पद्मा/ परिवर्तिनी एकादशी 2022 व्रत कथा तिथि व मुहूर्त | Padma/ Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi भादों शुक्ल एकादशी को पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी या जयंती एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं. Parivartini Ekadashi का व्रत 6 सितम्बर 2022 के दिन मनाया जाएगा. हमारे धार्मिक ग्रंथों में एकादशी व्रत का विशेष महात्म्य बताया गया हैं, हर साल में 24 एकादशी होती है, मलमास या अधिकमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. हर तीसरे साल एक मलमास होता है. इन्ही में से पद्मा/ परिवर्तिनी एकादशी एक हैं. परिवर्तनी एकादशी के दिन व्रत धारण कर व्रत कथा सुनने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता हैं. इस एकादशी को यज्ञ/ उद्यापन करने से वाजपेय यज्ञ के समान पूण्य की प्राप्ति होती है.
पद्मा/ परिवर्तिनी एकादशी 2022 व्रत कथा तिथि व मुहूर्त
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी भी कहते है. यह श्री लक्ष्मी को परम आनन्दित करने वाला व्रत हैं. इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेष शय्या पर शयन करते हुए करवट बदलते हैं. इसलिए इसे करवटनी एकादशी भी कहते हैं.
इस दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ट हैं, क्योंकि देवताओं ने अपने पुनः राज्य को पाने के लिए महालक्ष्मी का ही पूजन किया था. इस वर्ष 2022 में पद्मा/ परिवर्तिनी एकादशी की तिथि, समय, शुभ मुहूर्त एवं पूजा समय की जानकारी नीचे दी जा रही हैं.
पद्मा एकादशी 2022 में कब हैं?
परिवर्तिनी एकादशी | 6 सितंबर 2022 |
परिवर्तिनी एकादशी | 7 सितंबर 2022 |
एकादशी तिथि शुरू | 05:55 – 6 सितंबर 2022 |
एकादशी तिथि ख़त्म | 03:05 – 7 सितंबर 2022 |
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
एक बार धर्मराज युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण से कहा- हे भगवान भादों शुक्ल एकादशी का क्या नाम है इसके व्रत की विधि तथा महत्व क्या है, कृपा करके मुझे बतलाइये. तब भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठर से कहते है तो सुनों धर्मराज ! भादों शुक्ल की इस एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है. पापों से छुटकारा, पुण्य की प्राप्ति तथा मोक्ष प्रदान करने वाली इस वामन एकादशी की कथा ध्यान से सुनों.
जों इंसान योनियों के जन्म से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता है उन्हें पद्मा/ जयंती एकादशी का व्रत रखना चाहिए. अपने कुकर्मों तथा पापों का प्रायश्चित करने का इससे बढ़कर कोई अवसर नही हैं. जों प्राणी इस दिन मेरे वामन रूप की पूजा करता है, तीनों लोक में उनके जयकारे होते है.
जो भक्त इस एकादशी का व्रत रखकर पूजन करता है जो त्रिदेव के समीप पहुच जाता हैं. परिवर्तिनी एकादशी इसे इसलिए कहा जाता है,क्योंकि भगवान विष्णु चतुर्मास की नीद के दौरान इस दिन करवट बदलते है. भगवान किस प्रकार सोते है तथा किस तरह करवट बदलते है तथा मनुष्य का इसके प्रति क्या कर्तव्य बनता है इसके बारे में आपकों बताता हूँ.
एक समय बलि नामक राजा हुआ करता था, वह मेरा परम भक्त था नित्य पूजा पाठ कर ब्राह्मणों को दान दिया करता था. देवराज इंद्र के साथ अनबन के चलते उसने सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य पर अधिकार कर लिया था. बलि से त्रस्त सभी देवगण भगवान के पास आकर इस विकट घड़ी से बाहर निकालने की प्रार्थना करने लगे.
तब भगवान कृष्ण ने वामन के रूप में धरती पर अवतार लिया तथा राजा बलि से युद्ध कर देवताओं को अपना सम्राज्य वापिस दिलाया. मैंने वामन का ब्रह्मचारी रूप धारण कर बलि से तीन पग जमीन देने की याचना की, राजा बलि ने अपने अहं भाव के चलते हामी भर दी. वामन ने अपना त्रिविक्रम रूप बनाकर एक पैर धरती पर एक पाताल लोक में तथा एक स्वर्ग में रखकर देवताओं को अपना राज्य वापिस दिलाया था.
परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधि एवं महत्व (Parivartini Ekadashi Vrat vidhi & mahatav In Hindi)
तीनो लोकों के स्वामी भगवान विष्णु निद्रा अवस्था में इस दिन करवट लेते है. अतः इस एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन कर उनकी आराधना करनी चाहिए. इस दिन दान देने का विशेष महत्व है, तांबा, चांदी, चावल और दही का दान देना शुभ माना जाता हैं. व्रत तोड़ने के पश्चात रात्रि जागरण तथा परिवर्तनी एकादशी कथा का वाचन करना चाहिए.
इस व्रत को धारण करने वाले स्त्री पुरुष के सभी पापों का नाश होकर वे सूर्य के समान यश की प्राप्ति करते हैं. व्रत कथा के वाचन से अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती हैं. तथा समस्त पापों से छुटकारा पाकर मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति करते हैं.
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