं के साथ छलावे के तहत एक नरमी भरा भाषण दिया. पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ वही हुआ और आज तक हो रहा है जो जिन्ना के विचार थे.
नेहरू और जिन्ना का रिश्ता Muhammad Ali Jinnah And Jawaharlal Nehru Relation
जब भी आधुनिक भारत के दो बड़े राजनीतिक विरोधियों का नाम लिया जाएगा उसमें मुहम्मद अली जिन्ना और पंडित जवाहरलाल नेहरु का नाम सबसे ऊपर होगा.
इन्ही के विचारों की टकराहट और आपसी प्रतिद्वंदिता ने ब्रिटिश भारत के विभाजन की लड़ाई की आग में घी डालने का काम किया था.
जब भारत का बंटवारा हो रहा था तब दोनों में से किसी को यह अंदाजा नहीं था कि हालात किस स्तर तक खराब होते चले जाएगे. दोनों नेता न केवल आपस में एक दूसरे के विरोधी थे बल्कि इनके बड़े समर्थक लोगों में भी आपसी मतभेद थे.
एक तरफ मोहम्मद अली जिन्ना स्वयं को मुस्लिम नेता के रूप में पहचान बना चुके थे, वही नेहरु भारत की आजादी के संग्राम के बड़े हीरों के रूप में जाने जाते थे.
दोनों की विचारधाराओं के चलते ही एक दिन ब्रिटिश हुकुमत ने भारत के विभाजन का विकल्प प्रस्तुत कर दिया. इतिहासकार कुलदीप नैयर ने अपनी पुस्तक में लिखा है केवल मुद्दों तक उनमें प्रतिस्पर्द्धा थी ऐसा नहीं था बल्कि व्यक्तिगत लिहाज से भी दोनों में काफी मतभेद थे, दोनों प्रतिभाशाली और बड़े लोकप्रिय नेता थे मगर सिद्धांत के लिहाज से दोनों विपरीत ध्रुवीय थे.
जिन्ना जानते थे गांधी का झुकाव नेहरु की तरफ अधिक था और वो ही उनके उत्तराधिकारी होंगे. एक म्यान में दो तलवार अधिक समय तक नहीं रह सकती ऐसा ही हुआ जिन्ना ने कांग्रेस छोडकर मुस्लिम लीग को अपना लिया और आपसी दुनियां मतभेद और आपसी लड़ाई में तब्दील हो गई.
दोनों के बीच के मतभेद एक दूसरे को लिखे पत्रों में जाहिर हो जाता हैं. नेहरु ने 16 अप्रैल 1938 को लिखे पत्र में मुस्लिम लीग को कम्युनल पार्टी कहा तो जवाब में जिन्ना ने भी कहा आपके शब्द और तरीके में दम्भ और धौस दिखाई देती है जैसे कांग्रेस ही सर्वेसर्वा हो.
जिन्ना ने आगे लिखा कि जब तक कांग्रेस मुस्लिम लीग को बराबरी का हक नहीं देती तक तब किसी तरह हिन्दू मुस्लिम समझौता नहीं हो सकता.
भारत की स्वतंत्रता के अंग्रेजी शासन ने दोनों नेताओं को एक बार पुनः आपसी सुलह का अवसर दिया, मगर दोनों के बीच इतने गहरे मतभेद थे कि ऐसा न हो पाया और भारत और पाकिस्तान के विभाजन के स्वरूप में दोनों के मतभेद परिणित हुए.
आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने एक बार कहा था महात्मा गांधी चाहते थे कि जिन्ना प्रधानमंत्री बने मगर नेहरु ने आत्म केन्द्रित रवैया अपनाया और ऐसा नहीं हो पाया, नेहरु किसी भी सूरत में पहले प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. लामा का दावा था कि अगर गांधीजी के जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का विभाजन नहीं होता.
मोहम्मद अली जिन्ना की बेटी
साल 1918 में मोहम्मद अली जिन्ना और मरियम जिन्नाह (रती) का प्रेम विवाह हुआ था. एक साल के अंदर ही दोनों के बीच कई मामलों में अनबन शुरू हो गई, इन्ही तल्ख रिश्तों के बीच 14 अगस्त, 1919 को जब ये दोनों लंदन में थे तो एक बेटी का जन्म हुआ.
इसका नाम दीना जिन्नाह / दीना वाडिया था. दो माह बाद जब जिन्ना और रती मुंबई लौटते हैं तो अपने घर नौकरों के भरोसे बेटी को छोड़ जिन्ना राजनीति में मशगूल हो जाते हैं और रती अपने फ्रेड्स के यहाँ हैदराबाद चली जाती हैं.
रती की मृत्यु तक दीना का बचपन अकेलेपन में माँ बाप के प्यार के बिना ही नर्सरी में बचपन बीता. माता पिता के बीच खराब रिश्तों की मार दीना अपनी माँ के जीवित रहते तक भुगतती रही.
जब रती की मृत्यु हो गई तो लेडी पेटिट जो दीना की नानी थी, पहली महिला थी जिसने दीना के रूखे जीवन में दस्तक दी. कई बार सरोजनी नायडू और उनकी बेटी भी दीना के हाल देखने आया करती थी, मगर माँ बाप उससे दूरी बना चुके थे.
नानी पेटिट अपनी नातिन को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाकर उसकी परवरिश करती थी. दीना की माँ के मरने के बाद जिन्ना अपनी राजनीति और एशो आराम में मशगूल थे. दीना का एकमात्र सहारा उनकी नानी ही थी.
दीना के मन में अपने पिता के प्रति गुस्सा भी था, जब वह बड़ी हुई तो उसने अपना नाम दीना जिन्नाह से दीना रखना ठीक समझा, अब तक बेटी की जिन्दगी में पापा का न दखल था न उपस्थिति.
जब बेटी बड़ी हुई और नेविल वाडिया के साथ प्रेम करने की भनक उन्हें लगी तो जिन्ना ने बेटी को ऐसा न करने को कहा, साथ ही धमकी भी दी, कि अगर वह ऐसा करेगी तो हमारे सम्बंध पूरी तरह टूट जाएगे.
यहाँ दीना ने अपने पिता की जरा भी परवाह नहीं की और ननिहाल में ही नेविल वाडिया से शादी करली. अब दीना वाडिया बन चुकी थी. विवाह के कई सालों बाद जिन्ना और दीना के रिश्ते कुछ नरम हुएदोनों ने कई बार मिलने की कोशिश भी की, मगर बुआ फातिमा ने ऐसा कभी होने नहीं दिया.
भारत विभाजन के बाद जिन्ना पाकिस्तान चले गये मगर दीना अपने पति और परिवार के साथ भारत ही रही. मोहम्मद अली जिन्ना की गम्भीर बीमारी के समय कई बार दीना ने अपने पिता से मिलने की कोशिश की मगर वीजा न मिल सका.
आखिर जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी अंत्येष्टि में दीना को जाने का मौका मिला. अगली और अंतिम बार 2004 में वह अपने पिता के बनाए पाकिस्तान गई और उनकी दरगाह / कब्र पर अपने पोते पोतियों के साथ गई.