राजस्थान का इतिहास Rajasthan History In Hindi संस्कृति तथ्य व जानकारी में हम राज्य के बारे में जानेगे. इसका प्राचीन नाम राजपूताना था.
संभवतः अधिकतर समय तक राजस्थान में राजपूत राजाओं का शासन रहा इस कारण से इसे राजस्थान यानियों राजाओं का स्थान कहा जाता हैं. राजस्थान का इतिहास क्या है.
राजस्थान का इतिहास Rajasthan History In Hindi
राजस्थान इतिहास भारत के इतिहास के जितना ही पुराना है यहाँ कई प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष मिलते रहे हैं. एक समय यह हरा भरा और उपजाऊ प्रदेश हुआ करता था.
कालान्तर में नदियों द्वारा रास्ता बदल दिए जाने के कारण यह मरुस्थलीय प्रदेश के रूप में जाना जाने लगा. राजस्थान का इतिहास इनके जिले राजधानी, जनसंख्या, राज्य प्रतीक आदि के बारे में जानकारी देंगे.
राजस्थान इतिहास के स्रोत यहाँ की प्राचीन सभ्यताएं जिनमें कालीबंगा, भीनमाल, गिलूण्डगणेश्वर, ईसवाल, बैराठ, बालाथल, आहड़, बागोर, रंगमहल, ओझियाना, तिलवाड़ा, बरोर, सुनारी, नोह, जोधपुरा, समेत सैकड़ों सभ्यताएं इतिहास की गवाह रही हैं,
समय समय पर यहाँ के शासकों का विदेशी शक्तियों से मुकाबला होता रहा. मगर राज्य के इतिहास में कोई भी शक्ति सीधे तौर पर राजस्थान पर शासन नहीं कर पाई.
यहाँ के जागीरदार, सामंत और देशी राजा ही शासनकार्य किया करते थे. यहाँ के राजपूत राजाओं का लम्बा इतिहास रहा हैं. राजस्थान की आजादी के बाद राजधानी जयपुर ही हैं.
जिन्हें गुलाबी नगर के नाम से जाना जाता हैं. राजस्थान की कला, संस्कृति, भाषा में अनूठा स्वाद है जो इस राज्य के इतिहास की परम्परा का प्रतीक हैं.
राजस्थान का संक्षिप्त परिचय (Brief Information of Rajasthan History in Hindi)
राजस्थान भारत का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है. जो हमारे देश के उत्तर पश्चिम में स्थित है. यह भूभाग प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक कई मानव सभ्यताओं के पतन एवं विकास स्थली रहा है.
यहाँ पूरा पाषाण युग, कांस्य युगीन सिन्धु घाटी सभ्यता की प्राचीन बस्तियाँ वैदिक सभ्यता एवं ताम्रयुगीन सभ्यताएं खूब फली फूली थी.
छठी शताब्दी के बाद राजस्थानी भू भाग से राजपूती राज्यों का उदय प्रारम्भ हुआ, जो धीरे धीरे सम्पूर्ण क्षेत्र अलग अलग रियासतों के रूप में बंट गई. रियासते राजपूती राजाओं के अधीन थी.
राजपूत राजाओं की प्रधानता के कारण कालांतर में इस सम्पूर्ण क्षेत्र को राजपूताना कहा जाने लगा, वाल्मीकि ने राजस्थान प्रदेश को मरुकान्तार कहा है.
राजस्थान शब्द का प्राचीनतम प्रयोग राजस्थानीयादित्य विक्रम संवत 682 में उत्कीर्ण वसंतगढ़ सिरोही के शिलालेख में मिलता है.
इसके बाद मुहणौत नैणसी के ख्यात व रुजरूपक में राजस्थान शब्द का प्रयोग हुआ है.परन्तु इस भू भाग के लिए राजपूताना शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1800 ईस्वी में जोर्ज थोमस द्वारा किया गया.
कर्नल जेम्स टॉड (पश्चिमी एवं मध्य भारत के राजपूत राज्यों के पोलिटिकल एजेंट) ने इस राज्य को रायथान कहा, क्योंकि स्थानीय साहित्य और बोलचाल में राजाओं के निवास को रायथान कहते थे.
उन्होंने 1829 में लिखित अपनी प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक Annals and antiquities of Rajasthan, or The central and western Rajput states of India में सर्वप्रथम इस भौगोलिक प्रदेश के लिए Rajas,than शब्द प्रयुक्त किया.
स्वतंत्रता के पश्चात 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से इस प्रदेश का नाम राजस्थान स्वीकार कर लिया गया. स्वतंत्रता के समय राजस्थान 19 देशी रियासतों 3 ठिकाने कुशनगढ़, लावा व नीमराणा तथा चीफ कमिश्नर द्वारा अजमेर मेरवाड़ा प्रदेश में विभक्त था.
स्वतंत्रता के बाद अजमेर मेरवाड़ा के प्रथम एवं एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय थे. राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर 1956 को आया, इससे पूर्व राजस्थान निर्माण निम्न चरणों में हुआ.
3,42,239 वर्ग किलो मीटर में फैला यह देश के सबसे बड़ा राज्य हैं. राजस्थान की जनसंख्या वर्तमान तक तकरीबन 7 करोड़ हैं. यहाँ की राजधानी जयपुर हैं.
वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. यहाँ के बड़े नगरों में जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर का नाम आता हैं. हीरालाल शास्त्री राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे.
7 चरणों में राजस्थान का पुनर्गठन 1 नवम्बर 1956 को पूर्ण हुआ. राज्य की भाषा हिंदी, राज्य खेल बास्केटबाल, राज्यपाल कल्याण सिंह, राज्य दिवस 30 मार्च स्थापना दिवस, राज्य पक्षी गोडावण, राज्य पशु ऊंट व चिंकारा, कुल जिले 33 कुल संभाग 7 हैं.
आजादी के समय– 1949 ई पूर्व राजस्थान नाम से किसी इकाई का अस्तित्व नहीं था. प्राचीनकाल से ही यहाँ के क्षेत्रों के भिन्न भिन्न नाम प्रचलित थे. महाभारत काल में बीकानेर और जोधपुर का क्षेत्र जांगल प्रदेश कहलाता था.
नागौर अक्षत्रियपुर नाम से प्रसिद्ध था. अलवर का उत्तरी क्षेत्र कुरु जनपद में में दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्र मत्स्य जनपद के अंतर्गत तथा भरतपुर धौलपुर एवं करौली का अधिकांश क्षेत्र शूरसेन जनपद में सम्मिलित था.
उदयपुर शिवी जनपद का भाग था. तो झालावाड़ एवं टोंक का प्रदेश मालव प्रदेश का हिस्सा थे. सिरोही अर्बुद देश में सम्मिलित था. जोधपुर को मरू, मरुवार और फिर मारवाड़ कहा जाने लगा. जैसलमेर का प्राचीन नाम मांड था. डूंगरपुर- बाँसवाड़ा का क्षेत्र बांगड़ कहलाता था. कोटा और बूंदी का प्रदेश हाडौती के नाम से प्रसिद्ध था.
भौगोलिक विशेषताओं के कारण भी राजस्थान के कुछ क्षेत्रों के नाम रखे गये थे. माही नदी के समीपस्थ प्रतापगढ़ का भू भाग कांठल कहलाता था. क्योकि यह क्षेत्र माही नदी के किनारे अर्थात कांठे पर स्थित था. छपन्न ग्राम समूह के कारण प्रतापगढ़ बाँसवाड़ा के मध्य क्षेत्र का भू भाग छप्पन कहलाता था.
Rajasthan History & Culture Information In Hindi
डूंगरपुर बाँसवाड़ा के मध्य को मेवल कहते थे. भैंसरोड़गढ़ से लेकर बिजौलिया तक का क्षेत्र पठारी होने के कारण उपरमाल के नाम से जाना जाता हैं.
उदयपुर के आसपास का प्रदेश पहाड़ियों की अधिकता के कारण गिरवा कहलाता था. इस प्रकार भौगोलिक राजनैतिक एवं ऐतिहासिक कारणों से राजस्थान के भू क्षेत्रों के विभिन्न नाम प्रचलित थे.
इस पूरे भूभाग के लिए राजस्थान शब्द का प्रयोग कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक एनल्स एंड एक्टिविटीज ऑफ राजस्थान में किया हैं.
कर्नल टॉड ही वह प्रथम व्यक्ति था, जिसने राजस्थान के इतिहास को विदेशी धरती पर प्रसिद्धि व पहचान दिलाई. टॉड ने राजस्थानी इतिहास की तुलना यूनान की सभ्यता व संस्कृति से की हैं.
इस समय तक यूनानी सभ्यता ही सबसे प्राचीन, विकसित, सुसंस्कृतिक एवं वीरतापूर्ण कृत्यों के लिए विश्वप्रसिद्ध थी. टॉड ने लिखा कि यूनान में तो एक थर्मोपल्ली, मेरेथान और लियोनिडास प्रसिद्ध हैं.
लेकिन राजस्थान की तो प्रत्येक रणस्थली थर्मोपोली और मेराथन हैं. तथा प्रत्येक घर में लियोनिडास ने जन्म लिया हैं. ध्यातव्य है कि कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी के युद्ध को थर्मोपल्ली और दिवेर के युद्ध को मेरेथान की संज्ञा दी हैं.
राजस्थान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी Rajasthan History Question Itihas Hindi Me
पुरातात्विक उत्खनन, पुरालेखीय सामग्री, शिलालेख, प्राचीन खंडहर, स्थापत्य एवं चित्रकला के नमूने, काव्य कथाएँ, वंशावलियों शासकों द्वारा जारी किये गये परवाने, दान पत्र, पट्टे, दस्तावेज, सिक्के एवं विदेशी यात्रियों के वृतांत ने राजस्थान के इतिहास का अध्ययन एवं विश्लेष्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं.
राजस्थान सभ्यता एवं संस्कृति सिन्धु घाटी सभ्यता से भी प्राचीन हैं. सरस्वती एवं द्रषद्वती नदियों के तट पर आज से पांच छः हजार वर्ष पूर्व अत्यंत समुन्नत एवं विकसित सभ्यता पल्लवित हुई थी. उत्खनन के दौरान सिन्धु घाटी सभ्यता के समकालीन एवं परवर्ती कई सभ्यता स्थल प्रकाश में आए हैं.
राजस्थान के दर्शनीय स्थान Rajasthan History Ki Information Facts Essay
राजस्थान पर्यटन के लिहाज से समृद्ध राज्य है जाने क्या दिख जाए राजस्थान पर्यटन का लोगो है. रोजाना हजारों देशी और विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं. राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध स्थल व पर्यटन स्थान निम्न हैं.
- अजमेर- मध्यकाल से लेकर आज तक अजमेर में ही सर्वाधिक देशी और विदेशी पर्यटक है यहाँ ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह है इसके अतिरिक्त यहाँ पर विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर भी लोगों का आस्था का केंद्र बना हुआ. इस लिहाज से अजमेर राजस्थान की धार्मिक राजधानी हैं.
- उदयपुर– मध्यकाल में यह क्षेत्र मेवाड़ का हिस्सा रहा हैं, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर पर मेवाड़ के गुहिल वंश का लम्बे समय तक शासन रहा हैं. यहाँ जग मंदिर,सिटी पैलेस,बागोर की हवेली,बायोलॉजिकल पार्क,मानसून फोर्ट,वैक्स म्युसियम,कर्णि देवी का मंदिर,फतेह सागर आदि पर्यटक स्थल हैं. राणा प्रताप जैसे वीर यौद्धा की भूमि को देखने की उत्कंठा हर सैलानी को रहती हैं.
- जयपुर- यह राजस्थान का राजधानी शहर हैं. यह अपनी नगर योजना तथा ऊँचे भवनों के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जयपुर की गणना देश के बड़े महानगरों में की जाती हैं. यहाँ आमेर का किला,हवा महल,सिटी पैलेस,सिसौदिया रानी का बाग़,अलबर्ट हाल म्युसियम,कनक वृंदावन,संगमरमर की मूर्तियाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं.
- जोधपुर- यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर भी हैं. यहाँ की पहाड़ी पर स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग एक दर्शनीय स्थल हैं. राजस्थान उच्च न्यायालय भी जोधपुर में ही स्थित हैं. यहाँ का धातु तथा वस्त्र उद्योग प्रसिद्ध हैं. राज्य के इतिहास Rajasthan History से जुड़े कई किले और दुर्ग पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होते हैं. जैसलमेर का सोनार किला, चित्तौड़ दुर्ग, विजय स्तम्भ, कुम्भलगढ़, रणथम्भौर, जैसलमेर तथा झुंझुनू की हवेलियाँ भी प्रसिद्ध हैं.
Medieval Rajasthan History & Culture
कहा जाता है कि राजस्थान के प्राचीन शासक मीणा थे इसके बाद यहाँ पर गुजरात के गुर्जरों ने सत्ता स्थापित की तथा तेहरवी सदी में राजपूत राज्यों का जन्म हुआ.
अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट माने जाते हैं.
राजस्थान में मुख्य रूप से मेवाड राज्य सर्वाधिक समय तक स्वतंत्र रहा. यहाँ के वीर शासकों का लम्बा इतिहास रहा है. राणा मोकल, कुम्भा, सांगा, राणा प्रताप जैसे प्रतापी शासकों में दिल्ली सल्तनत और मुगलों के दांत खट्टे किये.
मध्यकाल में अधिकतर राजपूत राजाओं ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी. मगर महाराणा प्रताप अकबर से लोहा लेते रहे.
मुगलों के बाद कुछ समय तक कुछ क्षेत्रों पर मराठे शासन करने पर, कही पर जाट राज्य तथा कहीं पर सत्ता राजपूत राजाओं के हाथ में रही. 18 वी सदी के उतरार्ध तक अंग्रेजों ने लगभग सम्पूर्ण राजस्थान पर कब्जा कर लिया.
हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर शासन तो राजाओं का ही रहा मगर वे अंग्रेजों के प्रतिनिधि के रूप में उनकी नीतियों की पालना कर रहे थे.
राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति History & Culture Of Rajasthan In Hindi
राजस्थान भारत का एक विशिष्ट प्रान्त है. ऐतिहासिक द्रष्टि से यह प्रान्त वीर भूमि माना गया है. प्राकृतिक द्रष्टि से विश्व के दुसरे नंबर का मरुस्थल थार का मरुस्थल इसी राज्य के पश्चिम में स्थित है.
यह अरावली पर्वत श्रंखलाओं से घिरा एवं विषम परिस्थतियों वाला सूखा प्रदेश है. गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा आदि की सीमाएं इस प्रान्त से लगी हुई है. यहाँ की आबादी सात करोड़ के आस-पास है.
सम् और कृति के योग से बना संस्कृति शब्द बना है. यह संस्कार का पर्यायवाची है. संस्कृति का अर्थ, अच्छे संस्कारों की परम्परा स्थापित करना और आचरण शुद्ध करना.
अतः सामाजिक जीवन को हर तरफ से शुद्ध करने वाली संस्कृति कहलाती है. साफ़ शब्दों में जिन तत्वों से आत्मा का परिष्कार हो, व्यक्ति के आचरण में शुद्धता रहे, उन तत्वों को संस्कृति कहते है.
जैसे साहित्य, कला, दर्शन, संगीत, धर्म आदि. सामजिक परम्पराएं त्यौहार उत्सव विशवास आदि भी संस्कृति में शामिल है. संस्कृति को सभ्यता से भिन्न माना जाता है. क्योकि सभ्यता का सम्बन्ध शरीर से होता है तथा संस्कृति का सम्बन्ध आत्मा से होता है.
राजस्थानी संस्कृति की विशेषताएं (Features of Rajasthani culture)
- राजस्थान प्रदेश अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं की द्रष्टि से अपना विशेष महत्व रखता है. यहाँ पर प्राचीनकाल से अनेक परम्पराएं, पर्वोत्सव एवं सांस्कृतिक रीती रिवाज प्रचलित रहे है. इस प्रदेश की सांस्कृतिक विशेषताएं निम्नलिखित है.
-वीरता- यह वीरभूमि रही है. - कुम्भा,प्रताप, दुर्गादास राठौड़, जैसे वीर यही हुए थे. पद्मिनी जैसी रानियों ने यही जौहर किया था. यहाँ की वीरता का परिचय कराने वाला एक दौहा देखिये-
”इला न देणी आपणी, हालरियों हुलराय
पूत सिखावै पालने, मरण बढाई मांय”
- मर्यादा का पालन– यहाँ के लोगों ने प्राण देकर भी मर्यादा का पालन किया है. राजपूतों में क्षत्रिय धर्म का पालन प्राणों से भी बढ़कर माना जाता था. सलुम्बर की हाड़ी रानी ने इसलिए अपना सिर काटकर अपने प्रियतम को दे दिया, ताकि उसका वीर पति अपनी मर्यादा से विचलित न हो पाएं
- मेहमानों का आदर– मेहमानों का पूरी आत्मीयता से आदर सत्कार किया जाता है. और उन्हें न केवल पूज्य माना जाता है, अपितु उनकी खातिर प्राणों को न्योछावर करने में भी संकोच नही किया जाता है. रतनसिंह ने मेहमान के रूप में अलाउद्दीन खिलजी का जो सत्कार किया था वह स्मरणीय है.
- त्योहार- राजस्थान में अनेक त्यौहार मनाएं जाते है. गणगौर, तीज आदि तो यहाँ के विशेष त्यौहार है. ये प्रेम और उल्लास से लबालब भरे हुए है. इसी प्रकार यहाँ पर विभिन्न स्थानों पर अनेक पर्वोत्सव मनाएं जाते है. मेले लगते है तथा उसमे जनता अपनी आस्था प्रसन्नता से व्यक्त करती है.
- विविध संस्कार– जन्म, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णवेध, विवाह तथा अत्येष्टि आदि अनेक संस्कार यहाँ बड़ी धूम धाम से किये जाते है.
- राजस्थानी लोकगीत भी अविस्मर्णीय है. इनमे प्रेम की निर्मलता के साथ जितने मार्मिक उदहारण मिलते है, वे अन्यत्र दुर्लभ है. राजस्थान में साहित्य और कला का विपुल भंडार है. यहाँ के हस्तलिखित ग्रथों के भंडार बहुत प्रसिद्ध है.
राजस्थानी संस्कृति पर आधुनिक प्रभाव (Modern influences on Rajasthani culture)
राजस्थानी संस्कृति की कई विशेषताएं आधुनिक प्रभाववश लुप्त होती जा रही है. यहाँ के गावों में अब भी पुरातन गौरव की झलक देखी जा सकती है.
फिर भी पाश्चात्यानुकरण ने इस क्षेत्र को भी प्रभावित किया है. इसी कारण पुरातन सांस्कृतिक मूल्यों का हास होता जा रहा है.
राजस्थान की संस्कृति आज भी जीवंत है. शहरों में भले ही आधुनिकता आ गई हो, फिर भी पर्व, त्यौहार एवं उत्सव परम्परा अनुसार मनाएं जाते है. ग्राम्य जीवन में वही सरलता सरसता विद्यमान है. इस द्रष्टि से राजस्थान का अत्यधिक महत्व है.