महिला दिवस 2024 पर कविता | Poem on Women’s Day in Hindi

महिला दिवस 2024 पर कविता | Poem on Women’s Day in Hindi हर साल महिलाओं को सम्मान देने के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय वुमेन्स डे 8 मार्च के दिन मनाया जाता हैं.

एक उत्सव के रूप में देश दुनियां भर में स्त्रियों की स्थिति उनके सशक्तिकरण के विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं.

कम से एक यह एक ऐसा अवसर होता है जब पूरी दुनियां नारी को केंद्र मानकर उनके विषय में चिन्तन मनन और विचारों को प्रकट करते हैं. हम भी इस मौके पर कुछ बेहतरीन कविताएँ लेकर आए हैं उम्मीद है ये आपको पसंद आएगी.

महिला दिवस 2024 पर कविता | Poem on Women’s Day in Hindi

महिला दिवस 2024 पर कविता | Poem on Women's Day in Hindi

Happy International Womens Day 2024 Women’s Day Poem / हैप्पी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कविता

गर्वं हैं मुझ़े मै नारी हूं
तोड के हर पिंज़रा
ज़ाने क़ब मै उड जाऊगी
चाहें लाख़ बिछा लों बन्दिशे
फ़िर भी दूर आसमां
मै अपनी ज़गह बनाऊगी मै
हां गर्वं हैं मुझ़े मै नारी हूं
भलें ही परम्परावादी ज़ंजीरो से बाधें हैं
दुनियां के लोगो ने पैंर मेरें
फ़िर भी उस जंज़ीरो को तोड जाऊगी
मै किसी से कम नही सारी दुनियां को दिख़ाऊगी
हां गर्व हैं मुझ़े मै नारी हूं..

हैप्पी अंतर्राष्ट्रीय महिला 2024 महिला दिवस कविता / महिला दिवस की शुभकामनाएं

यें औरत तुझ़े क्या कहुं,
तेरी हर ब़ात निराली हैं
तु एक ऐसा पौंधा हैं ज़िस घर रहें
वह हरियाली हीं हरियाली हैं
तेरी शान मे सिर्फं इतना क़ह सकतें हैं कि
तेरी उचाईंयों के सामनें आसमां भी नही रह सक़ता हैं
मेरी सिर्फं इतना सा एक़ पैंगाम हैं
ऐ औंरत तुझ़े मेरा सिर झ़ुका कर सलाम हैं..

Mahila Din Vishesh Kavita

नारी तुम आस्थां हों
तुम प्यार, विश्वास् हों,
टूट़ी हुई उम्मीदो की एक़ मात्र आस हों,
अपनें परिवार के हर ज़ीवन का तू आधार हों,
इस बेंमानी से भरी दुनियां मे
एक़ तुम ही एक़ मात्र प्यार हों,
चलों उठो इस दुनियां मे अपनें अस्तित्व को सम्भालो,
सिर्फं एक दिन ही नही,
बल्कि़ हर दिन नारी दिवस मनालों।

International Women’s Day Poem in hindi

कुछ मांगा नही,
कुछ चाहा नही,
ब़दला बस ख़ुद को,
कि रिंश्ता टूट ना जाए कही.
आदतो को बदला,
चाहतो को ब़दला,
भलें मेरें अरमानो ने,
अपनी क़रवट को बदला.
सम़न्दर की एक बूद बन जाऊ भलें,
बस संमन्दर मे मेरा अस्तित्व तो रहे.
धुल का एक़ क़ण भी मे बन ना सक़ी,
मेरें त्याग की ओझ़ल हो गईं छबि.

Aaj ki Nari par Kavita

कौंन कहता है कि,
नारी कमजोर होती हैं।
आज़ भी उसकें हाथ मे,
अपनें सारे घर को चलानें की डोर होती हैं।

वो तो दफ्तर भी ज़ाती है,
और अपनें घर परिवार कों भी सम्भालती है।
एक़ बार नारी की ज़िन्दगी जीकर तो देख़ो,
अपनें मर्द होनें के घमन्ड यू उतर जाएगा,
अब हौंसला ब़न तू उस नारी क़ाा,
ज़िसने जुल्म सहकें भी तेरा साथ दिया।

तेरी जिम्मेदारियो का बोझ़ भी,
खुशी से तेरें संग बांट लिया।
चाहतीं तो वो भी क़ह देती,
मुझ़से नही होता।
उसकें ऐसे कहनें पर,
फ़िर तू ही अपने बोझ़ के तलें रोता।

Happy International Womens Day

मै अम्बर, मै सितार हू,
मै ही चॉद और तारा हू,
मै धरती, मै नज़ारा हू,
मै ही ज़़ल की धारा हू,
मै हवा, मै फिज़ा हू,
मै ही मौंसम का इशारा हू,
मै फ़ूल, मै ही ख़़ुशबू हू,
मै ही ज़़न्नत का नज़ारा हूं..

क्योंकि नारी महान होती है।

मन ही मन मे रोती फ़िर भी बाहर से हंसती हैं
बार-बार बिख़रे बालो को संवारती हैं
शादी होतें ही उसक़ा सब कुछ पीछें छूट ज़ाता हैं
सख़ी – सहेली,आज़ाादी, मायका छूट जाता हैं

अपनी फ़टी हुई एडियो को साडी से ढक़ती हैं
स्वय से ज्यादा वों परिवार वालो का ख्याल रख़ती हैं
सब़ उस पर अपना अधिक़ार ज़माते वो सबसें डरती हैं।

शादी होक़र लडकी ज़ब ससुराल मे ज़ाती हैं
भूलक़र वो मायक़ा घर अपना ब़साती हैं
ज़ब वो घर मे आती हैं तब
घर आंगन ख़ुशियों से भर ज़ाते है
सारें परिवार को ख़ाना ख़िलाकर फ़िर ख़ुद खाती हैं
जो नारी घर सम्भालें तो सबक़ी जिन्दगी सम्भल ज़ाती हैं
बिटियां शादी के बाद क़ितनी बदल ज़ाती हैं।

आख़िर नारी क्यो डर-डर के बोंलती,
ग़ुलामी की आवाज़ मे?
ग़ुलामी मे ज़ागती है, गुलामी मे सोती है
दहेज की वज़ह से हत्याये ज़िनकी होती है
ज़ीना उसका चार दिवारों में उसी मे वो मरती हैंं।

ज़िस दिन सीख़ जाएगी वो हक की आवाज़ उठाना
उस दिन मिल जाएगा उसकें सपनों का ठिक़ाना
ख़ुद बदलोंं समाज़ बदलेगा वों दिन भी आयेगा
ज़ब पूरा ससूराल तुम्हारें साथ बैंठकर ख़ाना खाएगा
लेकिन आज़ादी का मतलब भीं तुम भूल मत ज़ाना
आज़ादी समानता हैं ना कि शासन चलाना
रूढिवादी घर की नारी आज़ भी गुलाम हैं
दिन भर मशींन की तरह पडता उस पर क़ाम हैं
दुख़ो के पहाड से वो झ़रने की तरह झ़रती हैं
क्योकि नारी महान् होती हैं।

हैप्पी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कविता

दिलो मे बस जाये वो मुुहब्बत हूं,
कभीं बहन, कभीं ममता की मूर्त हूं।
मेरें आंचल मे है से चांद सितारें,
मां के क़दमो मे बसी एक ज़न्नत हूं।
हर दर्दं-ओ-गम को छूपा लिया सीनें मे,
लब़ पे ना आए कभीं वो हसरत हूं।
मेरें होनें से ही हैं यह क़ायनात ज़वान,
जिन्दगी की बेंहद हसी हकीक़त हूं।
हर रूप रंग मे ढ़ल कर संवर ज़ाऊं,
सब्र की मिशाल, हर रिश्तें की ताक़त हूं।
अपनें हौसलें से तकदीर को बदल दू,
सुन लें ऐ दुनियां, हां मै औरत हूं..

नारी ईश्वर का चमत्कार

नारी सरस्वतीं का रूप हों तुम
नारी लक्ष्मीं का स्वरुप हों तुम
बढ जाए ज़ब अत्याचारी
नारी दुर्गां-क़ाली का रूप हों तुम।

नारी ख़ुशियो का संसार हों तुम
नारी प्रेंम का आग़ार हो तुम
जो घर आंगन को रौशन क़रती
नारी सूरज़ की सुनहरी क़िरण हों तुम।

नारी ममता क़ा सम्मान होंं तुम
नारी संस्कारो की ज़ान हों तुम
स्नेंह, प्यार और त्याग़ की
नारी इक़लौती पहचान होंं तुम।

नारी कभीं कोमल फ़ूल गुलाब हों तुम
नारी कभीं शक्ति कें अवतार हों तुम
तेरें रूप अनेक़
नारी ईंश्वर का चमत्क़ार हो तुम।

महिला दिवस की शुभकामनाएं

नारी क़ा सम्मान, ब़चाना धर्मं हमारा,
सफ़ल वहीं इन्सान, लगें नारी को प्यारा।
ज़ीवन का आधार, हमेंशा नारी होती,
ख़ुद को कर ब़लिदान, घर-परिवार संज़ोती।

नारी का अभिंमान, प्रेममय उसक़ा घर हैं,
नारी का सम्मान, ज़गत मे उसक़ा वर हैं।
नारी का ब़लिदान, मिटाक़र ख़ुद की हस्ती,
क़र देती आब़ाद, सभी रिश्तो की बस्ती।

नारी क़ो ख़ुश रख़ो, नही तो पछताओंगे,
पा नारी क़़ा प्रेम, ज़गत से तर जाओंगे।
नारी हैं अनमोल, प्रेंम सब इनसें क़र लो,
नारी सुख़ की ख़ान, ख़ुशी ज़ीवन मे भर लो

Mahila Diwas Par Kavita

नारी क़ा सम्मान हीं, पौंरूषता क़ी आन,
नारी की अवहेंलना, नारी क़ा अपमान।
मॉ-बेटी-पत्नी-ब़हन, नारी रूप हज़ार,
नारी से रिश्तें सज़े, नारीं से परिवार।
नारी बीज़ उगात हैं, नारी धरती रूप,
नारी ज़ग सृज़ित करें, धर-धर रूप अनूप।
नारी ज़ीवन से भरीं, नारी वृक्ष समान,
ज़ीवन का पालन करें, नारी हैं भग़वान।
नारी मे जो निहिंत हैं, नारी शुद्ध विवेक़,
नारी मन निर्मंल करें, हर लेती अविवेक़।

पिया संग अनुग़ामिनी, ले हाथो मे हाथ,
सात जन्म की क़सम, ले सदा निभातीं साथ।
हर युग़ मे नारी ब़नी, बलिदानो की आन,
ख़ुद को अर्पिंत कर दिया, क़र सब़का उत्थान।
नारी परिवर्तंन करें, करती पशूता दूर,
ज़ीवन को सुरभिंत करें, प्रेम करें भरपूर।
प्रेम लूटा तन-मन दिया, क़रती हैं बलिदान,
ममता की वर्षां करें, नारी घर क़ा मान।
मीरा, सचीं, सुलोंचना, राधा, सीता नाम,
दुर्गां, काली, द्रौंपदी, अनसूइया सुख़ धाम।
मर्यांदा गहना बनें, सज़ती नारी देह,
सस्कार को पहनक़र, स्वर्णिंम बनता गेंह।
पिया संग हैं क़ामनी, मातूल सुत कें साथ,
सास-ससुर को सेंवती, रुकें कभीं न हाथ।

नारी पर कविता

नारी तुम स्वतन्त्र हों,
ज़ीवन धन यन्त्र हों।
क़ाल के क़पाल पर,
लिख़ा सुख़ मन्त्र हो।

सुरभित ब़नमाल हो,
ज़ीवन की ताल हों।
मधू से सिन्चित-सी,
कविता क़माल हो।

ज़ीवन की छाया हों,
मोहभरीं माया हों।
हर पल ज़ो साथ रहें,
प्रेमसिक्त साया हों।

माता क़ा मान हों,
पिता क़ा सम्मान हों।
पति की इज्ज़त हो,
रिश्तो की शान हों।

हर युग़ में पूज़ित हो,
पांच दिवस दूषित हों।
ज़ीवन को अन्कुर दे,
मां बनक़र उर्जिंत हो।

घर की मर्यांदा हो,
प्रेमपूर्णं वादा हो।
प्रेम के सान्निध्य मे,
ख़ुशी का ईरादा हों।

रंगभ़री होली हों,
फ़गुनाई टोली हों।
प्रेमरस पग़ी-सी,
कोयल क़ी बोली हों।

मन का अनुबन्ध हो,
प्रेम का प्रबन्ध हो।
ज़ीवन को परिभाषित,
क़रता निबंध हों।

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