भारत के प्रसिद्ध किसान आंदोलन | Peasant movement In India In Hindi : प्राचीन कृषि व्यवस्था को ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाई गई नवीन प्रशासनिक व्यवस्था व कृषि नीतियों द्वारा धीरे धीरे ध्वस्त किया जा रहा था. सरकारी करों की अधिकता एवं जमीदारों द्वारा कर का अत्यधिक हिस्सा लेने के कारण किसान साहूकारों एवं व्यापारियों के चंगुल में फसते गये. इन सबसे परेशान होकर किसानों ने आंदोलन प्रारम्भ कर दिया. भारत में प्रमुख किसान आंदोलन निम्नलिखित थे.
भारत के किसान आंदोलन | Peasant movement In India In Hindi

नील विद्रोह
बंगाल में नील उगाने वाले कृषकों ने यूरोपीय अधिकारीयों के अत्याचारों से तंग आकर सितम्बर 1859 ई में विद्रोह कर दिया. अप्रैल 1860 ई में बारासात उपविभाग एवं पावना व नदिया जिलों के समस्त किसानों ने हड़ताल कर दी एवं नील बोने से इंकार कर दिया. यह हड़ताल बंगाल के अनेक क्षेत्रों में फ़ैल गई. सरकार ने व्यापक जन असंतोष से बचने के लिए 1860 ई में एक नील आयोग बनाना पड़ा. नील आयोग ने यह सुझाव दिया कि किसानो को नील की खेती के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अंत में नील उगाने वाले यूरोपीय भूपतियों की हार हुई. नील विद्रोह भारतीय किसानों का पहला सफल विद्रोह था, नील विद्रोह के सफल होने का सबसे प्रमुख कारण किसानों में एकजुटता एवं अनुशासन की भावना थी.
दक्षिण का किसान विद्रोह
1875 ई का यह विद्रोह मुसलमान, मारवाड़ी व गुजराती साहूकारों के विरुद्ध था जो मराठा कृषकों को ऋण देकर उनकी जमीन हड़प लेते थे. 1857 ई में किसानों ने पूना जिले के साहूकारों के मकानों एवं दुकानों पर आक्रमण कर दिया और जिन लेखपत्रों पर साहूकारों ने किसानों के हस्ताक्षर करा रखे थे, उन्हें जला दिया गया. बाद में यह विद्रोह अहमदनगर तक फ़ैल गया तथा पुलिस व सेना बुला कर ही विद्रोह दबाया जा सका. सरकार ने विद्रोह का कारण जानने के लिए दक्कन उपद्रव आयोग गठित किया तथा 1879 ई में कृषक राहत अधिनियम पारित किया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि किसानों द्वारा ऋण न लौटाने पर उन्हें गिरफ्तार या जेल में बंद नहीं किया जा सकता.
पंजाब किसान आंदोलन
पंजाब में सामान्य किसान ऋणग्रस्त था तथा उसकी भूमि पर गैर किसान वर्ग का कब्जा हो गया था. इस भूमि हस्तांतरण को रोकने के लिए सरकार ने पंजाब भूमि अधिनियम 1990 पारित किया गया. इस अधिनियम द्वारा पंजाब में कृषकों की भूमि गैर कृषकों को हस्तांतरण पर रोक लगा दी.
चंपारण किसान आंदोलन
बिहार के चम्पारण जिले में यूरोपीय नील उत्पादकों के अत्याचारों के विरुद्ध गांधीजी के नेतृत्व में 1917 ई में वहां के किसानों ने अहिंसात्मक आंदोलन प्रारम्भ कर दिया. गांधीजी को गिरफ्तार कर दिया गया. अंत में एक जांच समिति बनाई गई जिसमें गांधीजी भी एक सदस्य थे. इस समिति की रिपोर्ट पर चम्पारण कृषि अधिनियम पारित किया गया. जिसके द्वारा नील किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराना बंद करा दिया गया.
खेड़ा किसान आंदोलन
1917-18 ई में सूखे के कारण फसल खराब हो जाने पर भी बम्बई सरकार द्वारा खेड़ा (गुजरात) के किसानों से लगान वसूली की जा रही थी. 22 मार्च 1918 ई को महात्मा गांधी ने खेड़ा आकर आन्दोलन की बागडोर संभाली. बम्बई सरकार ने लाचार होकर हार मान ली और गोपनीय दस्तावेज जारी किया गया कि कि लगान उसी से वसूल किया जाए जो सक्षम हो.
अन्य संगठित आंदोलन
अखिल भारतीय स्तर पर किसान आंदोलन चलाने के लिए 11 अप्रैल 1936 ई को लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया. किसान सभा ने आंध्रप्रदेश में जमींदारों के विरुद्ध भूमि व्यवस्था विरोधी आंदोलन का सफलतापूर्वक संचालन किया गया. 1936 ई में बिहार में बकाश्त हुई भूमि के विरुद्ध आंदोलन किया गया. 18 अक्टूबर 1937 ई को किसान सभाओं ने सत्याग्रहियों पर किये गये अत्याचारों के विरुद्ध कृषक दिवस मनाया.
पाबना आंदोलन (1870-80):
पाबना आंदोलन 1870 से लेकर के 1880 तक चला था। बता दे कि गरीब किसानों से बढे हुए लगान और भूमि टैक्स को पूर्वी बंगाल के बड़े हिस्से में फैले हुए जमींदार वसूलते थे। साल 1859 के अधिनियम के तहत खेतिहर किसानों को अपनी जमीन पर अधिभोग के अधिकार से भी रोका गया था।
साल 1873 में पटना में स्थित पाबना जिले के यूसुफशाही परगना नाम के इलाके में एक कृषि कमेटी को बनाया गया था और इस कमेटी के द्वारा धन इकट्ठा करके पूरे पटना और पूर्वी बंगाल के कई जिलों में हड़ताले चालू कर दी गई थी। देखा जाए तो मुख्य तौर पर यह आंदोलन लीगल लड़ाई थी परंतु इस आंदोलन में कई जगह पर हिंसा भी देखी गई थी।
यह लड़ाई साल 1885 तक लगातार चल रही थी परंतु गवर्नमेंट ने जब बंगाल काश्तकारी अधिनियम के द्वारा अभिभोग अधिकारों में बढ़ोतरी कर दी, तब यह खत्म हो गया। बता दें कि इस आंदोलन को सुरेंद्रनाथ बनर्जी और बंकिम चंद्र चटर्जी तथा आरसी दत्त का समर्थन मिला हुआ था।
मोपला विद्रोह
मोपला में अधिकतर जमींदार हिंदू समुदाय के थे वही वहां पर रहने वाले अधिकतर किराएदार मुस्लिम समुदाय के थे। मोपला के मालाबार इलाके में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों की यह शिकायत थी कि, उनसे ज्यादा टैक्स लिया जाता था, साथ ही उनसे अधिक भूमि टैक्स भी लिया जाता था और उनसे अन्य कई प्रकार के टैक्स के लिए जाते थे, जो सही नहीं थे।
आगे चलकर के इस आंदोलन का विलय खिलाफत आंदोलन में हो गया। इसके बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद, शौकत अली और गांधी जी ने एक सभा में मोपला के मुस्लिम समुदाय के समक्ष भाषण दिया जिसमें मोपला के मुस्लिम समुदाय ने यह कहा कि कुछ जगह पर हिंदू अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों की हेल्प भी करते हैं।
आगे चलकर के यह आंदोलन सांप्रदायिक रूप में बदल गया और इस प्रकार यह आंदोलन खिलाफत और असहयोग आंदोलन से बिल्कुल अलग हो गया। साल 1921 में यह आंदोलन खत्म हो गया था।
बारडोली सत्याग्रह
बारडोली इलाका गुजरात राज्य में स्थित है। गुजरात राज्य के बारडोली जिले में भू राजस्व में तकरीबन 30% की बढ़ोतरी अंग्रेजी गवर्नमेंट के द्वारा की गई थी और बढ़ोतरी होने के कारण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में बारडोली के सारे किसान भाई इकट्ठा हुए थे और उन्होंने यह प्रण लिया था कि वह
राजस्व नहीं देंगे और साथ ही इस बात का भी डिसीजन लिया कि वह इसके विरोध में आंदोलन करेंगे। यहीं पर ही एक महिला ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार कहा था और तभी से इन्हें सरदार की उपाधि मिल गई।
बता दे कि अंग्रेजों ने जमीन की कुर्की करने का असफल प्रयास किया, जिसके बाद एक जांच कमेटी भी बनाई गई थी। जांच कमेटी इस बात पर पहुंची कि जो बढ़ोतरी की गई है, वह बिल्कुल भी ठीक नहीं है और फिर इस प्रकार से अंग्रेजी हुकूमत ने भू राजस्व मे जो 30 परसेंट की बढ़ोतरी की थी, उसे घटाकर के 6.03 परसेंट कर दिया था।
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