नवरात्रि व्रत की कथा Navratri Vrat Katha In Hindi :- नौ दिनों के नवरात्र का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व हैं. भारत में Navaratri 2023, 15 अक्टूबर से आरम्भ होकर 24 अक्टूबर को समाप्त होगे.
इन नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा का पूजन, नवरात्र कथा से माँ को खुश किया जाता हैं. नवरात्र का महत्व व इतिहास नवरात्र क्यों मनाएं जाते हैं के बारे में हम यहाँ जानेगे.

यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लेकर राम नवमी तक चलता हैं. नवरात्र के इन नौ दिनों भगवती दुर्गा तथा कन्या पूजन का बड़ा महत्व हैं.
प्रतिपदा के ही दिन से घट स्थापना तथा जौ बौने की क्रिया भक्तों द्वारा सम्पादित की जाती हैं. ”दुर्गा सप्तशती” के पाठ का भी विधान हैं. नौ दिनों के अनन्तर हवन तथा ब्राह्मण भोजन कराना वांछनीय हैं.
प्राचीन काल में एक सुरत नामक राजा थे, इनकी उदासीनता से लाभ उठाकर शत्रुओं ने उन कर चढ़ाई कर दी. परिणाम यह हुआ कि मंत्री लोग राजा के साथ विश्वासघात करके शत्रु पक्ष से मिल गये. इस प्रकार राजा की पराजय हुई, वे दुखी तथा निराश होकर तपस्वी वेश में वन में निवास करने लगे.
उसी वन में उनके समाधि नामक वणिक मिला, जो अपने स्त्री, पुत्रों के व्यवहार से अपमानित होकर वहां निवास करता था. दोनों में परस्पर परिचय हुआ.
तदन्तर ये महर्षि मेधा के आश्रम में पहुचे, महामुनि मेधा के द्वारा आने का कारण पूछने पर दोनों ने बताया कि, यदपि हम दोनों स्वजनों से अत्यंत अपमानित तथा तिरस्कृत हैं फिर भी उनके प्रति मोह नहीं छूटता, इसका क्या कारण हैं?
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महर्षि मेधा ने उपदेश दिया कि मन शक्ति के अधीन होता हैं, आदि शक्ति भगवती के दो रूप हैं- विद्या और अविद्या. प्रथम ज्ञान स्वरूप हैं तथा अज्ञान स्वरूपा. अविद्या के आदि कारण रूप में उपासना करते हैं, उन्हें वे विद्या स्वरूपा प्राप्त होकर मोक्ष प्रदान करती हैं.
राजा सुरथ ने पूछा – देवी कौन हैं और उनका जन्म कैसे हुआ ?
महामुनि ने कहा – हे राजन ! आप जिस देवी के विषय में प्रश्न कर रहे हैं, वह नित्य – स्वरूपा तथा विश्वव्यापिनी हैं । उसके प्रादुर्भाव के कई कारण हैं ।
‘कल्पांत में महा प्रलय के समय जब विष्णु भगवान क्षीर सागर में अनंत शैय्या पर शयन कर रहे थे तभी उनके दोनों कर्ण कुहरों से दो दैत्य मधु तथा कैटभ उत्पन्न हुए ।
धरती पर चरण रखते ही दोनों विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न हुए । धरती पर चरण रखते ही दोनों विष्णु की नाभि कमल से उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा को मारने दौड़े ।
उनके इस विकराल रूप को देखकर ब्रह्मा जी ने अनुमान लगाया कि विष्णु के सिवा मेरा कोई शरण नहीं । किंतु भगवान इस अवसर पर सो रहे थे ।
तब विष्णु भगवान हेतु उनके नयनों में रहने वाली योगनिंद्रा की स्तुति करने लगे । परिणामस्वरूप तमोगुण अधिष्ठात्री देवी विष्णु भगवान के नेत्र, नासिका, मुख तथा हृदय से निकलकर आराधक (ब्रह्मा) के सामने खड़ी हो गई ।
योगनिद्रा के निकलते ही भगवान विष्णु जाग उठे । भगवान विष्णु तथा उन राक्षसों में पांच हजार वर्षों तक युद्ध चलता रहा । अंत में वे दोनों भगवान विष्णु के हाथों मारे गये ।’
ऋषि बोले – अब ब्रह्मा जी की स्तुति से उत्पन्न महामाया देवी की वीरता सुनो । एक बार देवलोक के राजा इंद्र और दैत्यों के स्वामी महिषासुर सैकड़ों वर्षों तक घनघोर संग्राम हुआ ।
इस युद्ध में देवराज इंद्र परास्त हुए और महिषासुर इंद्रलोक का राजा बन बैठे । तब हारे हुए देवगण ब्रह्मा जी को आगे करके भगवान शंकर तथा विष्णु के पास गये और उनसे अपनी व्यथा कथा कही ।
देवताओं की इस निराशापूर्ण वाणी को सुनकर भगवान विष्णु तथा भगवान शंकर को अत्यधिक क्रोध आया । भगवान विष्णु के मुख तथा ब्रह्मा, शिव, इंद्र आदि के शरीर से एक पूंजीभूत तेज निकला, जिससे दिशाएं जलने लगीं । अंत में यहीं तेज एक देवी के रूप में परिणत हो गया ।
देवी ने देवताओं से आयुध, शक्ति तथा आभूषण प्राप्त कर उच्च स्वर से अट्टाहासयुक्त गगनभेदी गर्जना की जिससे तीनों लोकों में हलचल मच गई ।
क्रोधित महिषासुर दैत्य सेना का व्यूह बनाकर इस सिंहनाद की ओर दौड़ा । उसने देखा कि देवी की प्रभा में तीनों देव अंकित हैं । महिषासुर अपना समस्त बल, छल – छद्म लगाकर भी हार गया और देवी के हाथों मारा गया ।
इसके पश्चात् यहीं देवी आगे चलकर शुम्भ – निशुम्भ नामक असुरों का वध करने के लिए गौरी देवी के रूप में उत्पन्न हुई ।
इन सब गरिमाओं को सुनकर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ तथा वणिक समाधि से देवी स्तवन की विधिवत् व्याख्या की । इसके प्रभाव से दोनों एक नदी तट पर जाकर तपस्या में लीन हो गये ।
तीन वर्ष बाद दुर्गा मां ने प्रकट होकर उन दोनों को आशिर्वाद दिया । जिससे वणिक सांसारिक मोह से मुक्त होकर आत्म चिंतन में लीन हो गया और राजा ने शत्रु जीतकर अपना खोया सारा राज्य और वैभव की पुन: प्राप्ति कर ली ।
चैत्र एवं आश्विन माह, ये दो महीने है जब नवरात्र पड़ते हैं. नवरात्रि हिन्दुओं का एक अहम त्योहार हैं. नवरात्रिका शाब्दिक अर्थ होता हैं नौ रातें.
ये सभी दिन माँ दुर्गा को समर्पित हैं. नवरात्र कथा के अनुसार राम-रावण युद्ध के दौरान भगवान श्रीराम ने आश्विन के इन नौ दिनों तक रावण को मारने के लिए दुर्गा की पूजा की थी.
परिणामस्वरूप दसवें दिन यानि दशहरे (विजयादशमी) के दिन रावण को मारा था. पश्चिम बंगाल तथा कई राज्यों में नवरात्रि के बाद दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता हैं.
नवरात्रि के इन नौ दिनों के दौरान रामलीलाएं, गरबा, माँ दुर्गा की आराधना में गीत, भजन, प्रतिपदा के दिन घट स्थापना की जाती हैं. देवी दुर्गा के नौ रूप (शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री) के कारण इन्हें नवदुर्गा नाम से भी जाना जाता हैं.
यह नवरात्रि त्योहार मनाने के इतिहास में भगवान राम की दुर्गा पूजा को ही देखा जाता हैं. जिन्होंने नौ दिन तक लंका के सागर तट पर देवी की पूजा आराधना की थी, तथा दसवें दिन रावण के साथ युद्ध करने गये थे.
अत्याचारी, अधर्मी रावण का नाश किया था. उसी दिन को हम विजयादशमी के रूप में मनाते हैं. देवी दुर्गा का वाहन सिंह अर्थात शेर हैं तथा कमल पर इनका आसन होता हैं.
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