Ravi Jag Me Sobha Sarsaata | Hindi Kavita
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता
सब लगे है क्रम में, कोई निष्क्रिय द्रष्टि नही आता.
है उद्देश्य नितांत तुच्छ त्रण के भी लघु जीवन का
उसी पूर्ति में लगा रहता है अंत कर्ममय तन का
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि बल विलसित जन्म तुम्हारा
क्या उद्देश्य रहित हो जग में, तुमने कभी विचारा
बुरा न मानो एक बार सोचो तुम अपने मन में
क्या कृतव्य समाप्त कर लिया तुमने निज जीवन में
जिस पर गिरकर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है
जिसका खाकर अन्न सुधासम नीर समीर पिया है,
वही स्नेह की मूर्ति दयामयी माता तुल्य मही है,
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नही है ?