उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश (प्रतिहार, गहड़वाल, चौहान, गुहिल) | North Indian Rulers and Dynasties in hindi

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश (प्रतिहार, गहड़वाल, चौहान, गुहिल) | North Indian Rulers and Dynasties in Hindi: हर्यक वंश, नंद राजवंश, मौर्य राजवंश, पांड्य राजवंश, गुप्त वंश, कुषाण वंश, चोल राजवंश, पल्लव राजवंश, चालुक्य राजवंश समेत कई राजवंशों ने लम्बे समय तक भारत में शासन किया.

अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से मध्यकालीन युग में उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश तथा दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंशों का विभाजन किया गया हैं. राष्ट्रकूट, चालुक्य, पल्लव व चोल दक्षिण भारत के राजवंश थे.

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश | North Indian Dynasties and Rulers

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश (प्रतिहार, गहड़वाल, चौहान, गुहिल) | North Indian Rulers and Dynasties in hindi

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंश (Major dynasties of northern India)

आठवी से बाहरवी शाताब्दी तक जिन प्रमुख राजवंशो ने उत्तर  भारत में शासन किया उनमे से कुछ राजवंश निम्नलिखित है

प्रतिहार वंश इतिहास ( gurjar pratihar in hindi):-

राजा मिहिर भोज इस राजवंश का सबसे शक्तिशाली शासक था. वह 840 ई में शासक बना और 50 वर्षों तक राज्य किया. गुर्जर प्रतिहार शासकों ने सिंध से आगे बढती हुई विदेशी शक्ति को लम्बे समय तक रोके रखा था.

और उत्तर भारत में उनका विस्तार नही होने दिया. प्रतिहार शासक साहित्य और कला प्रेमी थे. इनके शासन काल में भारत ने सांस्कृतिक उन्नति की.

गहड़वाल वंश इतिहास (History of garhwal dynasty)

इस वंश का संस्थापक चन्द्रदेव था. उसनें प्रतिहारों को हराकर कन्नौज पर अधिकार कर लिया. गहड़वाल वंश का अंतिम शासक जयचंद था. वह 1170 ई में शासक बना.

गौर वंश के शासक मुहम्मद गौरी ने जयचंद पर आक्रमण किया और कन्नौज पर अधिकार कर गहड़वाल वंश की सत्ता समाप्त कर दी.

चौहान वंश इतिहास (Chauhan Dynasty History)

इस वंश का राज्य अजमेर सांभर के भूभाग पर फैला हुआ था. चौहान वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक विग्रह राज था. पृथ्वीराज चौहान तृतीय इस वंश का सबसे प्रतापी शासक माना जाता हैं.

उसने ११८२ में चंदेल शासक परमाल को पराजित कर साम्राज्य का विस्तार किया एवं ११९१ में अफगानिस्तान के गौर वंश शासक मुहम्मद गौरी को तराईन के प्रथम युद्ध में पराजित किया व द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज को पराजय का सामना करना पड़ा था.

गुहिल वंश इतिहास (Guhil dynasty history)

प्राप्त सिक्कों से यह माना जाता हैं कि इस वंश के प्रथम शासक गुहिल थे. मेवाड़ के इस शक्तिशाली राजवंश का पराक्रमी शासक बप्पा रावल के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ.

बप्पा रावल ने नागभट्ट प्रथम आदि शासकों का संघ बनाकर सिंध को अरब आक्रमणकारियों से स्वतंत्र किया तथा अनेक क्षेत्रों को जीतकर अपना प्रभाव स्थापित किया.

आगे चलकर गुहिल राजवंश सिसोदिया वंश कहलाया. इस वंश में राणा हम्मीर, क्षेत्र सिंह, राणा मोकल, राणा कुम्भा, राणा सांगा, राणा प्रताप एवं राणा राजसिंह प्रतापी शासक गिने जाते हैं. मेवाड़ का यह शक्तिशाली राजवंश भारतीय इतिहास में पराक्रमी और बाहरी आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं.

इन राजवंशों के साथ उत्तर भारत में चन्देल वंश भी था. आल्हा और उदल इसी शासक के वीर सामंत थे. परमार वंश का प्रमुख प्रतापी शासक राजा भोज था.

सोलंकी वंश के समय महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर मंदिर को लूटा व तोड़ा. पालवंश के काल में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. सेनवंश के काल में गीत गोविन्द के रचियता जयदेव उनके दरबारी थे.

कलचुरी वंश

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंशो में कलचुरी वंश भी एक था, इसका संस्थापक कोकल्ल था, जिसने त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया. इस शाखा की दूसरी राजधानी रतनपुर थी. कलचुरी राजवंश के प्रतापी राजाओं में लक्ष्मण राज, गांगेयदेव, लक्ष्मिकोर्ण और रंगदेव हुए.

रंगदेव ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की, तेहरवीं सदी आते आते कलचुरी वंश की शक्ति कमजोर होने लगी और जबलपुर के आस पास इनका राज्य सिमट कर रह गया, आखिर 15 वीं सदी में गोंडो ने इनके राज्य को समाप्त कर दिया.

चंदेल वंश

उत्तर भारत के राजवंशों में से एक चंदेल वंश के सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन थे, इन्होने बुन्देलखण्ड पर आक्रमण कर महोबा को अपनी राजधानी बनाया. कन्नौज के राजा देवपाल को युद्ध में पराजित किया.

चन्देल राजाओं में धंग, गंड, कीर्तिवर्मन, मदनवर्मन तथा परमल मुख्य थे. इस वंश के राजा कीर्तिवर्मन को कलाप्रेमी माना जाता है जिन्होंने राजधानी महोबा के समीप किर्तिसागर का निर्माण करवाया था. खजुराहों के मंदिर इन्ही चन्देल शासकों की देन है 1202 में इन्होने ऐबक की अधीनता स्वीकार की और वंश का पतन हो गया.

उत्तर भारत के प्रमुख राजवंशों की शासन व्यवस्था

उत्तर भारत के स्वतंत्र राजवंशों की शासन व्यवस्था पूर्णत निरंकुश थी. परन्तु शासक अपने मंत्रियों से सलाह भी लेते थे.

सामंत प्रथा प्रचलित थी, जो स्वतंत्र रूप से शासक के अधीन रहते हुए कार्य करते थे. उस समय ग्राम पंचायते थी जो राजकीय हस्तक्षेप से मुक्त थी.

साहित्य एवं कला में योगदान

इस काल में संस्कृत भाषा में विभिन्न विषयों पर ग्रंथ लिखे, जिनमें माघ का शिशुपालवध, शारवि का किर्तार्जुनियम, कल्हण की राजतरंगिणी और जयदेव का गीत गोविन्द मुख्य हैं.

इस काल में स्वतंत्र राजवंशों के शासकों ने अनेक सुंदर भवनों एवं मन्दिरों का निर्माण कराया, जिनमें भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर तथा ग्वालियर, चित्तोड़, रणथम्भौर के दुर्ग, राजस्थान के आबू पर्वत पर देलवाड़ा में सफ़ेद संगमरमर के जैन मंदिर आदि बनाये गये.

चित्रकला के क्षेत्र में खूब उन्नति हुई. दीवारों पर पशु पक्षियों व वृक्ष लताओं के सुंदर मंदिर बनाए गये.

सम्राट हर्ष के बाद उत्तर और दक्षिण भारत के इन स्वतंत्र राजवंशों का काल वीर गाथाओं का काल था. राजनितिक अस्थिरता होते होते हुए भी इस काल में भारतीय कला, संस्कृति एवं साहित्य की खूब उन्नति हुई जो आज भी हमारे लिए प्रेरणास्पद हैं.

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